Fundamental Rights under the Indian Constitution (Part III) – A Detailed Analysis with Landmark Case Laws
भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार (भाग III) का विस्तृत अध्ययन, प्रमुख केस लॉ सहित। जानें समानता, स्वतंत्रता, धर्म व संवैधानिक उपचार के अधिकार।
प्रस्तावना
भारतीय संविधान की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) हैं। संविधान निर्माताओं ने इन्हें संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12 से 35) में सम्मिलित किया है। ये अधिकार नागरिकों को मनमाने शासन से सुरक्षा प्रदान करते हैं और उनके सर्वांगीण विकास की गारंटी देते हैं। मौलिक अधिकार न केवल राजनीतिक लोकतंत्र बल्कि सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र को भी सुनिश्चित करते हैं।
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि –
“संविधान में मौलिक अधिकारों का प्रावधान व्यक्ति को शासन की मनमानी से सुरक्षा देता है और यह सुनिश्चित करता है कि स्वतंत्रता केवल कागज़ पर न रहे, बल्कि वास्तविक जीवन में भी नागरिक इसका आनंद उठा सकें।”
मौलिक अधिकारों का स्वरूप
मौलिक अधिकार –
- न्यायालय द्वारा संरक्षित (Justiciable Rights) हैं।
- इनके उल्लंघन पर व्यक्ति सीधे उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226) या सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32) का दरवाज़ा खटखटा सकता है।
- ये अधिकार न तो पूर्ण (absolute) हैं और न ही असीमित। राज्य आवश्यक प्रतिबंध लगा सकता है।
- ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक हितों के बीच संतुलन बनाए रखते हैं।
मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण
भारतीय संविधान में मूल रूप से सात मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44वें संशोधन (1978) द्वारा संपत्ति के अधिकार (Right to Property) को हटा दिया गया। वर्तमान में छह मौलिक अधिकार हैं:
- समानता का अधिकार (Right to Equality) – अनुच्छेद 14 से 18
- स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom) – अनुच्छेद 19 से 22
- शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Exploitation) – अनुच्छेद 23 और 24
- धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion) – अनुच्छेद 25 से 28
- संस्कृति और शिक्षा का अधिकार (Cultural and Educational Rights) – अनुच्छेद 29 और 30
- संवैधानिक उपचार का अधिकार (Right to Constitutional Remedies) – अनुच्छेद 32
1. समानता का अधिकार (Articles 14–18)
- अनुच्छेद 14 – विधि के समक्ष समानता और विधि का समान संरक्षण।
- केस: E.P. Royappa v. State of Tamil Nadu (1974) – समानता का अर्थ केवल मनमानी से मुक्ति नहीं, बल्कि निष्पक्ष और न्यायपूर्ण कार्यवाही भी है।
- अनुच्छेद 15 – धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर भेदभाव का निषेध।
- केस: Indra Sawhney v. Union of India (1992) – आरक्षण की सीमा 50% तय की गई।
- अनुच्छेद 16 – समान अवसर का अधिकार (सरकारी रोजगार में)।
- केस: State of Kerala v. N.M. Thomas (1976) – आरक्षण समान अवसर का उल्लंघन नहीं है।
- अनुच्छेद 17 – अस्पृश्यता का अंत।
- केस: People’s Union for Democratic Rights v. Union of India (1982) – अनुच्छेद 17 का व्यापक व्याख्यान।
- अनुच्छेद 18 – उपाधियों का उन्मूलन (राजा, महाराजा आदि की उपाधि समाप्त)।
2. स्वतंत्रता का अधिकार (Articles 19–22)
- अनुच्छेद 19(1) नागरिकों को छह स्वतंत्रताएँ प्रदान करता है –
- वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- शांतिपूर्वक और निशस्त्र सभा करने की स्वतंत्रता
- संघ और यूनियन बनाने की स्वतंत्रता
- भारत के किसी भी भाग में स्वतंत्रतापूर्वक गमन करने की स्वतंत्रता
- भारत के किसी भी भाग में निवास और बसने की स्वतंत्रता
- कोई भी व्यवसाय, व्यापार या पेशा करने की स्वतंत्रता
- केस: Maneka Gandhi v. Union of India (1978) – व्यक्तिगत स्वतंत्रता का व्यापक व्याख्यान।
- केस: Shreya Singhal v. Union of India (2015) – धारा 66A IT Act असंवैधानिक घोषित।
- अनुच्छेद 20 – अपराधों के संबंध में सुरक्षा (दोहरे दंड, आत्म-अभियोग से सुरक्षा)।
- अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार।
- केस: A.K. Gopalan v. State of Madras (1950) – प्रारंभिक व्याख्या।
- केस: Maneka Gandhi (1978) – “जीवन और स्वतंत्रता” का अर्थ केवल शारीरिक अस्तित्व नहीं बल्कि गरिमापूर्ण जीवन।
- केस: Justice K.S. Puttaswamy v. Union of India (2017) – निजता (Right to Privacy) को मौलिक अधिकार घोषित।
- अनुच्छेद 21A – शिक्षा का अधिकार (6–14 वर्ष तक)।
- अनुच्छेद 22 – गिरफ्तारी और निरोधात्मक नजरबंदी से सुरक्षा।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (Articles 23–24)
- अनुच्छेद 23 – मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी का निषेध।
- केस: Bandhua Mukti Morcha v. Union of India (1984) – बंधुआ मजदूरी असंवैधानिक।
- अनुच्छेद 24 – 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से खतरनाक उद्योगों में काम कराने का निषेध।
4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (Articles 25–28)
- अनुच्छेद 25 – धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार।
- केस: Bijoe Emmanuel v. State of Kerala (1986) – राष्ट्रगान गाने से इनकार पर छात्रों को निष्कासित करना असंवैधानिक।
- अनुच्छेद 26 – धार्मिक संस्थानों को प्रबंधित करने की स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 27 – किसी धर्म विशेष को कर द्वारा बढ़ावा देने की मनाही।
- अनुच्छेद 28 – शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा से संबंधित प्रावधान।
5. संस्कृति और शिक्षा का अधिकार (Articles 29–30)
- अनुच्छेद 29 – किसी भी वर्ग को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित रखने का अधिकार।
- अनुच्छेद 30 – अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार।
- केस: T.M.A. Pai Foundation v. State of Karnataka (2002) – अल्पसंख्यकों के शिक्षा संबंधी अधिकारों का विस्तृत निर्धारण।
6. संवैधानिक उपचार का अधिकार (Article 32)
- डॉ. अंबेडकर ने इसे संविधान की “आत्मा और हृदय” कहा।
- अनुच्छेद 32 के तहत नागरिक सीधे सर्वोच्च न्यायालय जा सकते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय विभिन्न प्रकार की रिट (Writs) जारी कर सकते हैं –
- Habeas Corpus – अवैध हिरासत से मुक्ति।
- Mandamus – सार्वजनिक अधिकारी को वैधानिक कर्तव्य पूरा करने का आदेश।
- Prohibition – निचली अदालत को अधिकार से बाहर जाने से रोकना।
- Certiorari – निचली अदालत का आदेश निरस्त करना।
- Quo Warranto – अवैध रूप से पद धारण करने वाले को चुनौती देना।
- केस: Romesh Thappar v. State of Madras (1950) – प्रेस की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 का अंग।
- केस: Kesavananda Bharati v. State of Kerala (1973) – न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) का हिस्सा।
न्यायिक व्याख्या और मौलिक अधिकारों का विकास
भारतीय न्यायपालिका ने मौलिक अधिकारों की व्याख्या समय-समय पर की है और इन्हें जीवंत व गतिशील बनाए रखा है।
- A.K. Gopalan (1950) में मौलिक अधिकारों को पृथक माना गया, जबकि
- Maneka Gandhi (1978) ने कहा कि सभी अधिकार परस्पर जुड़े हैं।
- Puttaswamy (2017) ने निजता को जीवन और स्वतंत्रता का अनिवार्य हिस्सा बताया।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार नागरिकों को स्वतंत्रता, समानता और न्याय का आश्वासन देते हैं। ये अधिकार लोकतंत्र की रीढ़ हैं। न्यायपालिका ने अपने निर्णयों के माध्यम से इन्हें और सशक्त बनाया है।
मौलिक अधिकारों का उद्देश्य केवल व्यक्ति को स्वतंत्रता देना नहीं, बल्कि समाज में समानता, बंधुता और गरिमा की स्थापना करना भी है। यही कारण है कि इन्हें संविधान की आत्मा कहा जाता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न :
Q.1. भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार किस भाग में हैं?
➡️ भाग III (अनुच्छेद 12 से 35)।
Q.2. वर्तमान में मौलिक अधिकार कितने हैं?
➡️ 6 (संपत्ति का अधिकार 44वें संशोधन द्वारा हटाया गया)।
Q.3. अनुच्छेद 32 को संविधान की आत्मा क्यों कहा गया है?
➡️ क्योंकि इसके अंतर्गत नागरिक सीधे सर्वोच्च न्यायालय जाकर अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं।
Q.4. कौन-सा केस “निजता के अधिकार” से जुड़ा है?
➡️ Justice K.S. Puttaswamy v. Union of India (2017)।
Q.5. अस्पृश्यता का अंत किस अनुच्छेद में है?
➡️ अनुच्छेद 17।