IndianLawNotes.com

Environmental Law (पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, वायु/जल अधिनियम, NGT) part -1

1. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 का उद्देश्य क्या है?
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत का एक व्यापक कानून है, जिसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना है। यह अधिनियम 1984 के भोपाल गैस त्रासदी के बाद लाया गया था। इसका उद्देश्य वायु, जल और भूमि प्रदूषण को रोकना, पर्यावरणीय मानकों को तय करना और उन गतिविधियों पर नियंत्रण करना है जो पर्यावरण को हानि पहुँचाती हैं। अधिनियम सरकार को विशेष शक्तियाँ प्रदान करता है जैसे कि किसी इकाई को बंद करना, निरीक्षण करना और निर्देश जारी करना। यह अधिनियम ‘पर्यावरण’ को व्यापक रूप में परिभाषित करता है, जिसमें जैविक और अजैविक घटक शामिल होते हैं।


2. जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 का उद्देश्य समझाइए।
जल अधिनियम, 1974 का मुख्य उद्देश्य जल स्रोतों जैसे नदियाँ, झीलें और भूजल को प्रदूषण से बचाना है। इसके अंतर्गत ‘जल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ की स्थापना की गई, जो जल की गुणवत्ता बनाए रखने और प्रदूषण नियंत्रण के उपायों को लागू करने का कार्य करता है। यह अधिनियम उद्योगों को सीवेज या रसायनिक अपशिष्ट जल को सीधे जल स्रोतों में डालने से रोकता है। इसके अंतर्गत किसी भी उद्योग या संस्था को प्रदूषित जल छोड़ने से पहले बोर्ड की अनुमति लेनी होती है। यह अधिनियम जल संसाधनों की रक्षा के लिए एक महत्त्वपूर्ण विधिक साधन है।


3. वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 क्या है?
वायु अधिनियम, 1981 भारत सरकार द्वारा वायु प्रदूषण को रोकने के लिए बनाया गया एक प्रमुख कानून है। इसका उद्देश्य वायु की गुणवत्ता को बनाए रखना और हानिकारक गैसों के उत्सर्जन पर नियंत्रण करना है। यह अधिनियम ‘वायु प्रदूषण’ को ऐसे किसी भी अशुद्ध तत्व के रूप में परिभाषित करता है जो वायु को हानिकारक बना देता है। अधिनियम के अंतर्गत वायु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन किया गया जो उद्योगों, वाहनों आदि द्वारा उत्सर्जन को नियंत्रित करता है। यह अधिनियम स्वच्छ वायु के अधिकार को सुनिश्चित करने का कानूनी आधार देता है।


4. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) क्या है?
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal – NGT) की स्थापना 2010 में की गई थी। इसका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण, वन संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के मामलों में त्वरित न्याय प्रदान करना है। यह एक विशेष न्यायाधिकरण है जो पर्यावरणीय मामलों की सुनवाई करता है। NGT को पर्यावरण से जुड़े अधिनियमों के उल्लंघन की जांच करने, क्षतिपूर्ति निर्धारित करने और पुनर्वास के निर्देश देने की शक्ति प्राप्त है। यह ‘प्रदूषक ही भुगतान करेगा’ और ‘स्थायी विकास’ जैसे सिद्धांतों को मान्यता देता है। इसका गठन पर्यावरणीय न्याय को प्रभावी और शीघ्र बनाने के लिए किया गया था।


5. पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) क्या होता है?
पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से किसी परियोजना के पर्यावरण पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों का पूर्व में आकलन किया जाता है। इसका उद्देश्य परियोजनाओं के निर्माण से पूर्व यह सुनिश्चित करना होता है कि वे पर्यावरणीय मानकों के अनुरूप हों। इसमें वायु, जल, जैव विविधता, जनसंख्या, और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। सरकार द्वारा अधिसूचित कुछ श्रेणियों की परियोजनाओं के लिए EIA रिपोर्ट और जन सुनवाई आवश्यक होती है। यह प्रक्रिया सतत विकास सुनिश्चित करने में सहायक है।


6. सतत विकास (Sustainable Development) का सिद्धांत क्या है?
सतत विकास का अर्थ है ऐसा विकास जो वर्तमान की आवश्यकताओं को पूरा करे बिना भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता किए बिना हो। यह सिद्धांत पर्यावरणीय कानूनों में एक मूलभूत विचार बन चुका है। इसमें आर्थिक विकास, सामाजिक कल्याण और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने पर बल दिया जाता है। भारतीय न्यायपालिका ने विभिन्न निर्णयों में सतत विकास सिद्धांत को मान्यता दी है। यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि परियोजनाएं प्रकृति को नुकसान पहुँचाए बिना आगे बढ़ें।


7. ‘प्रदूषक भुगतान करेगा’ (Polluter Pays Principle) सिद्धांत क्या है?
‘प्रदूषक भुगतान करेगा’ सिद्धांत के अनुसार जो व्यक्ति या संस्था पर्यावरण को प्रदूषित करती है, उसे ही उस प्रदूषण की सफाई व क्षतिपूर्ति का खर्च वहन करना होगा। यह सिद्धांत भारत में NGT और उच्चतम न्यायालय द्वारा अनेक निर्णयों में लागू किया गया है। इसका उद्देश्य पर्यावरणीय हानि के लिए उत्तरदायित्व तय करना और पर्यावरणीय न्याय को बढ़ावा देना है। यह सिद्धांत पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक प्रभावी कानूनी उपाय माना जाता है।


8. ‘एहतियाती सिद्धांत’ (Precautionary Principle) क्या है?
एहतियाती सिद्धांत के अनुसार यदि कोई गतिविधि पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुँचा सकती है, लेकिन उसके प्रभाव के बारे में पूरी वैज्ञानिक निश्चितता नहीं है, तो भी उस गतिविधि को रोका जाना चाहिए। इसका उद्देश्य जोखिम की स्थिति में पहले से सावधानी बरतना है। यह सिद्धांत विशेष रूप से पर्यावरणीय मामलों में नीति निर्माण और निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाता है। भारतीय न्यायपालिका ने भी इसे कई मामलों में मान्यता दी है।


9. वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 का उद्देश्य क्या है?
वन संरक्षण अधिनियम, 1980 का उद्देश्य देश के वनों को अंधाधुंध कटाई से बचाना और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना है। यह अधिनियम राज्य सरकारों को वन भूमि के गैर-वन उपयोग के लिए केंद्र सरकार से पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने का निर्देश देता है। अधिनियम के तहत वनों की रक्षा, वन्य जीवों का संरक्षण और पुनः वनरोपण जैसी गतिविधियों को बढ़ावा दिया गया है। यह अधिनियम स्थायी पर्यावरणीय प्रबंधन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।


10. जैव विविधता अधिनियम, 2002 क्या है?
जैव विविधता अधिनियम, 2002 भारत में जैविक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। इसका उद्देश्य जैव विविधता का संरक्षण, उसका सतत उपयोग और जैविक संसाधनों से प्राप्त लाभों का उचित वितरण सुनिश्चित करना है। इस अधिनियम के तहत ‘राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण’ की स्थापना की गई, जो जैव विविधता से जुड़े कार्यों पर नियंत्रण रखता है। यह अधिनियम स्थानीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा करता है।


11. राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 के मुख्य बिंदु क्या हैं?
राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 का उद्देश्य पर्यावरणीय संरक्षण और सतत विकास के बीच संतुलन स्थापित करना है। इसके प्रमुख तत्वों में प्रदूषण नियंत्रण, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, जलवायु परिवर्तन की रणनीति, जैव विविधता का प्रबंधन, और जनभागीदारी का प्रोत्साहन शामिल है। यह नीति राज्यों और केंद्र सरकारों को पर्यावरणीय योजनाएं बनाने हेतु दिशा-निर्देश प्रदान करती है।


12. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की भूमिका क्या है?
CPCB, पर्यावरण मंत्रालय के अधीन एक वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना 1974 में जल अधिनियम के तहत की गई। यह बोर्ड वायु और जल प्रदूषण की निगरानी करता है, मानक बनाता है, और राज्यों को दिशा-निर्देश देता है। CPCB उद्योगों, नगरपालिका इकाइयों और सरकारों को प्रदूषण नियंत्रण उपायों के लिए सलाह भी देता है। यह पर्यावरणीय डाटा एकत्र कर रिपोर्ट भी जारी करता है।


13. राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की भूमिका क्या है?
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड राज्य स्तर पर वायु और जल अधिनियमों के प्रवर्तन की जिम्मेदारी निभाते हैं। ये बोर्ड स्थानीय उद्योगों को NOC जारी करने, निरीक्षण करने, और प्रदूषण नियंत्रण मानकों को लागू करने का कार्य करते हैं। इनके पास उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने की शक्ति होती है। ये बोर्ड केंद्र से प्राप्त दिशा-निर्देशों के आधार पर अपनी नीति तय करते हैं।


14. पर्यावरणीय संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका क्या है?
भारतीय न्यायपालिका ने पर्यावरण संरक्षण में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों ने अनेक फैसलों में पर्यावरणीय अधिकारों को जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) से जोड़कर देखा है। कोर्ट ने कई मौकों पर सरकार और निजी कंपनियों को प्रदूषण रोकने और हर्जाना देने का आदेश दिया है। न्यायपालिका ने ‘प्रदूषक भुगतान करेगा’, ‘सतत विकास’ जैसे सिद्धांतों को भी कानूनी मान्यता दी है।


15. वनों और पर्यावरण से जुड़े महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय कौन-कौन से हैं?
भारत में कई ऐसे ऐतिहासिक निर्णय हुए हैं जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण को दिशा दी, जैसे:

  • MC Mehta v. Union of India (गंगा प्रदूषण मामला),
  • Vellore Citizens Welfare Forum v. Union of India (सतत विकास सिद्धांत),
  • T.N. Godavarman Thirumulpad v. Union of India (वन संरक्षण),
    इन निर्णयों में न्यायालय ने पर्यावरण के अधिकार को जीवन के अधिकार से जोड़ते हुए सरकार को पर्यावरणीय जिम्मेदारी निभाने के लिए बाध्य किया।

16. पर्यावरणीय अपराध क्या होते हैं?
पर्यावरणीय अपराध वे कार्य हैं जो पर्यावरणीय कानूनों के उल्लंघन के रूप में होते हैं, जैसे– अवैध वनों की कटाई, नदियों में रसायन डालना, प्रतिबंधित जीवों का शिकार करना आदि। ऐसे अपराधों के लिए दंड स्वरूप जुर्माना, कारावास या दोनों हो सकते हैं। पर्यावरणीय अपराधों की निगरानी केंद्रीय व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वन विभाग तथा पुलिस द्वारा की जाती है।


17. पर्यावरण के क्षेत्र में जनभागीदारी का महत्व क्या है?
पर्यावरण संरक्षण में जनभागीदारी अत्यंत आवश्यक है क्योंकि स्थानीय जनता ही संसाधनों की सीधी उपयोगकर्ता होती है। उनकी भागीदारी से जागरूकता फैलती है, नीति निर्माण में पारदर्शिता आती है और पर्यावरणीय निर्णय अधिक प्रभावी होते हैं। अनेक जन आंदोलनों जैसे ‘चिपको आंदोलन’, ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ आदि इसका उदाहरण हैं। कानून भी जन सुनवाई की प्रक्रिया को अनिवार्य बनाता है।


18. पर्यावरणीय मंजूरी (Environmental Clearance) क्या होती है?
पर्यावरणीय मंजूरी एक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत किसी परियोजना को कार्यान्वयन से पहले पर्यावरणीय प्रभावों की जांच की जाती है। यह मंजूरी भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय या राज्य पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण द्वारा दी जाती है। इसके लिए EIA रिपोर्ट और जन सुनवाई आवश्यक होते हैं। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि परियोजना पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित है।


19. जलवायु परिवर्तन का कानून से क्या संबंध है?
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है जिसका समाधान नीति और कानून के माध्यम से किया जा सकता है। भारत में कई नीतियाँ और योजनाएँ जैसे नेशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज (NAPCC), और ऊर्जा संरक्षण अधिनियम लागू की गई हैं। न्यायपालिका और सरकार दोनों कार्बन उत्सर्जन में कमी, अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा, और ग्रीन टेक्नोलॉजी को प्रोत्साहित कर रहे हैं।


20. पर्यावरण शिक्षा का महत्व क्या है?
पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य समाज को पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति जागरूक करना और उसमें उत्तरदायित्व की भावना पैदा करना है। यह शिक्षा विद्यालयों, कॉलेजों तथा जन माध्यमों के माध्यम से दी जाती है। यह बच्चों में प्रकृति प्रेम, संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग और प्रदूषण नियंत्रण की समझ विकसित करती है। यह एक दीर्घकालिक समाधान है पर्यावरणीय संकटों से निपटने के लिए।


21. प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 क्या हैं?
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 भारत सरकार द्वारा अधिसूचित किए गए थे ताकि प्लास्टिक से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को रोका जा सके। इसके अंतर्गत प्लास्टिक अपशिष्ट के संग्रह, पुनर्चक्रण, और निपटान के स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं। यह नियम निर्माता, आयातक और ब्रांड मालिकों को ‘Extended Producer Responsibility’ (EPR) के तहत प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार ठहराता है। एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध और थैली की न्यूनतम मोटाई तय करना इसके मुख्य पहलू हैं।


22. E-Waste (इलेक्ट्रॉनिक कचरा) प्रबंधन नियम, 2016 क्या हैं?
ई-वेस्ट नियम, 2016 का उद्देश्य कंप्यूटर, मोबाइल, टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों से उत्पन्न कचरे के सुरक्षित निपटान को सुनिश्चित करना है। इसमें उत्पादकों को EPR (Extended Producer Responsibility) के अंतर्गत ई-कचरा एकत्र कर पुनः उपयोग करने या सुरक्षित तरीके से नष्ट करने की जिम्मेदारी दी गई है। यह नियम रीसाइक्लर, डीलर और उपभोक्ताओं की भूमिकाओं को भी परिभाषित करता है। पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है।


23. जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत सरकार की प्रमुख योजनाएँ कौन सी हैं?
भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना जलवायु परिवर्तन पर (NAPCC) शुरू की, जिसमें 8 मिशन शामिल हैं जैसे– सौर ऊर्जा मिशन, ऊर्जा दक्षता मिशन, जल मिशन, हरित भारत मिशन आदि। इसके अलावा स्टेट एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज (SAPCC) भी तैयार किए गए हैं। ये योजनाएँ अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा संरक्षण, वन बढ़ाने और जल संसाधन के सतत उपयोग को बढ़ावा देती हैं।


24. पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन करने पर दंड क्या हैं?
पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन करने पर जल अधिनियम, वायु अधिनियम तथा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत दंड का प्रावधान है। इसमें छह साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 15 के तहत जुर्माना ₹1 लाख तक हो सकता है और अपराध जारी रहने पर ₹5,000 प्रतिदिन अतिरिक्त जुर्माना लगाया जा सकता है। यह दंड उद्योगों, व्यक्तियों तथा सरकारी अधिकारियों पर भी लागू होते हैं।


25. पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन में जनसुनवाई की भूमिका क्या है?
पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) में जनसुनवाई एक आवश्यक प्रक्रिया है जिसमें स्थानीय लोगों को प्रस्तावित परियोजना के बारे में जानकारी दी जाती है और उनकी आपत्तियाँ और सुझाव सुने जाते हैं। यह पारदर्शिता और जनभागीदारी सुनिश्चित करती है। जनसुनवाई से यह तय होता है कि परियोजना स्थानीय पर्यावरण, संसाधनों और जनजीवन पर क्या प्रभाव डालेगी। इससे निर्णय प्रक्रिया अधिक लोकतांत्रिक और उत्तरदायी बनती है।


26. राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 का उद्देश्य पर्यावरणीय मामलों में त्वरित और प्रभावी न्याय प्रदान करना है। इस अधिनियम के तहत NGT की स्थापना की गई जो पर्यावरण संरक्षण, वन, जैव विविधता और प्रदूषण नियंत्रण संबंधी कानूनों से जुड़े मामलों की सुनवाई करता है। अधिकरण को पर्यावरणीय क्षति के लिए हर्जाना देने, पुनर्वास के निर्देश देने और परियोजनाओं को रोकने का अधिकार है। यह ‘प्रदूषक भुगतान करेगा’ और ‘सतत विकास’ जैसे सिद्धांतों पर आधारित है। NGT का निर्णय अंतिम होता है, हालांकि उसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।


27. ग्रीन ट्रिब्यूनल और सामान्य न्यायालयों में क्या अंतर है?
ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) केवल पर्यावरणीय मामलों की सुनवाई करता है जबकि सामान्य न्यायालय सभी प्रकार के दीवानी व फौजदारी मामलों की सुनवाई करते हैं। NGT का गठन विशेष अधिनियम के तहत हुआ है और इसके सदस्य पर्यावरणीय विशेषज्ञ तथा न्यायाधीश होते हैं। यह समयबद्ध निर्णय देता है और इसकी प्रक्रिया सरल एवं कम खर्चीली होती है। दूसरी ओर, सामान्य अदालतों में पर्यावरणीय मामलों में अक्सर विलंब होता है और विशेषज्ञता की कमी भी देखी जाती है।


28. पर्यावरणीय न्याय का अर्थ क्या है?
पर्यावरणीय न्याय का अर्थ है – प्रत्येक नागरिक को स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण में जीने का अधिकार देना और यह सुनिश्चित करना कि पर्यावरणीय संसाधनों का उपयोग सभी वर्गों को समान रूप से प्राप्त हो। यह न्याय समाज के हाशिए पर खड़े लोगों को पर्यावरणीय नुकसान से बचाने और उनके अधिकारों की रक्षा करने का कार्य करता है। इसमें प्रदूषकों पर दंड, पुनर्वास, और प्रभावितों को मुआवजा देना शामिल होता है।


29. ‘जैविक विविधता’ का क्या महत्व है?
जैविक विविधता पृथ्वी पर पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीवों, पौधों और सूक्ष्म जीवों की विविधता को दर्शाती है। यह पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने, खाद्य श्रृंखला को बनाए रखने, औषधीय उपयोग, और जलवायु नियंत्रित करने में सहायक होती है। जैव विविधता के संरक्षण से मानव जीवन की गुणवत्ता और अस्तित्व सुनिश्चित होता है। भारत जैव विविधता के मामले में विश्व के समृद्ध देशों में से एक है, अतः इसका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।


30. ‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986’ में सरकार को कौन-कौन सी शक्तियाँ प्राप्त हैं?
इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार को अत्यधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं, जैसे –

  1. पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाए रखने हेतु मानक तय करना,
  2. प्रदूषणकारी उद्योगों को बंद करने का निर्देश देना,
  3. निरीक्षण, नमूना एकत्र करना व परीक्षण करना,
  4. नियम बनाना,
  5. दोषी पर दंड लगाना।
    सरकार किसी व्यक्ति या संस्था को पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने से रोक सकती है और आवश्यक आदेश जारी कर सकती है।

31. ‘वायु प्रदूषण’ के मुख्य स्रोत कौन से हैं?
वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोतों में वाहनों से निकलने वाला धुआं, औद्योगिक गैसें, कोयले और लकड़ी के जलने से उत्पन्न धुआं, कचरा जलाना, निर्माण कार्य, तथा कृषि अपशिष्ट जलाना शामिल हैं। इन स्रोतों से वायु में कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड्स और पार्टिकुलेट मैटर जैसी विषैली गैसें मिलती हैं। वायु प्रदूषण से अस्थमा, फेफड़ों की बीमारियाँ, और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।


32. जल प्रदूषण के क्या दुष्परिणाम होते हैं?
जल प्रदूषण से मानव स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र, और आर्थिक संसाधनों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। यह दूषित जल पीने से जलजनित रोग जैसे – हैजा, टायफाइड, डायरिया आदि फैलते हैं। जल प्रदूषण से जलचरों की मृत्यु होती है और जैव विविधता को नुकसान पहुँचता है। कृषि और मत्स्य उद्योग भी इससे प्रभावित होते हैं। यह जल संकट को भी बढ़ावा देता है, जिससे जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है।


33. जैव विविधता अधिनियम, 2002 के अंतर्गत ‘लाभों का साझा करने’ की व्यवस्था क्या है?
इस अधिनियम के अंतर्गत यदि कोई कंपनी या संस्था स्थानीय जैविक संसाधनों या पारंपरिक ज्ञान का उपयोग कर लाभ प्राप्त करती है, तो वह लाभ का हिस्सा स्थानीय समुदाय या जैव विविधता प्राधिकरण के साथ साझा करने के लिए बाध्य होती है। इसे Benefit Sharing Mechanism कहा जाता है। इसका उद्देश्य स्थानीय लोगों को उनके पारंपरिक ज्ञान के बदले न्यायसंगत मुआवजा देना है और जैव विविधता की रक्षा को प्रोत्साहन देना है।


34. ‘सौर ऊर्जा मिशन’ क्या है और इसका पर्यावरण से क्या संबंध है?
‘राष्ट्रीय सौर मिशन’ भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है जिसका उद्देश्य सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाना है। यह मिशन 2022 तक 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखता है। सौर ऊर्जा एक स्वच्छ, नवीकरणीय और पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा स्रोत है जो कोयले और पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करता है। इससे वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आती है।


35. ‘हरित भारत मिशन’ (Green India Mission) क्या है?
हरित भारत मिशन, राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC) के अंतर्गत एक मिशन है, जिसका उद्देश्य वनों का विस्तार करना, पारिस्थितिक तंत्र को बहाल करना, और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना है। इसका लक्ष्य लाखों हेक्टेयर भूमि पर वृक्षारोपण करना और जैव विविधता को बढ़ावा देना है। यह मिशन ग्रामीण आजीविका सुधार, जल स्रोतों के संरक्षण और वन-आधारित समुदायों के सशक्तिकरण को भी प्राथमिकता देता है।


36. जल संरक्षण की आवश्यकता क्यों है?
जल पृथ्वी पर जीवन का मूल स्रोत है। जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, औद्योगीकरण और कृषि के अत्यधिक उपयोग ने जल संकट को बढ़ा दिया है। जल संरक्षण आवश्यक है ताकि पीने, सिंचाई, उद्योग, और पारिस्थितिकी के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध रहे। जल की बर्बादी और जल स्रोतों का प्रदूषण आने वाली पीढ़ियों को गंभीर संकट में डाल सकता है। वर्षा जल संचयन, रिसाइक्लिंग, और जागरूकता जैसे उपाय जल संरक्षण के महत्वपूर्ण साधन हैं।


37. ‘कार्बन क्रेडिट’ क्या होता है?
कार्बन क्रेडिट एक व्यापारिक प्रणाली है जिसके तहत कंपनियाँ या देश अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की सीमा निर्धारित करते हैं। यदि कोई संस्था निर्धारित मात्रा से कम उत्सर्जन करती है तो उसे अतिरिक्त “क्रेडिट” मिलता है जिसे वह अधिक उत्सर्जन करने वाली संस्था को बेच सकती है। यह व्यवस्था जलवायु परिवर्तन से लड़ने और स्वच्छ तकनीक को बढ़ावा देने के लिए विकसित की गई है। भारत जैसे देश इस प्रणाली के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय बाजार में व्यापार कर सकते हैं।


38. प्लास्टिक प्रदूषण का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है?
प्लास्टिक प्रदूषण भूमि, जल और समुद्री जीवन के लिए अत्यंत हानिकारक है। प्लास्टिक अपघटनीय नहीं होता, जिससे यह वर्षों तक पर्यावरण में बना रहता है। यह मिट्टी की उर्वरता घटाता है, जल स्रोतों को अवरुद्ध करता है और समुद्री जीवों द्वारा निगल लिए जाने पर उनकी मृत्यु का कारण बनता है। सूक्ष्म प्लास्टिक मानव शरीर में भी पहुंचकर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करता है। इसका समाधान पुनर्चक्रण, एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध और जागरूकता से ही संभव है।


39. वनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है?
वन जलवायु नियंत्रण, वर्षा संतुलन, जैव विविधता की रक्षा, और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर वायु को शुद्ध करते हैं और कई जीवों का आवास भी हैं। वनों की कटाई से भूमि कटाव, सूखा, जैव विविधता का ह्रास और पर्यावरणीय आपदाएँ बढ़ती हैं। अतः वनों का संरक्षण सतत विकास और भावी पीढ़ियों के लिए आवश्यक है।


40. ग्रीन हाउस प्रभाव (Greenhouse Effect) क्या है?
ग्रीन हाउस प्रभाव वह प्रक्रिया है जिसमें पृथ्वी की सतह से उत्सर्जित ऊष्मा कुछ गैसों (जैसे– कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड) द्वारा अवशोषित हो जाती है और वातावरण गर्म हो जाता है। यह प्रभाव प्राकृतिक रूप से पृथ्वी को रहने योग्य बनाए रखता है, लेकिन मानवीय गतिविधियों के कारण गैसों की मात्रा बढ़ने से यह प्रभाव अधिक हो गया है जिससे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है। इससे हिमखंड पिघलते हैं, समुद्र का स्तर बढ़ता है और जलवायु परिवर्तन होता है।


41. ‘ओजोन परत’ क्या है और उसका संरक्षण क्यों आवश्यक है?
ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल की ऊपरी परत में पाई जाती है, जो सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से जीवन की रक्षा करती है। क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) जैसे रसायनों के कारण ओजोन परत में छिद्र हो गए हैं, जिससे त्वचा कैंसर, आंखों की बीमारियाँ, और पारिस्थितिकीय असंतुलन हो सकता है। ओजोन परत का संरक्षण वैश्विक जीवन सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है, जिसके लिए ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौते किए गए हैं।


42. ‘विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन’ का क्या महत्व है?
विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन का तात्पर्य है – कचरे को उत्पत्ति के स्थान पर ही छांटना, संसाधित करना और निस्तारित करना। इससे अपशिष्ट की मात्रा घटती है, पुनर्चक्रण संभव होता है और लैंडफिल पर दबाव कम पड़ता है। यह प्रणाली स्थानीय निकायों, सामुदायिक समूहों और नागरिकों की भागीदारी से संभव होती है। इससे पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता और जनस्वास्थ्य बेहतर होता है।


43. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 क्या हैं?
इन नियमों के अंतर्गत शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पन्न ठोस कचरे के संग्रह, छँटाई, भंडारण, परिवहन, और निस्तारण के स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं। यह हर नागरिक, हाउसिंग सोसाइटी, दुकानदार, नगर निगम और रीसाइक्लिंग एजेंसियों पर समान जिम्मेदारी तय करता है। बायोडिग्रेडेबल और नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरे की अलग-अलग प्रक्रिया निर्धारित की गई है। इसका उद्देश्य स्वच्छता, संसाधनों का पुनः उपयोग और पर्यावरणीय खतरे कम करना है।


44. ‘एन्वायरनमेंट इम्पैक्ट एसेसमेंट नोटिफिकेशन 2006’ क्या है?
EIA नोटिफिकेशन 2006 पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी किया गया एक कानूनी प्रावधान है, जिसके तहत कुछ विशिष्ट परियोजनाओं को कार्यान्वयन से पहले पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन करना और उसकी अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य है। यह नोटिफिकेशन परियोजनाओं को श्रेणियों में बाँटता है और जनसुनवाई, विशेषज्ञ समिति की समीक्षा तथा मंजूरी की प्रक्रिया निर्धारित करता है। इसका उद्देश्य है– पर्यावरणीय हानि को रोकना और सतत विकास सुनिश्चित करना।


45. पर्यावरणीय कानूनों को लागू करने में नागरिकों की भूमिका क्या है?
नागरिक पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे कचरे का सही प्रबंधन, वृक्षारोपण, जल-संरक्षण, प्लास्टिक का उपयोग कम करना जैसे छोटे-छोटे कदमों से बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं। जनसुनवाई में भाग लेकर वे परियोजनाओं पर अपनी राय दे सकते हैं। साथ ही, यदि कोई संस्था या व्यक्ति पर्यावरण का उल्लंघन करता है तो नागरिक NGT या न्यायालय में शिकायत कर सकते हैं। नागरिकों की जागरूकता और भागीदारी से ही पर्यावरणीय कानून प्रभावी बन सकते हैं।


46. भूमिगत जल प्रदूषण के कारण और समाधान बताइए।
भूमिगत जल प्रदूषण मुख्यतः रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, औद्योगिक अपशिष्टों, सीवेज और ठोस कचरे के अवैज्ञानिक निपटान से होता है। इससे भूजल की गुणवत्ता प्रभावित होती है और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है। समाधान के रूप में जैविक खेती, उचित अपशिष्ट प्रबंधन, वर्षा जल संचयन, और प्रदूषकों के उपयोग पर नियंत्रण आवश्यक है। सरकार और नागरिक दोनों को मिलकर जल स्रोतों की रक्षा करनी चाहिए।


47. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव क्या हैं?
जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि, मौसम की चरम स्थितियाँ (सूखा, बाढ़, चक्रवात), हिमखंडों का पिघलना, समुद्र के स्तर में वृद्धि, और कृषि उत्पादकता में गिरावट देखी जा रही है। यह जैव विविधता को भी प्रभावित करता है और मानव स्वास्थ्य को खतरे में डालता है। जलवायु परिवर्तन सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को भी बढ़ा सकता है, इसलिए इसका समाधान अति आवश्यक है।


48. ‘इको-सेंसिटिव जोन’ (Eco-sensitive Zones) क्या हैं?
इको-सेंसिटिव जोन वे क्षेत्र होते हैं जो राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभ्यारण्यों या जैव विविधता के विशेष क्षेत्रों के आसपास स्थित होते हैं। सरकार द्वारा इन्हें घोषित किया जाता है ताकि इन क्षेत्रों में विकास कार्यों पर नियंत्रण रखा जा सके और प्राकृतिक पारिस्थितिकी की रक्षा हो सके। इन क्षेत्रों में उद्योग, खनन, भारी निर्माण आदि प्रतिबंधित या सीमित होते हैं। ये क्षेत्र पारिस्थितिकीय सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करते हैं।


49. भारत में पर्यावरणीय NGOs की भूमिका क्या है?
भारत में पर्यावरणीय NGOs जैसे – CSE, TERI, Greenpeace India, WWF India आदि पर्यावरण संरक्षण, जागरूकता, नीति सुधार, शोध और जनहित याचिकाओं के माध्यम से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये संगठन सरकार पर दबाव बनाकर नीतिगत बदलाव करते हैं, और नागरिकों को पर्यावरणीय अधिकारों के प्रति जागरूक करते हैं। इन्होंने जल, वायु, वन, जैव विविधता, और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में सराहनीय योगदान दिया है।


50. ‘संविधान में पर्यावरण संरक्षण’ का क्या स्थान है?
भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण को मूल कर्तव्य (अनुच्छेद 51A(g)) और राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों (अनुच्छेद 48A) के रूप में शामिल किया गया है। इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 21 – जीवन का अधिकार – के अंतर्गत न्यायपालिका ने स्वच्छ पर्यावरण में जीने के अधिकार को मान्यता दी है। संविधान की ये व्यवस्थाएँ सरकार और नागरिक दोनों पर पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी डालती हैं।