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“’Go Face Trial’: सुप्रीम कोर्ट ने Neha Singh Rathore की FIR रद्द करने की याचिका खारिज की

“’Go Face Trial’: सुप्रीम कोर्ट ने Neha Singh Rathore की FIR रद्द करने की याचिका खारिज की — अभिव्यक्ति, अनुशासन और न्यायालय की सीमाएँ”


प्रस्तावना

लोकप्रिय लोक गायक और सामाजिक-राजनीतिक अभिव्यक्ति की भूमिका निभाने वाली नेहा सिंह राठौर की एक सोशल मीडिया पोस्ट, जो पहलगाम आतंकवादी हमला पर केंद्रित थी, विवादों में घिर गई। उनके खिलाफ एक FIR दर्ज हुई, जिसे उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रद्द करने की मांग की। लेकिन 13 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया और आदेश दिया कि वे ट्रायल का सामना करें।

यह निर्णय भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सोशल मीडिया आलोचना, राष्ट्रधर्म और अभियोजन प्रक्रिया के बीच संतुलन की समस्या को फिर से उजागर करता है। इस लेख में हम इस मामले की पृष्ठभूमि, कानूनी तर्क, सुप्रीम कोर्ट के फैसले, और इसके संभावित प्रभावों की विस्तृत समीक्षा करेंगे।


पृष्ठभूमि

पहलगाम हमला और विवादित पोस्ट

  • पहलगाम (Pahalgam) आतंकवादी हमला एक संवेदनशील घटना रही, जिसमें कई लोगों की जान गई और सामाजिक-राजनीतिक तनाव बढ़ा।
  • नेहा सिंह राठौर ने इस घटना पर एक सोशल मीडिया पोस्ट साझा की थी, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री पर उनकी भूमिका व कार्यशैली को लेकर सवाल उठाए। इस पोस्ट को कुछ लोगों ने “भड़काऊ” और “समुदाय-विरोधी” सामग्री माना।
  • इस पोस्ट के आधार पर, अभय प्रताप सिंह नामक व्यक्ति ने लखनऊ, हज़रतगंज पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई। FIR में आरोप लगाए गए कि राठौर ने धार्मिक समुदाय के खिलाफ उकसाने वाली टिप्पणी की, देश की एकता व अखंडता पर हमला किया।
  • FIR में आरोपित धाराओं में शामिल हैं: साम्प्रदायिक उकसाहट, सार्वजनिक शांति भंग करना, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की धाराएँ, और “विभाजनकारी तत्व” आदि।

निचली अदालतों और हाईकोर्ट में स्थिति

  • नेहा सिंह राठौर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में यह याचिका दायर की कि FIR रद्द की जाए, यह उनके अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन है।
  • 19 सितंबर 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने कहा कि FIR में आरोपों के आधार पर prima facie आपराधिक मामला लगता है, और पुलिस को जांच की अनुमति दी जानी चाहिए।
  • हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संरक्षित है, लेकिन यह reasonable restrictions के अधीन है, विशेष रूप से संवेदनशील समय में।
  • असंतुष्ट होकर, राठौर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और FIR को रद्द करने की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: दलीलें, टिप्पणी और आदेश

सुप्रीम कोर्ट की पीठ और आदेश

  • सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति J. K. Maheshwari और न्यायमूर्ति Kuldeep Bishnoi की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की।
  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय FIR रद्द करने के बारे में नहीं है — वह मामले की मेरिट्स पर कोई टिप्पणी नहीं कर रही
  • कोर्ट ने निर्देश दिया: “Go and face trial.” यानी राठौर को ट्रायल प्रक्रिया से गुजरना होगा।
  • साथ ही कोर्ट ने उन्हें यह आज़ादी दी कि चार्ज फ्रेमिंग (charge framing) के समय वे उन धाराओं या आरोपों को चुनौती दें, जैसे “वॉजिंग वार” (mutiny / युद्ध की सज़ा) आदि।
  • कोर्ट ने विशेष रूप से कहा कि इस स्तर पर ये धाराएँ (जैसे “mutiny”) हटाना अभी उचित नहीं है — वे इस तरह के तर्कों को trial court में उठा सकती हैं।

दलीलें — पक्ष राठौर की ओर

  1. अभिव्यक्ति का अधिकार
    नेहा राठौर के वकील ने तर्क दिया कि यह मामला अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत आता है — अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, और आलोचना, विरोध या सरकारी अधिकारियों पर सवाल उठाना लोकतंत्र की स्वस्थ परंपरा है। उन्होंने कहा कि पोस्ट में उन्होंने नफरत नहीं फैलाई; वे सरकार की नीतियों और जवाबदेही पर सवाल उठा रही थीं।

    उन्होंने विशेष रूप से कहा कि mutiny / वॉजिंग वार की धाराएँ उनके ऊपर गलत तरीके से थोप दी गई हैं, क्योंकि उन्होंने न तो किसी हिंसा का आह्वान किया, न ही सैन्य कर्मियों को भड़काया।

  2. मुकदमा चलने की अनुमति (Trial process) चाहिए
    राठौर का यह तर्क था कि FIR को wholesale खारिज करना न्यायालय को करना चाहिए, क्योंकि जांच पहले से ही पक्षपाती या त्रुटिपूर्ण लग रही है। उन्होंने कहा कि अभियोजन को साक्ष्यों के स्तर पर कमजोर करना चाहिए, न कि प्रारंभ में ही मुकदमा शुरू हो जाना चाहिए।
  3. धाराओं की अति-उपयोग (Overbroad / Vague Sections)
    राठौर की ओर यह तर्क आया कि कुछ धाराएँ बहुत व्यापक हैं और अस्पष्ट हैं — जैसे “वॉजिंग वार”, “म्युटिनी” आदि — और उन्हें इस तरह परिभाषित नहीं किया गया कि आम नागरिक समझ सके कि वे किन अजीब परिस्थितियों में दोषी ठहर सकते हैं। इसलिए उन्हें quash किया जाना चाहिए।
  4. सजा की संभावना और गिरफ्तारी
    उनके वकील ने यह चिंता जताई कि ये धाराएँ उन्हें गिरफ्तार किए जाने की संभावना पैदा करती हैं, और कोर्ट को interim सुरक्षा (interim protection) देना चाहिए।

दलीलें — राज्य / अभियोजन पक्ष

  1. प्राथमिक मामले की आवश्यकता (Prima Facie Case)
    अभियोजन पक्ष का तर्क था कि FIR की आरेखित सामग्री prima facie आपराधिक मामला दिखाती है — विवादित पोस्टों में आरोपों के स्वर और अभिव्यक्ति के स्वर मिश्रित दिखाई देते हैं। इसलिए, मुकदमे की अनुमति देना आवश्यक है।
  2. न्यायसंगत सीमाएँ (reasonable restrictions)
    अभियोजन की ओर यह तर्क रखा गया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है — अनुच्छेद 19(2) इसे सार्वजनिक व्यवस्था, राष्ट्र सुरक्षा, आपराधिक कृत्यों आदि कारणों से सीमित कर सकती है। इस विशेष संवेदनशील समय (देश के वातावरण, आतंकवादी घटनाएँ) में प्रतिबंध जायज हो सकते हैं।
  3. धाराएँ और आरोपों का बचाव
    अभियोजन पक्ष ने कहा कि सुरक्षा-व्यवस्था, साम्प्रदायिक अशांति संभावना, और दोष सिद्धि योग्य साक्ष्य मौजूद हैं। इसलिए FIR को खारिज करना न्याय की मर्यादा से बाहर होगा।
  4. फ्री ट्रायल की अनुमति
    अभियोजन पक्ष कह सकेगा कि अदालत को प्रारंभ में ही FIR को खारिज नहीं करना चाहिए — तर्क-विमर्श, जांच और चार्ज फ्रेमिंग के बाद ही निर्णय किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का व्याख्यात्मक दृष्टिकोण

  • सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वह इस स्तर पर मामले की मूल सच्चाइयों (merits) पर टिप्पणी नहीं कर रही है।
  • कोर्ट ने यह कहा कि quashing प्रक्रिया बहुत सीमित होनी चाहिए — सिर्फ जब घटनाबस्था स्पष्ट रूप से गैर-आपराधिक हो या FIR का आधार पूरी तरह असंवैधानिक हो।
  • सुप्रीम कोर्ट ने उस स्तर पर यह जज नहीं किया कि mutiny / वॉजिंग वार की धाराएँ सही हैं या गलत; उसने कहा कि यह तर्क trial stage पर उठाया जाए।
  • न्यायालय ने जो आदेश दिया — “Go face trial” — यह संकेत है कि उसे लगता है कि मामला मुकदमे योग्य हो सकता है, और अभियोजन को मौका दिया जाना चाहिए।

संवैधानिक और विधिक विश्लेषण

यह निर्णय भारत में कई महत्वपूर्ण संवैधानिक और विधिक सिद्धांतों को स्पर्श करता है। नीचे हम उन बिंदुओं की चर्चा करते हैं:

1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सीमाएँ

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Article 19(1)(a)) एक मूलभूत अधिकार है। आलोचना, विरोध, सरकार पर टिप्पणी करना लोकतंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • लेकिन Article 19(2) यह स्पष्ट करता है कि यह अधिकार reasonable restrictions (सार्वजनिक व्यवस्था, राज्य सुरक्षा, मानहानि आदि) के अधीन है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने यह सिद्धांत अपनाया कि प्रारंभिक स्तर पर FIR को रद्द करना बेहतर नहीं है — क्योंकि मामला संवेदनशील है और अभिव्यक्ति व सीमाओं के बीच संतुलन देखना चाहिए।

2. Quashing की सीमाएँ

  • सुप्रीम कोर्ट ने उस सार्वभौमिक सिद्धांत को दोहराया कि quashing सिर्फ “clear case of abuse of process” या “no prima facie offense” मामलों में किया जाना चाहिए।
  • यदि FIR में आंशिक साक्ष्य और आरोप हों, तो उसे ट्रायल के लिए छोड़ा जाना चाहिए ताकि प्रक्रिया न्यायपूर्ण रूप से चले।
  • इस दृष्टिकोण से, सुप्रीम कोर्ट ने अपनी पारंपरिक कठोरता बरती — निचली अदालतों के निर्णय को बदलने से पहले मुकदमे की अनुमति देना उचित समझा।

3. धर्म, राष्ट्रवाद और सरकार आलोचना

  • इस मामला में, पोस्ट में धार्मिक समुदाय और सरकारों की नीतियों पर टिप्पणी की गई थी। यह दर्शाता है कि सार्वजनिक टिप्पणी करना जहाँ संवेदनशील विषय हों — जैसे आतंकवाद, सुरक्षा, सीमाएँ — अधिक सतर्कता की मांग करता है।
  • यदि आलोचना सरकार के कामकाज की हो, वह अभिव्यक्ति की सीमा में हो सकती है, मगर यदि वह आरोप और भड़काऊ भाषा के साथ हो, दायित्व हो सकती है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने इस संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए माना कि मुकदमा चलना चाहिए।

4. प्रक्रिया न्याय (Due Process) और निष्पक्ष ट्रायल

  • राठौर को यह अवसर देना कि वह चार्ज फ्रेमिंग में आपत्तियाँ उठाए, यह आवश्यक प्रक्रिया-सिद्धांत की रक्षा है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि अभियुक्त को मुकदमे का पूरा अवसर मिले, और आरोपों की सच्चाई जांचे जाए।

5. न्यायपालिका की सीमाएँ और न्याय संसाधन

  • इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने यह सीमाएँ निर्धारित की — वह हर विवाद का प्रारंभिक निर्णय नहीं करेगी।
  • यदि हर FIR पर quashing किया जाए, तो न्यायपालिका स्वयं अपराध-विधि की भूमिका में आ जाएगी।
  • इस तरह, यह निर्णय न्यायपालिका-विधायिका-कार्यपालिका संतुलन (separation of powers) के सिद्धांत को बनाए रखने की दिशा में भी है।

संभावित प्रभाव एवं चुनौतियाँ

1. अन्य अभिव्यक्ति-मामलों पर मिसाल बने

  • यह फैसला ऐसे मामलों में उदाहरण बन सकता है जहाँ अभिव्यक्ति और सामाजिक-राजनीतिक विषय संबंधी टिप्पणी हो।
  • भविष्य में, यदि किसी अन्य व्यक्ति पर FIR हो और वह quash याचिका करे, अदालतें इसका हवाला दे सकती हैं कि “स्थिर प्रथा” यह रही कि शुरुआती स्तर पर quashing नहीं होती।

2. अभियोजन पक्ष की तैयारी और बहस का महत्व बढ़ेगा

  • अभियोजन पक्ष को साक्ष्य-स्थिति को मजबूत करना होगा — पोस्ट की सामग्री, संदर्भ, इरादा (mens rea) आदि प्रमाणित करना होगा।
  • अभियोग पत्र (charge sheet) और चार्ज फ्रेमिंग की दलीलों में अधिक सावधानी बरती जाएगी।

3. आलोचना और अभिव्यक्ति-हवा में तनाव

  • आलोचक कह सकते हैं कि यह निर्णय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने का संकेत है, विशेष रूप से राजनीतिक टिप्पणी करने वालों को डराने वाला।
  • समर्थक कह सकते हैं कि यह दूसरों के अधिकार और सार्वजनिक शांति की रक्षा की दिशा में है।

4. सोशल मीडिया व मध्यस्थ प्लेटफार्मों की भूमिका

  • इस तरह के मामलों में सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की भूमिका, पोस्ट हटाने या moderation आदि गतिविधि, ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाएगी।
  • प्लेटफार्मों को अपेक्षित जिम्मेदारी बढ़ सकती है कि वह ऐसी कंटेंट पर नजर रखे और आवश्यक कार्रवाई करे।

5. भविष्य की न्यायालय समीक्षा

  • यह निर्णय निचली स्तरीय इकाइयों (High Courts, Trial Courts) को यह मार्गदर्शन देगा कि quashing की प्रक्रिया सीमित और विवेकपूर्ण हो।
  • संभव है कि मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचें और वहां अधिक विस्तृत सिद्धांतक्षेत्र स्थापित हो।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय नेहा सिंह राठौर मामले में यह स्पष्ट करता है कि:

  • FIR को प्रारंभिक स्तर पर रद्द करना न्यायपालिका की प्रवृत्ति नहीं बननी चाहिए, यदि प्राथमिक साक्ष्य और अनुमान मौजूद हों।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुरक्षित है, लेकिन इसके साथ सामाजिक ज़िम्मेदारी और संवैधानिक सीमाएँ भी जुड़ी हैं।
  • न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि वह मूल सच्चाइयों पर निर्णय नहीं ले रही है — वह मुकदमे की अनुमति दे रही है, जहाँ राठौर को अपने तर्क प्रस्तुत करने का अवसर मिलेगा।
  • चार्ज फ्रेमिंग के समय उसके द्वारा उठाए जाने वाले तर्कों को सुनने की आज़ादी दी गई है।
  • यह मामला एक उदाहरण है कि कैसे संवेदनशील राजनीतिक/सामाजिक टिप्पणी और कानून की सीमाएँ एक-दूसरे टकरा सकती हैं — और कि सुप्रीम कोर्ट ऐसी टकराहटों में संतुलन की भूमिका निभाती है।