FIR दर्ज न होने पर क्या करें? — भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के तहत नागरिकों के कानूनी अधिकार और प्रभावी उपाय
भूमिका
कानून-व्यवस्था बनाए रखने में FIR (First Information Report / प्रथम सूचना रिपोर्ट) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। किसी भी संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) की सूचना मिलने पर पुलिस का पहला कानूनी दायित्व FIR दर्ज करना होता है। इसके बावजूद व्यवहार में अक्सर देखा जाता है कि पुलिस FIR दर्ज करने से मना कर देती है या टालमटोल करती है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS)— जो कि पुराने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) का स्थान ले चुकी है — नागरिकों को ऐसे मामलों में स्पष्ट, प्रभावी और दंडात्मक उपाय प्रदान करती है।
यह लेख विस्तार से बताएगा कि यदि पुलिस FIR दर्ज नहीं करती है तो BNSS के तहत आप क्या-क्या कानूनी कदम उठा सकते हैं, किन धाराओं का सहारा ले सकते हैं, और दोषी पुलिस अधिकारी के विरुद्ध क्या कार्रवाई संभव है।
1. FIR क्या है और इसका कानूनी महत्व
FIR वह प्रथम लिखित सूचना है जो किसी अपराध के घटित होने के संबंध में पुलिस को दी जाती है। FIR का महत्व इसलिए है क्योंकि:
- यह आपराधिक प्रक्रिया की शुरुआत है
- जांच (Investigation) का आधार FIR ही होती है
- FIR के बिना अक्सर न्यायिक प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाती
BNSS के तहत, संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर FIR दर्ज करना पुलिस का अनिवार्य कर्तव्य है, कोई विवेकाधिकार (Discretion) नहीं।
2. जब थाना पुलिस FIR दर्ज करने से मना कर दे
अक्सर पुलिस निम्न कारणों से FIR दर्ज करने से इनकार करती है:
- मामला “नागरिक विवाद” बताकर
- राजनीतिक/प्रभावशाली दबाव
- अपराध की गंभीरता को कम आंकना
- अतिरिक्त काम से बचने की प्रवृत्ति
BNSS इस स्थिति में नागरिक को बहु-स्तरीय (Multi-Layered) संरक्षण प्रदान करता है।
3. उच्च पुलिस अधिकारी को शिकायत — धारा 173(4) BNSS
कानूनी प्रावधान
यदि थाना प्रभारी (SHO) FIR दर्ज करने से मना करता है, तो BNSS की धारा 173(4) के अनुसार:
पीड़ित व्यक्ति अपनी शिकायत लिखित रूप में जिले के पुलिस अधीक्षक (SP) या महानगरों में DCP को भेज सकता है।
शिकायत कैसे करें
- शिकायत लिखित हो
- घटना की तारीख, समय, स्थान स्पष्ट रूप से लिखें
- संभावित अपराध की धाराएं उल्लेखित करें
- सभी सबूत/दस्तावेज संलग्न करें
- स्पीड पोस्ट / रजिस्टर्ड डाक / ई-मेल द्वारा भेजें
SP/DCP की जिम्मेदारी
यदि SP/DCP शिकायत से संतुष्ट होते हैं, तो वे:
- स्वयं जांच कर सकते हैं या
- किसी अधीनस्थ अधिकारी को FIR दर्ज कर जांच करने का आदेश दे सकते हैं
यह अधिकार पुलिस के अंदरूनी नियंत्रण (Supervisory Control) को मजबूत करता है।
4. मजिस्ट्रेट के पास जाना — धारा 175(3) BNSS
जब पुलिस और SP/DCP दोनों विफल हों
यदि:
- थाना पुलिस FIR दर्ज न करे
- SP/DCP को शिकायत देने के बाद भी कोई कार्रवाई न हो
तो BNSS आपको न्यायपालिका का दरवाजा खटखटाने का अधिकार देता है।
धारा 175(3) BNSS
इस धारा के तहत:
- पीड़ित व्यक्ति न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन (इस्तगासा / प्राइवेट शिकायत) दे सकता है
- मजिस्ट्रेट पुलिस को FIR दर्ज करने और निष्पक्ष जांच का आदेश दे सकता है
मजिस्ट्रेट के अधिकार
मजिस्ट्रेट:
- FIR दर्ज करने का आदेश दे सकता है
- जांच की निगरानी कर सकता है
- आवश्यक होने पर स्वतंत्र जांच सुनिश्चित कर सकता है
यह प्रावधान पुलिस की मनमानी पर न्यायिक अंकुश लगाता है।
5. FIR दर्ज न करने वाले पुलिस अधिकारी पर कार्रवाई — धारा 121 BNSS
सबसे सशक्त प्रावधान
BNSS ने पहली बार FIR दर्ज न करने को दंडनीय अपराध बना दिया है।
धारा 121 BNSS के तहत
यदि कोई पुलिस अधिकारी:
- जानबूझकर FIR दर्ज करने से मना करता है
- या कानून का उल्लंघन करता है
तो उस पर:
- 6 महीने से 2 साल तक की कैद
- जुर्माना
- या दोनों का प्रावधान है
यह प्रावधान पुलिस जवाबदेही (Police Accountability) को ऐतिहासिक रूप से मजबूत करता है।
6. FIR न दर्ज होने पर चरणबद्ध उपाय (Step-by-Step Guide)
चरण 1: घटना का पूरा विवरण लिखें
- तारीख
- समय
- स्थान
- आरोपी का नाम (यदि ज्ञात हो)
- गवाहों का विवरण
चरण 2: थाना स्तर पर लिखित शिकायत
- शिकायत की रिसीविंग लें
- मना करने पर उसका उल्लेख लिखित में करें
चरण 3: SP/DCP को शिकायत (धारा 173(4))
- डाक/ई-मेल से भेजें
- सबूत संलग्न करें
चरण 4: मजिस्ट्रेट के पास आवेदन (धारा 175(3))
- वकील की सहायता से
- सभी पूर्व प्रयासों का उल्लेख करें
चरण 5: दोषी पुलिस अधिकारी पर कार्रवाई की मांग
- धारा 121 BNSS का स्पष्ट उल्लेख करें
7. सुप्रीम कोर्ट और न्यायिक दृष्टिकोण (संक्षेप में)
(यद्यपि यह लेख BNSS पर केंद्रित है, परंतु न्यायिक सिद्धांत वही हैं)
- संज्ञेय अपराध में FIR दर्ज करना अनिवार्य है
- पुलिस प्रारंभिक जांच के नाम पर FIR से इनकार नहीं कर सकती
- FIR न दर्ज करना नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है
BNSS ने इन सिद्धांतों को कानूनी दंड से सुदृढ़ किया है।
8. आम नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण सुझाव
- FIR से मना किए जाने पर घबराएं नहीं
- हर शिकायत लिखित और दस्तावेजी रखें
- संवाद में शांत और कानूनी भाषा का प्रयोग करें
- आवश्यकता पड़ने पर वकील से तुरंत सलाह लें
निष्कर्ष
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) ने FIR से जुड़े अधिकारों को केवल कागज़ी नहीं, बल्कि व्यावहारिक और दंडात्मक बनाया है।
अब FIR दर्ज न करना:
- केवल प्रशासनिक चूक नहीं
- बल्कि दंडनीय अपराध है
यदि पुलिस FIR दर्ज नहीं करती, तो:
- SP/DCP → मजिस्ट्रेट → दंडात्मक कार्रवाई
का रास्ता आपके लिए कानून ने पूरी मजबूती से खोल दिया है।
FIR दर्ज कराना आपका अधिकार है, कृपा नहीं।
कानून आपके साथ है — बस उसे सही तरीके से इस्तेमाल करना जानिए।