“IMNS की महिला अधिकारी भी हैं ‘भूतपूर्व सैनिक’: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय”

“IMNS की महिला अधिकारी भी हैं ‘भूतपूर्व सैनिक’: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय”

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में यह स्पष्ट किया है कि भारतीय सैन्य नर्सिंग सेवा (Indian Military Nursing Service – IMNS) से सेवानिवृत्त महिला अधिकारी भी पंजाब राज्य में भूतपूर्व सैनिकों को मिलने वाले आरक्षण की पात्र हैं। यह फैसला इरविन कौर बनाम पंजाब लोक सेवा आयोग एवं अन्य (Irwan Kour vs Punjab Public Service Commission & Ors) केस में सुनाया गया, जो न केवल महिलाओं की सैन्य सेवाओं में भूमिका की मान्यता है, बल्कि समानता और सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ी प्रगति भी मानी जा रही है।

मामले की पृष्ठभूमि:

याचिकाकर्ता इरविन कौर भारतीय सैन्य नर्सिंग सेवा (IMNS) की सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने पंजाब लोक सेवा आयोग द्वारा निकाली गई एक सरकारी पद के लिए आवेदन किया था, जो भूतपूर्व सैनिकों (Ex-servicemen) के लिए आरक्षित था। आयोग ने उनके आवेदन को यह कहकर खारिज कर दिया कि IMNS की सेवा को “भूतपूर्व सैनिक” की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता।

इस अस्वीकृति को चुनौती देते हुए इरविन कौर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, जिसमें उन्होंने यह दलील दी कि उन्हें भी अन्य सैन्य कर्मियों की तरह भूतपूर्व सैनिक का दर्जा मिलना चाहिए और वह पंजाब राज्य के 1982 के भूतपूर्व सैनिक भर्ती नियमों (Punjab Recruitment of Ex-Servicemen Rules, 1982) के तहत आरक्षण की पात्र हैं।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि:

  • IMNS की महिला अधिकारियों को सैन्य सेवा से अलग नहीं माना जा सकता। वे भी सशस्त्र बलों का अभिन्न अंग हैं और युद्धकाल, आपदा, और विशेष सैन्य अभियानों में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
  • पंजाब के 1982 के नियमों के तहत “भूतपूर्व सैनिक” की परिभाषा में ऐसे सभी लोग आते हैं जिन्होंने भारत के सशस्त्र बलों में कार्य किया हो। IMNS इस परिभाषा के भीतर आता है।
  • IMNS के सदस्यों को भूतपूर्व सैनिक के तौर पर बाहर रखना लैंगिक भेदभाव (gender discrimination) होगा और यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 16 (समान अवसर का अधिकार) का उल्लंघन होगा।

अदालत की सख्त टिप्पणी:

पीठ ने अपने फैसले में कहा:

सिर्फ इसलिए कि IMNS महिला-केंद्रित सेवा है, उसे सैन्य सेवा से निम्नतर नहीं माना जा सकता।
राष्ट्र की सेवा करने वालों को उनके लिंग के आधार पर वंचित करना संविधान के मूल मूल्यों के खिलाफ है।

महत्वपूर्ण प्रभाव:

यह निर्णय उन हजारों महिला सैन्यकर्मियों के लिए एक नई राह खोलता है जो सेवा निवृत्त होने के बाद नौकरी के आरक्षण या सामाजिक लाभों से वंचित रह जाती थीं। इससे न केवल पंजाब में बल्कि अन्य राज्यों में भी नीतियों की समीक्षा की संभावना प्रबल हो गई है।

यह फैसला यह भी दर्शाता है कि अब समय आ गया है जब महिलाओं की सैन्य सेवा में भूमिका को बराबरी से देखा जाए और उन्हें वही सम्मान व अधिकार मिले जो उनके पुरुष समकक्षों को मिलते हैं।


निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय महिलाओं की सैन्य पहचान और अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक मील का पत्थर है। यह फैसला सुनिश्चित करता है कि भूतपूर्व सैनिक का दर्जा सिर्फ वर्दी पहनने तक सीमित नहीं, बल्कि सेवा और बलिदान की भावना का सम्मान है—चाहे वह महिला हो या पुरुष।