“FIR, मेडिकल रिपोर्ट और गवाहों की गवाही पर्याप्त: वैवाहिक विवाद की मौजूदगी से आपराधिक अभियोजन को दुर्भावनापूर्ण नहीं ठहराया जा सकता — कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय (Renuka बनाम राज्य कर्नाटक)”

शीर्षक: “FIR, मेडिकल रिपोर्ट और गवाहों की गवाही पर्याप्त: वैवाहिक विवाद की मौजूदगी से आपराधिक अभियोजन को दुर्भावनापूर्ण नहीं ठहराया जा सकता — कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय (Renuka बनाम राज्य कर्नाटक)”


विस्तृत लेख:

मामला: Renuka Versus State of Karnataka
न्यायालय: कर्नाटक उच्च न्यायालय
विषय: आपराधिक मुकदमा – प्राथमिक सामग्री की पर्याप्तता और दुर्भावनापूर्ण अभियोजन का प्रश्न
निर्णय दिनांक: (सटीक तारीख उपलब्ध नहीं, पर निर्णय के हालिया होने का संकेत)


कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि यदि किसी आपराधिक मामले में FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट), मेडिकल रिपोर्ट और गवाहों के बयान से प्राथमिक दृष्टिकोण (prima facie) पर अभियोजन का आधार बनता है, तो ऐसे मामलों में सिर्फ वैवाहिक विवाद की उपस्थिति मात्र से उस आपराधिक मुकदमे को दुर्भावनापूर्ण अभियोजन (malicious prosecution) नहीं कहा जा सकता।


⚖️ न्यायालय की मुख्य टिप्पणियाँ:

  1. प्राथमिक दृष्टि से पर्याप्तता (Prima Facie Sufficiency):
    न्यायालय ने कहा कि FIR में दर्ज विवरण, पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट और प्रत्यक्षदर्शियों या अन्य संबंधित गवाहों की गवाही प्रारंभिक साक्ष्य (initial material) के रूप में पर्याप्त है ताकि मुकदमा आगे बढ़ाया जा सके। यह चार्ज फ्रेमिंग (framing of charges) की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं बनाता।
  2. वैवाहिक विवाद और दुर्भावनापूर्ण अभियोजन (Matrimonial Proceedings ≠ Malicious Prosecution):
    याचिकाकर्ता Renuka की ओर से तर्क दिया गया कि चूंकि पीड़िता के साथ उसका वैवाहिक विवाद चल रहा था, इसलिए यह मामला व्यक्तिगत बदले और प्रतिशोध की भावना से प्रेरित है। न्यायालय ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा:

    “Mere pendency of matrimonial proceedings is no ground to presume that the criminal complaint is inherently false or malicious.”

  3. न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं:
    अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक अभियोजन पक्ष की कहानी प्रथम दृष्टया विश्वसनीय प्रतीत हो रही हो, तब तक उच्च न्यायालय को धारा 482 CrPC के तहत कार्यवाही रद्द करने में अत्यधिक सतर्कता बरतनी चाहिए।

🔍 इस निर्णय का महत्व:

  • यह निर्णय उन मामलों के लिए प्रमुख दृष्टांत (precedent) बनता है जहां आपसी वैवाहिक विवादों के चलते आपराधिक शिकायतों को झूठा और दुर्भावनापूर्ण कहकर रद्द करने की मांग की जाती है।
  • यह स्पष्ट करता है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट और अन्य प्रारंभिक साक्ष्य को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और न्यायालय को प्रक्रिया में हस्तक्षेप से बचना चाहिए, जब तक कि कोई स्पष्ट दुरुपयोग सिद्ध न हो जाए।

📌 निष्कर्ष:

कर्नाटक उच्च न्यायालय के इस निर्णय में कहा गया कि:

  • FIR, मेडिकल रिपोर्ट और गवाहों की गवाही जैसे प्रारंभिक साक्ष्य पर्याप्त हैं ट्रायल की प्रक्रिया प्रारंभ करने के लिए।
  • वैवाहिक विवाद की उपस्थिति अपने आप में मुकदमे को दुर्भावनापूर्ण सिद्ध नहीं करती।
  • यदि आरोप प्रथम दृष्टया विश्वसनीय हैं, तो उन्हें सुनवाई और परीक्षण की कसौटी पर परखा जाना चाहिए, न कि शुरुआत में ही खारिज कर दिया जाना चाहिए।