शीर्षक: IBC की धारा 8 के तहत डिमांड नोटिस की सेवा: कॉरपोरेट देनदार के प्रमुख प्रबंधकीय कार्मिक (KMP) पर सेवा की वैधता पर न्यायिक दृष्टिकोण
परिचय:
भारतीय दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 (IBC) की धारा 8, कॉरपोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (CIRP) की शुरुआत का एक महत्वपूर्ण चरण है। यह धारा ऑपरेशनल क्रीडिटर को यह अधिकार देती है कि वह डिफॉल्ट के मामले में कॉरपोरेट डेब्टर को डिमांड नोटिस भेजे। लेकिन एक प्रमुख प्रश्न यह है कि क्या यह नोटिस कॉरपोरेट डेब्टर के किसी Key Managerial Personnel (KMP) को भेजा जाए, तो क्या उसे वैध माना जाएगा?
इस प्रश्न पर विभिन्न न्यायिक निर्णयों ने स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए हैं कि कब और कैसे डिमांड नोटिस की सेवा वैध मानी जाएगी। यह लेख इस मुद्दे का विश्लेषण करता है।
IBC धारा 8 की संक्षिप्त रूपरेखा:
IBC की धारा 8 ऑपरेशनल क्रीडिटर को यह अनुमति देती है कि वह डिफॉल्ट होने पर कॉरपोरेट डेब्टर को एक डिमांड नोटिस या इन्वोइस कॉपी भेजे। यदि 10 दिनों के भीतर भुगतान नहीं होता या विवाद नहीं उठाया जाता, तो धारा 9 के तहत CIRP की याचिका दायर की जा सकती है।
सेवा का प्रश्न: क्या KMP को नोटिस भेजना वैध है?
न्यायालयों ने माना है कि IBC एक “सब्स्टैंस ओवर फॉर्म” वाला कानून है, यानी तकनीकी खामियों के बजाय वास्तविक मंशा और प्रभाव को प्राथमिकता दी जाती है। इस परिप्रेक्ष्य में, यदि डिमांड नोटिस कॉरपोरेट डेब्टर की ओर से किसी अधिकृत या प्रभावी अधिकारी, जैसे कि Director, CEO, CFO, Company Secretary, या अन्य KMP को भेजा जाता है, तो उसे वैध सेवा माना जा सकता है।
प्रमुख निर्णय:
- Shubham Jain v. Gagan Ferrotech Limited
एनसीएलएटी ने कहा कि यदि नोटिस KMP को भेजा गया है और उसके पास नोटिस प्राप्त करने की क्षमता थी, तो वह धारा 8 के तहत वैध सेवा मानी जाएगी। - Alloy Smelters Pvt. Ltd. v. Shyam Ferro Alloys Ltd.
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि नोटिस ईमेल या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजा गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि डेब्टर को सूचना प्राप्त हुई, तो उसे सेवा की पूर्ति मानी जाएगी।
व्यावहारिक प्रभाव:
- कंपनियों के KMP के पास यह उत्तरदायित्व है कि वे ऐसी नोटिसों पर यथोचित कार्रवाई करें।
- ऑपरेशनल क्रीडिटर्स को यह सावधानी रखनी चाहिए कि नोटिस ऐसी व्यक्ति को भेजा जाए जो कंपनी के कार्यों से संबंधित हो और सूचना को उचित फोरम तक पहुंचा सके।
- नोटिस की सेवा केवल रजिस्टर्ड ऑफिस के पते तक सीमित नहीं है, यदि कंपनी के कार्यकारी या प्रबंधकीय प्रमुख को सूचना मिली है, तो वह पर्याप्त मानी जा सकती है।
निष्कर्ष:
IBC की धारा 8 के अंतर्गत डिमांड नोटिस की सेवा का उद्देश्य कंपनी को बकाया दावे की सूचना देना है, न कि प्रक्रिया को तकनीकी आधार पर रोक देना। इसीलिए, यदि नोटिस किसी KMP को भेजा गया है और यह सिद्ध होता है कि कंपनी को सूचना मिली थी, तो नोटिस की वैधता पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता।
यह दृष्टिकोण IBC की मूल भावना को प्रकट करता है—त्वरित समाधान, निष्पक्षता और कॉरपोरेट अनुशासन।