Firm Jehtmal & Sons बनाम State of Rajasthan : धारा 138 एन.आई. एक्ट में अपील की सुनवाई से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय
भारत के सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा समय-समय पर दिए गए निर्णय भारतीय विधि व्यवस्था को और अधिक स्पष्ट तथा व्यावहारिक बनाते हैं। हाल ही में राजस्थान उच्च न्यायालय (Rajasthan High Court) ने Firm Jehtmal & Sons बनाम State of Rajasthan मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881 – NI Act) से संबंधित अपील पर विचार किया गया। इस निर्णय में अदालत ने यह स्पष्ट किया कि केवल वकील की अनुपस्थिति (Non-Appearance of Counsel) के आधार पर अपील को खारिज (Dismiss) नहीं किया जा सकता। यह निर्णय न्याय के अधिकार (Right to Fair Trial and Appeal) और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत (Principles of Natural Justice) को मजबूती प्रदान करता है।
मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)
- अपीलकर्ता Firm Jehtmal & Sons को चेक अनादरण (Dishonour of Cheque) के मामले में धारा 138 एन.आई. एक्ट के अंतर्गत दोषी (Convicted) ठहराया गया था।
- सेशन न्यायालय (Sessions Court) में अपील दायर की गई थी।
- लेकिन अपील की सुनवाई के दौरान, अपीलकर्ता पक्ष के अधिवक्ता (Counsel) पेश नहीं हो सके।
- इस कारण से सेशन न्यायालय ने अपील को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया, अर्थात् “Non-appearance of Counsel” को आधार मानते हुए अपील का निपटारा कर दिया।
राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष मुद्दा (Issue before Rajasthan High Court)
मुख्य प्रश्न यह था कि –
क्या किसी आपराधिक अपील (Criminal Appeal) को केवल इस आधार पर खारिज किया जा सकता है कि अपीलकर्ता का वकील अदालत में उपस्थित नहीं था?
उच्च न्यायालय का निर्णय (Decision of the High Court)
राजस्थान उच्च न्यायालय ने सेशन कोर्ट के आदेश को अवैध और अनुचित (Illegal and Improper) माना और उसे रद्द (Set Aside) कर दिया।
न्यायालय ने कहा –
- अपराध में दोषसिद्धि (Conviction) के खिलाफ अपील का अधिकार एक वैधानिक अधिकार (Statutory Right) है।
- केवल वकील की अनुपस्थिति के आधार पर अपील खारिज करना न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
- अदालत का दायित्व है कि वह अपील का गुण-दोष (Merits) के आधार पर निपटारा करे।
- यदि अपीलकर्ता स्वयं उपस्थित है, तो अदालत को सुनवाई करनी चाहिए और यदि आवश्यक हो, तो Amicus Curiae (न्याय मित्र) नियुक्त करना चाहिए।
- इस प्रकार, अपील को तकनीकी आधार पर समाप्त करना न्यायिक प्रक्रिया के मूलभूत सिद्धांतों के विपरीत है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों का हवाला (Reference of Supreme Court Precedents)
राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय के कुछ महत्वपूर्ण निर्णयों का उल्लेख किया –
- Shyam Deo Pandey v. State of Bihar (1971 AIR 1606)
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि आपराधिक अपील को गुण-दोष के आधार पर ही तय करना चाहिए। केवल गैर-हाजिरी के आधार पर अपील खारिज करना अनुचित है।
- Bani Singh & Ors. v. State of U.P. (1996 AIR SC 2439)
- अदालत ने स्पष्ट किया कि अपील न्यायालय को रिकॉर्ड देखकर अपील का निपटारा करना चाहिए, भले ही अपीलकर्ता का वकील उपस्थित न हो।
- K.S. Panduranga v. State of Karnataka (2013) 3 SCC 721
- यह दोहराया गया कि आपराधिक मामलों में अपील का निपटारा मेरिट्स पर होना चाहिए।
धारा 138 एन.आई. एक्ट का महत्व (Importance of Section 138 NI Act)
धारा 138 एन.आई. एक्ट का उद्देश्य है –
- वाणिज्यिक लेन-देन (Commercial Transactions) में भरोसा और विश्वसनीयता कायम रखना।
- यदि कोई व्यक्ति बैंक से जारी चेक का भुगतान करने में असफल रहता है, तो उसे दंडनीय अपराध माना गया है।
- इसमें अधिकतम दो वर्ष की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
लेकिन साथ ही, आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई (Fair Hearing) का अधिकार भी दिया गया है।
निर्णय का महत्व (Significance of the Judgment)
यह निर्णय कई कारणों से महत्वपूर्ण है –
- न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता (Transparency of Judicial Process):
- तकनीकी आधार पर अपील खारिज करना न्याय की मूल भावना के विपरीत है।
- प्राकृतिक न्याय (Natural Justice):
- हर अभियुक्त को अपील का अधिकार है और उसका निपटारा गुण-दोष के आधार पर होना चाहिए।
- कानूनी व्यवस्था पर भरोसा (Public Confidence in Legal System):
- यदि अपीलें केवल वकील की अनुपस्थिति के आधार पर खारिज होने लगेंगी तो लोग न्याय व्यवस्था पर से भरोसा खो देंगे।
- निचली अदालतों के लिए दिशा-निर्देश (Guidelines for Lower Courts):
- यह निर्णय भविष्य में ट्रायल कोर्ट और सेशन कोर्ट को यह मार्गदर्शन देगा कि उन्हें केवल तकनीकी आधार पर अपील नहीं खारिज करनी चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
Firm Jehtmal & Sons बनाम State of Rajasthan का निर्णय भारतीय न्याय व्यवस्था में “न्याय तक पहुंच का अधिकार” (Right to Access to Justice) और “अपील का अधिकार” (Right to Appeal) को मजबूत करता है।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने स्पष्ट संदेश दिया है कि –
- आपराधिक अपील का निपटारा गुण-दोष के आधार पर होना चाहिए।
- केवल वकील की अनुपस्थिति को आधार बनाकर अपील को खारिज करना न्यायसंगत नहीं है।
- अदालतों को यह सुनिश्चित करना होगा कि हर अपीलकर्ता को निष्पक्ष और न्यायपूर्ण सुनवाई का अवसर मिले।
इस प्रकार, यह निर्णय न केवल धारा 138 एन.आई. एक्ट के संदर्भ में बल्कि व्यापक न्यायिक प्रक्रिया (Criminal Justice System) में भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाएगा।