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Innoventive Industries Ltd. v. ICICI Bank Ltd. (2017) – IBC का समयबद्ध समाधान और अन्य कानूनों पर प्राथमिकता

Innoventive Industries Ltd. v. ICICI Bank Ltd. (2017) – IBC का समयबद्ध समाधान और अन्य कानूनों पर प्राथमिकता

परिचय

भारत में कॉर्पोरेट दिवालियापन और ऋण वसूली की प्रक्रिया लंबे समय तक जटिल और विलंबपूर्ण रही। पुराने कानून, जैसे कि SARFAESI Act, Recovery of Debts Due to Banks and Financial Institutions Act (RDDBFI), और विभिन्न राज्य कानूनों ने कभी-कभी लेनदारों और कर्जदारों के बीच संघर्ष को बढ़ा दिया। इस समस्या को हल करने के लिए इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC), 2016 लागू किया गया।

IBC का मुख्य उद्देश्य कॉर्पोरेट दिवालियापन मामलों का त्वरित और समयबद्ध समाधान सुनिश्चित करना है। यह लेनदारों और कर्जदारों दोनों के हितों की रक्षा करता है और परिसंपत्तियों का अधिकतम मूल्य सुनिश्चित करता है। IBC का ढांचा इसलिए विशेष है कि यह अन्य कानूनों की तुलना में प्राथमिकता रखता है, खासकर जब अन्य कानून IBC की प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय Innoventive Industries Ltd. v. ICICI Bank Ltd. (2017) इस पहलू को स्पष्ट करता है कि IBC एक विशेष कानून है, और इसका उद्देश्य समयबद्ध समाधान है, जो अन्य कानूनों के मुकाबले प्राथमिकता रखता है।


मामले का पृष्ठभूमि

Innoventive Industries Ltd. एक औद्योगिक कंपनी थी जिसने ICICI बैंक से ऋण लिया था। समय पर ऋण की अदायगी न होने के कारण बैंक ने IBC की धारा 7 के तहत दिवालियापन प्रक्रिया शुरू करने का आवेदन किया।

कंपनी ने दावा किया कि महाराष्ट्र रिलीफ अंडरटेकिंग (स्पेशल प्रावधान) एक्ट, 1958 (MRU Act) के तहत वह संरक्षण प्राप्त है और इस कारण IBC की प्रक्रिया उस पर लागू नहीं होती। कंपनी ने तर्क दिया कि राज्य का यह कानून उसे विशेष संरक्षण देता है और दिवालियापन की प्रक्रिया को रोक सकता है।

हालांकि, NCLT (National Company Law Tribunal) ने बैंक के आवेदन को स्वीकार किया और इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल (IP) नियुक्त किया। इस प्रक्रिया में कंपनी ने अदालत का दरवाजा खटखटाया, लेकिन NCLT के निर्णय को चुनौती देने का प्रयास सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा।


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि:

  1. IBC की धारा 238 के अनुसार, यदि कोई अन्य कानून IBC के प्रावधानों के साथ असंगत है, तो IBC की प्रक्रिया लागू होगी। इसका मतलब है कि IBC किसी भी अन्य कानून पर प्राथमिकता रखता है, चाहे वह केंद्र या राज्य का कानून हो।
  2. IBC का उद्देश्य समयबद्ध समाधान है। सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि अगर दिवालियापन प्रक्रिया में देरी होती है तो इससे परिसंपत्तियों का मूल्य घट सकता है और लेनदारों के हितों की हानि हो सकती है।
  3. MRU Act जैसे राज्य कानून IBC की प्रक्रिया को बाधित नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि विशेष और व्यापक कानून होने के नाते, IBC अन्य कानूनों पर प्राथमिकता रखता है
  4. अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि IBC का ढांचा लेनदारों और कर्जदारों के बीच संतुलन बनाए रखता है। इसका उद्देश्य केवल कर्ज वसूली नहीं है, बल्कि कंपनी के पुनरुद्धार या सर्वोत्तम समाधान के माध्यम से परिसंपत्तियों का मूल्य अधिकतम करना भी है।

IBC का उद्देश्य और प्रमुख सिद्धांत

IBC लागू करने का मुख्य उद्देश्य है:

  1. समयबद्ध समाधान:
    IBC के तहत दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (CIRP – Corporate Insolvency Resolution Process) 180 दिन में पूरा होना चाहिए, जिसे अधिकतम 90 दिन की अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है। यह समयबद्ध ढांचा सुनिश्चित करता है कि लेनदारों और निवेशकों के हितों की रक्षा हो और परिसंपत्तियों का मूल्य न गिरे।
  2. पारदर्शिता:
    IBC में सभी प्रक्रियाएँ और निर्णय पारदर्शी होते हैं। NCLT और इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल्स द्वारा की जाने वाली प्रक्रिया में लेनदारों और अन्य स्टेकहोल्डर्स को शामिल करना अनिवार्य है।
  3. विशेष कानून के रूप में प्राथमिकता:
    IBC का ढांचा यह सुनिश्चित करता है कि अन्य कानून, जैसे SARFAESI, MRU Act या RDDBFI Act, केवल IBC के अंतर्गत सहायक हों। अगर कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो IBC की धारा 238 लागू होती है।
  4. वॉटरफॉल मेथड (Section 53):
    दिवालियापन की स्थिति में प्राप्त राशि का वितरण इस क्रम में किया जाता है:

    • CIRP प्रक्रिया की लागत और खर्च
    • कर्मचारियों का वेतन और मजदूरी
    • वित्तीय लेनदारों का भुगतान
    • अन्य unsecured creditors का भुगतान
    • अंत में, शेयरधारकों के लिए राशि
  5. कंपनी पुनरुद्धार या समाधान:
    IBC का उद्देश्य केवल दिवालियापन नहीं है, बल्कि कंपनी का पुनरुद्धार या सर्वोत्तम समाधान भी है। अगर समाधान संभव नहीं है, तब कंपनी का परिसंपत्ति निपटान (Liquidation) किया जाता है।

IBC और अन्य कानूनों का संबंध

SARFAESI Act और RDDBFI Act:
ये कानून वित्तीय संस्थानों को अपने कर्ज़ वसूलने में मदद करते हैं। SARFAESI केवल secured creditors के लिए लागू होता है और बैंक को कोर्ट के बिना संपत्ति जब्त करने की शक्ति देता है।

IBC:

  • पूरे कंपनी या व्यक्ति की इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया को कवर करता है।
  • यह समयबद्ध समाधान और लेनदारों के हितों की प्राथमिकता सुनिश्चित करता है।
  • IBC की प्रक्रिया के दौरान, SARFAESI जैसी कार्रवाई को स्थगित किया जा सकता है।

इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि IBC एक विशेष कानून है और इसे अन्य अधिनियमों की तुलना में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।


निष्कर्ष

Innoventive Industries Ltd. v. ICICI Bank Ltd. (2017) का निर्णय भारतीय दिवालियापन कानून में एक मील का पत्थर है। इस निर्णय ने निम्नलिखित बिंदुओं को स्पष्ट किया:

  1. IBC का उद्देश्य समयबद्ध समाधान और परिसंपत्तियों का अधिकतम मूल्य सुनिश्चित करना है।
  2. IBC एक विशेष और व्यापक कानून है, जो अन्य कानूनों पर प्राथमिकता रखता है।
  3. राज्य या केंद्र के अन्य अधिनियम, जैसे MRU Act या RDDBFI Act, IBC की प्रक्रिया में बाधा नहीं डाल सकते।
  4. यह निर्णय लेनदारों और कर्जदारों के हितों के बीच संतुलन स्थापित करता है।
  5. IBC का कार्यान्वयन भारतीय कॉर्पोरेट दिवालियापन प्रणाली को पारदर्शी, प्रभावी और समयबद्ध बनाता है।

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने स्पष्ट संदेश दिया कि दिवालियापन प्रक्रिया में देरी स्वीकार्य नहीं है और विशेष कानून के रूप में IBC ही इस प्रक्रिया का मार्गदर्शक है।


संदर्भ

  1. Innoventive Industries Ltd. v. ICICI Bank Ltd., (2017) AIR SC 4084
  2. Insolvency and Bankruptcy Code, 2016 – Sections 7, 53, 238
  3. महाराष्ट्र रिलीफ अंडरटेकिंग (स्पेशल प्रावधान) एक्ट, 1958
  4. SARFAESI Act, 2002
  5. RDDBFI Act, 1993

यह रहे Innoventive Industries Ltd. v. ICICI Bank Ltd. (2017) केस से संबंधित 10 छोटे सवाल-उत्तर (Short Answer) – प्रत्येक लगभग 100–150 शब्दों में:


1. IBC का मुख्य उद्देश्य क्या है?

IBC (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016) का मुख्य उद्देश्य कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत दिवालियापन मामलों का समयबद्ध समाधान सुनिश्चित करना है। यह लेनदारों और कर्जदारों के हितों की रक्षा करता है, परिसंपत्तियों का मूल्य अधिकतम करता है, और देरी से बचाता है। IBC प्रक्रिया के तहत CIRP (Corporate Insolvency Resolution Process) 180 दिनों में पूरी होनी चाहिए।


2. सुप्रीम कोर्ट ने Innoventive Industries केस में क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि IBC एक विशेष कानून है और इसका उद्देश्य समयबद्ध समाधान है। अन्य कानून जैसे MRU Act या राज्य अधिनियम IBC प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर सकते। IBC की धारा 238 के तहत यह स्पष्ट है कि असंगत कानूनों पर IBC प्राथमिक होगा।


3. इस मामले में NCLT ने क्या निर्णय लिया?

NCLT ने ICICI बैंक के आवेदन को स्वीकार किया और इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल नियुक्त किया। NCLT ने कहा कि कंपनी के पास MRU Act के तहत संरक्षण का कोई प्रभाव नहीं है और IBC की प्रक्रिया लागू होगी।


4. IBC और SARFAESI Act में क्या अंतर है?

  • SARFAESI Act केवल secured creditors के लिए लागू होता है और बैंक को कोर्ट के बिना संपत्ति जब्त करने की शक्ति देता है।
  • IBC पूरे कंपनी या व्यक्ति की इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया को कवर करता है और समयबद्ध समाधान सुनिश्चित करता है। IBC के दौरान SARFAESI कार्रवाई स्थगित हो सकती है।

5. IBC के तहत वॉटरफॉल मेथड क्या है?

IBC की धारा 53 के अनुसार, दिवालियापन प्रक्रिया में प्राप्त राशि का वितरण क्रमबद्ध होता है:

  1. CIRP खर्च और फीस
  2. कर्मचारियों का वेतन
  3. वित्तीय लेनदारों का भुगतान
  4. अन्य unsecured creditors
  5. अंत में शेयरधारकों के लिए राशि

6. IBC का समयबद्ध समाधान क्यों महत्वपूर्ण है?

समयबद्ध समाधान सुनिश्चित करता है कि परिसंपत्तियों का मूल्य कम न हो और लेनदारों को शीघ्र भुगतान मिल सके। देरी से निवेशकों का विश्वास और वित्तीय स्थिरता प्रभावित होती है।


7. धारा 238 का महत्व क्या है?

धारा 238 कहती है कि यदि कोई अन्य कानून IBC के प्रावधानों के साथ असंगत है, तो IBC की प्रक्रिया लागू होगी। इसका अर्थ है कि IBC को विशेष और प्राथमिक कानून माना जाता है।


8. IBC का प्रभाव कॉर्पोरेट पुनरुद्धार पर कैसे है?

IBC के तहत, अगर कंपनी का दिवालियापन होता है तो पहले समाधान प्रक्रिया अपनाई जाती है। यदि समाधान संभव न हो तो लिक्विडेशन किया जाता है। यह ढांचा लेनदारों और कर्जदारों के हितों के बीच संतुलन बनाता है।


9. इस केस ने राज्य कानूनों पर क्या प्रभाव डाला?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य कानून जैसे MRU Act IBC प्रक्रिया में बाधा नहीं डाल सकते। IBC की प्रक्रिया राज्य कानूनों पर प्राथमिक होती है, जिससे दिवालियापन प्रक्रिया में विलंब नहीं होता।


10. Innoventive Industries केस का भारतीय दिवालियापन प्रणाली में महत्व क्या है?

यह निर्णय एक मील का पत्थर है। इसने स्पष्ट किया कि IBC विशेष कानून है, इसका उद्देश्य समयबद्ध समाधान है, और अन्य कानूनों से ऊपर प्राथमिकता रखता है। इससे निवेशकों और लेनदारों के विश्वास में वृद्धि हुई और भारत में दिवालियापन प्रक्रिया अधिक प्रभावी और पारदर्शी बन गई।