51. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में “Export Obligation” का क्या अर्थ है?
Export Obligation (EO) वह शर्त होती है जो सरकार द्वारा किसी निर्यात प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत लाभ लेने वाले निर्यातक पर लगाई जाती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि सरकार से प्राप्त रियायतों के बदले में निर्यातक निश्चित मूल्य या मात्रा की वस्तुओं का निर्यात करेगा। जैसे EPCG योजना के तहत कंपनी को मशीनरी के आयात पर शुल्क छूट मिलती है, लेकिन बदले में उसे छह साल में निर्धारित EO पूरा करना होता है। EO पूरी नहीं होने पर दंडात्मक कार्रवाई की जाती है।
52. ‘Transit Trade’ क्या है?
Transit Trade वह व्यापार है जिसमें कोई वस्तु एक देश से दूसरे देश की सीमा पार करती है लेकिन गंतव्य (destination) किसी तीसरे देश में होता है। यह व्यापार विशेष रूप से भूमि से घिरे देशों के लिए महत्वपूर्ण होता है। अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत ऐसे व्यापार के लिए मार्ग देने और सीमा शुल्क में छूट देने की व्यवस्था की जाती है। भारत और नेपाल, या भारत और अफगानिस्तान के बीच ऐसा व्यापार प्रचलित है।
53. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Trade Barriers’ को कैसे कम किया जा सकता है?
Trade Barriers को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौते, जैसे WTO समझौते, FTAs, और TFA कार्य करते हैं। सरकारें नीतिगत सुधार, डिजिटल कस्टम प्रक्रिया, व्यापार नीति में पारदर्शिता, और टैरिफ में कमी लाकर इन्हें घटा सकती हैं। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय विवाद समाधान व्यवस्था भी व्यापार में बाधाओं को कम करने में सहायक होती है। भारत ने डिजिटल पोर्टल्स जैसे ICEGATE और E-Sanchit से व्यापार में पारदर्शिता बढ़ाई है।
54. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Retaliatory Tariff’ क्या होता है?
जब कोई देश अपने उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाता है या व्यापार में भेदभाव करता है, तो प्रभावित देश भी बदले में उसी प्रकार के शुल्क या प्रतिबंध लगाता है। इस प्रक्रिया को Retaliatory Tariff कहा जाता है। यह व्यापारिक तनाव को जन्म दे सकती है। उदाहरण के तौर पर, अमेरिका द्वारा स्टील पर शुल्क लगाने के बाद भारत ने भी कुछ अमेरिकी उत्पादों पर बदले में शुल्क बढ़ा दिया था।
55. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Free Trade Area’ और ‘Customs Union’ में क्या अंतर है?
Free Trade Area (FTA) में सदस्य देश आपस में टैरिफ और कोटा को समाप्त कर देते हैं, लेकिन वे अपने-अपने बाहरी देशों के लिए स्वतंत्र टैरिफ नीति अपनाते हैं। उदाहरण: ASEAN।
Customs Union में सदस्य देश न केवल आपसी व्यापार बाधाएं हटाते हैं, बल्कि बाहरी देशों के लिए एक समान टैरिफ नीति भी अपनाते हैं। उदाहरण: यूरोपीय संघ। Customs Union अधिक एकीकृत व्यवस्था होती है।
56. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Non-Tariff Barriers’ के प्रकार क्या हैं?
Non-Tariff Barriers (NTBs) में कोटा, लाइसेंसिंग आवश्यकताएं, गुणवत्ता मानक, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा नियम, तकनीकी अड़चनें (TBT), घरेलू सब्सिडी, और प्रशासनिक देरी शामिल होती हैं। ये बाधाएं सीधे टैरिफ नहीं होतीं, लेकिन व्यापार को कठिन बना देती हैं। WTO इन बाधाओं को पहचानता है और इन पर नियंत्रण हेतु नियम बनाता है।
57. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Exchange Control Regulations’ का क्या महत्व है?
Exchange Control Regulations किसी देश की विदेशी मुद्रा नीति को नियंत्रित करने हेतु बनाए गए कानून होते हैं। भारत में FEMA (Foreign Exchange Management Act, 1999) इस कार्य के लिए लागू है। इसके तहत विदेशों से भुगतान, निवेश, और व्यापारिक लेनदेन को नियंत्रित किया जाता है। इसका उद्देश्य विदेशी मुद्रा भंडार की सुरक्षा, विदेशी निवेश को नियमित करना और विदेशी लेनदेन को पारदर्शी बनाना है।
58. भारत की ‘Act East Policy’ का अंतरराष्ट्रीय व्यापार में क्या प्रभाव है?
भारत की ‘Act East Policy’ का उद्देश्य दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के साथ व्यापार, कनेक्टिविटी और रणनीतिक संबंधों को बढ़ावा देना है। इस नीति के तहत भारत ने ASEAN देशों के साथ FTA किया है, पूर्वोत्तर भारत में व्यापार गलियारों को विकसित किया गया है, और बंदरगाह संपर्क मजबूत किया गया है। इससे व्यापार बढ़ा है, विशेषकर ऑर्गेनिक उत्पादों, पर्यटन और सेवा क्षेत्र में।
59. WTO की विवाद समाधान प्रणाली (Dispute Settlement Mechanism) कैसे कार्य करती है?
WTO की DSM एक संस्थागत प्रक्रिया है जिसमें कोई सदस्य देश दूसरे सदस्य के व्यापारिक उपायों को WTO नियमों का उल्लंघन मानते हुए चुनौती दे सकता है। इसमें चार चरण होते हैं:
- परामर्श (Consultation),
- पैनल गठन,
- अपीलीय निकाय द्वारा पुनः परीक्षण,
- अनुपालन और जुर्माना।
यह प्रक्रिया समयबद्ध और नियम-आधारित होती है।
60. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Trade Dumping’ का प्रभाव क्या होता है?
Dumping से घरेलू बाजार में कम कीमत पर विदेशी वस्तुएं आती हैं, जिससे घरेलू उत्पादक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकते हैं। इससे उत्पादन में गिरावट, बेरोजगारी और आर्थिक असंतुलन हो सकता है। भारत ने कई बार चीन, मलेशिया और अन्य देशों से आयात पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगाई है ताकि घरेलू उद्योगों को संरक्षण मिल सके।
61. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारत की ‘Atmanirbhar Bharat Abhiyan’ की भूमिका क्या है?
‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ का उद्देश्य भारत को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना है, जिससे विदेशी निर्भरता कम हो और भारत निर्यात-प्रधान राष्ट्र बन सके। इसके अंतर्गत MSME क्षेत्र को सशक्त करना, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) देना, और डिजिटल व्यापार को बढ़ावा देना शामिल है। यह अभियान भारत को वैश्विक सप्लाई चेन में एक वैकल्पिक केंद्र बनाने की दिशा में प्रयासरत है।
62. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Digital Trade’ का क्या महत्व है?
Digital Trade वह व्यापार है जो इंटरनेट आधारित प्लेटफार्मों के माध्यम से वस्तुओं, सेवाओं या डेटा का आदान-प्रदान करता है। ई-कॉमर्स, क्लाउड सेवा, डिजिटल भुगतान आदि इसके उदाहरण हैं। यह छोटे व्यापारियों को वैश्विक बाज़ार तक पहुंच देता है। WTO डिजिटल व्यापार पर वैश्विक नियम बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है। भारत ने भी डिजिटल लॉजिस्टिक्स और इनवॉइसिंग सिस्टम अपनाया है।
63. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Trade Sanctions’ का क्या तात्पर्य है?
Trade Sanctions वे आर्थिक प्रतिबंध हैं जो एक देश किसी अन्य देश पर उसके राजनीतिक, सैन्य या मानवाधिकार उल्लंघन के कारण लगाता है। इसमें आयात-निर्यात पर प्रतिबंध, बैंकिंग सेवा रुकावट, या निवेश पर रोक शामिल हो सकती है। अमेरिका द्वारा ईरान या रूस पर लगाए गए व्यापार प्रतिबंध इसके उदाहरण हैं। ये व्यापार को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
64. भारत की ‘Make in India’ योजना का अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर प्रभाव क्या है?
‘मेक इन इंडिया’ योजना भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। इस योजना के तहत निवेश को प्रोत्साहन, विनिर्माण आधारभूत संरचना में सुधार, व्यापार नीति सरलीकरण, और निर्यात को बढ़ावा दिया गया है। इससे भारत के व्यापार में विविधता और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ी है। विशेष रूप से मोबाइल, ऑटोमोबाइल, रक्षा और फार्मा क्षेत्रों में उल्लेखनीय निर्यात वृद्धि हुई है।
65. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Preferential Market Access’ (PMA) नीति क्या है?
PMA नीति के तहत सरकार घरेलू निर्माताओं को कुछ उत्पादों के सार्वजनिक खरीद में प्राथमिकता देती है, विशेषकर तकनीकी और सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों में। इसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता, स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देना और व्यापार घाटा कम करना होता है। भारत ने इस नीति का उपयोग टेलीकॉम, सोलर, और डिफेंस उपकरणों की खरीद में किया है, जिससे स्थानीय उत्पादकों को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में समर्थन मिला है।
66. भारत की ‘राष्ट्रीय रसद नीति 2022’ का अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर क्या प्रभाव है?
राष्ट्रीय रसद नीति (National Logistics Policy – NLP) 2022 का उद्देश्य भारत के रसद क्षेत्र को दक्ष, समावेशी और तकनीकी रूप से उन्नत बनाना है। इसका लक्ष्य लॉजिस्टिक लागत को GDP के 8% तक लाना है। यह व्यापार को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाएगा, निर्यात में तेजी लाएगा और आपूर्ति श्रृंखला को सुदृढ़ बनाएगा। NLP के अंतर्गत डिजिटलीकरण, मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट, और Unified Logistics Interface Platform (ULIP) को बढ़ावा दिया गया है।
67. भारत में अंतरराष्ट्रीय व्यापार से संबंधित प्रमुख बंदरगाह कौन-कौन से हैं?
भारत में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए 12 प्रमुख बंदरगाह और 200 से अधिक छोटे बंदरगाह हैं। प्रमुख बंदरगाहों में मुंबई का जवाहरलाल नेहरू पोर्ट (JNPT), कोलकाता पोर्ट, चेन्नई पोर्ट, कोचीन पोर्ट, विशाखापत्तनम पोर्ट और पारादीप पोर्ट प्रमुख हैं। ये बंदरगाह अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए कंटेनर ट्रांसपोर्ट, बल्क कार्गो, और निर्यात-आयात सुविधा प्रदान करते हैं। SAGARमाला परियोजना के तहत इनका आधुनिकीकरण किया जा रहा है।
68. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Export Credit Guarantee Corporation (ECGC)’ की भूमिका क्या है?
ECGC एक सरकारी संस्था है जो निर्यातकों को बीमा और गारंटी सेवाएं प्रदान करती है ताकि वे विदेशी खरीदारों से भुगतान न मिलने के जोखिम से सुरक्षित रह सकें। यह निर्यातकों को बैंकों से ऋण लेने में मदद करता है और भुगतान डिफॉल्ट की स्थिति में बीमा कवरेज देता है। इससे निर्यातकों का आत्मविश्वास बढ़ता है और वे नए बाजारों में प्रवेश कर पाते हैं।
69. भारत की ‘Look West Policy’ का व्यापारिक दृष्टिकोण से महत्व क्या है?
‘Look West Policy’ भारत की विदेश नीति का हिस्सा है जिसका उद्देश्य पश्चिम एशिया और अफ्रीका के साथ व्यापार और रणनीतिक संबंध मजबूत करना है। इस नीति के तहत भारत ने UAE, सऊदी अरब, इज़राइल, अफ्रीका आदि देशों के साथ निवेश, ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा, और व्यापार समझौते किए हैं। इससे भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति, निर्माण क्षेत्र में निवेश और सेवा व्यापार में अवसर मिले हैं।
70. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारत की WTO में भूमिका कैसी रही है?
भारत WTO का संस्थापक सदस्य है और विकासशील देशों की आवाज़ के रूप में जाना जाता है। भारत ने कृषि सब्सिडी, सार्वजनिक भंडारण, IPR, और सेवा व्यापार जैसे मुद्दों पर अपने हितों की जोरदार वकालत की है। भारत विकासशील देशों को विशेष और अलग व्यवहार (S&DT) देने की वकालत करता है। WTO में भारत का दृष्टिकोण व्यापार और सामाजिक न्याय के संतुलन पर आधारित है।
71. भारत में ‘ई-मार्केटप्लेस’ (GeM) का अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर क्या प्रभाव है?
GeM (Government e-Marketplace) भारत सरकार की डिजिटल सार्वजनिक खरीद प्रणाली है। यह सरकारी संस्थानों को पारदर्शी, दक्ष और प्रतिस्पर्धी तरीके से वस्तुएं और सेवाएं खरीदने की सुविधा देती है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में, इससे घरेलू उत्पादकों को सरकारी खरीद में अवसर मिलता है, जिससे वे निर्यात के लिए उत्पादन का विस्तार कर सकते हैं। MSMEs को इससे विशेष लाभ मिलता है।
72. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Special and Differential Treatment (S&DT)’ क्या है?
S&DT WTO द्वारा विकासशील और अल्पविकसित देशों को दी जाने वाली विशेष सुविधा है। इसके तहत उन्हें टैरिफ में छूट, अधिक समयसीमा, और तकनीकी सहायता दी जाती है। भारत जैसे देशों को कृषि सब्सिडी, सार्वजनिक वितरण प्रणाली और श्रमिक-सुरक्षा उपायों के लिए लचीलापन मिलता है। S&DT व्यापार में समान अवसर और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
73. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘TRIMS Agreement’ का क्या महत्व है?
TRIMS (Trade Related Investment Measures) WTO का एक समझौता है जो यह सुनिश्चित करता है कि निवेश संबंधी उपाय व्यापार को अनुचित रूप से प्रभावित न करें। इसके तहत ‘लोकल कंटेंट आवश्यकता’ (local content requirement) जैसे उपायों पर रोक है। भारत को कई बार इस समझौते के कारण निवेश प्रोत्साहन नीति में बदलाव करना पड़ा। यह समझौता निवेश और व्यापार में समानता लाने हेतु लागू है।
74. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Sanitary and Phytosanitary Measures (SPS)’ क्या हैं?
SPS उपाय ऐसे नियम होते हैं जो खाद्य सुरक्षा और पशु-पौधों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए लागू किए जाते हैं। इनका उद्देश्य स्वास्थ्य की रक्षा करना है, लेकिन कभी-कभी इनका उपयोग व्यापारिक बाधा के रूप में भी किया जाता है। WTO सदस्य देश इन नियमों को वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर लागू करने के लिए बाध्य हैं। भारत में FSSAI, APEDA आदि SPS उपायों का क्रियान्वयन करते हैं।
75. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Technical Barriers to Trade (TBT)’ क्या होते हैं?
TBT ऐसे तकनीकी नियम, मानक, लेबलिंग और परीक्षण से संबंधित उपाय हैं जो किसी देश में वस्तुओं के गुणवत्ता और सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं। लेकिन यदि ये अत्यधिक कठोर हों तो ये व्यापार में बाधा बन सकते हैं। WTO TBT समझौते के तहत यह सुनिश्चित करता है कि ये मानक भेदभाव रहित और व्यापार-प्रति अनुकूल हों। भारत में BIS (Bureau of Indian Standards) TBT को लागू करता है।
76. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Free On Board (FOB)’ और ‘Cost, Insurance and Freight (CIF)’ में क्या अंतर है?
FOB में विक्रेता वस्तु को जहाज पर चढ़ाने तक जिम्मेदार होता है, उसके बाद की जिम्मेदारी खरीदार की होती है।
CIF में विक्रेता जहाज पर चढ़ाने के बाद माल बीमा और मालभाड़ा (freight) भी वहन करता है।
अंतरराष्ट्रीय अनुबंधों में इन शर्तों से यह तय होता है कि जोखिम और लागत किसके पास होगी।
77. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Letter of Credit (LC)’ की भूमिका क्या है?
Letter of Credit एक बैंक द्वारा जारी किया गया दस्तावेज़ होता है जो विक्रेता को आश्वस्त करता है कि उसे भुगतान मिलेगा यदि वह आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करता है। यह निर्यातकों और आयातकों के बीच भरोसे का माध्यम है। इससे क्रेडिट रिस्क कम होता है, व्यापारिक विश्वास बढ़ता है और दूर-दराज देशों के साथ व्यापार आसान बनता है।
78. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Hawala’ लेनदेन का क्या प्रभाव होता है?
हवाला एक अवैध अनौपचारिक वित्तीय प्रणाली है जिसमें धन एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिना वैधानिक बैंकिंग चैनल के पहुँचता है। यह मनी लॉन्ड्रिंग, टैक्स चोरी और अवैध व्यापार को बढ़ावा देता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में हवाला लेनदेन से वित्तीय पारदर्शिता, विदेशी मुद्रा विनियमन और कर प्रशासन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। भारत में FEMA और PMLA के तहत हवाला पर रोक है।
79. भारत में ‘Border Haats’ क्या हैं और उनका अंतरराष्ट्रीय व्यापार में योगदान क्या है?
Border Haats सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थापित स्थानीय बाजार हैं जो भारत और उसके पड़ोसी देशों (जैसे बांग्लादेश, म्यांमार) के लोगों को आपसी व्यापार की सुविधा प्रदान करते हैं। इनसे सीमा पर रहने वाले लोगों को रोज़गार, सांस्कृतिक संबंध और सूक्ष्म व्यापार के अवसर मिलते हैं। यह सीमा पार व्यापार और आपसी विश्वास को मजबूत करता है।
80. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Trade Diversion’ और ‘Trade Creation’ का क्या अर्थ है?
Trade Creation वह स्थिति है जब व्यापार समझौते के कारण सस्ती और कुशल उत्पादन वाली वस्तुओं का आयात बढ़ता है।
Trade Diversion तब होता है जब समझौते के कारण किसी देश को अधिक मूल्य वाली वस्तु खरीदनी पड़ती है, जबकि वह पहले किसी सस्ते देश से खरीदता था। यह दोनों घटनाएं FTAs और Customs Unions के प्रभाव का हिस्सा होती हैं।
81. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Third Party Export’ क्या होता है?
Third Party Export वह प्रक्रिया है जिसमें निर्यातक के स्थान पर कोई तीसरा पक्ष निर्यात करता है, लेकिन वस्तु और आपूर्ति मूल निर्माता द्वारा की जाती है। यह आमतौर पर तब होता है जब निर्माता के पास IEC कोड या अनुभव नहीं होता, और वह किसी अधिक अनुभवी निर्यातक के माध्यम से सामान विदेश भेजता है। यह लघु उद्यमियों के लिए उपयोगी व्यवस्था है।
82. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारत की प्रमुख निर्यात संवर्धन योजनाएं कौन-कौन सी हैं?
भारत सरकार की प्रमुख निर्यात संवर्धन योजनाएं हैं:
- RoDTEP (Remission of Duties and Taxes on Export Products)
- EPCG (Export Promotion Capital Goods Scheme)
- TIES (Trade Infrastructure for Export Scheme)
- MAI (Market Access Initiative)
- MEIS (अब बंद कर दी गई है)
इन योजनाओं से निर्यातकों को कर छूट, तकनीकी सहायता, निवेश में छूट, और नए बाजारों में पहुँच बनाने का अवसर मिलता है।
83. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Dual Use Items’ का क्या अर्थ है?
Dual Use Items वे वस्तुएं होती हैं जिनका उपयोग नागरिक (civilian) और सैन्य (military) दोनों कार्यों के लिए किया जा सकता है। उदाहरण: ड्रोन्स, सॉफ्टवेयर, कैमिकल्स आदि। ऐसे उत्पादों का निर्यात विशेष निगरानी के अधीन होता है और इन पर Wassenaar Arrangement जैसे अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण व्यवस्था लागू होती है। भारत में SCOMET सूची के अंतर्गत इनका नियमन होता है।
84. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Trade Imbalance’ क्या है और इसके प्रभाव क्या हैं?
Trade Imbalance वह स्थिति है जब किसी देश का आयात उसके निर्यात से अधिक (घाटा) या कम (अधिशेष) होता है। लगातार व्यापार घाटा मुद्रा पर दबाव, विदेशी ऋण में वृद्धि, और औद्योगिक कमजोरी का संकेत देता है। भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा एक उदाहरण है। सरकार निर्यात को बढ़ावा देकर और आयात को नियंत्रित कर इस असंतुलन को ठीक करने का प्रयास करती है।
85. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Foreign Trade Agreement (FTA)’ और ‘Comprehensive Economic Partnership Agreement (CEPA)’ में क्या अंतर है?
FTA मुख्यतः वस्तुओं के व्यापार पर केंद्रित होता है जिसमें टैरिफ छूट दी जाती है।
CEPA एक विस्तृत समझौता होता है जिसमें वस्तुएं, सेवाएं, निवेश, बौद्धिक संपदा, और विवाद समाधान जैसी व्यापक बातें शामिल होती हैं।
भारत ने जापान, कोरिया और UAE के साथ CEPA किया है, जबकि ASEAN के साथ FTA।
86. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Exim Bank’ की भूमिका क्या है?
Export-Import Bank of India (Exim Bank) एक सरकारी वित्तीय संस्था है जो भारतीय निर्यातकों को वित्तीय सहायता, लाइन ऑफ क्रेडिट, परियोजना वित्त, निर्यात बीमा, और सलाहकार सेवाएं प्रदान करती है। यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय व्यापार को प्रतिस्पर्धी बनाता है। यह विशेष रूप से बड़ी परियोजनाओं, दक्षिण-सहयोग (South-South Cooperation) और अफ्रीकी देशों में भारतीय कंपनियों को समर्थन देता है।
87. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Tariff Escalation’ क्या है?
Tariff Escalation वह स्थिति होती है जब कच्चे माल पर कम शुल्क और प्रोसेस्ड (प्रसंस्कृत) या तैयार उत्पादों पर अधिक शुल्क लगाया जाता है। यह नीति विकासशील देशों की मूल्यवर्धित उत्पाद निर्यात करने की क्षमता को बाधित करती है। विकसित देश अक्सर इस तरह की नीति अपनाते हैं जिससे विकासशील देश केवल कच्चे माल का निर्यात करते हैं और प्रोसेसिंग का लाभ विकसित देश को मिलता है। WTO इस प्रवृत्ति को संतुलित करने के लिए प्रयासरत है।
88. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Intellectual Property Rights (IPR)’ का महत्व क्या है?
IPR अंतरराष्ट्रीय व्यापार में नवाचार, ब्रांडिंग और अनुसंधान को सुरक्षा प्रदान करता है। यह पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क, GI टैग आदि के माध्यम से किसी उत्पादक के अधिकारों की रक्षा करता है। TRIPS समझौते के तहत WTO सदस्य देशों को IPR सुरक्षा की न्यूनतम आवश्यकताएं सुनिश्चित करनी होती हैं। भारत ने Patents Act, Trademarks Act और Copyright Act जैसे कानून बनाए हैं जो व्यापारिक संपदा की रक्षा करते हैं।
89. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Bilateral Investment Treaty (BIT)’ का क्या उद्देश्य है?
BIT दो देशों के बीच एक समझौता होता है जो एक-दूसरे के निवेशकों को सुरक्षा, निष्पक्ष व्यवहार, लाभांश निकालने की स्वतंत्रता, और विवाद समाधान जैसे अधिकार देता है। इससे विदेशी निवेशकों का विश्वास बढ़ता है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में पारदर्शिता आती है। भारत ने हाल ही में अपनी BIT नीति को अद्यतन किया है ताकि वह राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए संतुलन बनाए।
90. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Trade Logistics’ का क्या महत्व है?
Trade Logistics में परिवहन, वेयरहाउसिंग, सीमा शुल्क प्रक्रिया, ट्रैकिंग सिस्टम, और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन शामिल है। यदि लॉजिस्टिक प्रणाली तेज, सस्ती और पारदर्शी हो, तो व्यापार में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है। भारत ने लॉजिस्टिक प्रदर्शन सूचकांक (LPI) सुधारने के लिए मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक हब, सागरमाला परियोजना और डिजिटल क्लीयरेंस जैसे उपाय अपनाए हैं।
91. भारत के ‘Line of Credit (LOC)’ का अंतरराष्ट्रीय व्यापार में क्या प्रभाव है?
Line of Credit भारत सरकार या Exim Bank द्वारा विदेशी देशों, विशेषकर विकासशील देशों, को दी गई वित्तीय सहायता है। इससे उन देशों में भारतीय कंपनियों को परियोजनाएं हासिल करने, सामान निर्यात करने और सेवा देने में मदद मिलती है। यह भारत की व्यापारिक और रणनीतिक विदेश नीति का हिस्सा है। इससे भारत को व्यापार के नए बाजार मिलते हैं।
92. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Carbon Border Tax’ का क्या तात्पर्य है?
Carbon Border Tax एक प्रस्तावित शुल्क है जो उच्च कार्बन उत्सर्जन वाले देशों से आयातित वस्तुओं पर लगाया जा सकता है। इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करना और घरेलू हरित उद्योगों की रक्षा करना है। EU द्वारा ऐसे कर का प्रस्ताव भारत जैसे विकासशील देशों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि यह उनके निर्यात को प्रभावित कर सकता है।
93. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारत की ‘Open General License (OGL)’ नीति क्या है?
OGL नीति के तहत कुछ विशिष्ट वस्तुओं का निर्यात/आयात बिना किसी विशेष लाइसेंस के किया जा सकता है। यह व्यापार को सरल बनाती है और व्यापारियों को प्रक्रिया में लचीलापन देती है। DGFT इस सूची को समय-समय पर अधिसूचित करता है। इससे आयात-निर्यात में तेजी आती है और व्यापारिक वातावरण बेहतर होता है।
94. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारत के ‘SEZs’ की भूमिका क्या है?
Special Economic Zones (SEZs) ऐसे विशेष क्षेत्र होते हैं जहां कर छूट, सस्ती भूमि, बेहतर लॉजिस्टिक्स और आसान नियमों के माध्यम से निर्यात को बढ़ावा दिया जाता है। भारत में नोएडा, सूरत, चेन्नई, विशाखापत्तनम जैसे कई SEZ हैं। इनमें आईटी, टेक्सटाइल, फार्मा, जेम्स और इंजीनियरिंग उत्पादों का निर्यात अधिक होता है। SEZs भारत को वैश्विक सप्लाई चेन में प्रतिस्पर्धी बनाते हैं।
95. भारत में ‘Directorate General of Foreign Trade (DGFT)’ की भूमिका क्या है?
DGFT वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करने वाली एक प्रमुख संस्था है जो विदेश व्यापार नीति का निर्माण, कार्यान्वयन और निगरानी करती है। यह आयात-निर्यात कोड (IEC) जारी करता है, लाइसेंस प्रदान करता है, और व्यापारिक डेटा रखता है। यह निर्यात संवर्धन योजनाएं जैसे EPCG, RoDTEP आदि का क्रियान्वयन भी करता है। DGFT का कार्य व्यापार को सरल और पारदर्शी बनाना है।
96. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Currency Convertibility’ का क्या अर्थ है?
Currency Convertibility का मतलब है कि किसी देश की मुद्रा को विदेशी मुद्रा में बदला जा सकता है। भारत में आंशिक पूंजी खाता परिवर्तनीयता है लेकिन चालू खाता पूरी तरह से परिवर्तनीय है। इसका व्यापार पर प्रभाव यह है कि यह विदेशी निवेश को आकर्षित करता है, भुगतान प्रक्रिया को सरल बनाता है, लेकिन मुद्रा बाजार की स्थिरता पर भी असर डाल सकता है।
97. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Trade Wars’ का क्या प्रभाव होता है?
Trade Wars तब होती हैं जब देश एक-दूसरे के उत्पादों पर शुल्क लगाते हैं या व्यापारिक प्रतिबंध लगाते हैं। इसका परिणाम वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता, कीमतों में वृद्धि, और आर्थिक मंदी के रूप में हो सकता है। हाल ही में अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध ने वैश्विक सप्लाई चेन को बाधित किया। भारत ने इससे अवसर के रूप में कई बाजारों में प्रवेश पाया।
98. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘WTO Ministerial Conference’ का क्या महत्व है?
WTO की Ministerial Conference संगठन की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है जो हर दो साल में होती है। इसमें सदस्य देश व्यापार नियमों, सुधारों और विवाद समाधान जैसे मुद्दों पर निर्णय लेते हैं। भारत ने इनमें कृषि सब्सिडी, सार्वजनिक भंडारण और सेवा क्षेत्र में विशेष रियायतों की वकालत की है। यह सम्मेलन WTO की नीति दिशा तय करता है।
99. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Trade Related Aspects of E-Commerce’ का क्या महत्व है?
ई-कॉमर्स से संबंधित व्यापारिक पहलुओं पर WTO के अंतर्गत चर्चा चल रही है। इसमें डेटा फ्लो, डिजिटल उत्पादों पर शुल्क, डेटा गोपनीयता और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे मुद्दे शामिल हैं। भारत डिजिटल व्यापार में संप्रभुता और छोटे व्यापारियों के संरक्षण की वकालत करता है। यह क्षेत्र व्यापार का भविष्य है, इसलिए भारत संतुलित नियम चाहता है।
100. अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून का भारत की आर्थिक वृद्धि में क्या योगदान है?
अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून ने भारत को वैश्विक व्यापार व्यवस्था में एक सक्रिय खिलाड़ी बनाया है। WTO, FTA, CEPA, और अन्य नियमों के अंतर्गत भारत ने निर्यात को बढ़ावा दिया, व्यापार में पारदर्शिता लाई और निवेश को आकर्षित किया। इससे भारत की GDP में वृद्धि, रोजगार सृजन और तकनीकी विकास को बल मिला। अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून भारत की आत्मनिर्भरता और वैश्विक भागीदारी का मजबूत स्तंभ है।