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Hitesh Verma v. State of Uttarakhand (2020): केवल निजी विवाद या निजी स्थान पर जातिसूचक अपमान SC-ST Act के अंतर्गत नहीं आता, जब तक वह सार्वजनिक दृष्टि में न हो

Hitesh Verma v. State of Uttarakhand (2020): केवल निजी विवाद या निजी स्थान पर जातिसूचक अपमान SC-ST Act के अंतर्गत नहीं आता, जब तक वह सार्वजनिक दृष्टि में न हो

भूमिका

भारतीय विधिक व्यवस्था में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC/ST) समुदायों के सदस्यों की गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST Act) को एक विशेष कानून के रूप में पारित किया गया। इस अधिनियम का उद्देश्य यह था कि समाज में गहराई तक पैठी हुई जातिगत भेदभाव और अपमानजनक व्यवहार की रोकथाम की जा सके और पीड़ितों को प्रभावी न्याय मिल सके।

हालांकि, वर्षों से इस अधिनियम के दुरुपयोग की शिकायतें भी सामने आती रही हैं। कई मामलों में यह प्रश्न उठा कि क्या किसी निजी विवाद में प्रयोग किए गए जातिसूचक शब्द अपने-आप में SC/ST Act के तहत अपराध माने जाएंगे या इसके लिए कुछ अतिरिक्त शर्तों का भी पालन आवश्यक है।

इसी संदर्भ में Hitesh Verma v. State of Uttarakhand (2020) का निर्णय एक ऐतिहासिक पड़ाव साबित हुआ। इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि जातिसूचक अपमान किसी निजी स्थान पर किया गया है और वह सार्वजनिक दृष्टि (public view) में नहीं है, तो वह SC/ST Act के अंतर्गत दंडनीय अपराध नहीं माना जाएगा।


मामले की पृष्ठभूमि

  • अपीलकर्ता (हितेश वर्मा) और शिकायतकर्ता (एक अनुसूचित जाति की महिला) के बीच संपत्ति विवाद चल रहा था।
  • इस विवाद के दौरान शिकायत की गई कि अपीलकर्ता ने शिकायतकर्ता को जातिसूचक शब्द कहकर अपमानित किया।
  • प्राथमिकी (FIR) SC/ST Act की धारा 3(1)(r) और (s) के तहत दर्ज की गई।
  • अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि विवाद केवल भूमि/संपत्ति से संबंधित था, न कि जातिगत भेदभाव से। साथ ही, कथित अपमान शिकायतकर्ता के घर के भीतर हुआ था, जो सार्वजनिक दृष्टि में नहीं था।
  • मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा।

मुख्य विधिक प्रश्न

  1. क्या केवल निजी विवाद के दौरान प्रयोग किए गए जातिसूचक शब्द SC/ST Act के अंतर्गत दंडनीय अपराध माने जाएंगे?
  2. क्या निजी स्थान (private place) पर हुआ अपमान, जहां कोई तीसरा व्यक्ति उपस्थित न हो, सार्वजनिक दृष्टि में होने की शर्त को पूरा करता है?
  3. क्या SC/ST Act के प्रावधानों का उपयोग संपत्ति विवाद जैसे निजी विवादों में किया जा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सर्वोच्च न्यायालय की पीठ (न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता) ने कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर निर्णय दिया—

  1. निजी विवाद बनाम जातिगत उत्पीड़न
    • कोर्ट ने माना कि यदि विवाद केवल संपत्ति या निजी स्वार्थ से जुड़ा है और उसका जातिगत भेदभाव से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, तो ऐसे मामलों में SC/ST Act लागू नहीं किया जा सकता।
    • शिकायतकर्ता की जाति का उल्लेख करना मात्र पर्याप्त नहीं है; यह दिखाना आवश्यक है कि अपमान का उद्देश्य उसकी जातिगत पहचान के आधार पर था।
  2. सार्वजनिक दृष्टि (Public View) की शर्त
    • धारा 3(1)(r) और 3(1)(s) के तहत अपराध तभी बनता है जब जातिसूचक अपमान किसी ऐसे स्थान पर किया गया हो, जहां जनसाधारण उपस्थित हो या तीसरे पक्ष की उपस्थिति में वह अपमान घटित हो।
    • यदि घटना केवल निजी कक्ष या घर के भीतर हुई हो, और वहां केवल पक्षकार ही मौजूद हों, तो वह सार्वजनिक दृष्टि की परिभाषा में नहीं आता।
  3. दुरुपयोग की रोकथाम
    • कोर्ट ने माना कि SC/ST Act का उद्देश्य समाज में जातिगत उत्पीड़न और अपमान को रोकना है, लेकिन इसका दुरुपयोग निजी विवादों को फौजदारी मामले में बदलने के लिए नहीं होना चाहिए।
    • इसीलिए, अदालत ने कहा कि संपत्ति विवाद जैसे मामलों को सिविल प्रकृति का मानते हुए अलग से निपटाया जाना चाहिए।
  4. परिणाम
    • कोर्ट ने कहा कि आरोप SC/ST Act के दायरे में नहीं आते।
    • इसलिए, इस मामले में दर्ज एफआईआर और कार्यवाही को क्वैश (quash) कर दिया गया।

महत्वपूर्ण अवलोकन (Key Observations)

  • “सार्वजनिक दृष्टि” का अर्थ है ऐसा स्थान या परिस्थिति जहां समाज के अन्य लोग भी उपस्थित हों और उस अपमान के साक्षी बन सकें।
  • केवल पीड़ित व्यक्ति और आरोपी की उपस्थिति को सार्वजनिक दृष्टि नहीं माना जा सकता।
  • किसी भी निजी संपत्ति विवाद को जातिगत विवाद का रूप देना न्यायसंगत नहीं है।

न्यायालय द्वारा उद्धृत पूर्ववर्ती निर्णय

  1. Swaran Singh v. State (2008) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जातिसूचक अपमान तभी SC/ST Act के अंतर्गत आएगा जब वह सार्वजनिक दृष्टि में हो।
  2. Kehar Singh v. State of Haryana (2013) – पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया था कि घर के भीतर निजी तौर पर कहे गए शब्द इस अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते।

कानूनी विश्लेषण

इस निर्णय ने दो महत्वपूर्ण पहलुओं को स्पष्ट कर दिया—

  1. SC/ST Act का सीमित दायरा
    • अधिनियम केवल तभी लागू होगा जब अपराध जातिगत पहचान पर आधारित हो।
    • निजी विवादों में इसे लागू करना अधिनियम की आत्मा (spirit) के विपरीत है।
  2. निजता और सार्वजनिक दृष्टि का अंतर
    • यदि कथित अपमान सार्वजनिक स्थान या सार्वजनिक दृष्टि में किया गया हो, तभी अपराध सिद्ध होगा।
    • निजी स्थान पर हुई घटना केवल तभी अधिनियम के अंतर्गत आ सकती है, जब वहां अन्य व्यक्ति उपस्थित हों।
  3. न्यायिक संतुलन
    • कोर्ट ने SC/ST Act के दुरुपयोग को रोकने और वास्तविक पीड़ितों को न्याय दिलाने के बीच संतुलन स्थापित किया।

इस निर्णय के प्रभाव

  1. न्यायिक स्पष्टता – अब यह स्पष्ट है कि SC/ST Act के तहत मामला दर्ज करने के लिए यह दिखाना आवश्यक है कि अपमान सार्वजनिक दृष्टि में हुआ।
  2. दुरुपयोग पर रोक – निजी संपत्ति विवादों में इस अधिनियम का गलत प्रयोग कम होगा।
  3. वास्तविक पीड़ितों की सुरक्षा – अधिनियम की गंभीरता बनी रहेगी और इसका इस्तेमाल केवल वास्तविक जातिगत उत्पीड़न के मामलों में ही किया जा सकेगा।
  4. सिविल और क्रिमिनल विवाद का भेद – यह निर्णय इस बात को रेखांकित करता है कि सिविल प्रकृति के विवादों को आपराधिक रंग नहीं देना चाहिए।

आलोचनात्मक दृष्टिकोण

  • सकारात्मक पक्ष
    • यह निर्णय SC/ST Act के दुरुपयोग को रोकता है।
    • न्यायालय ने अधिनियम की मूल भावना को बचाए रखा है।
  • नकारात्मक पक्ष
    • कुछ विधिवेत्ताओं का मत है कि इससे कई बार आरोपी यह तर्क दे सकते हैं कि घटना निजी स्थान पर हुई थी, भले ही वास्तविकता में अपमान जातिगत भेदभाव के आधार पर ही हुआ हो।
    • “सार्वजनिक दृष्टि” की परिभाषा का दायरा संकुचित होने से पीड़ितों के लिए न्याय प्राप्त करना कठिन हो सकता है।

निष्कर्ष

Hitesh Verma v. State of Uttarakhand (2020) का निर्णय SC/ST Act के न्यायशास्त्र में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। इसने यह स्पष्ट कर दिया कि—

  • केवल निजी विवाद में जातिसूचक शब्दों का प्रयोग स्वतः इस अधिनियम के अंतर्गत अपराध नहीं है।
  • अपमान तभी अधिनियम के अंतर्गत आएगा जब वह सार्वजनिक दृष्टि में किया गया हो और उसका जातिगत भेदभाव से प्रत्यक्ष संबंध हो।

यह निर्णय समाज में जातिगत उत्पीड़न से वास्तविक सुरक्षा और अधिनियम के दुरुपयोग पर अंकुश दोनों को संतुलित करता है।


हाँ बिल्कुल ✅
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Hitesh Verma v. State of Uttarakhand (2020) – परीक्षा प्रश्नोत्तर (20 अंक)

प्रश्न 1. इस मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
उत्तर: इस मामले में अपीलकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच संपत्ति विवाद चल रहा था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता ने विवाद के दौरान उसे जातिसूचक शब्द कहकर अपमानित किया। FIR SC/ST Act की धारा 3(1)(r) व (s) के तहत दर्ज हुई। अपीलकर्ता का तर्क था कि यह विवाद जातिगत भेदभाव से नहीं बल्कि संपत्ति विवाद से संबंधित था और कथित घटना निजी स्थान पर हुई थी।


प्रश्न 2. सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मुख्य विधिक प्रश्न क्या था?
उत्तर:

  1. क्या निजी विवाद में बोले गए जातिसूचक शब्द SC/ST Act के अंतर्गत अपराध बनाते हैं?
  2. क्या निजी स्थान (private place) पर हुआ अपमान, जहां कोई तीसरा व्यक्ति मौजूद न हो, सार्वजनिक दृष्टि (public view) की शर्त को पूरा करता है?
  3. क्या केवल संपत्ति विवाद को जातिगत विवाद का रूप देकर SC/ST Act का उपयोग किया जा सकता है?

प्रश्न 3. ‘सार्वजनिक दृष्टि’ (Public View) की शर्त का क्या अर्थ है?
उत्तर: अदालत ने स्पष्ट किया कि “सार्वजनिक दृष्टि” का अर्थ है ऐसा स्थान या परिस्थिति जहां अन्य लोग (तीसरे पक्ष/जनसाधारण) मौजूद हों और अपमान को देख-सुन सकें। यदि अपमान केवल घर या निजी स्थान पर हुआ हो, जहां केवल पक्षकार ही उपस्थित हों, तो वह सार्वजनिक दृष्टि की शर्त पूरी नहीं करता।


प्रश्न 4. सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में क्या निर्णय दिया?
उत्तर:

  • केवल संपत्ति विवाद को आधार बनाकर SC/ST Act का सहारा नहीं लिया जा सकता।
  • निजी कक्ष/स्थान पर, बिना जनसाधारण की उपस्थिति में हुआ अपमान अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता।
  • अधिनियम का उद्देश्य जातिगत भेदभाव रोकना है, न कि निजी विवादों को आपराधिक रंग देना।
  • अतः FIR व कार्यवाही को क्वैश (quash) कर दिया गया।

प्रश्न 5. इस निर्णय से क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  1. न्यायिक स्पष्टता: अब यह तय हो गया कि केवल जातिसूचक शब्द कहना पर्याप्त नहीं है; सार्वजनिक दृष्टि और जातिगत उद्देश्य सिद्ध होना आवश्यक है।
  2. दुरुपयोग पर रोक: निजी विवादों (जैसे संपत्ति झगड़े) में SC/ST Act का दुरुपयोग कम होगा।
  3. वास्तविक सुरक्षा: अधिनियम का उपयोग केवल सच्चे जातिगत उत्पीड़न के मामलों में ही हो सकेगा।
  4. सिविल-क्रिमिनल भेद: संपत्ति विवाद जैसे मुद्दे सिविल प्रकृति के माने जाएंगे।

प्रश्न 6. न्यायालय ने किन पूर्ववर्ती निर्णयों का सहारा लिया?
उत्तर:

  • Swaran Singh v. State (2008): SC/ST Act तभी लागू होगा जब अपमान सार्वजनिक दृष्टि में हो।
  • Kehar Singh v. State of Haryana (2013): निजी कक्ष में कहे गए जातिसूचक शब्द अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते।

प्रश्न 7. इस निर्णय की आलोचना और महत्व संक्षेप में बताइए।
उत्तर:

  • महत्व: यह निर्णय अधिनियम के दायरे और सीमाओं को स्पष्ट करता है, जिससे वास्तविक पीड़ितों को न्याय और दुरुपयोग पर रोक दोनों सुनिश्चित होते हैं।
  • आलोचना: कुछ विधिवेत्ता मानते हैं कि “सार्वजनिक दृष्टि” की शर्त संकुचित कर देने से कई पीड़ितों को न्याय मिलना कठिन हो सकता है, क्योंकि आरोपी हमेशा यह तर्क ले सकता है कि घटना निजी स्थान पर हुई थी।