“FEMA अधिनियम, 1999 की धारा 6: पूंजी खाते के लेन-देन पर भारतीय रिज़र्व बैंक की नियामक शक्ति”

“FEMA अधिनियम, 1999 की धारा 6: पूंजी खाते के लेन-देन पर भारतीय रिज़र्व बैंक की नियामक शक्ति”


प्रस्तावना:

विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम, 1999 (FEMA) का उद्देश्य भारत में विदेशी व्यापार और भुगतान को सुविधाजनक बनाना और विदेशी मुद्रा के व्यवस्थित विकास और रखरखाव को बढ़ावा देना है। इसमें धारा 6 विशेष रूप से “पूंजी खाता लेन-देन” (Capital Account Transactions) से संबंधित है, और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को इन लेन-देन को विनियमित करने की व्यापक शक्ति प्रदान करती है।


धारा 6 FEMA अधिनियम, 1999 की रूपरेखा:

1. पूंजी खाता लेन-देन की परिभाषा:

धारा 6 के तहत पूंजी खाता लेन-देन वह लेन-देन होता है जिससे भारत में किसी व्यक्ति की संपत्ति या देनदारी (assets or liabilities) में परिवर्तन होता है, जिसमें निम्न शामिल हो सकते हैं:

  • भारत से बाहर संपत्ति खरीदना या बेचना
  • विदेशी इकाइयों में निवेश करना
  • उधार देना या लेना
  • प्रतिभूतियों (securities) का हस्तांतरण

2. भारतीय रिज़र्व बैंक की शक्तियाँ:

धारा 6 RBI को निम्न अधिकार प्रदान करती है:

  • यह निर्धारित करना कि कौन से लेन-देन पूंजी खाता लेन-देन माने जाएंगे।
  • यह निर्णय लेना कि किन परिस्थितियों में और किस प्रकार से ऐसे लेन-देन किए जा सकते हैं।
  • शर्तों, प्रतिबंधों और सीमाओं को अधिसूचना द्वारा लागू करना।

उदाहरणस्वरूप, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI), पोर्टफोलियो निवेश, बाह्य वाणिज्यिक उधार (ECB), और प्रवासी भारतीयों (NRI) द्वारा निवेश — सब पूंजी खाता लेन-देन के अंतर्गत आते हैं और RBI द्वारा विनियमित होते हैं।


3. भारत सरकार की भूमिका:

  • केंद्र सरकार यह तय कर सकती है कि किन पूंजी खाता लेन-देन को RBI की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता है।
  • सरकार कुछ खास क्षेत्रों में निवेश या पूंजी स्थानांतरण को प्रतिबंधित कर सकती है।

4. पूंजी खाता और चालू खाता में अंतर:

बिंदु पूंजी खाता लेन-देन चालू खाता लेन-देन
प्रकृति संपत्ति/देयता में बदलाव आय/व्यय से संबंधित लेन-देन
उदाहरण विदेशी निवेश, संपत्ति खरीद निर्यात-आयात, वेतन
नियंत्रण अधिक विनियमित तुलनात्मक रूप से उदार

निष्कर्ष:

FEMA की धारा 6 भारत की विदेशी मुद्रा नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो देश के पूंजी प्रवाह को संतुलित करने और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में सहायता करती है। यह विदेशी निवेश को नियंत्रित करने, विदेशी ऋणों को विनियमित करने और देश की वित्तीय संप्रभुता को संरक्षित करने हेतु RBI को पूर्ण अधिकार देती है