“Haja @ Hajira Bano बनाम Gh. Mohammad Ahangar – वाद पत्र संशोधन में उदार दृष्टिकोण की न्यायिक स्वीकृति: Order 6 Rule 17 CPC का व्यावहारिक उपयोग”

लेख शीर्षक:
“Haja @ Hajira Bano बनाम Gh. Mohammad Ahangar – वाद पत्र संशोधन में उदार दृष्टिकोण की न्यायिक स्वीकृति: Order 6 Rule 17 CPC का व्यावहारिक उपयोग”

परिचय:
भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता (Civil Procedure Code, 1908) की Order 6 Rule 17 वाद पत्र (Pleadings) में संशोधन से संबंधित है। यह प्रावधान वादियों को अपने दावों या बचाव में सुधार करने की अनुमति देता है, बशर्ते यह न्यायहित में आवश्यक हो। “Haja @ Hajira Bano बनाम Gh. Mohammad Ahangar” मामले में जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख उच्च न्यायालय (Jammu & Kashmir and Ladakh High Court) ने इस प्रावधान की व्याख्या करते हुए कहा कि वाद पत्र में संशोधन की अनुमति देने में न्यायालयों को उदार दृष्टिकोण (liberal approach) अपनाना चाहिए, जब तक कि वह संशोधन प्रतिवादी को अप्रतिसाध्य क्षति (irreparable prejudice) न पहुँचाए या मुकदमे की प्रकृति ही न बदल दे।

मामले की पृष्ठभूमि:
वादी (Haja @ Hajira Bano) ने वाद पत्र में कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों या दावों को जोड़ने के लिए संशोधन की मांग की थी। प्रतिवादी (Gh. Mohammad Ahangar) ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह संशोधन देरी से किया गया और इससे उसे नुकसान पहुँचेगा। न्यायालय को यह तय करना था कि क्या संशोधन की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं।

प्रमुख कानूनी प्रश्न:

  • क्या वाद पत्र में संशोधन की अनुमति दी जा सकती है यदि वह मुकदमे की प्रकृति को नहीं बदलता?
  • क्या देरी से किया गया संशोधन न्यायालय द्वारा स्वीकार्य हो सकता है?

उच्च न्यायालय का निर्णय और व्याख्या:
माननीय न्यायालय ने अपने निर्णय में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला:

  1. उदार दृष्टिकोण की आवश्यकता: न्यायालयों को वाद पत्र में संशोधन की अनुमति देते समय कठोर तकनीकी दृष्टिकोण के बजाय एक लचीला और न्यायपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
  2. न्यायिक निष्पक्षता: यदि संशोधन से प्रतिवादी को कोई ऐसी क्षति नहीं हो रही जो न्याय में बाधा डाले या जिसे बाद में सुधारा न जा सके, तो संशोधन को स्वीकार करना चाहिए।
  3. वाद की प्रकृति: यदि संशोधन केवल तथ्यों की स्पष्टता या सुधार के लिए है और वाद के मूल ढांचे को नहीं बदलता, तो उसे अस्वीकार करना अनुचित होगा।
  4. देरी का औचित्य: यदि संशोधन के लिए दी गई देरी उचित कारणों पर आधारित हो, तो केवल समय की देरी के आधार पर संशोधन को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।

Order 6 Rule 17 CPC का उद्देश्य:

  • वाद में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करना।
  • पक्षकारों को सभी आवश्यक तथ्यों और दलीलों को प्रस्तुत करने का अवसर देना।
  • तकनीकी कारणों से न्याय से वंचित होने की संभावना को कम करना।

महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:

  • न्यायालय ने कहा कि यदि प्रतिवादी चाहे तो संशोधन के पश्चात अपने उत्तर (Written Statement) में उपयुक्त प्रतिवाद प्रस्तुत कर सकता है, जिससे उसे क्षति न हो।
  • संशोधन तभी अस्वीकार किया जा सकता है जब यह दिखाया जाए कि इससे प्रतिवादी की कानूनी स्थिति को गंभीर नुकसान पहुँचेगा या मुकदमे की प्रकृति पूरी तरह बदल जाएगी।

न्यायिक प्रभाव:
यह निर्णय उन सभी मामलों में मार्गदर्शक बनता है जहाँ पक्षकार वाद पत्र में संशोधन की मांग करते हैं, विशेष रूप से जब संशोधन में कुछ तथ्यों की स्पष्टता या बदलाव की आवश्यकता हो। इसने यह स्थापित किया है कि न्यायिक प्रक्रिया में न्याय की सेवा अधिक महत्वपूर्ण है बजाय मात्र प्रक्रिया की कठोरता के पालन के।

निष्कर्ष:
“Haja @ Hajira Bano बनाम Gh. Mohammad Ahangar” का यह निर्णय वाद पत्र संशोधन की प्रक्रिया में उदारता और न्याय के सिद्धांत को पुनः स्थापित करता है। यह न्यायालयों को यह मार्गदर्शन देता है कि वे केवल तकनीकी आधार पर संशोधनों को अस्वीकार न करें, बल्कि देखें कि क्या न्याय में बाधा उत्पन्न हो रही है या नहीं। इस प्रकार, यह मामला Order 6 Rule 17 CPC के व्यावहारिक और न्यायपूर्ण प्रयोग की मिसाल बन गया है।