51. पर्यावरण नीति का उद्देश्य क्या होता है?
पर्यावरण नीति किसी देश की वह कार्यनीति होती है, जिसका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग, प्रदूषण नियंत्रण, जैव विविधता का संरक्षण, और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखना होता है। भारत में राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2006 को लागू किया गया, जिसका प्रमुख उद्देश्य पारिस्थितिकी, स्वास्थ्य, और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाना है। यह नीति सभी मंत्रालयों, विभागों, और राज्य सरकारों को पर्यावरणीय विचारों को अपने निर्णयों में शामिल करने के लिए प्रेरित करती है।
52. वनों का क्षरण (Deforestation) क्यों एक गंभीर समस्या है?
वनों का क्षरण यानी वनों की अंधाधुंध कटाई जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि, और प्राकृतिक असंतुलन का प्रमुख कारण बनता है। इससे कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग को बल मिलता है। वन्य जीवों का आवास नष्ट होता है, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ता है। मृदा अपरदन, वर्षा में कमी, और सूखा जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। वनों की रक्षा के लिए सख्त कानूनी उपाय और सामुदायिक भागीदारी आवश्यक है।
53. पर्यावरण प्रबंधन का क्या अर्थ है?
पर्यावरण प्रबंधन एक वैज्ञानिक और नीति-आधारित प्रक्रिया है जिसमें प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण, और सतत विकास के लिए नियोजन, कार्यान्वयन, और मूल्यांकन किया जाता है। इसमें विभिन्न संस्थाएं जैसे – सरकार, उद्योग, स्थानीय निकाय, और समुदाय मिलकर कार्य करते हैं। यह एक निरंतर प्रक्रिया है जिसमें पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन और निवारक उपाय शामिल होते हैं। इसका उद्देश्य पारिस्थितिकी और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाना है।
54. जैव विविधता हॉटस्पॉट क्या होते हैं?
जैव विविधता हॉटस्पॉट वे क्षेत्र होते हैं जहाँ जैविक प्रजातियों की अत्यधिक विविधता होती है, लेकिन वे खतरे में होती हैं। ये क्षेत्र पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। भारत में चार प्रमुख हॉटस्पॉट हैं – हिमालय क्षेत्र, पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत, और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह। इन क्षेत्रों की रक्षा के लिए विशेष संरक्षण उपाय अपनाए जाते हैं, क्योंकि यहाँ पाई जाने वाली अनेक प्रजातियाँ स्थानिक (endemic) होती हैं।
55. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की विशेषताएँ बताइए।
यह अधिनियम एक समग्र और व्यापक कानून है जिसे भोपाल गैस त्रासदी के बाद पारित किया गया था। इसकी विशेषताएँ हैं –
- केंद्र सरकार को व्यापक अधिकार प्राप्त हैं।
- प्रदूषणकारी इकाइयों पर जुर्माना और दंड का प्रावधान है।
- खतरनाक पदार्थों की प्रक्रिया और निपटान को नियंत्रित करता है।
- पर्यावरण की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए मानक निर्धारित करता है।
- केंद्रीय पर्यावरण प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान है।
यह अधिनियम “अंब्रेला एक्ट” के रूप में कार्य करता है।
56. पारिस्थितिक साक्षरता (Ecological Literacy) क्या है?
पारिस्थितिक साक्षरता का अर्थ है – पर्यावरणीय मुद्दों को समझना, पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यप्रणाली को जानना, और प्राकृतिक संसाधनों के प्रति जागरूक होना। यह एक ऐसा ज्ञान है जो नागरिकों को सतत विकास, संरक्षण और हरित जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करता है। स्कूलों, कॉलेजों, और समाज में इसके प्रचार-प्रसार से पर्यावरणीय जिम्मेदारी का विकास होता है।
57. पर्यावरणीय न्याय का सामाजिक आयाम क्या है?
पर्यावरणीय न्याय का सामाजिक आयाम यह सुनिश्चित करता है कि पर्यावरणीय लाभ और हानि समाज के सभी वर्गों में समान रूप से वितरित हों। विशेषकर गरीब, आदिवासी और हाशिये पर खड़े समुदायों को पर्यावरणीय निर्णयों में भागीदारी मिलनी चाहिए। अक्सर यही वर्ग पर्यावरणीय विनाश का सबसे अधिक प्रभाव झेलते हैं, परंतु उनकी आवाज सबसे कम सुनी जाती है। सामाजिक न्याय और पर्यावरणीय न्याय को साथ लेकर चलना ही समावेशी विकास है।
58. प्रदूषक भुगतान सिद्धांत (Polluter Pays Principle) पर एक उदाहरण दीजिए।
Vellore Citizens Welfare Forum बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘Polluter Pays Principle’ को लागू करते हुए कहा कि जो उद्योग पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है, उसे उसकी सफाई और हानि के मुआवजे का भुगतान करना होगा। तनी उद्योगों द्वारा भूजल को प्रदूषित करने पर उन्हें जुर्माना और प्रभावित लोगों को मुआवजा देने का निर्देश दिया गया। यह सिद्धांत उत्तरदायित्व आधारित पर्यावरणीय न्याय को स्थापित करता है।
59. ओजोन परत संरक्षण अधिनियम क्या है?
भारत में ओजोन परत की रक्षा हेतु ओजोन-क्षरणकारी पदार्थ (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 लागू किए गए हैं। ये नियम मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के अनुरूप बनाए गए हैं। इसके अंतर्गत CFCs, HFCs जैसे रसायनों के उत्पादन और उपयोग को चरणबद्ध ढंग से समाप्त करने के दिशा-निर्देश दिए गए हैं। यह अधिनियम रेफ्रिजरेशन, एरोसोल, और अग्निशमन उत्पादों में प्रयुक्त रसायनों को नियंत्रित करता है।
60. कार्बन सिंक (Carbon Sink) क्या होता है?
कार्बन सिंक वे प्राकृतिक या कृत्रिम प्रणाली होते हैं जो वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर लेते हैं। जैसे – वन, महासागर, आर्द्रभूमियाँ आदि। ये ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं। कार्बन सिंक जलवायु परिवर्तन को धीमा करने के लिए आवश्यक हैं। वृक्षारोपण, समुद्री पारिस्थितिकी की रक्षा आदि इसके संवर्धन के उपाय हैं।
61. नदी जोड़ परियोजना (River Linking Project) का पर्यावरणीय मूल्यांकन करें।
भारत में जल असंतुलन को दूर करने के लिए नदी जोड़ परियोजना प्रस्तावित की गई है, जिसमें बाढ़ग्रस्त और सूखाग्रस्त क्षेत्रों को जोड़ने की योजना है। हालाँकि, इसका पर्यावरणीय प्रभाव गंभीर हो सकता है – जैसे जैव विविधता की हानि, वन कटाव, प्रवासी जीवों पर असर, और विस्थापन की समस्या। इसलिए इस योजना के कार्यान्वयन से पूर्व विस्तृत पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) और जन सहभागिता आवश्यक है।
62. बायोमेडिकल वेस्ट (Bio-medical Waste) प्रबंधन नियम क्या हैं?
भारत में Bio-medical Waste Management Rules, 2016 लागू हैं, जिनका उद्देश्य अस्पतालों, क्लीनिकों और लैब्स से उत्पन्न जैविक अपशिष्ट का सुरक्षित निपटान है। यह नियम अपशिष्ट को चार श्रेणियों में बाँटता है और हर श्रेणी के लिए निपटान का तरीका निर्धारित करता है। अपशिष्ट जलाना, गड्ढे में दबाना, रासायनिक उपचार आदि इसके प्रमुख तरीके हैं। नियमों के उल्लंघन पर सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
63. पर्यावरण संरक्षण में छात्रों की भूमिका क्या हो सकती है?
छात्र समाज का जागरूक वर्ग होते हैं। वे पर्यावरणीय शिक्षा, वृक्षारोपण, कचरा प्रबंधन, जल संरक्षण, ऊर्जा बचत, और जन जागरूकता अभियानों में भाग लेकर पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभा सकते हैं। स्कूल और कॉलेज स्तर पर ‘ईको क्लब’, निबंध प्रतियोगिता, और सफाई अभियान जैसे कार्यक्रमों से छात्रों में हरित संस्कृति का विकास होता है।
64. अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणीय संगठनों की भूमिका क्या है?
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), IPCC, WWF, Greenpeace जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन वैश्विक पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये संगठन जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, प्रदूषण, सतत विकास आदि मुद्दों पर शोध, नीति निर्माण, और सहयोगी कार्य करते हैं। ये पर्यावरणीय समझौतों (जैसे – पेरिस समझौता, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल) को लागू करने में सहायता करते हैं।
65. पर्यावरण संरक्षण के लिए आधुनिक तकनीकों की भूमिका क्या है?
आधुनिक तकनीक जैसे – GIS (Geographical Information System), रिमोट सेंसिंग, ड्रोन निगरानी, स्मार्ट कचरा प्रबंधन, हरित भवन निर्माण, और नवीकरणीय ऊर्जा – पर्यावरण संरक्षण को अधिक प्रभावी और कुशल बनाती हैं। इन तकनीकों से पर्यावरणीय डेटा का विश्लेषण, प्रदूषण की निगरानी, और संसाधनों का सतत प्रबंधन किया जा सकता है। तकनीक का उपयोग यदि जिम्मेदारी से किया जाए तो यह भविष्य की पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने में सहायक सिद्ध होगा।
66. ई-वेस्ट का पर्यावरण पर प्रभाव क्या है?
ई-वेस्ट यानी इलेक्ट्रॉनिक कचरा, जैसे– मोबाइल, कंप्यूटर, बैटरी आदि का अनुचित निपटान पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा है। इसमें सीसा, पारा, कैडमियम जैसे विषैले पदार्थ होते हैं जो मिट्टी और जल स्रोतों को प्रदूषित करते हैं। इससे न केवल पारिस्थितिकी को नुकसान होता है बल्कि यह मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक है। ई-वेस्ट का सुरक्षित पुनर्चक्रण और EPR (Extended Producer Responsibility) का पालन आवश्यक है।
67. वन्य जीवों के संरक्षण में बायोस्फीयर रिज़र्व की भूमिका क्या है?
बायोस्फीयर रिज़र्व ऐसे क्षेत्र होते हैं जो जैव विविधता की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। ये तीन क्षेत्रों में विभाजित होते हैं – कोर (मुख्य), बफर और ट्रांज़िशन क्षेत्र। कोर क्षेत्र में कोई मानव हस्तक्षेप नहीं होता। इनका उद्देश्य मानव और प्रकृति के बीच संतुलन स्थापित करना, अनुसंधान और पारिस्थितिक अध्ययन को बढ़ावा देना है। भारत में सुंदरबन, नंदा देवी, नीलगिरि जैसे प्रमुख बायोस्फीयर रिज़र्व हैं।
68. जल निकायों के प्रदूषण के कारण क्या हैं?
भारत में जल स्रोतों के प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं – घरेलू अपशिष्ट, औद्योगिक रसायन, सीवेज का नदी में प्रवाह, कृषि रसायनों का बहाव, प्लास्टिक कचरा, और धार्मिक क्रियाओं में प्रयुक्त सामग्री का जल निकायों में विसर्जन। इससे जलीय जीवों की मृत्यु, पेयजल संकट, और जलजनित बीमारियाँ बढ़ती हैं। जल संरक्षण कानूनों का सख्ती से पालन और जन भागीदारी आवश्यक है।
69. वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 की विशेषताएँ क्या हैं?
यह अधिनियम वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु बनाया गया था। इसके अंतर्गत केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की गई। यह अधिनियम उद्योगों, वाहनों और अन्य स्रोतों से निकलने वाले वायु प्रदूषकों के लिए मानक निर्धारित करता है। इसमें ‘प्रदूषित क्षेत्र’ घोषित करने और अनापत्ति प्रमाण पत्र की व्यवस्था है। उल्लंघन पर दंड और बंदी की सजा का प्रावधान है।
70. पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) क्या है?
EIA एक वैज्ञानिक और कानूनी प्रक्रिया है जिससे किसी परियोजना (जैसे– डैम, उद्योग) के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन किया जाता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि परियोजना शुरू करने से पहले उसके संभावित नकारात्मक प्रभावों को पहचाना जाए और उन्हें कम करने के उपाय किए जाएँ। यह सतत विकास की दिशा में महत्वपूर्ण उपकरण है।
71. जल संरक्षण में पारंपरिक तरीकों की भूमिका क्या है?
भारत में कई पारंपरिक जल संरक्षण तकनीकें रही हैं जैसे – राजस्थान में जोहड़, महाराष्ट्र में बांधारा, कर्नाटक में करेस, हिमालयी क्षेत्रों में गूल। ये तकनीकें वर्षा जल को संग्रहित कर कृषि और पेयजल के लिए उपयोग करती हैं। ये कम लागत वाली, स्थानीय और टिकाऊ विधियाँ हैं। इन्हें पुनर्जीवित कर आधुनिक प्रणालियों के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
72. भारत में शहरी कचरा प्रबंधन की स्थिति क्या है?
भारत के शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन लाखों टन कचरा उत्पन्न होता है। अधिकांश कचरा बिना छंटाई के खुले में फेंका जाता है जिससे पर्यावरणीय संकट उत्पन्न होता है। कचरे का पुनर्चक्रण, कंपोस्टिंग, और ऊर्जा उत्पादन जैसे विकल्प सीमित हैं। ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के तहत कचरा प्रबंधन पर जोर दिया गया है, परंतु तकनीकी, प्रशासनिक और जनभागीदारी की कमी अब भी चुनौती है।
73. मानवाधिकार और पर्यावरण का क्या संबंध है?
स्वस्थ पर्यावरण में जीने का अधिकार मानव का मूलभूत अधिकार है जो संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है। यदि पर्यावरण प्रदूषित है तो जीवन का अधिकार भी खतरे में होता है। इसलिए पर्यावरण संरक्षण को मानवाधिकार संरक्षण का हिस्सा माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में पर्यावरण और मानवाधिकारों के बीच गहरे संबंध को स्वीकार किया है।
74. फ्लाई ऐश (Fly Ash) का पर्यावरणीय प्रभाव क्या है?
फ्लाई ऐश थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाला एक उपोत्पाद है। इसमें विषैले तत्व होते हैं जो हवा, जल और भूमि को प्रदूषित कर सकते हैं। यह मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है और इससे त्वचा रोग, श्वसन संबंधी बीमारियाँ हो सकती हैं। फ्लाई ऐश का उपयोग सीमेंट निर्माण, ईंट निर्माण, सड़क निर्माण में कर इसे पुनःप्रयोग किया जा सकता है।
75. सतत विकास का क्या अर्थ है?
सतत विकास का अर्थ है – ऐसा विकास जो वर्तमान की आवश्यकताओं को इस तरह पूरा करे कि भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतें प्रभावित न हों। इसमें पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय तीनों का संतुलन होता है। सतत विकास प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग, नवीकरणीय ऊर्जा का प्रोत्साहन, और प्रदूषण नियंत्रण को बढ़ावा देता है।
76. पर्यावरणीय शिक्षा क्यों आवश्यक है?
पर्यावरणीय शिक्षा से व्यक्ति में प्रकृति के प्रति जागरूकता, जिम्मेदारी और संरक्षण की भावना उत्पन्न होती है। यह छात्रों को सिखाती है कि कैसे प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करें, प्रदूषण से बचाव करें, और सतत जीवनशैली अपनाएं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी पर्यावरणीय शिक्षा को अनिवार्य बनाया गया है।
77. भारत में पर्यावरण से संबंधित प्रमुख आंदोलन कौन-कौन से हैं?
भारत में पर्यावरण की रक्षा हेतु कई जन आंदोलन हुए, जैसे:
- चिपको आंदोलन – वृक्षों की रक्षा हेतु (उत्तराखंड)।
- नर्मदा बचाओ आंदोलन – विस्थापन और डूब क्षेत्र के खिलाफ।
- साइलेंट वैली आंदोलन – केरल की जैव विविधता की रक्षा।
- अपिको आंदोलन – कर्नाटक में वनों की रक्षा।
इन आंदोलनों ने पर्यावरण के मुद्दों को राष्ट्रीय बहस का हिस्सा बनाया।
78. पर्यावरणीय कानूनों के उल्लंघन पर दंड क्या है?
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत उल्लंघन करने वालों पर ₹1 लाख तक जुर्माना और/या 5 साल तक की सजा हो सकती है। जल और वायु अधिनियमों के तहत भी सजा और जुर्माना का प्रावधान है। न्यायालय विशेष मामलों में पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा भी तय कर सकता है।
79. पर्यावरणीय न्यायालयों की आवश्यकता क्यों है?
पर्यावरणीय मामलों में तकनीकी और वैज्ञानिक पहलुओं को समझना आवश्यक होता है, जो सामान्य न्यायालयों के लिए कठिन हो सकता है। इसके लिए विशेष न्यायाधिकरण जैसे राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की आवश्यकता है जो विशेषज्ञता और शीघ्र न्याय सुनिश्चित करता है। यह आम जनता को भी पर्यावरणीय मुद्दों पर न्याय प्राप्त करने का अवसर देता है।
80. पेरिस समझौता (2015) के प्रमुख बिंदु क्या हैं?
पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु एक अंतरराष्ट्रीय संधि है। इसके प्रमुख बिंदु हैं –
- वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे और 1.5°C तक सीमित रखना।
- सभी देशों को GHG उत्सर्जन घटाने का लक्ष्य देना।
- विकासशील देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता देना।
- हर 5 वर्षों में प्रगति की समीक्षा करना।
यह समझौता भारत सहित 190 से अधिक देशों द्वारा स्वीकार किया गया है।
81. स्टॉकहोम सम्मेलन, 1972 का महत्व क्या है?
स्टॉकहोम सम्मेलन पहला वैश्विक पर्यावरण सम्मेलन था जिसका उद्देश्य पर्यावरणीय समस्याओं पर अंतरराष्ट्रीय सहमति बनाना था। इसके बाद UNEP (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम) की स्थापना हुई। इस सम्मेलन ने यह स्वीकार किया कि पर्यावरण एक वैश्विक चिंता है और इसके संरक्षण के लिए सभी देशों को प्रयास करना चाहिए।
82. बायोडिग्रेडेबल और नॉन-बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट में अंतर स्पष्ट करें।
बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट वे होते हैं जो प्राकृतिक रूप से सड़कर मिट्टी में मिल जाते हैं, जैसे– पत्ते, भोजन, कागज आदि।
नॉन-बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट वे होते हैं जो बहुत लंबे समय तक नहीं सड़ते, जैसे– प्लास्टिक, धातु, रसायन आदि।
बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट पर्यावरण के लिए कम खतरनाक होते हैं जबकि नॉन-बायोडिग्रेडेबल प्रदूषण बढ़ाते हैं।
83. पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध स्पष्ट करें।
पर्यावरण में असंतुलन जैसे – वनों की कटाई, ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि, प्रदूषण – जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देते हैं। इससे तापमान बढ़ता है, समुद्र स्तर में वृद्धि होती है, और चरम मौसम घटनाएँ (जैसे – सूखा, बाढ़) बढ़ती हैं। जलवायु परिवर्तन स्वयं पर्यावरण को और अधिक नुकसान पहुँचाता है। अतः दोनों आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं।
84. भारत सरकार की प्रमुख पर्यावरणीय योजनाएँ कौन-कौन सी हैं?
- राष्ट्रीय हरित भारत मिशन (Green India Mission)
- नमामि गंगे योजना
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)
- अटल भूजल योजना
- राष्ट्रीय जैव विविधता कार्य योजना
ये योजनाएँ पर्यावरणीय संरक्षण, जल, वायु, वन और जैव विविधता के क्षेत्र में कार्यरत हैं।
85. सस्टेनेबल लाइफस्टाइल क्या होती है?
सस्टेनेबल लाइफस्टाइल वह जीवनशैली है जिसमें ऊर्जा, जल, भोजन, और अन्य संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाता है। इसमें प्लास्टिक से परहेज़, साइकिल चलाना, स्थानीय उत्पादों का उपयोग, और अपशिष्ट को कम करना शामिल है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रस्तावित “LiFE Movement” (Lifestyle for Environment) इसी दिशा में एक पहल है।
86. ग्लोबल वार्मिंग के दुष्परिणाम क्या हैं?
ग्लोबल वार्मिंग से समुद्र स्तर में वृद्धि, हिमनद पिघलना, चरम मौसम, जैव विविधता की हानि, कृषि उत्पादकता में गिरावट, और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं। यह वैश्विक स्तर पर सामाजिक, आर्थिक और पारिस्थितिक संकट को जन्म देता है। इसका समाधान ग्रीनहाउस गैसों को कम करना और नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाना है।
87. पर्यावरणीय संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी क्यों आवश्यक है?
पर्यावरण की रक्षा केवल सरकार का काम नहीं है; इसमें आम जनता, विशेषकर स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। सामुदायिक भागीदारी से वनों की रक्षा, जल संरक्षण, स्वच्छता, कचरा प्रबंधन और जागरूकता अभियान सफल होते हैं। समुदाय आधारित वन प्रबंधन और ‘जनभागीदारी कार्यक्रम’ इसके उदाहरण हैं। जब लोग स्वयं जुड़ते हैं, तब संरक्षण अधिक प्रभावशाली होता है।
88. भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण के लिए कौन-कौन से प्रावधान हैं?
भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी गई है।
- अनुच्छेद 48A (राज्य के नीति निदेशक तत्व): राज्य को पर्यावरण और वन्य जीवों की रक्षा और सुधार हेतु निर्देशित करता है।
- अनुच्छेद 51A(g): प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करें।
- अनुच्छेद 21: सुप्रीम कोर्ट ने ‘स्वस्थ पर्यावरण में जीने के अधिकार’ को जीवन के अधिकार के अंतर्गत शामिल किया है।
ये प्रावधान संविधान को पर्यावरणीय दृष्टि से उत्तरदायी बनाते हैं।
89. जनहित याचिका (PIL) पर्यावरण संरक्षण में कैसे सहायक है?
जनहित याचिका (PIL) एक कानूनी उपाय है जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक हित में न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है, भले ही वह सीधे प्रभावित न हो। पर्यावरण के क्षेत्र में MC Mehta, गोपाल कृष्ण आदि कार्यकर्ताओं ने कई PIL दाखिल कीं, जिससे गंगा सफाई, वायु प्रदूषण, प्लास्टिक पर रोक आदि महत्वपूर्ण निर्णय हुए। PIL ने पर्यावरण संरक्षण को न्यायपालिका की पहुंच में लाकर एक क्रांतिकारी बदलाव किया।
90. पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है और इसका उद्देश्य क्या है?
विश्व पर्यावरण दिवस प्रतिवर्ष 5 जून को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर लोगों को पर्यावरण की समस्याओं के प्रति जागरूक करना और उनके समाधान के लिए प्रेरित करना है। यह दिवस 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन के पश्चात UNEP द्वारा घोषित किया गया। प्रत्येक वर्ष इसकी एक थीम होती है जैसे– प्लास्टिक प्रदूषण, पारिस्थितिकी बहाली, स्वच्छ जल आदि।
91. जैव विविधता अधिनियम, 2002 की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
यह अधिनियम भारत की जैव विविधता की रक्षा और सतत उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया।
प्रमुख विशेषताएँ:
- राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण की स्थापना।
- स्थानीय स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन समितियों (BMCs) का गठन।
- पारंपरिक ज्ञान और स्थानीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा।
- विदेशी संस्थाओं को जैव संसाधनों के उपयोग हेतु अनुमति की आवश्यकता।
यह अधिनियम भारत की जैव विविधता संपदा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण प्रदान करता है।
92. ओजोन परत का क्षरण क्यों हो रहा है?
ओजोन परत का क्षरण मुख्यतः CFCs (क्लोरो-फ्लोरो कार्बन), Halon, Carbon tetrachloride आदि रसायनों के कारण होता है जो एरोसोल, रेफ्रिजरेटर, और अग्निशमन यंत्रों में प्रयोग होते हैं। ये रसायन ओजोन को नष्ट कर पराबैंगनी किरणों को सीधे पृथ्वी तक पहुँचने देते हैं जिससे त्वचा कैंसर, आंखों की समस्याएं और कृषि को नुकसान होता है। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल इस संकट से निपटने का अंतरराष्ट्रीय प्रयास है।
93. नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का पर्यावरणीय महत्व क्या है?
नवीकरणीय ऊर्जा जैसे– सौर, पवन, जल, बायोमास – स्वच्छ, टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। इनसे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं होता, जिससे जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित किया जा सकता है। यह जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करता है और प्रदूषण भी घटाता है। भारत में “राष्ट्रीय सौर मिशन” और “ऊर्जा संरक्षण अधिनियम” इसके उपयोग को बढ़ावा देते हैं।
94. प्लास्टिक पर प्रतिबंध क्यों आवश्यक है?
प्लास्टिक एक अविघटनीय (non-biodegradable) पदार्थ है जो पर्यावरण को लंबे समय तक प्रदूषित करता है। यह मिट्टी की उर्वरता को नष्ट करता है, जल निकायों को अवरुद्ध करता है, और पशु-पक्षियों के लिए जानलेवा बनता है। समुद्री जीवन पर भी इसका घातक प्रभाव है। इसलिए एकल उपयोग (Single Use) प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक है। भारत सरकार ने 1 जुलाई 2022 से कई प्रकार की प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लागू किया है।
95. हरित कर (Green Tax) क्या है?
हरित कर एक आर्थिक उपकरण है जिसका उद्देश्य प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों और उद्योगों पर कर लगाकर पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना है। यह पुराने वाहनों पर लगाया जाता है ताकि उन्हें हटाकर ईंधन-कुशल और पर्यावरण-अनुकूल वाहन लाए जाएँ। यह कर एक संदेश देता है कि प्रदूषक को भुगतान करना होगा, और वह पर्यावरणीय दायित्व को समझे।
96. जलवायु परिवर्तन और कृषि के बीच क्या संबंध है?
जलवायु परिवर्तन से वर्षा चक्र में अनियमितता, तापमान में वृद्धि, सूखा, बाढ़, और कीटों की संख्या में वृद्धि होती है, जिससे कृषि उत्पादन प्रभावित होता है। फसल चक्र बदलता है, सिंचाई पर दबाव बढ़ता है और खाद्य सुरक्षा को खतरा होता है। सतत कृषि पद्धतियाँ, जैविक खेती, और जल संरक्षण तकनीकें इस समस्या का समाधान हो सकती हैं।
97. पारिस्थितिक संतुलन क्या है?
पारिस्थितिक संतुलन एक प्राकृतिक स्थिति है जहाँ विभिन्न जीव-जंतु, वनस्पति, जलवायु, मिट्टी, और अन्य घटक संतुलन में रहते हैं। यदि किसी एक घटक में अत्यधिक परिवर्तन हो जाए (जैसे वनों की कटाई, शिकार, प्रदूषण), तो यह संतुलन बिगड़ जाता है और पारिस्थितिक संकट उत्पन्न होता है। यह संतुलन बनाए रखना पर्यावरणीय संरक्षण का मूल उद्देश्य है।
98. वनों की कटाई रोकने के उपाय क्या हैं?
- कानूनी संरक्षण – वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980।
- सामुदायिक वन प्रबंधन।
- वृक्षारोपण और सामाजिक वानिकी।
- वन्यजीवों की रक्षा।
- वनों के व्यावसायिक दोहन पर नियंत्रण।
- जन जागरूकता अभियान।
वनों की रक्षा केवल सरकारी कार्य नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है।
99. भारत में पर्यावरणीय न्यायशास्त्र का विकास कैसे हुआ?
भारतीय न्यायपालिका ने अनुच्छेद 21 की व्याख्या करते हुए पर्यावरण को जीवन के अधिकार से जोड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने ‘Polluter Pays’, ‘Precautionary Principle’, और ‘Public Trust Doctrine’ जैसे सिद्धांत विकसित किए। कई ऐतिहासिक निर्णय जैसे– MC Mehta केस, Vellore Tanneries, Godavarman केस ने पर्यावरणीय न्याय को सशक्त किया। इसने शासन प्रणाली को भी पर्यावरण के प्रति उत्तरदायी बनाया।
100. “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” का पर्यावरणीय महत्व स्पष्ट करें।
यह वाक्य मानवता की साझी जिम्मेदारी को दर्शाता है। “एक पृथ्वी” का अर्थ है कि हम सब एक ही ग्रह के निवासी हैं। “एक परिवार” – पर्यावरणीय संकट से सब प्रभावित होते हैं, इसलिए सहयोग आवश्यक है। “एक भविष्य” – टिकाऊ जीवनशैली और सामूहिक प्रयास से ही हम अपनी अगली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं। यह विचार G-20 भारत अध्यक्षता का मूल दर्शन भी है।