Indian Constitutional Law – II से संबंधित लघु उत्तरी प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: अनुच्छेद 14 के अंतर्गत समानता का अधिकार क्या है?

उत्तर:
अनुच्छेद 14 भारतीय संविधान का एक मौलिक अधिकार है, जो “कानून के समक्ष समानता” और “कानूनों के समान संरक्षण” की गारंटी देता है। इसका तात्पर्य यह है कि राज्य किसी भी व्यक्ति के साथ कानून के समक्ष भेदभाव नहीं कर सकता। हालांकि, यह समानता पूर्ण नहीं होती, बल्कि तर्कसंगत वर्गीकरण की अनुमति देती है। इसका उद्देश्य सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता सुनिश्चित करना है। यह अनुच्छेद राज्य द्वारा किए गए भेदभावपूर्ण कार्यों के खिलाफ एक ढाल प्रदान करता है। इस अनुच्छेद के अंतर्गत समानता केवल नागरिकों तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत में रहने वाले सभी व्यक्तियों पर लागू होती है।


प्रश्न 2: अनुच्छेद 19 के अंतर्गत स्वतंत्रता के कौन-कौन से अधिकार प्रदान किए गए हैं?

उत्तर:
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 नागरिकों को कुछ विशेष स्वतंत्रताएँ प्रदान करता है, जिन्हें ‘मौलिक अधिकार’ कहा जाता है। ये स्वतंत्रताएँ निम्नलिखित हैं:
(1) अभिव्यक्ति और वाक् की स्वतंत्रता,
(2) शांतिपूर्ण सभा की स्वतंत्रता,
(3) संघ बनाने की स्वतंत्रता,
(4) भारत के किसी भी भाग में स्वतंत्र रूप से चलने-फिरने की स्वतंत्रता,
(5) किसी भी स्थान पर निवास करने और बसने की स्वतंत्रता, और
(6) किसी भी व्यवसाय, व्यापार या पेशा अपनाने की स्वतंत्रता।
हालांकि ये स्वतंत्रताएँ पूर्ण नहीं हैं, राज्य इन्हें उचित प्रतिबंधों के अधीन कर सकता है, जैसे सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता या राज्य की सुरक्षा के आधार पर।


प्रश्न 3: ‘संवैधानिक उपचारों का अधिकार’ (Right to Constitutional Remedies) क्या है?

उत्तर:
अनुच्छेद 32 भारतीय संविधान का वह प्रावधान है जो नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाने का अधिकार देता है। इसे ‘संवैधानिक उपचारों का अधिकार’ कहा जाता है। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसे संविधान की “आत्मा और हृदय” कहा था। इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय विभिन्न प्रकार की रिट्स (Habeas Corpus, Mandamus, Certiorari, Prohibition, Quo-Warranto) जारी कर सकता है। यदि किसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार राज्य द्वारा हनन किया गया है, तो वह सीधे सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है। यह अधिकार भारतीय लोकतंत्र को सशक्त और उत्तरदायी बनाता है।


प्रश्न 4: अनुच्छेद 21 का महत्व और व्याख्या क्या है?

उत्तर:
अनुच्छेद 21 भारतीय संविधान का एक अत्यंत महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है, जो कहता है: “किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को छोड़कर वंचित नहीं किया जाएगा।” यह केवल नागरिकों तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी व्यक्तियों पर लागू होता है। प्रारंभ में इसका दायरा सीमित था, परंतु Maneka Gandhi v. Union of India (1978) जैसे मामलों के बाद इसका क्षेत्र व्यापक हो गया। इसके अंतर्गत अब गरिमापूर्ण जीवन, स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण, निजता आदि को भी शामिल किया गया है। अनुच्छेद 21 आजकल ‘जीवन के अधिकार’ की व्यापक व्याख्या का आधार बन गया है।


प्रश्न 5: संसद और विधानमंडल की विधायी शक्तियों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
भारतीय संघात्मक ढांचे में संसद (केंद्रीय विधायिका) और राज्य विधानमंडल दोनों को विधायी शक्तियाँ प्राप्त हैं। संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन सूचियाँ हैं:

  • संघ सूची (Union List): केवल संसद को अधिकार।
  • राज्य सूची (State List): सामान्यतः राज्य विधानमंडल को अधिकार।
  • समवर्ती सूची (Concurrent List): दोनों को अधिकार, लेकिन टकराव की स्थिति में संसद का कानून प्रभावी होगा।
    इसके अतिरिक्त, राष्ट्रपति की अनुमति से संसद राज्य सूची के कुछ विषयों पर भी कानून बना सकती है। इस प्रकार संसद की विधायी शक्ति व्यापक है जबकि राज्य विधानमंडल की शक्ति क्षेत्रीय और सीमित होती है।

प्रश्न 6: न्यायिक पुनरवलोकन (Judicial Review) क्या है?

उत्तर:
न्यायिक पुनरवलोकन संविधान द्वारा न्यायपालिका को प्रदान की गई शक्ति है, जिसके अंतर्गत वह यह जांच सकती है कि संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून या कार्यपालिका द्वारा किए गए कार्य संविधान के अनुरूप हैं या नहीं। यदि कोई विधिक या प्रशासनिक कार्य संविधान के विरुद्ध पाया जाता है, तो न्यायालय उसे असंवैधानिक घोषित कर सकता है। यह सिद्धांत भारत में अमेरिकी संविधान से लिया गया है। केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संसद संविधान के मूल ढांचे (Basic Structure) को नहीं बदल सकती।


प्रश्न 7: मूल अधिकार और नीति निदेशक तत्वों में अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
मूल अधिकार (Part III) और नीति निदेशक तत्व (Part IV) भारतीय संविधान के दो महत्वपूर्ण भाग हैं। मूल अधिकार न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय (enforceable) हैं, जबकि नीति निदेशक तत्व न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं, केवल राज्य के लिए मार्गदर्शक हैं। मूल अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता की रक्षा करते हैं, जबकि नीति निदेशक तत्व राज्य को सामाजिक और आर्थिक कल्याण की दिशा में निर्देशित करते हैं। मूल अधिकार व्यक्ति को राज्य के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करते हैं, जबकि नीति निदेशक तत्व राज्य के सकारात्मक कर्तव्यों की बात करते हैं।


प्रश्न 8: अनुच्छेद 51A के अंतर्गत नागरिकों के मौलिक कर्तव्य क्या हैं?

उत्तर:
अनुच्छेद 51A को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा संविधान में जोड़ा गया। इसके अंतर्गत नागरिकों के 11 मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है। इनमें संविधान का पालन करना, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना, भारत की संप्रभुता और एकता की रक्षा करना, देश की रक्षा हेतु योगदान देना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना, सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना आदि शामिल हैं। ये कर्तव्य नागरिकों को देश के प्रति अपने दायित्वों का बोध कराते हैं, यद्यपि ये न्यायालय द्वारा लागू नहीं किए जा सकते।


प्रश्न 9: संविधान का ‘मूल ढांचा सिद्धांत’ (Basic Structure Doctrine) क्या है?

उत्तर:
‘मूल ढांचा सिद्धांत’ भारतीय संविधान की सर्वोच्चता की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विकसित किया गया एक सिद्धांत है। यह सिद्धांत केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) में प्रतिपादित हुआ, जिसमें न्यायालय ने कहा कि संविधान की संशोधन शक्ति असीमित नहीं है; संसद संविधान के मूल ढांचे को नष्ट नहीं कर सकती। इस सिद्धांत के अनुसार, लोकतंत्र, न्यायिक पुनरवलोकन, धर्मनिरपेक्षता, मौलिक अधिकार, विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया आदि संविधान की मूल संरचना के तत्व हैं, जिन्हें संशोधन के द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता।


प्रश्न 10: भारत में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा क्या है?

उत्तर:
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जिसका अर्थ है कि राज्य किसी एक विशेष धर्म को न तो अपनाता है और न ही उसे बढ़ावा देता है। 42वें संविधान संशोधन (1976) द्वारा ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया। इसका उद्देश्य है कि सभी धर्मों को समान सम्मान और संरक्षण प्राप्त हो। अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गई है। नागरिक किसी भी धर्म को मानने, प्रचार करने और अभ्यास करने के लिए स्वतंत्र हैं। भारत की धर्मनिरपेक्षता सकारात्मक है, जो सभी धर्मों को समान अवसर और संरक्षण प्रदान करती है।


प्रश्न 11: संसद के विशेषाधिकार (Privileges of Parliament) क्या हैं?

उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 के अंतर्गत संसद के सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार और स्वतंत्रताएँ प्राप्त हैं, जिससे वे बिना किसी डर या दबाव के अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें। इनमें संसद में बोले गए शब्दों के लिए कोई न्यायिक कार्यवाही न होना, अवमानना से संरक्षण, सभा की कार्यवाही में बाधा डालने पर दंड का अधिकार, आदि शामिल हैं। ये विशेषाधिकार आवश्यक हैं ताकि संसद स्वतंत्रता से कार्य कर सके। उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि ये विशेषाधिकार संविधान और कानून के अधीन हैं तथा मनमानी नहीं हो सकती।


प्रश्न 12: संविधान संशोधन प्रक्रिया क्या है?

उत्तर:
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 368 संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति देता है। संविधान संशोधन तीन प्रकार से किया जा सकता है:

  1. साधारण बहुमत से,
  2. विशेष बहुमत से,
  3. विशेष बहुमत + राज्यों की आधी विधानसभाओं की स्वीकृति से (संघीय संशोधन)।
    जो संशोधन केवल संसद से जुड़े हैं, वे विशेष बहुमत से किए जाते हैं। लेकिन यदि संशोधन संघ-राज्य संबंधों, न्यायपालिका, कार्यपालिका, राज्यसभा की शक्ति आदि से संबंधित हैं, तो राज्यों की स्वीकृति भी आवश्यक होती है। यह प्रक्रिया संविधान को लचीला और कठोर – दोनों बनाती है।

प्रश्न 13: लोकसभा और राज्यसभा के बीच अंतर बताइए।

उत्तर:
लोकसभा और राज्यसभा भारतीय संसद के दो सदन हैं।

  • लोकसभा को ‘निचला सदन’ कहा जाता है और इसके सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव से चुने जाते हैं।
  • राज्यसभा को ‘उच्च सदन’ कहा जाता है और इसके सदस्य राज्य विधानसभाओं द्वारा निर्वाचित होते हैं।
    लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है जबकि राज्यसभा एक स्थायी सदन है और प्रत्येक दो वर्ष में इसके एक-तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं।
    वित्तीय विधेयक केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है। दोनों सदनों के कार्य, शक्ति और प्रक्रिया में भी भिन्नताएँ हैं।

प्रश्न 14: लोकसभा अध्यक्ष (Speaker) की भूमिका और शक्तियाँ क्या हैं?

उत्तर:
लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा का अध्यक्ष होता है, जिसे लोकसभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किया जाता है। वह सदन की कार्यवाही का संचालन करता है, सदस्यों को बोलने का अवसर देता है, अनुशासन बनाए रखता है और सदन की गरिमा सुनिश्चित करता है। अध्यक्ष यह तय करता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं। वह सदन में मतदान की स्थिति में निर्णायक मत देता है। साथ ही, वह किसी सदस्य की अयोग्यता पर निर्णय देने का अधिकार भी रखता है। अध्यक्ष का पद पूर्णत: गैर-राजनीतिक और निष्पक्ष माना जाता है।


प्रश्न 15: विधायिका और कार्यपालिका में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर:
विधायिका वह अंग है जो कानून बनाती है, जबकि कार्यपालिका उन कानूनों को लागू करती है। भारत में संसद (लोकसभा और राज्यसभा) विधायिका है, जबकि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद कार्यपालिका के अंग हैं।
विधायिका नीति निर्माण करती है, बजट पारित करती है, और कार्यपालिका की जवाबदेही तय करती है।
कार्यपालिका प्रशासन चलाती है, कानूनों को लागू करती है और शासन की दिन-प्रतिदिन की जिम्मेदारियों को निभाती है।
दोनों अंग एक-दूसरे पर नियंत्रण रखते हैं, जिससे सत्ता का संतुलन बना रहता है।


प्रश्न 16: राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश जारी करने की शक्ति क्या है?

उत्तर:
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 123 राष्ट्रपति को अध्यादेश (Ordinance) जारी करने की शक्ति देता है जब संसद का सत्र नहीं चल रहा हो और किसी तत्काल विधायी कार्य की आवश्यकता हो। अध्यादेश संसद द्वारा पारित कानून के समान प्रभावी होता है, लेकिन यह केवल 6 सप्ताह तक प्रभावी रहता है जब संसद पुनः सत्र में आ जाती है। यदि संसद इसे पारित नहीं करती, तो यह स्वतः समाप्त हो जाता है। अध्यादेश शक्ति कार्यपालिका को असाधारण परिस्थितियों में त्वरित निर्णय लेने का साधन देती है, लेकिन इसका दुरुपयोग रोकने हेतु न्यायिक समीक्षा संभव है।


प्रश्न 17: अनुच्छेद 300A के अंतर्गत संपत्ति का अधिकार क्या है?

उत्तर:
अनुच्छेद 300A संविधान में 44वें संशोधन (1978) के बाद जोड़ा गया, जिसके अंतर्गत संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार न रहकर एक कानूनी अधिकार है। यह कहता है कि किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा, सिवाय विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार। इसका अर्थ है कि राज्य संपत्ति का अधिग्रहण तभी कर सकता है जब उसके लिए कानून हो और उचित मुआवजा दिया जाए। यद्यपि यह अब मौलिक अधिकार नहीं है, फिर भी यह नागरिकों को मनमानी अधिग्रहण से सुरक्षा प्रदान करता है।


प्रश्न 18: भारतीय संविधान में धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार क्या हैं?

उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। अनुच्छेद 25 हर व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, प्रचार करने और उसका अभ्यास करने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 26 धार्मिक संस्थाओं को धार्मिक मामलों का संचालन करने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 27 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को किसी धर्म के प्रचार हेतु कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। अनुच्छेद 28 शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा की स्वतंत्रता को नियंत्रित करता है। ये प्रावधान भारत को एक धार्मिक रूप से स्वतंत्र और सहिष्णु राष्ट्र बनाते हैं।


प्रश्न 19: अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 में क्या अंतर है?

उत्तर:
अनुच्छेद 32 सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु रिट जारी करने का अधिकार देता है, जबकि अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालय को रिट जारी करने की शक्ति देता है, न केवल मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु बल्कि अन्य विधिक अधिकारों के लिए भी। अनुच्छेद 32 एक मौलिक अधिकार है, जिसे नागरिक सीधे सर्वोच्च न्यायालय में लागू कर सकते हैं, जबकि अनुच्छेद 226 एक संवैधानिक प्रावधान है। क्षेत्राधिकार की दृष्टि से अनुच्छेद 226 व्यापक है, परंतु अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु सर्वोच्च है।


प्रश्न 20: अनुच्छेद 368 का महत्व क्या है?

उत्तर:
अनुच्छेद 368 संविधान की वह व्यवस्था है जो संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति देता है। इसके तहत संसद संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है, बशर्ते वह संशोधन संविधान के ‘मूल ढांचे’ को प्रभावित न करे। संशोधन की प्रक्रिया तीन प्रकार की होती है— विशेष बहुमत से, विशेष बहुमत + राज्यों की सहमति से, या साधारण बहुमत से। यह अनुच्छेद संविधान को समयानुसार लचीला और समसामयिक बनाए रखने में सहायक है, परंतु केशवानंद भारती मामला इस पर सीमा निर्धारित करता है कि मूल ढांचे को नहीं बदला जा सकता।


प्रश्न 21: आपातकाल की संवैधानिक स्थिति का वर्णन कीजिए।

उत्तर:
भारतीय संविधान तीन प्रकार के आपातकाल की व्यवस्था करता है –

  1. राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) – युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के समय,
  2. राज्य आपातकाल (अनुच्छेद 356) – राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल होने पर,
  3. आर्थिक आपातकाल (अनुच्छेद 360) – देश की आर्थिक स्थिरता को खतरा होने पर।
    आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों में कटौती हो सकती है, केंद्र को अधिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं और संघीय ढांचा एकात्मक स्वरूप ले सकता है।

प्रश्न 22: अनुच्छेद 356 क्या है और इसका दुरुपयोग कैसे हुआ है?

उत्तर:
अनुच्छेद 356 के अंतर्गत यदि राज्य में संविधान के अनुसार शासन नहीं चल रहा हो, तो राष्ट्रपति उसकी अनुशंसा पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है। इसका उद्देश्य आपात स्थिति में संघीय व्यवस्था की रक्षा करना था, लेकिन इसके माध्यम से केंद्र सरकार ने राजनीतिक कारणों से राज्य सरकारों को बर्खास्त किया है। एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इसके दुरुपयोग पर रोक लगाई और कहा कि राष्ट्रपति के आदेश की न्यायिक समीक्षा संभव है।


प्रश्न 23: संविधान में संघवाद (Federalism) की विशेषताएँ बताइए।

उत्तर:
भारतीय संविधान संघीय ढांचे पर आधारित है, जिसमें केंद्र और राज्य दोनों के लिए शक्तियों का पृथक्करण किया गया है। इसके प्रमुख संघीय लक्षण हैं:

  • शक्तियों का वितरण (अनुच्छेद 246 व अनुसूची 7),
  • स्वतंत्र न्यायपालिका,
  • द्विसदनीय विधायिका,
  • संविधान की सर्वोच्चता।
    हालाँकि भारत को ‘कठोर संघ’ न मानकर ‘सहकारी संघवाद’ (Cooperative Federalism) की संज्ञा दी जाती है, क्योंकि केंद्र को विशेष परिस्थितियों में राज्यों पर नियंत्रण प्राप्त है।

प्रश्न 24: भारतीय संविधान में ‘एकात्मक संघवाद’ (Quasi-Federalism) का क्या अर्थ है?

उत्तर:
‘एकात्मक संघवाद’ वह प्रणाली है जहाँ संविधान संघीय तो है लेकिन केंद्र को अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं। भारतीय संविधान में शक्तियों का विभाजन है, परंतु आपातकाल, अनुच्छेद 356, राज्यपाल की नियुक्ति, एकल नागरिकता, और अखिल भारतीय सेवाओं जैसे प्रावधान केंद्र को अधिक अधिकार प्रदान करते हैं। इसलिए भारत को के.सी. व्हेयर ने ‘केंद्रीभूत संघ’ कहा। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकता बनाए रखना है।


प्रश्न 25: अनुच्छेद 21A – शिक्षा का अधिकार क्या है?

उत्तर:
अनुच्छेद 21A भारतीय संविधान में 86वें संशोधन (2002) द्वारा जोड़ा गया, जो 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है। यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों को प्राथमिक स्तर तक शिक्षा सुनिश्चित करे। इसके अंतर्गत शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 लागू किया गया, जिसमें स्कूलों की गुणवत्ता, शिक्षक अनुपात, प्रवेश नीति आदि का निर्धारण किया गया। यह सामाजिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।


प्रश्न 26: अनुच्छेद 19 के अंतर्गत दिए गए अधिकार कौन-कौन से हैं?

उत्तर:
अनुच्छेद 19 भारतीय नागरिकों को 6 मौलिक स्वतंत्रताएँ प्रदान करता है:

  1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,
  2. शांतिपूर्ण रूप से एकत्र होने की स्वतंत्रता,
  3. संघ बनाने की स्वतंत्रता,
  4. भारत में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता,
  5. भारत में कहीं भी बसने की स्वतंत्रता,
  6. कोई भी व्यवसाय करने, व्यापार करने या उद्योग करने की स्वतंत्रता।
    हालाँकि, ये स्वतंत्रताएँ पूर्ण नहीं हैं; इन पर राज्य उचित प्रतिबंध लगा सकता है।

प्रश्न 27: समानता का अधिकार क्या है?

उत्तर:
अनुच्छेद 14 से 18 तक समानता का अधिकार प्रदान किया गया है।

  • अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समानता और समान संरक्षण।
  • अनुच्छेद 15: धर्म, जाति, लिंग, आदि के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध।
  • अनुच्छेद 16: सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता।
  • अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन।
  • अनुच्छेद 18: उपाधियों का उन्मूलन।
    इस अधिकार का उद्देश्य सभी नागरिकों को एक समान दर्जा प्रदान करना है।

प्रश्न 28: रिट (Writ) क्या होते हैं?

उत्तर:
रिट वह विधिक आदेश होता है जो उच्चतम या उच्च न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति या प्राधिकरण को दिया जाता है। भारत में पाँच प्रकार की रिटें हैं:

  1. हबियस कॉर्पस – अवैध हिरासत से मुक्ति हेतु।
  2. मैंडमस – लोक अधिकारी को अपना कर्तव्य निभाने का आदेश।
  3. सर्टियोरारी – किसी अवैध निर्णय को निरस्त करने हेतु।
  4. प्रोहिबिशन – अधीनस्थ न्यायालय को कार्य करने से रोकने हेतु।
  5. क़ो वॉरंटो – किसी व्यक्ति के अधिकार की वैधता को चुनौती देना।
    रिटें मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु उपयोगी हैं।

प्रश्न 29: क़ानून के समक्ष समानता का सिद्धांत क्या है?

उत्तर:
अनुच्छेद 14 भारतीय संविधान का मूल स्तंभ है, जो कहता है कि “राज्य भारत के क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समानता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।” इसका तात्पर्य है कि सभी व्यक्तियों को समान कानूनी संरक्षण प्राप्त होगा। यह समानता पूर्ण नहीं है – यदि कोई वर्ग भिन्न परिस्थिति में है, तो उसके साथ भिन्न व्यवहार उचित हो सकता है, जिसे ‘तर्कसंगत वर्गीकरण’ (reasonable classification) कहा जाता है। यह न्याय, समानता और बंधुत्व की भावना को स्थापित करता है।


प्रश्न 30: अनुच्छेद 32 को ‘मौलिक अधिकारों का संरक्षक’ क्यों कहा जाता है?

उत्तर:
अनुच्छेद 32 भारतीय संविधान का ‘हृदय और आत्मा’ (heart and soul) कहा जाता है। यह नागरिकों को यह अधिकार देता है कि वे अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर सीधे सर्वोच्च न्यायालय की शरण ले सकते हैं। यह रिट जारी करने की शक्ति प्रदान करता है। इस अनुच्छेद के कारण ही मौलिक अधिकार प्रभावी रूप से लागू हो पाते हैं। डॉ. आंबेडकर ने इसे संविधान की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता बताया है।


प्रश्न 31: धर्म की स्वतंत्रता पर किन सीमाओं का उल्लेख है?

उत्तर:
अनुच्छेद 25 के अंतर्गत धर्म की स्वतंत्रता दी गई है, परंतु यह पूर्ण नहीं है। यह स्वतंत्रता सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है। इसका अर्थ है कि यदि धार्मिक कार्यकलापों से समाज में अव्यवस्था या हिंसा फैलती है, तो राज्य उसमें हस्तक्षेप कर सकता है। साथ ही, सामाजिक सुधार, पशु बलि प्रतिबंध आदि भी इन सीमाओं में आते हैं। इस प्रकार धार्मिक स्वतंत्रता को संविधानिक मर्यादा में रखा गया है।


प्रश्न 32: लोकहित याचिका (PIL) क्या है?

उत्तर:
लोकहित याचिका (Public Interest Litigation – PIL) एक ऐसी याचिका है, जिसे कोई भी व्यक्ति, संस्था या समूह न्यायालय में जनहित से जुड़े किसी मुद्दे पर दाखिल कर सकता है, भले ही वह स्वयं उससे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित न हो। इसका उद्देश्य है – वंचितों और गरीबों को न्याय तक पहुँच प्रदान करना। एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1982) से इस अवधारणा को मान्यता मिली। यह न्यायिक सक्रियता का उदाहरण है।


प्रश्न 33: सामाजिक न्याय का संविधान में क्या स्थान है?

उत्तर:
संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक न्याय को एक मौलिक लक्ष्य माना गया है। नीति निदेशक तत्वों (Part IV) में राज्य को निर्देश दिए गए हैं कि वह सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर कर समता लाए। आरक्षण, भूमि सुधार, मजदूर कानून, शिक्षा का अधिकार, महिला सशक्तिकरण आदि इसके उदाहरण हैं। सामाजिक न्याय का उद्देश्य है – समाज के कमजोर वर्गों को बराबरी का दर्जा और अवसर देना।


प्रश्न 34: भारतीय संविधान की विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ हैं:

  • लिखित एवं विस्तृत संविधान,
  • प्रस्तावना,
  • मौलिक अधिकार व कर्तव्य,
  • नीति निदेशक तत्व,
  • संघीय प्रणाली,
  • एकल नागरिकता,
  • संसदीय शासन प्रणाली,
  • न्यायिक पुनरवलोकन,
  • स्वतंत्र न्यायपालिका,
  • संविधान संशोधन की प्रक्रिया।
    यह विश्व का सबसे बड़ा संविधान है और विभिन्न देशों की सर्वोत्तम व्यवस्थाओं से प्रेरित है।

प्रश्न 35: नीति निदेशक तत्वों की संवैधानिक स्थिति क्या है?

उत्तर:
नीति निदेशक तत्व (Part IV, अनुच्छेद 36-51) संविधान में राज्य को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन देते हैं। ये न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं, परंतु इनका पालन शासन के नैतिक और संवैधानिक कर्तव्य के रूप में अपेक्षित है। मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्व परस्पर पूरक हैं, विरोधी नहीं।


प्रश्न 36: भारतीय संविधान में प्रस्तावना का क्या महत्व है?

उत्तर:
प्रस्तावना संविधान की प्रस्ताविक घोषणा है, जो उसके उद्देश्य, मूल्यों और सिद्धांतों को व्यक्त करती है। इसमें ‘सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य’ की स्थापना का उल्लेख है। यह न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे आदर्शों को भी दर्शाती है। केशवानंद भारती मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का अभिन्न अंग माना।


प्रश्न 37: अनुच्छेद 370 क्या है?

उत्तर:
अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देता था। इसके अंतर्गत राज्य को एक अलग संविधान और स्वायत्तता प्राप्त थी। केंद्र के केवल रक्षा, विदेशी मामले और संचार से संबंधित कानून लागू होते थे। 5 अगस्त 2019 को राष्ट्रपति के आदेश और संसद के प्रस्ताव द्वारा अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर दिया गया और राज्य का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया गया।


प्रश्न 38: भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता क्या है?

उत्तर:
भारतीय संविधान न्यायपालिका को स्वतंत्रता प्रदान करता है, ताकि वह निष्पक्ष निर्णय ले सके। इसके लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति, कार्यकाल, वेतन आदि की सुरक्षा की गई है। कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति दी गई है। एस.पी. गुप्ता और केशवानंद भारती मामलों में इसकी पुष्टि हुई है।


प्रश्न 39: राष्ट्रपति की क्षमा शक्ति क्या है?

उत्तर:
अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को दोषसिद्ध व्यक्तियों को क्षमा, दंड माफ करने, निलंबित करने या परिवर्तित करने की शक्ति है। यह शक्ति विशेष रूप से मृत्युदंड और सैन्य मामलों में उपयोगी होती है। यह कार्य राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है। यह कार्यपालिका की करुणा पर आधारित है और न्यायालयीय निर्णय की अंतिम समीक्षा के रूप में कार्य करता है।


प्रश्न 40: संविधान में ‘राज्य’ की परिभाषा क्या है?

उत्तर:
अनुच्छेद 12 के अनुसार, ‘राज्य’ में भारत सरकार, राज्य सरकारें, संसद, राज्य विधानमंडल, और वे सभी प्राधिकरण आते हैं जो भारत के क्षेत्र में या भारत सरकार के नियंत्रण में कार्य करते हैं। इसमें सार्वजनिक निगम और राज्य द्वारा नियंत्रित संस्थाएँ भी शामिल हैं। यह परिभाषा मौलिक अधिकारों की व्याख्या हेतु दी गई है, ताकि नागरिकों को राज्य द्वारा किसी भी अधिकार उल्लंघन पर संवैधानिक संरक्षण मिल सके।


प्रश्न 41: संविधान के अनुच्छेद 51A में वर्णित मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर:
अनुच्छेद 51A भारतीय नागरिकों के 11 मौलिक कर्तव्यों का वर्णन करता है, जैसे:

  1. संविधान का पालन व प्रतिष्ठा बनाए रखना,
  2. स्वतंत्रता की रक्षा करना,
  3. भारत की संप्रभुता, एकता व अखंडता की रक्षा करना,
  4. राष्ट्र की सेवा करना,
  5. धर्म, भाषा व क्षेत्र के आधार पर भेदभाव न करना,
  6. महिलाओं का सम्मान करना,
  7. पर्यावरण की रक्षा करना,
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना,
  9. सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना,
  10. व्यक्तिगत व सामूहिक उत्कृष्टता हेतु प्रयास करना,
  11. बच्चों को शिक्षा देना (6 से 14 वर्ष तक)।

प्रश्न 42: अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संविधान संशोधन की प्रक्रिया समझाइए।

उत्तर:
अनुच्छेद 368 भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया का वर्णन करता है। इसमें तीन प्रकार के संशोधन संभव हैं:

  1. साधारण बहुमत से,
  2. विशेष बहुमत से,
  3. विशेष बहुमत + आधे राज्यों की स्वीकृति से (जब संघ-राज्य संबंधों पर असर पड़ता हो)।
    विशेष बहुमत का तात्पर्य है – संसद के दोनों सदनों में 2/3 उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का समर्थन। केशवानंद भारती मामला (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान की मूल संरचना (basic structure) को नहीं बदला जा सकता।

प्रश्न 43: ‘संविधान की सर्वोच्चता’ से आप क्या समझते हैं?

उत्तर:
भारतीय संविधान देश का सर्वोच्च विधिक दस्तावेज है। इसका अर्थ है कि देश का प्रत्येक नागरिक, संस्था, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका संविधान के अधीन है। यदि कोई कानून या कार्य संविधान के विपरीत है, तो वह शून्य और अमान्य होता है। यह सर्वोच्चता अनुच्छेद 13 के माध्यम से स्थापित है, जिसमें कहा गया है कि मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कोई भी विधि अमान्य होगी।


प्रश्न 44: न्यायिक पुनरवलोकन (Judicial Review) क्या है?

उत्तर:
न्यायिक पुनरवलोकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत न्यायपालिका यह जांचती है कि विधायिका या कार्यपालिका का कोई कार्य संविधान के अनुरूप है या नहीं। यदि कोई कानून या आदेश संविधान के विपरीत है, तो न्यायालय उसे निरस्त कर सकता है। यह शक्ति भारतीय संविधान में अनुच्छेद 13, 32 और 226 में निहित है। यह भारत में संविधान की सर्वोच्चता और मौलिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करता है।


प्रश्न 45: ‘बुनियादी संरचना सिद्धांत’ (Basic Structure Doctrine) क्या है?

उत्तर:
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) में सर्वोच्च न्यायालय ने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन वह संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) को नष्ट नहीं कर सकती। मूल संरचना में लोकतंत्र, न्यायिक स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता, कानून का शासन, मौलिक अधिकार आदि तत्व आते हैं। यह सिद्धांत संविधान की सुरक्षा का आधार है।


प्रश्न 46: धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ है?

उत्तर:
भारतीय संविधान एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना करता है, जिसका अर्थ है – राज्य का कोई आधिकारिक धर्म नहीं होगा। सभी धर्मों को समान सम्मान, संरक्षण और स्वतंत्रता प्राप्त है (अनुच्छेद 25-28)। धर्म निजी आस्था का विषय है, राज्य सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रहेगा। यह सिद्धांत संविधान की प्रस्तावना में भी उल्लिखित है।


प्रश्न 47: ‘रूल ऑफ लॉ’ की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
‘रूल ऑफ लॉ’ का अर्थ है कानून का शासन – सभी व्यक्ति कानून के अधीन हैं, चाहे वह सामान्य नागरिक हों या शासक। यह सिद्धांत भारत में अनुच्छेद 14 – विधि के समक्ष समानता द्वारा परिलक्षित होता है। ए.वी. डाइस़ी के अनुसार, रूल ऑफ लॉ के तीन तत्व हैं:

  1. विधि के समक्ष समानता,
  2. मनमाने शासन का अभाव,
  3. विधियों का सर्वोच्चता।
    भारत में यह न्यायिक प्रक्रिया, समान अधिकार, और निष्पक्ष प्रशासन में निहित है।

प्रश्न 48: नागरिकता के आधार क्या हैं?

उत्तर:
भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार भारत में नागरिकता प्राप्त करने के प्रमुख आधार हैं:

  1. जन्म द्वारा,
  2. वंशानुक्रम द्वारा,
  3. पंजीकरण द्वारा,
  4. देशीयकरण (Naturalization) द्वारा,
  5. भारतीय क्षेत्र के एकीकरण द्वारा।
    इसके अतिरिक्त नागरिकता का त्याग, समाप्ति और अपहरण भी अधिनियम में वर्णित है। संविधान के भाग 2 (अनुच्छेद 5-11) में नागरिकता की संवैधानिक व्यवस्था है।

प्रश्न 49: राज्यपाल की भूमिका पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:
राज्यपाल राज्य का सांविधानिक प्रमुख होता है, जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राज्यपाल की शक्तियाँ हैं:

  • विधायी (विधानसभा को बुलाना, भंग करना, अध्यादेश जारी करना),
  • कार्यकारी (मुख्यमंत्री की नियुक्ति, शपथ दिलाना),
  • न्यायिक (दया याचिका पर निर्णय),
  • विशेष शक्तियाँ (आदिवासी क्षेत्रों में)।
    हालांकि वह राष्ट्रपति को उत्तरदायी नहीं होता, परंतु सामान्यतः राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह से कार्य करता है।

प्रश्न 50: चुनाव आयोग की भूमिका स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
चुनाव आयोग (अनुच्छेद 324) भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने वाली संवैधानिक संस्था है। इसके अंतर्गत राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव आते हैं। चुनाव आयोग की शक्तियाँ हैं:

  • चुनाव कार्यक्रम तय करना,
  • आदर्श आचार संहिता लागू करना,
  • राजनीतिक दलों को मान्यता देना,
  • शिकायतों की जांच करना।
    यह आयोग निष्पक्ष लोकतंत्र की आधारशिला है।

प्रश्न 51: राष्ट्रपति की असाधारण शक्तियों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर:
राष्ट्रपति की असाधारण शक्तियाँ आपातकालीन स्थितियों में सक्रिय होती हैं:

  1. राष्ट्रीय आपातकाल (अनु. 352) – राष्ट्रपति को विधायी, कार्यकारी और वित्तीय शक्तियाँ मिलती हैं।
  2. राज्य आपातकाल (अनु. 356) – राज्य सरकार को भंग कर राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है।
  3. आर्थिक आपातकाल (अनु. 360) – राज्यों के वित्तीय कार्यों पर नियंत्रण।
    इसके अतिरिक्त, राष्ट्रपति के पास दया याचिका पर निर्णय लेने की शक्ति भी होती है।

प्रश्न 52: संविधान का उद्देश्य क्या है?

उत्तर:
भारतीय संविधान का उद्देश्य प्रस्तावना में उल्लिखित है – भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाना तथा उसके सभी नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुनिश्चित करना। यह उद्देश्य संविधान की आत्मा है जो सामाजिक और विधिक व्यवस्था को दिशा प्रदान करता है।


प्रश्न 53: संविधान सभा की रचना कैसे हुई थी?

उत्तर:
संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन योजना (1946) के अनुसार हुआ था। कुल 389 सदस्य चुने गए थे – प्रांतीय विधानसभाओं से (292), रियासतों से (93), और मुख्य आयुक्त क्षेत्रों से (4)। स्वतंत्रता के बाद मुस्लिम लीग के बहिष्कार के कारण कुल सदस्य घटकर 299 रह गए। संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में संविधान तैयार किया।


प्रश्न 54: संविधान की प्रस्तावना की न्यायिक स्थिति क्या है?

उत्तर:
प्रस्तावना संविधान का प्रस्ताविक वक्तव्य है, जो उसके उद्देश्यों को दर्शाता है। केशवानंद भारती मामला (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है और इसकी व्याख्या में सहायता करती है। हालांकि यह न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है, परंतु संविधान की भावना को प्रकट करती है।


प्रश्न 55: अनुच्छेद 300A क्या है?

उत्तर:
अनुच्छेद 300A कहता है कि – “कोई व्यक्ति विधि के प्राधिकरण के बिना अपनी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।”
यह संपत्ति के अधिकार को संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता देता है। 44वें संशोधन (1978) द्वारा इसे मौलिक अधिकारों से हटा दिया गया था (पहले अनु. 31 में था)। अब संपत्ति का अधिग्रहण सिर्फ कानून द्वारा ही संभव है।


प्रश्न 56: विधि का शासन और मनमानी का शासन – अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
विधि का शासन (Rule of Law) का अर्थ है कि सब कुछ कानून के अनुसार होगा, सभी व्यक्ति कानून के अधीन हैं।
मनमानी का शासन में शक्ति का प्रयोग बिना विधिक प्रक्रिया के होता है। भारत में विधि का शासन लागू है, जिससे न्यायपालिका के माध्यम से किसी भी मनमानी कार्यवाही को चुनौती दी जा सकती है।


प्रश्न 57: संविधान का संरक्षक कौन है?

उत्तर:
भारत में सर्वोच्च न्यायालय को संविधान का संरक्षक (Guardian of Constitution) कहा जाता है। यह मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है, कानूनों की वैधता की समीक्षा करता है (Judicial Review), और संविधान की व्याख्या करता है। यह लोकतंत्र को सुरक्षित रखने वाला प्रमुख स्तंभ है।


प्रश्न 58: भारतीय संसद की शक्तियाँ क्या हैं?

उत्तर:
भारतीय संसद के पास निम्नलिखित शक्तियाँ होती हैं:

  • विधायी शक्ति – कानून बनाना,
  • वित्तीय शक्ति – बजट, कर, व्यय,
  • संविधान संशोधन,
  • कार्यपालिका पर नियंत्रण – प्रश्नकाल, अविश्वास प्रस्ताव,
  • विदेशी संधियों की स्वीकृति,
  • राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति का निर्वाचन।
    पार्लियामेंट भारत का सर्वोच्च विधायन निकाय है।

प्रश्न 59: संविधान की आत्मा किसे कहा जाता है और क्यों?

उत्तर:
अनुच्छेद 32 को संविधान की आत्मा (Heart and Soul of the Constitution) कहा जाता है। डॉ. आंबेडकर ने इसे ऐसा कहा क्योंकि यह नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु सीधे सुप्रीम कोर्ट जाने की अनुमति देता है। यह अधिकार यदि न हो, तो मौलिक अधिकार सिर्फ कागज़ी बनकर रह जाएँगे।


प्रश्न 60: संविधान के अंतर्गत स्वतंत्र न्यायपालिका का क्या महत्व है?

उत्तर:
स्वतंत्र न्यायपालिका लोकतंत्र की रीढ़ है। यह विधायिका व कार्यपालिका से स्वतंत्र होती है ताकि निष्पक्ष निर्णय दे सके। यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है, संविधान की व्याख्या करती है और सत्ता के दुरुपयोग को रोकती है। न्यायिक स्वतंत्रता से ही न्याय में विश्वास बना रहता है।


प्रश्न 61: ‘लोकतंत्र’ की विशेषताएँ बताइए।

उत्तर:
लोकतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली है जहाँ जनता सर्वोच्च होती है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं:

  1. चुनाव द्वारा सरकार का गठन,
  2. नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा,
  3. कानून का शासन,
  4. बहुमत का शासन लेकिन अल्पसंख्यकों का सम्मान,
  5. स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका,
  6. सशक्त एवं स्वतंत्र प्रेस,
  7. लोकतांत्रिक सहभागिता
    भारत में संसदीय लोकतंत्र अपनाया गया है जहाँ कार्यपालिका संसद के प्रति उत्तरदायी होती है।

प्रश्न 62: संसदीय प्रणाली में प्रधानमंत्री की भूमिका क्या है?

उत्तर:
प्रधानमंत्री भारतीय संसद में कार्यपालिका का वास्तविक प्रमुख होता है। वह मंत्रिपरिषद का नेता होता है और राष्ट्रपति को सलाह देता है। प्रधानमंत्री की भूमिकाएँ हैं:

  • मंत्रियों की नियुक्ति/त्यागपत्र,
  • नीति निर्धारण,
  • संसद में सरकार का प्रतिनिधित्व,
  • विदेश नीति संचालन,
  • संकट प्रबंधन।
    अनुच्छेद 74 व 75 प्रधानमंत्री की स्थिति को स्पष्ट करते हैं। वह सरकार का संचालनकर्ता और निर्णयों का अंतिम निर्धारक होता है।

प्रश्न 63: मौलिक अधिकारों की न्यायिक प्रवर्तन क्षमता क्या है?

उत्तर:
अनुच्छेद 32 और 226 के तहत नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर सीधे सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट जा सकते हैं। न्यायालय रिट्स (Habeas Corpus, Mandamus, Certiorari, Prohibition, Quo Warranto) जारी करके अधिकारों की रक्षा करता है। यह प्रवर्तन संविधान की सर्वोच्चता और नागरिक स्वतंत्रता की गारंटी है। डॉ. अम्बेडकर ने अनुच्छेद 32 को “संविधान की आत्मा और हृदय” कहा।


प्रश्न 64: सुप्रीम कोर्ट को ‘संविधान का संरक्षक’ क्यों कहा जाता है?

उत्तर:
सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 32 के अंतर्गत यह अधिकार है कि वह मौलिक अधिकारों की रक्षा कर सके। साथ ही यह संविधान के अनुच्छेद 131, 132, 133, 134 आदि के अंतर्गत संविधान की व्याख्या करता है और न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति रखता है। केशवानंद भारती मामला में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की मूल संरचना को संरक्षित कर भारत के संविधान की आत्मा की रक्षा की। इसीलिए उसे “संविधान का संरक्षक” कहा जाता है।


प्रश्न 65: संविधान में समानता का सिद्धांत कैसे सुनिश्चित किया गया है?

उत्तर:
समानता का सिद्धांत अनुच्छेद 14 से 18 में वर्णित है:

  • अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समानता,
  • अनुच्छेद 15: धर्म, जाति, लिंग, आदि के आधार पर भेदभाव का निषेध,
  • अनुच्छेद 16: सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर,
  • अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का अंत,
  • अनुच्छेद 18: उपाधियों की समाप्ति।
    यह व्यवस्था भारत को एक समानतावादी लोकतंत्र बनाती है।

प्रश्न 66: संविधान में धर्म की स्वतंत्रता कैसे दी गई है?

उत्तर:
भारतीय संविधान अनुच्छेद 25 से 28 के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है:

  • अनु. 25: धर्म की अभिव्यक्ति, अभ्यास और प्रचार की स्वतंत्रता,
  • अनु. 26: धार्मिक संस्थानों को संचालित करने का अधिकार,
  • अनु. 27: धार्मिक कर लगाने की मनाही,
  • अनु. 28: शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा पर प्रतिबंध।
    यह प्रावधान धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को क्रियान्वित करते हैं।

प्रश्न 67: राइट टू एजुकेशन (शिक्षा का अधिकार) किस अनुच्छेद में है?

उत्तर:
अनुच्छेद 21A के अंतर्गत 6 से 14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है। यह 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया। इसके अंतर्गत RTE Act, 2009 बनाया गया, जो प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता, पहुँच और अधिकार सुनिश्चित करता है।


प्रश्न 68: न्यायपालिका की स्वतंत्रता का क्या महत्व है?

उत्तर:
न्यायपालिका की स्वतंत्रता एक लोकतांत्रिक व्यवस्था की रीढ़ है। यह सुनिश्चित करता है कि न्यायाधीश किसी दबाव या भय के बिना निर्णय लें। इससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा होती है। भारत में अनुच्छेद 50 (निर्देशक तत्व) न्यायपालिका की कार्यपालिका से पृथकता की बात करता है। न्यायाधीशों की नियुक्ति, कार्यकाल और वेतन की सुरक्षा भी स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है।


प्रश्न 69: केंद्र-राज्य संबंधों के प्रकार बताइए।

उत्तर:
भारतीय संविधान में केंद्र और राज्य के बीच संबंध तीन भागों में बांटे गए हैं:

  1. विधायी संबंध (अनुच्छेद 245-255) – विषय सूची: केंद्रीय, राज्य, समवर्ती,
  2. कार्यकारी संबंध (अनुच्छेद 256-263) – केंद्र और राज्य कार्यपालिका का समन्वय,
  3. वित्तीय संबंध (अनुच्छेद 268-293) – कराधान, अनुदान, वित्त आयोग।
    संविधान संघात्मक होते हुए भी केंद्र को अधिक शक्तियाँ देता है।

प्रश्न 70: संविधान में सामाजिक न्याय की अवधारणा क्या है?

उत्तर:
सामाजिक न्याय का अर्थ है – समाज के सभी वर्गों को समान अवसर, सुरक्षा और सम्मान मिलना। भारतीय संविधान में यह प्रस्तावना, अनुच्छेद 14-18, और नैतिक निर्देशक सिद्धांतों (अनुच्छेद 38, 39) में निहित है। आरक्षण व्यवस्था, बाल श्रम निषेध, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ इसके उदाहरण हैं।


प्रश्न 71: विशेष विवाह अधिनियम, 1954 का उद्देश्य बताइए।

उत्तर:
इस अधिनियम का उद्देश्य है – भारत में धर्मनिरपेक्ष वैवाहिक व्यवस्था को वैधानिक स्वरूप देना। इसमें विवाह हेतु धर्म परिवर्तन आवश्यक नहीं होता। यह अंतर्धार्मिक और अंतरजातीय विवाहों को मान्यता देता है। इसमें विवाह के लिए आयु, पंजीकरण, और तलाक आदि की विधियाँ निर्धारित की गई हैं।


प्रश्न 72: नीतिनिर्देशक तत्वों और मौलिक अधिकारों में अंतर बताइए।

उत्तर:
| आधार | मौलिक अधिकार | नीति निर्देशक तत्व |
|——-|—————-|———————|
| प्रकृति | न्यायिक रूप से लागू | नैतिक रूप से बाध्यकारी |
| स्रोत | भाग III | भाग IV |
| प्रवर्तन | अनुच्छेद 32/226 द्वारा | न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं |
| उद्देश्य | व्यक्तिगत स्वतंत्रता | सामाजिक-आर्थिक कल्याण |


प्रश्न 73: अनुच्छेद 32 को ‘संविधान की आत्मा’ क्यों कहा जाता है?

उत्तर:
अनुच्छेद 32 नागरिकों को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने का अधिकार देता है। यह न्यायपालिका को रिट्स जारी करने की शक्ति देता है। डॉ. अम्बेडकर ने इसे “संविधान की आत्मा और हृदय” कहा, क्योंकि यही अनुच्छेद मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाता है।


प्रश्न 74: ‘सेकुलर राज्य’ का क्या तात्पर्य है?

उत्तर:
सेकुलर राज्य का अर्थ है कि राज्य का कोई धर्म नहीं होता और वह सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार करता है। भारत में यह सिद्धांत संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 25-28 में स्पष्ट है। भारत का धर्मनिरपेक्षता का स्वरूप सकारात्मक और समावेशी है – धर्म की स्वतंत्रता भी और धर्मों की समानता भी।


प्रश्न 75: भारतीय संविधान को क्यों सबसे लंबा संविधान कहा जाता है?

उत्तर:
भारतीय संविधान में लगभग 470 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ और 25 भाग हैं। यह विस्तृत इसलिए है क्योंकि:

  • भारत एक विविधतापूर्ण देश है,
  • केंद्र और राज्यों के बीच स्पष्ट संबंध,
  • विस्तृत मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व,
  • नागरिकता, चुनाव, अनुसूचित जाति/जनजाति प्रावधान।
    इसके विस्तार के कारण ही यह दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है।

प्रश्न 76: संविधान में संघवाद की विशेषता बताइए।

उत्तर:
संघवाद का अर्थ है – शक्ति का वितरण केंद्र और राज्यों के बीच। भारत में संघवाद की विशेषताएँ हैं:

  • द्वैध शासन व्यवस्था,
  • विधायी सूचियाँ,
  • वित्तीय स्वतंत्रता,
  • केंद्र की श्रेष्ठता,
  • एकल नागरिकता।
    भारत का संघवाद लचीला और सहकारी है, जिसे क्वासी-फेडरल कहा जाता है।

प्रश्न 77: स्वतंत्र न्यायपालिका क्यों आवश्यक है?

उत्तर:
स्वतंत्र न्यायपालिका लोकतंत्र का रक्षक होती है। यह सरकार के अन्य अंगों पर नियंत्रण रखती है, नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती है और संविधान की व्याख्या करती है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करती है और लोकतांत्रिक शासन में संतुलन बनाए रखती है।


प्रश्न 78: भारतीय संविधान में भाषा संबंधी प्रावधान क्या हैं?

उत्तर:
अनुच्छेद 343-351 में भाषा संबंधी प्रावधान हैं:

  • हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया है (अनु. 343),
  • अंग्रेजी को सह-राजभाषा के रूप में कुछ वर्षों तक रखा गया,
  • राज्यों को अपनी भाषा अपनाने की छूट (अनु. 345),
  • भाषाई अल्पसंख्यकों की सुरक्षा (अनु. 350),
  • हिंदी के विकास हेतु प्रयास (अनु. 351)।
    8वीं अनुसूची में वर्तमान में 22 भाषाएँ शामिल हैं।

प्रश्न 79: संविधान में आपातकालीन प्रावधानों का उद्देश्य क्या है?

उत्तर:
आपातकालीन प्रावधानों (अनु. 352-360) का उद्देश्य है – देश की संप्रभुता, अखंडता और संविधानिक व्यवस्था की रक्षा। ये प्रावधान संकट की स्थिति में केंद्र सरकार को असाधारण शक्तियाँ देते हैं ताकि राष्ट्र को स्थायित्व और सुरक्षा प्रदान की जा सके।


प्रश्न 80: ‘रिट’ क्या होता है?

उत्तर:
रिट एक न्यायिक आदेश है जो अदालत द्वारा सरकार या किसी व्यक्ति को दिया जाता है। भारत में सुप्रीम कोर्ट (अनु. 32) और हाईकोर्ट (अनु. 226) द्वारा पाँच प्रकार की रिट जारी की जाती हैं:

  1. Habeas Corpus,
  2. Mandamus,
  3. Prohibition,
  4. Certiorari,
  5. Quo Warranto
    इनका उद्देश्य मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है।

यह रहे Indian Constitutional Law – II से संबंधित प्रश्न संख्या 81 से 100 तक के लघु उत्तरी प्रश्नों के उत्तर (100 शब्दों के भीतर, हिंदी में):


प्रश्न 81: भारतीय संविधान में भाषा संबंधी प्रावधान क्या हैं?

उत्तर:
अनुच्छेद 343 से 351 तक भाषा संबंधी प्रावधान हैं।

  • अनुच्छेद 343: संघ की राजभाषा हिंदी (देवनागरी लिपि में) है।
  • अनुच्छेद 345: राज्यों को अपनी राजभाषा चुनने का अधिकार।
  • अनुच्छेद 350A और 350B: प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा और अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी।
  • अनुच्छेद 351: हिंदी का प्रचार।
    आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएँ शामिल हैं।

प्रश्न 82: लोकसभा और राज्यसभा में अंतर बताइए।

उत्तर:
| आधार | लोकसभा | राज्यसभा |
|——|———|———–|
| गठन | प्रत्यक्ष चुनाव | अप्रत्यक्ष चुनाव |
| सदस्य संख्या | 545 तक | 250 तक |
| कार्यकाल | 5 वर्ष | स्थायी (⅓ हर 2 साल में सेवानिवृत्त) |
| अध्यक्ष | स्पीकर | उपराष्ट्रपति |
| प्रमुख भूमिका | धन विधेयक में निर्णायक | पुनर्विचार एवं सलाह |


प्रश्न 83: राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ क्या हैं?

उत्तर:
राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ:

  • संसद का अधिवेशन बुलाना, स्थगन और विघटन (अनु. 85),
  • अभिभाषण देना (अनु. 87),
  • विधेयकों को assent देना या वापस भेजना (अनु. 111),
  • अध्यादेश जारी करना (अनु. 123),
  • मनी बिल पर हस्ताक्षर।
    राष्ट्रपति की विधायी भूमिका मुख्यतः औपचारिक होती है लेकिन संवैधानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 84: ‘राज्य नीति के निदेशक तत्वों’ का महत्व बताइए।

उत्तर:
राज्य नीति के निदेशक तत्व (भाग IV, अनु. 36-51) सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत हैं। ये सरकार के लिए नैतिक दिशानिर्देश हैं जिनका उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना है। ये मौलिक अधिकारों के पूरक हैं और न्यायपालिका समय-समय पर इन्हें कानून निर्माण में आधार बनाती है (जैसे – यूनिकसिटी केस, मिनर्वा मिल्स केस)।


प्रश्न 85: नागरिकता के अधिग्रहण के विधियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:
भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार नागरिकता प्राप्त करने के तरीके:

  1. जन्म से (By Birth)
  2. वंशानुक्रम से (By Descent)
  3. पंजीकरण से (By Registration)
  4. नैसर्गिकरण से (By Naturalization)
  5. भारतीय क्षेत्र के समावेशन से (Incorporation of Territory)
    यह अधिनियम नागरिकता के विलोपन और त्याग की प्रक्रिया भी बताता है।

प्रश्न 86: अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संशोधन की प्रक्रिया समझाइए।

उत्तर:
अनु. 368 में तीन प्रकार के संशोधन हैं:

  1. सरल बहुमत द्वारा (कुछ अनुसूचियाँ, नाम),
  2. विशेष बहुमत द्वारा (अधिकांश प्रावधान),
  3. विशेष बहुमत + राज्यों की मंज़ूरी (संघीय ढाँचा, न्यायपालिका आदि)।
    उदाहरण: 42वां संशोधन (1976) में मूल कर्तव्यों जोड़े गए।
    संविधान संशोधन संसद का विशेषाधिकार है।

प्रश्न 87: ‘पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’ (PIL) क्या है?

उत्तर:
PIL वह याचिका है जिसे कोई भी व्यक्ति, सामाजिक कार्यकर्ता या NGO जनहित में अदालत में दायर कर सकता है, भले ही वह स्वयं प्रभावित न हो। यह न्याय तक पहुँच का लोकतांत्रिक तरीका है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट अनु. 32 और 226 के तहत इसे सुनते हैं। PIL ने पर्यावरण, मानवाधिकार, गरीबों के अधिकारों की रक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।


प्रश्न 88: अनुच्छेद 21 का महत्व बताइए।

उत्तर:
अनु. 21: “किसी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना वंचित नहीं किया जाएगा।”
इसकी व्याख्या व्यापक हुई है:

  • स्वस्थ वातावरण का अधिकार,
  • निजता का अधिकार (Puttaswamy केस),
  • शिक्षा का अधिकार (21A),
  • भरण-पोषण, आवास, और गरिमामय जीवन का अधिकार
    यह संविधान का सबसे प्रगतिशील अनुच्छेद माना जाता है।

प्रश्न 89: ‘ड्यू प्रोसेस ऑफ लॉ’ और ‘प्रोसीजर इस्टैब्लिश्ड बाय लॉ’ में अंतर।

उत्तर:
| आधार | ड्यू प्रोसेस ऑफ लॉ | प्रोसिजर इस्टैब्लिश्ड बाय लॉ |
|——-|——————–|—————————–|
| व्याख्या | न्यायोचित प्रक्रिया आवश्यक | केवल विधिक प्रक्रिया पर्याप्त |
| उत्पत्ति | अमेरिका | भारत (मूलरूप से) |
| भारत में स्थिति | अनु. 21 में ‘प्रोसीजर’ है पर न्यायालय ने ड्यू प्रोसेस का तत्व जोड़ा (Menaka Gandhi केस)।
| उद्देश्य | व्यक्ति की न्यायपूर्ण रक्षा | कानूनी प्रक्रिया का पालन |


प्रश्न 90: भारतीय संविधान में आपातकाल की स्थिति कब और कैसे लगाई जाती है?

उत्तर:
तीन प्रकार के आपातकाल हैं:

  1. राष्ट्रीय आपातकाल (अनु. 352) – युद्ध/विदेशी आक्रमण/सशस्त्र विद्रोह,
  2. राज्य आपातकाल (अनु. 356) – संवैधानिक तंत्र विफलता,
  3. आर्थिक आपातकाल (अनु. 360) – वित्तीय स्थिरता संकट।
    राष्ट्रपति संसद की मंज़ूरी से इनका उद्घोष कर सकते हैं। इससे मौलिक अधिकारों पर प्रभाव पड़ सकता है।

प्रश्न 91: ‘संविधान की प्रस्तावना’ का महत्व बताइए।

उत्तर:
संविधान की प्रस्तावना संविधान के उद्देश्यों, आदर्शों और दर्शन को दर्शाती है – संप्रभुता, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और गणराज्य। यह न्याय, स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व को सुनिश्चित करती है। केशवानंद भारती केस में इसे संविधान का अविभाज्य अंग माना गया, यद्यपि उस पर सीधे अधिकार लागू नहीं होते।


प्रश्न 92: ‘केशवानंद भारती केस’ का महत्व बताइए।

उत्तर:
1973 का यह केस भारतीय संविधान के इतिहास में मील का पत्थर है। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद संविधान संशोधित कर सकती है परंतु मूल संरचना (Basic Structure) को नहीं बदल सकती। इसने न्यायपालिका की स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता, विधि का शासन आदि को संरक्षित किया। यह न्यायिक समीक्षा की शक्ति को भी पुष्ट करता है।


प्रश्न 93: न्यायिक पुनरावलोकन क्या है?

उत्तर:
यह वह शक्ति है जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट सरकार के कृत्यों और कानूनों की संविधान के आलोक में समीक्षा कर सकते हैं। यदि कोई कानून संविधान के विरुद्ध पाया जाता है तो न्यायालय उसे असंवैधानिक घोषित कर निरस्त कर सकता है। यह अनु. 13, 32 और 226 से व्युत्पन्न शक्ति है।


प्रश्न 94: ‘फंडामेंटल ड्यूटीज’ का महत्व बताइए।

उत्तर:
मौलिक कर्तव्य (अनु. 51A, भाग IV-A) 42वें संशोधन, 1976 से जोड़े गए। ये नागरिकों से अपेक्षित नैतिक जिम्मेदारियाँ हैं, जैसे – संविधान का सम्मान, पर्यावरण संरक्षण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना, देश की एकता की रक्षा आदि। ये न्यायिक रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, परंतु संवैधानिक नैतिकता को बढ़ावा देते हैं।


प्रश्न 95: भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष कैसे है?

उत्तर:
भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा को मान्यता देता है –

  • राज्य का कोई धर्म नहीं,
  • अनु. 25-28 में धार्मिक स्वतंत्रता,
  • अनु. 15 व 16 में धर्म के आधार पर भेदभाव का निषेध।
    भारत में राज्य सभी धर्मों का समान सम्मान करता है।
    ‘सेक्युलर’ शब्द प्रस्तावना में 42वें संशोधन से जोड़ा गया।

प्रश्न 96: भारत में ‘रूल ऑफ लॉ’ का क्या अर्थ है?

उत्तर:
रूल ऑफ लॉ का अर्थ है – कानून का शासन, अर्थात्

  • सभी नागरिक कानून के समक्ष समान,
  • कानून के अनुसार ही शासन,
  • मनमानी का निषेध।
    यह सिद्धांत भारत में अनु. 14 में प्रतिपादित है। A.V. Dicey के सिद्धांतों पर आधारित यह भारतीय लोकतंत्र की नींव है।

प्रश्न 97: संविधान में संघीय व्यवस्था की विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर:
संघीय व्यवस्था की विशेषताएँ:

  • शक्ति का वितरण (तीन सूचियाँ),
  • द्वैध शासन व्यवस्था,
  • लिखित संविधान,
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता,
  • संविधान की सर्वोच्चता।
    भारत संघात्मक है लेकिन केंद्र-प्रधान संघवाद का उदाहरण है।

प्रश्न 98: संविधान की सर्वोच्चता का क्या तात्पर्य है?

उत्तर:
संविधान भारत का सर्वोच्च विधि दस्तावेज है। सभी कानून, सरकारी कार्य, नीतियाँ संविधान के अनुरूप होनी चाहिए। संविधान का उल्लंघन असंवैधानिक माना जाएगा। न्यायपालिका संविधान की व्याख्या और संरक्षण की जिम्मेदारी निभाती है। संविधान की सर्वोच्चता लोकतंत्र और कानून के शासन की गारंटी है।


प्रश्न 99: संविधान सभा की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं?

उत्तर:

  • संविधान सभा का गठन 1946 में हुआ,
  • अध्यक्ष: डॉ. राजेन्द्र प्रसाद,
  • प्रारूप समिति अध्यक्ष: डॉ. भीमराव अंबेडकर,
  • सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व,
  • कुल 11 सत्रों में कार्य,
  • 26 नवंबर 1949 को संविधान अंगीकृत,
  • 26 जनवरी 1950 को लागू।
    यह सभा स्वतंत्र, विविध और लोकतांत्रिक रूप से कार्य कर संविधान निर्माण का कार्य पूर्ण करने में सफल रही।

प्रश्न 100: भारत का संविधान एक “जीवित दस्तावेज़” क्यों कहलाता है?

उत्तर:
भारत का संविधान लचीला और अनुकूलनीय है। इसमें समय के अनुसार संशोधन की सुविधा है। न्यायालयों ने इसकी व्याख्या व्यापक और आधुनिक संदर्भों में की है (जैसे – निजता का अधिकार, पर्यावरणीय अधिकार आदि)। इसका उद्देश्य वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं को संबोधित करना है, जिससे यह “Living Document” कहलाता है।