Environmental Law Short Answer

प्रश्न 1. पर्यावरण का अर्थ स्पष्ट कीजिए। Clarify meaning of environment.

उत्तर – साधारण अर्थ में पर्यावरण’ परिवेश या उन स्थितियों का द्योतक है जिसमें व्यक्ति या वस्तु अपने अस्तित्व में रहते हैं तथा अपने स्वरूप का विकास करते हैं। पर्यावरण में भौतिक पर्यावरण तथा जैव पर्यावरण शामिल हैं। भौतिक पर्यावरण में स्थल, जल तथा वायु जैसे अजैव तत्व शामिल हूँ जबकि जैव वातावरण में पेड़-पौधे तथा छोटे एवं बड़े सभी जीव सम्मिलित हैं। भौतिक तथा जैविक दोनों प्रकार के पर्यावरण एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। इस कारण भौतिक पर्यावरण में हुआ कोई भी परिवर्तन जैव वातावरण में भी परिवर्तन उत्पन्न कर देता है।

प्रश्न 2. पर्यावरण का अर्थ एवं उसके दर्शन पर टिप्पणी लिखिए। Comment on the meaning and philosophy of environment.) 

उत्तर – पर्यावरण का अर्थ इस शीर्षक के लिये लघु उत्तरीय प्रश्न सं. 1 देखें। पर्यावरण का दर्शन पर्यावरण सम्पूर्ण विश्व का एक समग्र दृष्टिकोण है जिसे सामान्य रूप से इस प्रकार कहा जा सकता है कि पर्यावरण एक अविभाज्य समष्टि है। प्रसिद्ध विधिवेत्ता टांसले का मत है कि पर्यावरण प्रभावकारी दशाओं का योग है जिसमें जीव रहते हैं। इसी प्रकार संयुक्त राष्ट्र गुणवत्ता का मत है कि मानव की कुल पर्यावरण सम्बन्धी प्रणाली में न केवल जैव मण्डल शामिल है अपितु उसके प्राकृतिक तथा मानव निर्मित परिवेश के साथ उसकी अंतर्क्रियाएँ भी सम्मिलित हैं। तुलसीदास ने रामचरितमानस में “छिति जल पावक गगन समीरा” के माध्यम से पर्यावरण को अभिव्यक्त किया है। पर्यावरण में सभी भौतिक तत्व एवं जीव सम्मिलित हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसकी जीवन क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। अतएव पर्यावरण एक अत्यन्त जटिल प्रतिभास है जिसमें पारिस्थितिक तंत्र, पारिस्थितिकी तथा जैव मण्डल सम्मिलित है।

प्रश्न 3. पारिस्थितिक तंत्र से आप क्या समझते हैं?

What do you understand by eco-system.

अथवा

पारिस्थितिक तंत्र को परिभाषित कीजिए।

Define eco-system.

उत्तर- पारिस्थितिक तंत्र जटिल पारिस्थितिकीय समुदाय है जो पादप, जन्तु तथा सूक्ष्मजीव समुदा और उनके अजैव पर्यावरण जो कि एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं, आदि की क्रियाशील इकाई का समष्टि है। सामान्य क्षेत्र में रहने वाले एक-दूसरे पर प्रभाव रखने वाले पादपों तथा पशुओं के जैविक समुदाय तथा भौतिक पर्यावरण जिसमें स्थल, जल एवं वायु जैसे अजैव तत्व सम्मिलित है, एक साथ संगठित होकर परितंत्र का निर्माण करते हैं।

पारिस्थितिक तंत्र के दो मुख्य भाग होते हैं।

(1) जीवोम अथवा बायोम तथा

(2) निवास क्षेत्र (Habitat)

     जीवोम किसी खास क्षेत्रीय इकाई के पौधों तथा जानवरों का जटिल समूह होता है जबकि निवास्य क्षेत्र भौतिक पर्यावरण का द्योतक है।

   इस प्रकार पारिस्थितिक तंत्र के सभी भागों-जैविक, अजैविक, बायोम तथा निवास्य क्षेत्र को परस्पर क्रियाशील कारक मानना चाहिए जो कि एक प्रौढ़ पारिस्थितिक तंत्र में लगभग संतुलन की दशा में होते हैं।

प्रश्न 4. पर्यावरण के तत्वों की व्याख्या कीजिए।

Explain the contents of environment.

उत्तर – पर्यावरण के तत्व पर्यावरण को दो प्रमुख तत्वों में विभाजित किया जा सकता है पहला अजैविक तत्व तथा दूसरा जैविक तत्व। अजैविक तत्व अजैविक तत्व में निम्नलिखित सम्मिलित हैं –

(i) स्थलजात तत्व जैसे उच्चावच्च, ढाल, पर्वत, दिशा आदि। (ii) भौगोलिक स्थिति जैसे तटीय एवं मध्य प्रदेश, पर्वतीय क्षेत्र आदि।

(iii) मृदा जैसे मृदा जल, मृदा वायु, मृदा रूप आदि। (iv) जलवायविक तत्व जैसे सूर्य प्रकाश एवं ऊर्जा, तापमान, हवा, वर्षा, आर्द्रता, वायुमण्डलीय गैस आदि।

(v) खनिज एवं चट्टानें जैसे- धात्विक एवं अधात्विक खनिज, ऊर्जा खनिज एवं चट्टानें आदि।

(vi) जलस्रोत में सागर, झील, तालाब, भूमिगत जल आदि सम्मिलित हैं। जैविक तत्व – जैविक तत्व में वनस्पति, जीव, जन्तु, मानव एवं सभी प्रकार के सूक्ष्म जीव आते हैं।

प्रश्न 5. स्वपोषी तथा परपोषी जीवों में अन्तर बताइए। State distinction between autotrophic and heterotrophic animals.

उत्तर– स्वपोषी जीवों को उत्पादक भी कहा जाता है क्योंकि ये अपना भोजन स्वयं उत्पादित करते हैं। जबकि परपोषी जीवन अपना भोजन स्वयं उत्पादित नहीं कर पाते और इस कारण अपने भोजन के लिए ये दूसरे जीवों पर निर्भर रहते हैं। स्वपोषी पौधों में क्लोरोप्लास्ट नामक रंजक पाया जाता है जो सूर्य के प्रकाश तथा कार्बन डाइ आक्साइड की सहायता से पौधों को अपना भोजन स्वयं बनाने में मदद करता है परन्तु परपोषी जीवों तथा पौधों में क्लोरोप्लास्ट नहीं पाया जाता है।

     सभी हरे पौधे तथा नील हरित शैवाल आदि स्वपोषी श्रेणी में आते हैं जबकि कवक तथा जीव परपोषी श्रेणी में आते हैं।

प्रश्न 6. वृहत् उपभोक्ता क्या है?

What is macro consumer.

उत्तर- वृहत् उपभोक्ता को भक्षपोषी भी कहा जाता है क्योंकि ये जीवित वनस्पतियों तथा जीवों को अपना भोजन बनाते हैं। इन्हें निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) शाकभक्षी (Herbiborus),

(ii) सर्वभक्षी (Omniborus), तथा

(iii) मौसभक्षी ।

प्रश्न 7. भौतिक पर्यावरण क्या है?

What is physical environment.

उत्तर– भौतिक पर्यावरण के अन्तर्गत अनैतिक तत्व आते हैं, जो निम्न प्रकार से हैं-

(i) सृष्टि संबंधी-जैसे- सूर्य का ताप विद्युत संबंधी अवस्थायें।

(ii) चन्द्रमा के आकर्षण शक्ति का ज्वार-भाटा पर प्रभाव। (iii) भौतिक भौगोलिक यथा- पर्वत, समुद्र, नदी, घाटियाँ, दरें आदि।

(iv) free (Soil)

(v) जलवायु- तापमान का संबंध, आर्द्रता तथा ऋतुओं का चक्र।

(vi) अकार्बनिक पदार्थ- खनिज, धातुयें तथा पृथ्वी के रासायनिक गुण तथा

(vii) प्राकृतिक साधन जल प्रपात, हवायें, ज्वार-भाटा, सूर्य की किरणें ।

(viii) प्राकृतिक मौलिक प्रक्रियायें – यथा- पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण।

प्रश्न 8. वृहत् एवं लघु उपभोक्ता में क्या अन्तर है?

What is distinction between macro and micro consumer.

उत्तर – (1) वृहत् उपभोक्ता को भक्षपोषी कहा जाता है जबकि लघु उपभोक्ता को परासरण पोषी अथवा अपघटक कहा जाता है।

(2) वृहत् उपभोक्ता जीवित वनस्पतियों तथा जीवों को अपना भोजन बनाते हैं जबकि लघु उपभोक्ता मृत तथा सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों पर अपने भोजन के लिए निर्भर होते हैं।

प्रश्न 9.पर्यावरण परिवर्तक से आप क्या समझते हैं ? What do you mean by Environmental Variables?

उत्तर– पर्यावरण चर द्वारा सभी कार्यों, समारोहों, पुस्तकालयों तथा वसूली यदि दृश्यों में पहुँचा जा सकता है। ये विशेष प्रकार के होते हैं और विशेष रूप से चलाने के दौरान ही परीक्षण विधि के लिए उपलब्ध होते हैं। पर्यावरण चर कई प्रकार के हो सकते है-

(1) निर्मित पर्यावरण चर यह पर्यावरण मानकों के परीक्षण के नाम, कार्य का नाम, परोक्षण पथ, स्थानीय होस्ट का नाम, आपरेटिंग सिस्टम के प्रकार आदि की जानकारी प्रदान कर सकता है परन्तु इनकी भी एक सीमा होती है।

(2) उपयोगकर्ता निर्धारित चर यह बटन पैरामीटर तथा नाम और मूल्य में प्रवेश के लिए क्लिक किया जाता है। उपयोगकर्ता बाहरी निर्धारित चर एक XML के रूप में एक बाहरी फाइल में संग्रहित किया जा सकता है। यह चलाने के समय गतिशील दशा में लोड़ किया जा सकता है।

प्रश्न 10. पारिस्थितिकीय तंत्र की पाँच मुख्य विशेषताएँ बताइए। State five main characteristics of eco-system.

उत्तर – पारिस्थितिकीय तंत्र की पाँच मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं-

(i) पारिस्थितिकीय तंत्र का एक क्षेत्रीय आयाम अथवा निश्चित क्षेत्र होता है।

(ii) इसकी संरचना में जैव घटक, अजैव घटक तथा ऊर्जा घटक का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

(iii) पारिस्थितिकीय तंत्र स्वनियमित तथा स्वपोषी होता है। (iv) इसमें ऊर्जा का मुख्य स्रोत सौर शक्ति है जिसका रूपान्तर वनस्पतियों द्वारा किया जाता है। ये वनस्पतियाँ ही प्राथमिक उत्पादक होती हैं।

(v) इसका समय आयाम इसके समय इकाई के संदर्भ में ज्ञात किया जाता है।

प्रश्न 11. पर्यावरण विधि की सामान्य पृष्ठभूमि पर एक टिप्पणी लिखिए। Write a comment on the General Background of Environmental Law.

उत्तर – पर्यावरण विधि का सामान्य पृष्ठभूमि में पर्यावरण ही छाया हुआ है। जिस प्रकार मानव के चारों ओर पर्यावरण का अस्तित्व है उसी प्रकार पर्यावरण विधि शास्त्र का आधार भी पर्यावरण है। पर्यावरण विधि की आवश्यकता तब महसूस हुई जब पर्यावरण में असंतुलन उत्पन्न होने लगा और धीरे-धीरे यह इतना बढ़ता गया कि हमारे जीवन के प्रत्येक पहलू के लिए हानिकारक साबित होने लगा।

      पर्यावरण संरक्षण के उपायों और पर्यावरण प्रदूषण के दायित्वों के निर्धारण के प्रति हम ध्यान द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विशेष रूप से आकृष्ट हुआ। वैसे 20वीं शताब्दी के मध्य तक पर्यावरण असंतुलन का आभास हमें हो चुका था लेकिन इस समय इसे इतनी गंभीर चुनौती नहीं मानी गयी और विभिन्न देश अभी भी औद्योगीकरण की असंतुलित नीति को ही जोर जोर से चलाते रहे। इस समय तक जो भी विकास हुआ वह पर्यावरण की कीमत पर हुआ क्योंकि इस समय तक विकास और पर्यावरण के संतुलन की अवधारणा की पूर्णतः अनदेखी की गयी। इसी अनदेखी के कारण पर्यावरणीय समस्यायें क्रमशः गम्भीर रूप लेती गयी और आज यह मानव के अस्तित्व के लिए ही सबसे बड़ा खतरा बन गयी है। इस खतरे का आभास होने के बाद ही पर्यावरणीय विधि के विभिन्न पहलुओं पर जोर दिया जाने लगा और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए इसे स्कूलों, कालेजों के पाठ्यक्रमों में शामिल किया गया। यद्यपि आज पर्यावरण विधि एक स्वतंत्र विषय का रूप ले चुकी है लेकिन अपने उद्देश्यों में यह कब तक सफल होगी, सफल होगी भी या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि आज भी विश्व के देशों में इस पर समुचित सहयोग एवं समन्वय का नितांत अभाव है।

प्रश्न 12. जैव मण्डल प्रारक्षण क्या है? What is biosphere reserve?

उत्तर- मानव को जीवित रहने हेतु जैवमण्डल का प्रारक्षण आवश्यक है। इसे जैविक प्रदेशों के पर्याप्त प्रतिनिधियों को समाप्त करके तथा उनको प्रारक्षण प्रदान करके किया जाता है।

     जैव मण्डल प्रारक्षण का प्रोग्राम यूनेस्को के मानव तथा जैव मण्डल कार्यक्रम के अन्तर्गत आता है। जैवमण्डल की संकल्पना का सामान्य तात्पर्य प्राकृतिक आवासों तथा उसमें पाये जाने वाले पौधों एवं जन्तुओं की जातियों की रक्षा तथा संरक्षण से है। जैव मण्डल प्रारक्षण के तीन मुख्य उद्देश्य हैं –

(I) संरक्षणात्मक भूमिका

(Il) शोध संबंधी भूमिका, तथा

(iii) विकासीय भूमिका।

प्रश्न 13. ओजोन परत की क्षीणता पर टिप्पणी लिखिए। Write comment on decreasing of ozone layer.

उत्तर– ओजोन परत का सर्वाधिक सान्द्रण समताप मण्डल में 12 से 35 किमी. की ऊँचाई तक पाया जाता है। यह परत पृथ्वी के रक्षा कवच के रूप में जानी जाती है क्योंकि यह गैस सूर्य से पृथ्वी की तरफ आने वाली पराबैगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है और इस प्रकार पृथ्वी पर विद्यमान जीवधारियों को इसके हानिकारक प्रभाव से बचा लेती है।

      इस प्रकार इस आवरण का हमारे लिए अत्यधिक महत्व है। वायुमण्डल में ओजोन के संतुलित स्तर में यदि किसी प्रकार का परिवर्तन हो जाये तो उससे इस जीवमण्डल के जीवधारी सीधे प्रभावित होंगे। परन्तु कुछ क्षेत्रों में ओजोन के सान्द्रण में 100% की कमी होने के कारण ओजोन पूर्णतया लुप्त हो गयी है जिसका कारण ओजोन लेयर में छोटे-छोटे छिद्र हो गये हैं। ओजोन परत अथवा ओजोन मण्डल में इन ओजोन रहित भागों को ही ‘ओजोन छिद्र’ कहा जाता है। ओजोन परत की क्षति का मुख्य कारण प्रशीतकों से निकलने वाली CFC गैस है।

प्रश्न 14. पर्यावरण का महत्व बताइए। State importance of environment.

उत्तर- पृथ्वी पर व्याप्त पर्यावरण प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार है। यद्यपि इस ब्रह्माण्ड में पृथ्वी की तरह प्रमाणित ग्रह पर प्रमाणिक जानकारी के अनुसार केवल पृथ्वी पर ही जीवन का विकास पाया जाता है।

     पर्यावरण का तात्पर्य पृथ्वी के जैवजगत को आवृत्त करने वाले भौतिक परिवेश से है। पर्यावरण जैवजगत की प्राण वायु है। इसीलिए हर्सकोविट्स ने यह संप्रेक्षित किया है कि “पर्यावरण सभी वाह्य परिस्थितियों तथा उनका जीवधारियों पर पड़ने वाला प्रभाव है जो जैव जगत के विकास का नियामक है।

     अतः इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पृथ्वी एक जीवित कोशिका (Living cell) है और पर्यावरण उसके चारों तरफ का रक्षा कवच है। स्वस्थ एवं स्वच्छ पर्यावरण मानव जीवन का आधार है। पर्यावरण के आयाम त्वरित परिवर्तन, जागृति एवं वैश्विक संवेदना के साथ क्षण-प्रतिक्षण नये ज्ञान, नई समस्या एवं सतत्संबंधी समाधान की तरफ अग्रसर है।

प्रश्न 16. पोषणीय सतत् विकास का महत्व बताइए। State importance of sustainable development. 

उत्तर – पोषणीय विकास वर्तमान युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है अर्थात् विकास होने पर पर्यावरण का विनाश न हो।

     इस विचारधारा के अन्तर्गत हमें अपने आर्थिक विकास के लिए आवश्यक प्राकृतिक संपदाओं-वन, जल तथा मृदा को दुरुपयोग से बचाना होगा। यदि हम इन तीन प्राकृतिक सम्पदाओं का सोच-समझकर, उनका ध्यान रखकर उपयोग करेंगे तो कृषि एवं औद्योगिक विकास दोनों संभव हैं तथा इन प्राकृतिक सम्पदाओं को हम अपनी भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित भी कर पायेंगे।

प्रश्न 16. पर्यावरण संरक्षण क्या है? What is environment conservation.

उत्तर– पर्यावरण संरक्षण तथा परिरक्षण आज सबकी चिन्ता का विषय है। पर्यावरण का स्पष्ट उदाहरण है कि इस पृथ्वी पर मानव के क्रियाकलाप एक-दूसरे से सम्बद्ध हैं। आज समाज में प्रकृति के साथ पारस्परिक कार्य इतना व्यापक है कि पर्यावरणीय प्रश्न एक प्रमुख मुद्दा बन गया है।

    राजनैतिक नारेबाजी भी पर्यावरण संरक्षण का घोर समर्थन करती है। पर्यावरण प्रदूषण एवं विनाश ने गंभीर रूप से मानव जीवन, स्वास्थ्य तथा जीविका को धमका दिया है। अतः आज सम्पूर्ण. विश्व में पर्यावरण संरक्षण पर अत्यधिक जोर दिया जा रहा है।

    इस प्रकार पर्यावरण को उसके संतुलित एवं समुचित रूप में बनाये रखना ही पर्यावरण संरक्षण है। यही हमारे अस्तित्व की शर्त भी है।

प्रश्न 17. पर्यावरण प्रदूषण से आप क्या समझते हैं ? What do you understand by Environment pollution?

उत्तर- पर्यावरण प्रदूषण (Environment Pollution) – पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 2 (ग) के अनुसार पर्यावरण से पर्यावरण में पर्यावरण प्रदूषकों का विद्यमान होना अभिप्रेत है। धारा 2 (ख) के अनुसार पर्यावरण प्रदूषण से ऐसा ठोस, द्रव या गैसीय पदार्थ अभिप्रेत है जो ऐसी सान्द्रता में विद्यमान है जो पर्यावरण के लिए हानिकारक होना संभाव्य हो। पर्यावरण प्रदूषण को पर्यावरण के ऐसे ढंग से संदूषण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो जीवित तथा अजीवित के स्वास्थ्य के प्रति परिसंकर या संभावित परिसंकट उत्पन्न करता है। प्रत्येक स्थिति में पर्यावरण में एक निश्चित संघटक होते है जब बाह्य पदार्थ उसमें स्थापित होता है या उसके संघटकों के अनुपात में संपरिवर्तन हो जाता है तब वह पदार्थ अपनी मूल प्रकृति की तथा गुणवत्ता खो देता है। पदार्थ के मूल संघटक का तात्पर्य एक निश्चित उद्देश्य को पूरा करने से है लेकिन परिवर्तित संघटक उस प्रयोजन को पूरा नहीं करते। इस उपांतरित वस्तु को प्रदूषित या अपमिश्रित पदार्थ कहा जाता है और पदार्थ को प्रदूषित करने की प्रक्रिया को प्रदूषण कहा जाता है। पर्यावरण प्रदूषण को विभिन्न पर्यावरणविदों एवं संस्थाओं द्वारा निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है-

      राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान परिषद के अनुसार, “मनुष्य के क्रियाकलापों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादों के रूप में पदार्थों एवं ऊर्जा के विमोचन से प्राकृतिक पर्यावरण में होने वाले हानिकारक परिवर्तनों को पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं। पर्यावरणविद आर. ई. समैन के अनुसार उस स्थिति या दशा पर्यावरण प्रदूषण कहा जाता है। जब पर्यावरण में मानव द्वारा उत्पन्न विभिन्न तत्वों एवं ऊर्जा की इतनी मात्र संग्रहित हो जाती है कि वे पारिस्थिक तंत्र द्वारा आत्मसात् करने की क्षमता से अधिक हो जाते है।

      पर्यावरणविद लाथम के अनुसार सामान्य शब्दों में प्रदूषण से तात्पर्य बाह्य क्रिया द्वारा पर्यावरण के किसी भाग में अपशिष्ट पदार्थों या अतिरिक्त ऊर्जा या किसी अन्य परिसंकटमय वस्तुओं का समावेश जो पर्यावरण को परिवर्तित कर देता है और इस परिवर्तन के द्वारा उस ढंग में जिसमें मानव चाहता है व्यक्ति प्रयोग या उपयोग के अवसर को प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः प्रभावित करता है।

      इस प्रकार कहा जा सकता है कि पर्यावरण प्रदूषण वह है जब मानव के इच्छित या अनिच्छित कार्यों द्वारा प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में इतना अधिक परिवर्तन हो जाता है कि वह उसकी क्षमता से अधिक हो जए जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण भी गुणवत्ता में आवश्यकता से अधिक ह्रास होने लगे तथा जिससे मानव समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ने लगे।

प्रश्न 18. पर्यावरण विधि को और प्रभावी बनाने के लिए चार सुझाव दीजिए। Give four suggestions for maping environment law more effective.

उत्तर– पर्यावरण विधि को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए चार सुझाव-

(1) पर्यावरण को संरक्षित करने से सम्बन्धित जितनी भी विधियाँ बनायी गयी है उसको कठोरता से लागू किया जाना चाहिये तथा पर्यावरण से सम्बन्धित अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों एवं संयुक्त राष्ट्र के प्रावधानों, जिसका की भारत सदस्य है या जिस पर हस्ताक्षर किया है, उसको प्रभावी तरीके से लागू किया जाय ताकि पर्यावरण को संरक्षित किया जा सके।

(2) संविधान के अनुच्छेद 21, 38, 43-क, 47 एवं 48क, 51क आदि में वर्णित प्रावधानों का और अधिक व्यापक बनाकर लागू किया जाना चाहिए। इसके माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गये दिशा-निर्देशों का भी कठोरता से अनुपालन किया जाना चाहिए।

(3) ऐसे कारक जो जल, वायु एवं अन्य प्रदूषणों की बढ़ाते है उनके रोकने के सम्बन्ध में किये जा रहे प्रयासों को गतिशील बनाया जाना चाहिए लोकहित वादों के माध्यम से कार्यपालिका, विधायिका आदि भी विफलताओं का प्रकट किया जाना चाहिए तथा न्यायालय द्वारा पर्यावरण प्रदूषण के सम्बन्ध में दिये गए दिशा-निर्देशों का कानूनी (विधिक) रूप प्रदान किया जाना चाहिए।

(4) पर्यटन जगहों, जो पर्यावरण को स्वच्छ रखने में अमूल्य योगदान देते है वहाँ पर आने-जाने वाले पर्यटकों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले पालिथीन बैगों एवं चैलियों का अधिनियम बनाकर रोका जाना चाहिए इसके सिवाय पहले से बनाये गये अधिनियमों के वे प्रावधान जो इसे प्रतिबंधित करते हों उन्हें कठोरता से लागू किया जाना चाहिए।

प्रश्न 19. पर्यावरण विधि की कमियों का उल्लेख कीजिये। Describe demerits of Environmental Law.

उत्तर – पर्यावरणीय विधि में निम्न कमियाँ पायी जाती हैं-

1. पर्यावरणीय विधियों से सामान्यतः राज्य अपने पर बाध्यकारी नहीं मानते और उन्हें लागू करने में टाल-मटोल करते रहते है। बहुत सारी पर्यावरणीय विधियाँ भविष्य लक्षी प्रकृति की होती हैं। जिसके कारण उनका शीघ्र क्रियान्वय नहीं हो पाता।

2. पर्यावरण विधियों के बारे में अशिक्षा के कारण लोगों में जागरूकता का अभाव होता है। इस क्षेत्र में जागरूकता फैलाने वाले सरकारी एवं स्वैच्छिक संगठनों की संख्या अत्यंत कम है।

3. पर्यावरण की समस्या काफी हद तक गरीबी की समस्या से भी जुड़ी हुई है। पर्यावरण विधि इस समस्या को रेखांकित तो करती है परन्तु गरीब देशों को संसाधन उपलब्ध नहीं करवा पाती अतः प्रदूषण की समस्या का निवारण नहीं हो पाता। अधिकतर अमीर देश गरीब देशों का संसाधन तथा तकनीक उपलब्ध करवाने में आना-कानी करते हैं। इस संबंध में पर्यावरण विधि में बाध्यकारी कानूनों का भी अभाव है।

4. पर्यावरणीय विधि पर्यावरण प्रदुषण के दुष्प्रभाव को लोगों को सही से समझना नहीं पायी है।

5. पर्यावरणीय समस्याओं के प्रति विकसित तथा विकासशील देशों में मतैक्य का अभाव है। पर्यावरण प्रदूषण के लिए ये प्राय: एक-दूसरे पर दोषारोपण करते हैं। इस संबंध में पर्यावरणीय विधि विभिन्न राज्यों के दायित्वों को निश्चित नहीं कर पायी है।

       पर्यावरण के बारे में न्यायालयों के निर्णयों का भी कठोरता से अनुपालन नहीं हो पाता।

प्रश्न 20. पर्यावरण विधि की प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। Write short note on the nature of environmental law.

उत्तर– पर्यावरण से सम्बन्धित निर्मित विधियों, अभिसमयों एवं सम्मेलनों में पारित एवं उस पर सदस्य राज्यों द्वारा हस्ताक्षरित बाध्यकारी परिनियमों को पर्यावरण विधि कहा जाता है। ये समस्त उपबन्ध पर्यावरण के संरक्षण से सम्बन्धित होते हैं तथा पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित एवं निवारित करते हैं। इसके सिवाय पर्यावरण विधि का सम्बन्ध अन्य अनेकों विधियों जैसे- जैविकी, पारिस्थितिकी, अर्थशास्त्र, चिकित्सा, जलविज्ञान, मनोविज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी, राजनीतिशास्त्र से भी है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि पर्यावरण विधि को राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता है तथा इसका अध्ययन पारिस्थितिकी एवं अर्थशास्त्र की जानकारी की भी अपेक्षा करता है। पर्यावरण विधि की यह आत्मनिर्भरता इसे विधि की सुभिन्न शाखा के रूप में स्पष्टीकृत करती है। पर्यावरण विधि को कॉमन लॉ तथा सांविधिक विधि के सिद्धान्तों का सम्मिश्रण कहा जा सकता है। यह अन्य विधियों में प्रतिपादित सिद्धान्तों, संकल्पनाओं, मानकों तथा मानदण्डों का संश्लेषण है। इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध विधिशास्त्री रोजर्स का मत है कि- “पर्यावरण विधि इस ध्रुव एवं इसकी जनता को उस कार्यकलाप से जो पृथ्वी एवं इसके जीवन को बनाये रखने वाली क्षमता को पलट देता है, से संरक्षण करने वाली एक विधि है।

प्रश्न 21. ‘पर्यावरण विधि’ में जैव विविधता का क्या महत्व है ? What is the importance of Biodiversity in ‘Environmental Law’?

उत्तर– जैव विविधता (Biodiversity) दो शब्दों से मिलकर बना है। Bio शब्द ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका तात्पर्य है ‘जीवन’। जीवन शब्द का तात्पर्य है “संगठित पदार्थों की वह अवस्था जो सदैव सक्रिय और परिवर्तन होती है। ‘Diversity’ लैटिन भाषा के शब्द Diversite शब्द से बना है जिसका तात्पर्य है विभिन्नता। इस प्रकार Biodiversity का अर्थ है जैव विभिन्नता ।

   जैव विविधता जैवमण्डल प्रणाली के पोषण हेतु महत्वपूर्ण एवं अत्यावश्यक है। जैवमण्डल पृथ्वी का पृष्ठीय कटिबंध एवं उसका समीपवर्ती वायुमण्डल है जिसमें जीव पाये जाते हैं।

    जैवमण्डल की अपनी गति एवं लय है जो स्वस्थ पर्यावरण में ही संभव है। जैव विविधता ही पर्यावरण एवं पारिस्थतिकीय तंत्र में संतुलन बनाये रखने के लिए आवश्यक है।

     चूँकि पारिस्थितिकीय तंत्र विभिन्न प्रजातियों के सम्मिलित पारस्परिक संबंधों पर आधारित है और ये ही पर्यावरण को स्वच्छ तथा संतुलित बनाये रखते हैं, अतः यदि इनमें किसी प्रकार का बदलाव आ जाये तो पर्यावरण के घटकों में भी बदलाव आ जायेगा जिससे पर्यावरण असंतुलित हो जायेगा जो पृथ्वी पर पाये जाने वाले जीव जन्तुओं तथा वनस्पतियों के लिए नुकसानदायक होगा। अतः पर्यावरण को स्वस्थ एवं संतुलित बनाये रखने के लिये जैव विविधता अपरिहार्य है।

 

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