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Environmental Law (पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, वायु/जल अधिनियम, NGT) part -2

51. पर्यावरणीय संवैधानिक अधिकारों की व्याख्या कीजिए।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता” का अधिकार दिया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विभिन्न निर्णयों में इसे “स्वस्थ पर्यावरण में जीने के अधिकार” के रूप में विस्तारित किया है। न्यायालय ने माना कि स्वच्छ जल, शुद्ध वायु और प्रदूषण रहित पर्यावरण नागरिकों के मूल अधिकारों में शामिल है। इसके अलावा अनुच्छेद 48A राज्य को पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी देता है, जबकि अनुच्छेद 51A(g) नागरिकों को भी पर्यावरण की रक्षा का कर्तव्य सौंपता है।


52. स्टॉकहोम सम्मेलन, 1972 का महत्व बताइए।
स्टॉकहोम सम्मेलन, 1972 पर्यावरण पर आयोजित पहला अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन था। इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए सहयोग और रणनीति तैयार करना था। इस सम्मेलन से विश्व को यह समझ में आया कि पर्यावरण संरक्षण एक वैश्विक दायित्व है। भारत ने इसके प्रभाव में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 बनाया और कई अन्य कानूनों व नीतियों को अपनाया। यह सम्मेलन सतत विकास की अंतरराष्ट्रीय नींव बना।


53. रियो सम्मेलन, 1992 के प्रमुख बिंदु क्या थे?
रियो डी जेनेरियो, ब्राजील में आयोजित यह सम्मेलन “अर्थ समिट” के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें तीन महत्वपूर्ण दस्तावेज अपनाए गए:

  1. एजेंडा 21 – सतत विकास के लिए वैश्विक कार्य योजना।
  2. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC)।
  3. जैव विविधता कन्वेंशन (CBD)।
    इस सम्मेलन ने “सतत विकास”, “साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारियाँ” और “एहतियाती सिद्धांत” जैसे अवधारणाओं को वैश्विक मान्यता दिलाई।

54. ‘एजेंडा 21’ क्या है?
एजेंडा 21 रियो सम्मेलन, 1992 में पारित एक वैश्विक कार्य योजना है, जिसका उद्देश्य 21वीं सदी में सतत विकास को बढ़ावा देना है। इसमें पर्यावरण संरक्षण, गरीबी उन्मूलन, प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग, और पर्यावरणीय शिक्षा जैसे मुद्दों को शामिल किया गया है। यह दस्तावेज केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारों को कार्यान्वयन की दिशा में मार्गदर्शन देता है।


55. ‘प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत’ पर्यावरणीय मामलों में कैसे लागू होते हैं?
प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत – सुनवाई का अधिकार (audi alteram partem) और निष्पक्ष निर्णय (nemo judex in causa sua) – पर्यावरणीय निर्णयों में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। परियोजना स्वीकृति के पहले जनसुनवाई कराना, प्रभावित पक्षों को अपनी बात रखने का अवसर देना, और निष्पक्ष पर्यावरणीय मूल्यांकन सुनिश्चित करना, इन सिद्धांतों का अनुपालन है। इससे पर्यावरणीय न्याय व्यवस्था पारदर्शी और लोकतांत्रिक बनती है।


56. जैविक खेती (Organic Farming) का पर्यावरणीय महत्व क्या है?
जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की बजाय प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग किया जाता है, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता, जल स्रोतों की शुद्धता और जैव विविधता को नुकसान नहीं होता। यह खेती प्रदूषण नहीं फैलाती और सतत कृषि को बढ़ावा देती है। इसके अतिरिक्त, जैविक उत्पाद मानव स्वास्थ्य के लिए भी सुरक्षित होते हैं। यह पर्यावरण-संवेदनशील कृषि पद्धति है।


57. ‘इकोमार्क’ (Eco-mark) क्या है?
इकोमार्क भारत सरकार द्वारा प्रदत्त एक प्रमाणन चिह्न है, जो पर्यावरणीय दृष्टिकोण से सुरक्षित और टिकाऊ उत्पादों को दर्शाता है। इसे उत्पादों पर तब लगाया जाता है जब वे उत्पादन, उपयोग और निपटान के प्रत्येक चरण में पर्यावरण के प्रति सुरक्षित होते हैं। इससे उपभोक्ता पर्यावरण अनुकूल उत्पादों की पहचान कर पाते हैं और टिकाऊ उपभोग को बढ़ावा मिलता है।


58. सतत ऊर्जा स्रोतों का पर्यावरणीय महत्व क्या है?
सतत ऊर्जा स्रोत जैसे – सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल विद्युत, बायोगैस आदि – पर्यावरण के लिए अनुकूल हैं क्योंकि ये प्रदूषण नहीं फैलाते और सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर नहीं करते। इनसे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटता है और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद मिलती है। सतत ऊर्जा, ऊर्जा सुरक्षा और स्वच्छ पर्यावरण दोनों को सुनिश्चित करती है।


59. वनों की अवैध कटाई के पर्यावरणीय परिणाम क्या हैं?
अवैध वनों की कटाई से पारिस्थितिक असंतुलन, जलवायु परिवर्तन, भूमि क्षरण, जैव विविधता का ह्रास, और बाढ़ जैसी आपदाओं की संभावना बढ़ जाती है। यह वन्यजीवों के आवास नष्ट करती है और कार्बन संतुलन को भी प्रभावित करती है। वनों की अवैध कटाई को रोकने के लिए वन अधिनियम, सैटेलाइट निगरानी और सामुदायिक भागीदारी आवश्यक है।


60. ‘पर्यावरण शिक्षा’ को विद्यालय पाठ्यक्रम में शामिल करने का क्या महत्व है?
पर्यावरण शिक्षा को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करने से बच्चों में प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का विकास होता है। यह उन्हें पर्यावरणीय समस्याओं, उनके कारणों और समाधान के प्रति जागरूक बनाती है। न्यायालय ने भी पर्यावरण शिक्षा को अनिवार्य बनाने के निर्देश दिए हैं। यह शिक्षा अगली पीढ़ी को सतत विकास और स्वच्छ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करती है।


61. राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?
राष्ट्रीय वन नीति, 1988 का उद्देश्य देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का कम से कम 33% क्षेत्र वनों से आच्छादित करना है। इसके अंतर्गत वनों का संरक्षण, पुनः वनीकरण, वनों में रहने वाले समुदायों की भागीदारी और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने पर बल दिया गया है। यह नीति स्थायी वन प्रबंधन और जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।


62. ‘सार्वजनिक न्यास सिद्धांत’ (Public Trust Doctrine) क्या है?
यह सिद्धांत कहता है कि सरकार पर्यावरणीय संसाधनों (जैसे– वायु, जल, वन, समुद्र तट) की संरक्षक होती है और वह इनका निजीकरण नहीं कर सकती। संसाधनों का उपयोग जनहित में होना चाहिए। भारत में यह सिद्धांत MC Mehta v. Kamal Nath केस में लागू हुआ और न्यायपालिका ने कहा कि ये संसाधन भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहना चाहिए।


63. जल प्रदूषण नियंत्रण के लिए किए गए उपाय कौन-कौन से हैं?
जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए गए हैं:

  1. जल अधिनियम, 1974 का प्रवर्तन।
  2. जल उपचार संयंत्रों की स्थापना।
  3. उद्योगों को ETP (Effluent Treatment Plant) अनिवार्य बनाना।
  4. नदियों की सफाई योजनाएँ – जैसे नमामि गंगे योजना।
  5. जन-जागरूकता अभियान
    इन उपायों से जल स्रोतों को स्वच्छ बनाए रखने का प्रयास किया जा रहा है।

64. वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए सरकार द्वारा उठाए गए प्रमुख कदम कौन से हैं?
सरकार ने वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे –

  1. वायु अधिनियम, 1981 का प्रवर्तन,
  2. वाहनों में BS-6 मानक लागू करना,
  3. औद्योगिक इकाइयों में प्रदूषण नियंत्रण यंत्रों की अनिवार्यता,
  4. राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) की शुरुआत,
  5. पटाखों और खुले में कचरा जलाने पर प्रतिबंध,
  6. ग्रीन बेल्ट विकास
    इन उपायों का उद्देश्य वायु की गुणवत्ता में सुधार करना है।

65. ‘ईको-टूरिज्म’ का क्या महत्व है?
ईको-टूरिज्म एक जिम्मेदार पर्यटन पद्धति है, जिसका उद्देश्य प्रकृति का आनंद लेते हुए पर्यावरण और स्थानीय संस्कृति को नुकसान पहुँचाए बिना पर्यटन को बढ़ावा देना है। यह पर्यावरणीय शिक्षा, स्थानीय समुदाय की आर्थिक सहायता, और जैव विविधता संरक्षण को प्रोत्साहित करता है। ईको-टूरिज्म पर्यटन क्षेत्र को सतत और पर्यावरण-अनुकूल बनाता है।


66. ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)’ क्या है?
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) भारत सरकार द्वारा 2019 में शुरू किया गया एक व्यापक मिशन है, जिसका उद्देश्य प्रमुख 132 प्रदूषित शहरों में वायु गुणवत्ता को सुधारना है। इसका लक्ष्य 2024 तक पीएम 2.5 और पीएम 10 स्तर को 20–30% तक घटाना है (2017 के स्तर की तुलना में)। यह योजना स्रोत की पहचान, निगरानी, जनभागीदारी, प्रदूषण नियंत्रण उपायों और बेहतर शहरी नियोजन को शामिल करती है। इससे शहरी वायु गुणवत्ता में सुधार लाने की कोशिश की जाती है।


67. ‘नमामि गंगे योजना’ का उद्देश्य क्या है?
‘नमामि गंगे’ योजना 2014 में केंद्र सरकार द्वारा गंगा नदी के संरक्षण व पुनर्जीवन हेतु प्रारंभ की गई थी। इसका उद्देश्य गंगा की सफाई, जैविक प्रवाह बनाए रखना, औद्योगिक अपशिष्ट को रोकना, सीवेज शोधन संयंत्र स्थापित करना, घाट विकास और जनजागरूकता फैलाना है। यह एक एकीकृत मिशन है जिसमें केंद्र, राज्य सरकारें, और आम जनता की भागीदारी से गंगा को फिर से स्वच्छ बनाना उद्देश्य है।


68. पर्यावरणीय अनुशासन का समाज में क्या महत्व है?
पर्यावरणीय अनुशासन का अर्थ है – संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग, प्रदूषण से बचाव, वृक्षारोपण, और कचरे का उचित प्रबंधन। यह नागरिकों को पर्यावरण के प्रति उत्तरदायी बनाता है। यदि समाज पर्यावरण के प्रति अनुशासित हो तो कानूनों की आवश्यकता कम पड़ती है। यह सतत विकास, प्राकृतिक संतुलन और भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करता है।


69. ‘राष्ट्रीय हरित कोष’ (Compensatory Afforestation Fund) क्या है?
राष्ट्रीय हरित कोष या CAMPA कोष वनों की क्षति की भरपाई के लिए बनाया गया है। जब किसी विकास परियोजना के लिए वन भूमि का उपयोग होता है, तो परियोजना संचालक को बदले में समान क्षेत्र में वृक्षारोपण के लिए धन जमा करना होता है। यह राशि CAMPA फंड में जाती है और उसका उपयोग पुनः वनीकरण, जैव विविधता संरक्षण, वन विकास आदि में होता है। इसका उद्देश्य पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखना है।


70. ‘वनीकरण’ और ‘पुनःवनीकरण’ में क्या अंतर है?
वनीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें बंजर या वनविहीन भूमि पर नए पेड़ लगाए जाते हैं। जबकि पुनःवनीकरण का अर्थ है – उन क्षेत्रों पर पुनः पेड़ लगाना जहां पहले वन थे लेकिन अब कट चुके हैं। दोनों प्रक्रियाएँ पर्यावरणीय संतुलन, कार्बन अवशोषण, मिट्टी संरक्षण और जैव विविधता बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।


71. ‘जलवायु न्याय’ (Climate Justice) का क्या अर्थ है?
जलवायु न्याय वह सिद्धांत है जो कहता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से गरीब और विकासशील देश अधिक प्रभावित होते हैं, जबकि इसका कारण मुख्यतः विकसित देशों की औद्योगिक क्रियाएँ हैं। जलवायु न्याय इस असमानता को स्वीकार करता है और समानता, जवाबदेही तथा अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर बल देता है। यह नीतियों में न्यायपूर्ण समाधान को प्राथमिकता देने की मांग करता है।


72. भारत में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) कैसे कार्य करता है?
AQI वायु की गुणवत्ता को मापने का एक मानक संकेतक है, जिसमें प्रदूषकों जैसे – PM2.5, PM10, CO, NO₂, SO₂, O₃ के स्तर को देखा जाता है। इसे 0 से 500 के बीच स्केल पर वर्गीकृत किया जाता है, जहाँ 0–50 (अच्छा), 51–100 (संतोषजनक), 101–200 (मध्यम), 201–300 (खराब) आदि श्रेणियाँ होती हैं। यह नागरिकों को वायु की गुणवत्ता के प्रति जागरूक करने और सतर्कता हेतु उपयोगी है।


73. कचरा पृथक्करण (Waste Segregation) का क्या महत्व है?
कचरा पृथक्करण वह प्रक्रिया है जिसमें घर, कार्यालय या उद्योग में उत्पन्न कचरे को जैविक (गीला) और अजैविक (सूखा) रूप में अलग किया जाता है। इससे पुनर्चक्रण आसान होता है, गीला कचरा खाद में बदला जा सकता है, और सूखा कचरा रिसाइक्लिंग हेतु भेजा जा सकता है। इससे लैंडफिल पर दबाव कम होता है और अपशिष्ट प्रबंधन अधिक प्रभावी बनता है।


74. पर्यावरणीय कर (Environmental Tax) का क्या उद्देश्य है?
पर्यावरणीय कर एक वित्तीय साधन है जिसका उद्देश्य प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों को महँगा बनाकर उन्हें हतोत्साहित करना है। यह कर उद्योगों, वाहनों या उत्पादों पर लगाया जा सकता है जो वायु, जल या भूमि को प्रदूषित करते हैं। इससे सरकार को स्वच्छ तकनीक अपनाने के लिए राजस्व भी प्राप्त होता है। यह नीति ‘प्रदूषक भुगतान करेगा’ सिद्धांत पर आधारित है।


75. ‘ई-कचरे’ के निपटान की विधियाँ क्या हैं?
ई-कचरा जैसे मोबाइल, कंप्यूटर, टीवी आदि को सुरक्षित तरीके से निपटाना आवश्यक है क्योंकि इनमें विषैले रसायन होते हैं। इसकी विधियाँ हैं:

  1. अलग संग्रहण,
  2. रीसाइक्लिंग यूनिट्स को भेजना,
  3. ध्वंस (dismantling) व पुनः उपयोग योग्य भागों को अलग करना,
  4. प्रशिक्षित रीसाइकलर द्वारा उपचार,
  5. संगठित क्षेत्र में निपटान
    अविवेकपूर्ण निपटान से पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को भारी खतरा होता है।

76. वैश्विक तापवृद्धि (Global Warming) से जैव विविधता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
वैश्विक तापवृद्धि से पारिस्थितिक तंत्र असंतुलित हो जाते हैं। तापमान बढ़ने से प्रवाल भित्तियाँ (coral reefs), ध्रुवीय प्रजातियाँ और पर्वतीय वनस्पति संकट में पड़ जाती हैं। अनेक प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर पहुँच जाती हैं, जिससे पारिस्थितिक श्रृंखला टूट जाती है। इससे खाद्य श्रृंखला, परागण, और प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा भी प्रभावित होती है।


77. ‘प्रदूषक भुगतान करेगा’ सिद्धांत क्या है?
यह सिद्धांत कहता है कि जो व्यक्ति, संस्था या उद्योग पर्यावरण को प्रदूषित करता है, उसे उस क्षति की भरपाई करनी होगी। यह सिद्धांत पर्यावरणीय कानूनों की आधारशिला है और इसे सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मामलों में मान्यता दी है। इसका उद्देश्य है– जिम्मेदारी तय करना और प्रदूषण फैलाने वालों को हतोत्साहित करना।


78. ‘सतत विकास’ की अवधारणा क्या है?
सतत विकास वह प्रक्रिया है जिसमें वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति इस प्रकार की जाती है कि भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतें प्रभावित न हों। यह आर्थिक विकास, सामाजिक समानता और पर्यावरणीय संतुलन तीनों को साथ लेकर चलता है। यह अवधारणा पर्यावरणीय नीति निर्माण और योजना निर्धारण की आधारशिला बन चुकी है।


79. खनन गतिविधियों के पर्यावरण पर क्या प्रभाव होते हैं?
खनन से भूमि क्षरण, जल स्रोतों का प्रदूषण, जैव विविधता का ह्रास, वन कटाई और ध्वनि तथा वायु प्रदूषण होता है। इससे स्थानीय समुदायों का विस्थापन, स्वास्थ्य समस्याएँ और पारिस्थितिक असंतुलन उत्पन्न होते हैं। अतः खनन के लिए पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन और सतत खनन तकनीकों का प्रयोग अनिवार्य है।


80. पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में नदियों की भूमिका क्या है?
नदियाँ जलचक्र का मूल अंग हैं। वे पेयजल, सिंचाई, ऊर्जा उत्पादन और जैव विविधता का स्रोत हैं। नदियाँ आर्द्रभूमियों, वन्यजीवों, और पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखती हैं। यदि नदियाँ प्रदूषित या अवरुद्ध होती हैं तो पर्यावरणीय असंतुलन, सूखा, बाढ़ और पारिस्थितिकी को गंभीर हानि हो सकती है। इसलिए नदियों का संरक्षण आवश्यक है।


81. रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या होता है?
रेडियोधर्मी प्रदूषण उन पदार्थों से उत्पन्न होता है जो विकिरण छोड़ते हैं, जैसे यूरेनियम, प्लूटोनियम आदि। ये परमाणु ऊर्जा संयंत्रों, परीक्षणों, और असुरक्षित निपटान से फैलते हैं। इसके प्रभाव से कैंसर, जन्म दोष, जैविक उत्परिवर्तन (mutation) और पर्यावरणीय क्षति होती है। इसके नियंत्रण के लिए रेडिएशन सुरक्षा उपाय, नियंत्रित निपटान और अंतरराष्ट्रीय संधियाँ आवश्यक हैं।


82. पर्यावरणीय न्यायपालिका की भूमिका क्या है?
पर्यावरणीय न्यायपालिका जैसे – राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) या उच्च न्यायालय – पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये न्यायालय उद्योगों पर रोक, पुनर्वास आदेश, मुआवजा निर्धारण, परियोजनाओं की समीक्षा आदि कर सकते हैं। न्यायपालिका ने ‘पर्यावरणीय अधिकार’ को जीवन के अधिकार का हिस्सा मानते हुए कई ऐतिहासिक निर्णय दिए हैं, जिससे पर्यावरणीय शासन को मजबूती मिली है।


83. ‘नीली क्रांति’ और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
नीली क्रांति मत्स्य पालन को बढ़ावा देने की प्रक्रिया है, जिससे मछली उत्पादन और खाद्य सुरक्षा बढ़ती है। लेकिन यदि यह अत्यधिक या असंतुलित तरीके से की जाए तो जल स्रोतों का क्षरण, प्रजातियों की विलुप्ति, और जल पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए सतत मत्स्य पालन नीतियाँ आवश्यक हैं।


84. भूजल दोहन के क्या दुष्परिणाम हैं?
भूजल का अत्यधिक दोहन जल स्तर में गिरावट, कुओं का सूखना, भूमि धंसना, और जल की गुणवत्ता में गिरावट लाता है। इससे पीने और सिंचाई के लिए जल संकट उत्पन्न होता है। समाधान के लिए वर्षा जल संचयन, ड्रिप सिंचाई, और भूजल पुनर्भरण तकनीकों को अपनाना आवश्यक है।


85. पर्यावरण संरक्षण में युवाओं की भूमिका क्या है?
युवा शक्ति जागरूकता, नवाचार, तकनीक और सामूहिक प्रयासों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। वे वृक्षारोपण, कचरा प्रबंधन, जल संरक्षण, और सोशल मीडिया के माध्यम से जनजागरूकता फैलाने जैसे कार्यों में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं। युवाओं को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाकर ही सतत विकास सुनिश्चित किया जा सकता है।


86. भारत में पारिस्थितिकीय संकट के मुख्य कारण क्या हैं?
भारत में पारिस्थितिक संकट के कई कारण हैं, जैसे – अनियंत्रित शहरीकरण, वनों की कटाई, औद्योगिक प्रदूषण, भूजल का अत्यधिक दोहन, प्लास्टिक अपशिष्ट, खनन, और असंतुलित कृषि पद्धतियाँ। इसके अलावा, जनसंख्या वृद्धि और संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग पारिस्थितिकी पर बड़ा खतरा है। इनसे जैव विविधता घट रही है, जलवायु असंतुलन हो रहा है और प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति बढ़ रही है। समाधान के लिए सतत विकास, पर्यावरणीय शिक्षा, कानूनों का कड़ाई से पालन और जन-जागरूकता आवश्यक है।


87. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
इस अधिनियम का उद्देश्य भारत में वन्यजीवों की रक्षा करना और उनके निवास स्थान (वन्यजीव अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान) को संरक्षित करना है। यह अधिनियम पांच अनुसूचियों में जानवरों और पौधों को वर्गीकृत करता है, जिसमें अनुसूची I में शामिल प्रजातियों को पूर्ण सुरक्षा दी जाती है। इसमें अवैध शिकार, व्यापार और कब्जे पर दंड का प्रावधान है। अधिनियम के अंतर्गत वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की स्थापना भी की गई है।


88. वनों की कटाई पर नियंत्रण हेतु क्या उपाय किए गए हैं?
भारत में वनों की कटाई रोकने के लिए विभिन्न उपाय किए गए हैं:

  1. वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980,
  2. राष्ट्रीय वन नीति, 1988,
  3. पुनःवनीकरण योजनाएँ,
  4. CAMPA फंड,
  5. वन अधिकार अधिनियम, 2006 के माध्यम से स्थानीय समुदायों को जिम्मेदारी देना,
  6. NGT और न्यायपालिका द्वारा समय-समय पर दिए गए निर्देश।
    साथ ही, तकनीक के माध्यम से वन क्षेत्र की निगरानी और अवैध कटाई पर कार्यवाही की जा रही है।

89. भारत में जल नीति 2012 के प्रमुख बिंदु क्या हैं?
राष्ट्रीय जल नीति, 2012 का उद्देश्य जल संसाधनों का संरक्षण, न्यायसंगत वितरण, और सतत उपयोग है। इसके प्रमुख बिंदु हैं:

  • जल एक सामाजिक व आर्थिक संसाधन है।
  • जल उपयोग की प्राथमिकता – प्रथम पेयजल, फिर सिंचाई, उद्योग आदि।
  • वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहन।
  • जल निकायों का पुनरुद्धार।
  • प्रदूषण नियंत्रण।
  • जनभागीदारी और विकेंद्रीकरण।
    यह नीति जल संकट को दूर करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में मार्गदर्शक है।

90. पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) का क्या महत्व है?
EIA वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से किसी प्रस्तावित परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों का पूर्व मूल्यांकन किया जाता है। इसका उद्देश्य है– नकारात्मक प्रभावों को पहचानकर उन्हें कम करना, वैकल्पिक समाधानों पर विचार करना, और जन भागीदारी सुनिश्चित करना। यह निर्णय निर्माताओं को पर्यावरण-संवेदनशील विकल्प चुनने में मदद करता है। बिना EIA के परियोजनाएँ पारिस्थितिकीय असंतुलन और स्थानीय विरोध का कारण बन सकती हैं।


91. शहरीकरण का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है?
अनियंत्रित शहरीकरण से वनों की कटाई, भूमि अधिग्रहण, जल स्रोतों पर दबाव, अपशिष्ट वृद्धि, वायु व जल प्रदूषण तथा ताप द्वीप प्रभाव उत्पन्न होता है। यह जैव विविधता को समाप्त करता है और पारिस्थितिक संतुलन को प्रभावित करता है। समाधान के रूप में हरित शहरी नियोजन, सतत परिवहन, अपशिष्ट प्रबंधन और वर्षा जल संचयन को अपनाना आवश्यक है।


92. भारत में पर्यावरणीय अधिकारों की न्यायिक व्याख्या कैसे हुई है?
भारत में न्यायपालिका ने अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के अंतर्गत पर्यावरणीय अधिकारों को समाहित किया है। MC Mehta v. Union of India, Subhash Kumar v. State of Bihar, आदि मामलों में न्यायालय ने कहा कि स्वच्छ वायु और जल में जीना मूल अधिकार है। न्यायपालिका ने कई बार सरकारी उदासीनता पर निर्देश जारी कर पर्यावरण संरक्षण को न्याय का अंग बनाया।


93. ‘जल स्रोतों का पुनर्जीवन’ क्यों आवश्यक है?
परंपरागत जल स्रोत जैसे – तालाब, झील, बावड़ी, कुंए आदि वर्षों से उपेक्षित हैं, जिससे भूजल स्तर गिरा है और जल संकट बढ़ा है। इन स्रोतों का पुनर्जीवन वर्षा जल संचयन, सिंचाई, जैव विविधता संरक्षण और पारिस्थितिकीय संतुलन के लिए आवश्यक है। इससे स्थानीय जल आपूर्ति सुधरती है और सूखा व बाढ़ जैसी आपदाओं से राहत मिलती है।


94. राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) की भूमिका क्या है?
NBA जैव विविधता अधिनियम, 2002 के तहत स्थापित एक वैधानिक संस्था है। इसका कार्य भारत की जैव विविधता का संरक्षण, सतत उपयोग और लाभों का समान वितरण सुनिश्चित करना है। यह विदेशी संस्थाओं को जैव संसाधनों तक पहुँच की अनुमति देता है और उनके उपयोग पर निगरानी रखता है। साथ ही यह स्थानीय जैविक ज्ञान की सुरक्षा करता है।


95. ‘ग्रीन बिल्डिंग’ क्या है?
ग्रीन बिल्डिंग वह भवन होता है जो निर्माण, उपयोग और ध्वस्तीकरण के दौरान पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव डालता है। इसमें ऊर्जा दक्षता, जल संरक्षण, प्राकृतिक प्रकाश व वेंटिलेशन, और पर्यावरण-अनुकूल सामग्री का उपयोग किया जाता है। इससे कार्बन उत्सर्जन कम होता है और संसाधनों की बचत होती है। भारत में GRIHA और LEED प्रमाणन द्वारा ग्रीन बिल्डिंग की मान्यता दी जाती है।


96. जल प्रदूषण अधिनियम, 1974 के अंतर्गत प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की शक्तियाँ क्या हैं?
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को उद्योगों का निरीक्षण, अपशिष्ट नमूने एकत्र करना, जल स्रोतों की निगरानी करना, संयंत्र बंद करने का आदेश देना, प्रदूषण के लिए दंड लगाना आदि अधिकार प्राप्त हैं। बोर्ड जल की गुणवत्ता बनाए रखने और जनस्वास्थ्य की रक्षा हेतु आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर सकता है।


97. ‘पर्यावरणीय जनसुनवाई’ (Public Hearing) क्या है?
EIA प्रक्रिया के अंतर्गत जनसुनवाई वह चरण है जिसमें स्थानीय लोग प्रस्तावित परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों पर अपनी राय रखते हैं। यह पारदर्शिता, भागीदारी और न्याय सुनिश्चित करने का माध्यम है। जनसुनवाई के आधार पर परियोजना को मंजूरी या अस्वीकृति दी जा सकती है। यह लोकतांत्रिक पर्यावरणीय प्रशासन का हिस्सा है।


98. जलवायु परिवर्तन से भारतीय कृषि पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
जलवायु परिवर्तन से वर्षा की अनिश्चितता, सूखा, बाढ़, और कीट-रोगों की बढ़ोतरी हो रही है। इससे फसल की गुणवत्ता, उत्पादन और समय प्रभावित हो रहे हैं। छोटे किसानों को अधिक नुकसान हो रहा है। समाधान के रूप में जल-संरक्षण, सूखा-रोधी बीज, स्मार्ट कृषि तकनीक, और सरकारी सहायता आवश्यक है।


99. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में स्थानीय निकायों की भूमिका क्या है?
स्थानीय निकाय (नगर निगम/पंचायत) अपशिष्ट संग्रह, पृथक्करण, स्थानांतरण, पुनः उपयोग, और निपटान के लिए उत्तरदायी होते हैं। उन्हें नागरिकों को जागरूक करना, नियमों को लागू करना और रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहित करना होता है। उनकी सक्रियता से ही स्वच्छता और पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित होती है।


100. भविष्य में पर्यावरण संरक्षण के लिए क्या रणनीतियाँ अपनानी चाहिए?
भविष्य में पर्यावरण संरक्षण हेतु निम्नलिखित रणनीतियाँ आवश्यक होंगी:

  • स्वच्छ ऊर्जा और हरित तकनीक को बढ़ावा,
  • पर्यावरणीय शिक्षा का प्रचार,
  • जनभागीदारी और स्थानीय संसाधनों की रक्षा,
  • प्रभावी कानून और उनका कड़ाई से पालन,
  • सतत शहरी व ग्रामीण नियोजन,
  • जल, वायु, भूमि और जैव विविधता का संरक्षण।
    इन कदमों से पर्यावरणीय संकट से निपटकर संतुलित भविष्य सुनिश्चित किया जा सकता है।