1. पर्यावरण कानून क्या है?
पर्यावरण कानून वह विधिक ढांचा है जिसके अंतर्गत प्राकृतिक संसाधनों जैसे वायु, जल, वन, भूमि एवं जैव विविधता की रक्षा, संरक्षण और प्रबंधन किया जाता है। इसका उद्देश्य प्रदूषण नियंत्रण, सतत विकास को बढ़ावा देना तथा पर्यावरणीय न्याय को सुनिश्चित करना होता है। भारत में प्रमुख पर्यावरण कानूनों में वायु (प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम) अधिनियम, 1981, जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, और जैव विविधता अधिनियम, 2002 शामिल हैं। साथ ही, संविधान के अनुच्छेद 48A और 51A(g) नागरिकों और राज्य दोनों को पर्यावरण संरक्षण का दायित्व सौंपते हैं।
2. भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 का उद्देश्य क्या है?
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, भोपाल गैस त्रासदी के बाद लाया गया एक व्यापक केंद्रीय अधिनियम है। इसका प्रमुख उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना तथा पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम करना है। यह अधिनियम केंद्र सरकार को पर्यावरण की गुणवत्ता बनाए रखने, प्रदूषण को नियंत्रित करने और खतरनाक पदार्थों की प्रक्रिया को विनियमित करने के लिए शक्तियाँ देता है। यह अधिनियम एक “अंतरविभागीय समन्वय” की व्यवस्था करता है जिससे अन्य संबंधित अधिनियमों के साथ सहयोग और समरसता बनी रहे।
3. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) क्या है?
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal – NGT) की स्थापना 2010 में NGT अधिनियम के तहत की गई थी। इसका उद्देश्य पर्यावरणीय विवादों का शीघ्र और प्रभावी निपटारा करना है। यह न्यायाधिकरण विशेष रूप से पर्यावरण संरक्षण, वनों की रक्षा और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा से संबंधित मामलों की सुनवाई करता है। NGT सिविल प्रकृति के मामलों में निर्णय देता है, जिनमें पर्यावरणीय क्षति, प्रदूषण नियंत्रण, और कानूनों का उल्लंघन शामिल होता है। इसके निर्णयों को वैज्ञानिक तथ्यों, विशेषज्ञता और न्यायिक सिद्धांतों पर आधारित किया जाता है।
4. भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण से संबंधित प्रावधान क्या हैं?
भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। अनुच्छेद 48A राज्य को निर्देशित करता है कि वह पर्यावरण की रक्षा और सुधार करेगा। अनुच्छेद 51A(g) प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बनाता है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करें। इसके अलावा, अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का न्यायिक व्याख्या के द्वारा विस्तार कर यह बताया गया है कि स्वस्थ पर्यावरण भी जीवन के अधिकार का एक अंग है। सर्वोच्च न्यायालय ने कई निर्णयों में पर्यावरणीय अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है।
5. वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 क्या है?
वायु अधिनियम, 1981 का उद्देश्य वायु प्रदूषण को रोकना और नियंत्रित करना है। इसके तहत केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों का गठन किया गया है। यह अधिनियम औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले धुएं और हानिकारक गैसों को नियंत्रित करने के लिए मानक निर्धारित करता है। इसके तहत वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्रों की घोषणा की जा सकती है और उन क्षेत्रों में प्रदूषणकारी गतिविधियों पर नियंत्रण रखा जा सकता है। इसका उल्लंघन दंडनीय अपराध है जिसमें जुर्माना और कारावास का प्रावधान है।
6. जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 का उद्देश्य समझाइए।
जल अधिनियम, 1974 का मुख्य उद्देश्य जल स्रोतों जैसे नदियों, झीलों, तालाबों आदि को प्रदूषित होने से बचाना और जल की गुणवत्ता बनाए रखना है। यह अधिनियम प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को अधिकार देता है कि वे जल निकायों में अपशिष्ट छोड़ने से पहले सहमति प्रदान करें। यह उद्योगों और निकायों को जल प्रदूषण के लिए उत्तरदायी बनाता है। अधिनियम का उल्लंघन करने पर दंडात्मक कार्यवाही की जाती है, जिसमें भारी जुर्माना और जेल की सजा भी हो सकती है।
7. पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) क्या है?
EIA एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से किसी प्रस्तावित परियोजना के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का पूर्व मूल्यांकन किया जाता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि परियोजना शुरू होने से पहले ही उसके नकारात्मक प्रभावों को पहचाना और रोका जा सके। EIA रिपोर्ट के आधार पर परियोजना को मंजूरी दी जाती है या अस्वीकार किया जाता है। यह प्रक्रिया पारदर्शिता, सार्वजनिक भागीदारी और पर्यावरणीय सतत विकास को बढ़ावा देती है।
8. सतत विकास (Sustainable Development) का क्या तात्पर्य है?
सतत विकास का अर्थ है ऐसा विकास जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करे, बिना भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं से समझौता किए। इसका उद्देश्य आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना है। पर्यावरण कानूनों में सतत विकास की अवधारणा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। न्यायपालिका ने इसे अनेक निर्णयों में लागू किया है, जैसे कि Vellore Citizens Welfare Forum v. Union of India केस में सुप्रीम कोर्ट ने इसे भारतीय पर्यावरण कानून का अनिवार्य हिस्सा माना।
9. ‘जनहित याचिका’ (PIL) का पर्यावरण संरक्षण में क्या योगदान है?
जनहित याचिका (PIL) एक ऐसा कानूनी माध्यम है जिसके द्वारा कोई भी नागरिक या संगठन समाज के हित में न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है, चाहे उसे व्यक्तिगत क्षति न हुई हो। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में PIL ने क्रांतिकारी भूमिका निभाई है। कई मामलों में न्यायालय ने नदियों की सफाई, वन संरक्षण, औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण आदि के संबंध में आदेश दिए हैं। PIL ने आम जनता को न्यायिक पहुंच देकर पर्यावरणीय न्याय को मजबूत किया है।
10. ‘लोक सहभागिता’ का पर्यावरण संरक्षण में महत्व क्या है?
पर्यावरण संरक्षण के लिए जन भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। जब आम नागरिक पर्यावरणीय निर्णयों में भाग लेते हैं, तो नीति निर्माण अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनता है। पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) के दौरान जन सुनवाई इसका उदाहरण है। इसके अतिरिक्त, नागरिक संगठनों, एनजीओ, एवं स्थानीय समुदायों द्वारा वृक्षारोपण, अपशिष्ट प्रबंधन और जल संरक्षण जैसे कार्य पर्यावरणीय जागरूकता को बढ़ाते हैं।
11. ‘प्रिकॉशनरी सिद्धांत’ (Precautionary Principle) क्या है?
प्रिकॉशनरी सिद्धांत यह कहता है कि जब किसी कार्य या नीति के पर्यावरण पर गंभीर या अपरिवर्तनीय प्रभाव की संभावना हो, और वैज्ञानिक जानकारी अधूरी हो, तब भी सुरक्षात्मक उपाय किए जाने चाहिए। यह सिद्धांत पर्यावरणीय नीति का एक मूल आधार है और भारतीय न्यायपालिका द्वारा भी इसे मान्यता दी गई है। Vellore Citizens Case में सुप्रीम कोर्ट ने इसे एक अनिवार्य सिद्धांत माना।
12. ‘प्रदूषक भुगतान करेगा सिद्धांत’ (Polluter Pays Principle) क्या है?
यह सिद्धांत कहता है कि जो व्यक्ति या संस्था पर्यावरण को प्रदूषित करती है, वही उसकी सफाई और क्षतिपूर्ति की जिम्मेदारी वहन करेगा। यह सिद्धांत उत्तरदायित्व और न्याय पर आधारित है। भारत में इस सिद्धांत को न्यायपालिका ने कई मामलों में लागू किया है, जिससे प्रदूषण फैलाने वालों पर आर्थिक दंड लगाया गया और पीड़ितों को मुआवजा दिया गया।
13. पर्यावरणीय न्याय क्या है?
पर्यावरणीय न्याय का अर्थ है सभी नागरिकों को पर्यावरण से जुड़े निर्णयों में समान अधिकार और न्याय प्राप्त हो। यह न्याय केवल मानवीय नहीं, बल्कि पारिस्थितिक संतुलन को भी सुनिश्चित करता है। इसमें प्रदूषण से प्रभावित लोगों की सुनवाई, मुआवजा, पुनर्वास और पुनर्प्राप्ति की व्यवस्था की जाती है। यह न्यायिक प्रणाली को अधिक समावेशी और उत्तरदायी बनाता है।
14. पर्यावरणीय अपराध क्या हैं?
पर्यावरणीय अपराध वे कार्य होते हैं जो पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन करते हैं, जैसे अवैध वनों की कटाई, अवैध शिकार, जल और वायु प्रदूषण, खतरनाक कचरे का अनुचित निपटान आदि। ये अपराध न केवल प्रकृति को नुकसान पहुँचाते हैं, बल्कि मानव जीवन पर भी गंभीर प्रभाव डालते हैं। भारतीय दंड संहिता (IPC) और विशेष अधिनियमों के अंतर्गत इन अपराधों के लिए सजा का प्रावधान है।
15. भारत में पर्यावरण संरक्षण की चुनौतियाँ क्या हैं?
भारत में पर्यावरण संरक्षण के समक्ष कई चुनौतियाँ हैं, जैसे – जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, औद्योगीकरण, प्रदूषण, वन क्षेत्र में कमी, जल संकट और जैव विविधता का नुकसान। इसके अतिरिक्त, नीति निर्माण में समन्वय की कमी, जागरूकता की कमी, और कमजोर प्रवर्तन प्रणाली भी बाधक बनती हैं। इन चुनौतियों का समाधान नीति-निर्माण, जागरूकता, कानूनी सख्ती और जन भागीदारी से किया जा सकता है।
16. भारत में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की भूमिका क्या है?
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की स्थापना जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत की गई थी। यह एक वैधानिक निकाय है जो पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत कार्य करता है। इसकी प्रमुख भूमिका जल और वायु प्रदूषण को रोकना, मानक बनाना, अनुसंधान करना, राज्यों के बोर्डों को निर्देश देना और पर्यावरण की गुणवत्ता की निगरानी करना है। CPCB समय-समय पर दिशानिर्देश जारी करता है जिससे उद्योगों और संस्थानों को पर्यावरणीय मानकों के अनुसार कार्य करने की बाध्यता होती है।
17. राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) क्या है और उसकी भूमिका क्या है?
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) प्रत्येक राज्य में कार्यरत एक वैधानिक निकाय है जिसे वायु अधिनियम, 1981 और जल अधिनियम, 1974 के तहत स्थापित किया गया है। SPCB की मुख्य भूमिका अपने राज्य में प्रदूषण नियंत्रण करना, पर्यावरणीय अनुज्ञा जारी करना, निगरानी करना और रिपोर्टिंग करना है। यह औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अपशिष्ट और उत्सर्जन की जांच करता है और आवश्यक कार्रवाई करता है। इसके अतिरिक्त यह नागरिकों की पर्यावरणीय शिकायतों को भी निपटाता है।
18. ई-कचरा (E-Waste) प्रबंधन नियम, 2016 क्या हैं?
ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016 भारत सरकार द्वारा पारित एक महत्वपूर्ण अधिनियम है जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से उत्पन्न कचरे के सुरक्षित निपटान को नियंत्रित करता है। इसके अंतर्गत उत्पादकों, आयातकों, और पुनःप्रसंस्करण इकाइयों की जिम्मेदारियाँ निर्धारित की गई हैं। इसमें Extended Producer Responsibility (EPR) की अवधारणा को लागू किया गया है, जिसमें उत्पादक को ही अपने उत्पाद के जीवन के अंत में उसे एकत्र कर पुनः प्रयोग या सुरक्षित निपटान करना होता है। यह नियम पर्यावरणीय क्षति को कम करने में सहायक है।
19. प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 क्या हैं?
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का उद्देश्य प्लास्टिक कचरे के पर्यावरण पर प्रभाव को कम करना है। इसमें प्लास्टिक उत्पादन, उपयोग, संग्रहण, पुनःचक्रण और निपटान से संबंधित विस्तृत दिशा-निर्देश हैं। यह नियम राज्यों, शहरी स्थानीय निकायों, उत्पादकों और उपभोक्ताओं की जिम्मेदारियाँ निर्धारित करता है। इसमें थर्मोकोल और बहुस्तरीय प्लास्टिक को भी शामिल किया गया है। 50 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक बैग्स के उपयोग पर प्रतिबंध है। यह नियम “Reduce, Reuse, Recycle” को बढ़ावा देता है।
20. जैव विविधता अधिनियम, 2002 का उद्देश्य क्या है?
जैव विविधता अधिनियम, 2002 भारत में जैविक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण और सतत उपयोग हेतु बनाया गया कानून है। इसका उद्देश्य जैव विविधता की रक्षा करना, जैविक संसाधनों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना, और स्थानीय समुदायों की भागीदारी बढ़ाना है। इसके तहत राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA), राज्य जैव विविधता बोर्ड (SBB), और स्थानीय जैव विविधता प्रबंधन समिति (BMC) की स्थापना की गई है। यह अधिनियम पारंपरिक ज्ञान के दुरुपयोग को रोकने के लिए भी प्रभावी उपाय प्रदान करता है।
21. पर्यावरणीय ऑडिट क्या होता है?
पर्यावरणीय ऑडिट एक प्रणालीबद्ध प्रक्रिया है जिसमें किसी संगठन या उद्योग की पर्यावरणीय कार्यप्रणालियों, नीतियों और नियमों की समीक्षा की जाती है। इसका उद्देश्य पर्यावरणीय नियमों के पालन की जाँच, संसाधनों की खपत में कमी, और प्रदूषण नियंत्रण उपायों का आकलन करना होता है। यह स्वैच्छिक और अनिवार्य दोनों रूपों में किया जा सकता है। पर्यावरणीय ऑडिट से संगठन की पर्यावरणीय जिम्मेदारी बढ़ती है और पर्यावरणीय जोखिम कम होते हैं।
22. ईकोमार्क योजना क्या है?
ईकोमार्क योजना भारत सरकार की एक पर्यावरणीय लेबलिंग योजना है जो पर्यावरण के प्रति अनुकूल उत्पादों की पहचान के लिए वर्ष 1991 में शुरू की गई थी। इसके अंतर्गत ऐसे उत्पादों को चिन्हित किया जाता है जो पर्यावरणीय मानकों का पालन करते हैं और उत्पादन से लेकर उपयोग तक कम प्रदूषण फैलाते हैं। यह योजना उपभोक्ताओं को जागरूक करती है और उन्हें पर्यावरण-अनुकूल वस्तुओं को चुनने के लिए प्रेरित करती है।
23. खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 क्या हैं?
यह नियम खतरनाक और अन्य अपशिष्टों के सुरक्षित संग्रहण, परिवहन, उपचार और निपटान को नियंत्रित करता है। इसमें उद्योगों को अपने अपशिष्ट के स्रोत, प्रकृति और मात्रा की जानकारी देना अनिवार्य किया गया है। अपशिष्ट प्रबंधन की अनुमति प्रणाली भी इसमें शामिल है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई अपशिष्ट पर्यावरण या मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा न बने।
24. पर्यावरण न्यायालयों की आवश्यकता क्यों पड़ी?
पर्यावरणीय मामलों की जटिलता, तकनीकी प्रकृति और शीघ्र न्याय की आवश्यकता को देखते हुए सामान्य न्यायालयों से अलग विशेष न्यायालयों की आवश्यकता महसूस हुई। इसके लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) जैसे संस्थान बनाए गए। इन न्यायालयों में वैज्ञानिक विशेषज्ञों और न्यायाधीशों की टीम होती है जो पर्यावरणीय विवादों का शीघ्र और तकनीकी दृष्टिकोण से समाधान करती है।
25. वन संरक्षण अधिनियम, 1980 का महत्व क्या है?
वन संरक्षण अधिनियम, 1980 भारत में वनों की रक्षा के लिए लाया गया एक केंद्रीय कानून है। इसके अंतर्गत राज्य सरकारों को केंद्र सरकार की अनुमति के बिना वन भूमि का गैर-वानिकी उपयोग करने की अनुमति नहीं होती। यह अधिनियम वनों के संरक्षण, वन भूमि पर अतिक्रमण रोकने और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
26. पर्यावरणीय शिक्षा का क्या महत्व है?
पर्यावरणीय शिक्षा का उद्देश्य समाज में पर्यावरण के प्रति जागरूकता, समझ, जिम्मेदारी और संवेदनशीलता को बढ़ाना है। यह शिक्षा बच्चों से लेकर वयस्कों तक में दी जाती है जिससे वे पर्यावरणीय संकटों को समझ सकें और उसका समाधान खोज सकें। स्कूल पाठ्यक्रम में पर्यावरण अध्ययन को अनिवार्य करना एक महत्वपूर्ण पहल है।
27. पर्यावरण संरक्षण में गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) की भूमिका क्या है?
NGO पर्यावरण संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे जागरूकता फैलाते हैं, वृक्षारोपण अभियान चलाते हैं, प्रदूषण विरोधी आंदोलनों में भाग लेते हैं और सरकार को सुझाव देते हैं। कई NGOs ने पर्यावरणीय जनहित याचिकाएं दायर कर न्यायालयों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित किया है।
28. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 का उद्देश्य क्या है?
इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य भारत में वन्य जीवों की रक्षा करना और उनके निवास स्थानों को संरक्षित करना है। इसके अंतर्गत संरक्षित क्षेत्रों जैसे – राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य आदि की स्थापना होती है। अधिनियम के अंतर्गत शिकार, व्यापार और तस्करी पर रोक है। यह अधिनियम भारत की जैव विविधता के संरक्षण में अत्यंत उपयोगी है।
29. ‘कार्बन फुटप्रिंट’ क्या होता है?
कार्बन फुटप्रिंट का तात्पर्य उस कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से है जो किसी व्यक्ति, संस्था, उत्पाद या गतिविधि द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उत्पन्न होता है। यह उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है। कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग, ऊर्जा दक्षता, और हरित प्रौद्योगिकी अपनाना आवश्यक है।
30. ओजोन परत संरक्षण के लिए किए गए अंतरराष्ट्रीय प्रयास कौन-से हैं?
ओजोन परत के संरक्षण हेतु वर्ष 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल अपनाया गया। इसका उद्देश्य ओजोन-क्षरणकारी पदार्थों (जैसे CFCs) के उत्पादन और उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना है। भारत सहित 190+ देश इस संधि के पक्षकार हैं। यह सबसे सफल अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणीय समझौता माना जाता है।
31. जलवायु परिवर्तन के कारण और प्रभाव क्या हैं?
जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मानव गतिविधियों द्वारा उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसें हैं। इसके प्रभावों में वैश्विक तापमान में वृद्धि, समुद्र स्तर में वृद्धि, सूखा, बाढ़, जैव विविधता में कमी और कृषि उत्पादकता में गिरावट शामिल है। यह मानव स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन चुका है।
32. पर्यावरणीय सूचना का अधिकार (EIA Notification under RTI) क्या है?
RTI अधिनियम, 2005 के अंतर्गत पर्यावरणीय परियोजनाओं से जुड़ी जानकारी जैसे EIA रिपोर्ट, मंजूरी पत्र, सार्वजनिक सुनवाई रिपोर्ट आदि की जानकारी कोई भी नागरिक प्राप्त कर सकता है। यह पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित करता है और जनता को पर्यावरणीय निर्णयों में भाग लेने का अधिकार देता है।
33. जल संरक्षण अधिनियम की आवश्यकता क्यों है?
भारत में जल संकट गंभीर होता जा रहा है, अतः जल संरक्षण हेतु कठोर कानूनों की आवश्यकता है। जल की बर्बादी, अत्यधिक दोहन, और जल स्रोतों के प्रदूषण को रोकने के लिए प्रभावी अधिनियम जैसे – भूजल (विनियमन) अधिनियम और राज्य स्तरीय नियमों को लागू करना आवश्यक है।
34. पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) की रक्षा क्यों आवश्यक है?
पारिस्थितिक तंत्र विभिन्न जैविक और अजैविक घटकों का एक जाल है जो जीवन चक्र को संतुलित करता है। इसकी रक्षा न केवल जैव विविधता की रक्षा है, बल्कि मानव अस्तित्व के लिए आवश्यक संसाधनों (जल, वायु, भोजन) की सुरक्षा भी है। इसके विनाश से पर्यावरणीय असंतुलन और आपदाएँ बढ़ती हैं।
35. विश्व पर्यावरण दिवस का महत्व क्या है?
विश्व पर्यावरण दिवस प्रतिवर्ष 5 जून को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाना है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा आयोजित इस दिवस की हर वर्ष एक थीम होती है। यह लोगों को पर्यावरण संरक्षण में भाग लेने के लिए प्रेरित करता है।
यह रहे पर्यावरण कानून (Environment Law) से संबंधित प्रश्न संख्या 36 से 50 तक के 15 शॉर्ट उत्तर (प्रत्येक 150 से 200 शब्दों में, हिंदी में):
36. ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट, 2010 क्या है?
ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट, 2010 के तहत भारत में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य पर्यावरण से जुड़े विवादों का शीघ्र समाधान करना है। यह अधिनियम पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, वायु अधिनियम, जल अधिनियम, जैव विविधता अधिनियम आदि के उल्लंघनों से संबंधित मामलों की सुनवाई करता है। NGT में न्यायिक और तकनीकी विशेषज्ञ होते हैं, जिससे यह जटिल पर्यावरणीय मुद्दों पर वैज्ञानिक और न्यायसंगत निर्णय दे सकता है। यह अधिनियम पर्यावरणीय न्याय को सुगम और सुलभ बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
37. पर्यावरण संरक्षण हेतु न्यायपालिका की भूमिका क्या रही है?
भारतीय न्यायपालिका ने पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने “स्वस्थ पर्यावरण” को मौलिक अधिकार माना। PILs के माध्यम से यमुना सफाई, ताजमहल संरक्षण, वनों की रक्षा, औद्योगिक प्रदूषण रोकने जैसे अनेक निर्णय दिए गए हैं। MC Mehta बनाम भारत संघ जैसे मामलों में कोर्ट ने ‘Polluter Pays’ और ‘Precautionary Principle’ को लागू किया। न्यायपालिका ने कई बार सरकारों को पर्यावरणीय नीति लागू करने के आदेश दिए हैं।
38. भारत में प्रदूषण के मुख्य स्रोत क्या हैं?
भारत में प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में औद्योगिक उत्सर्जन, वाहन धुआं, प्लास्टिक कचरा, कृषि में रसायनों का उपयोग, निर्माण कार्य, जल स्रोतों में अपशिष्ट का निर्वहन, और घरेलू कचरे की अनुचित निपटान प्रणाली शामिल हैं। विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में वाहनों और उद्योगों से वायु प्रदूषण अधिक होता है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में जल स्रोतों का प्रदूषण बढ़ रहा है। इन स्रोतों पर नियंत्रण के लिए प्रभावी कानून, तकनीकी उपाय और जन जागरूकता आवश्यक हैं।
39. वन्य जीवों की अवैध तस्करी पर कानून क्या कहता है?
वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत वन्य जीवों की अवैध तस्करी, शिकार, और व्यापार को दंडनीय अपराध माना गया है। दुर्लभ प्रजातियों का शिकार करने पर सख्त सजा और जुर्माने का प्रावधान है। इसके अंतर्गत वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) की स्थापना की गई जो ऐसे अपराधों की निगरानी और नियंत्रण करता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर CITES संधि के माध्यम से भी भारत वन्यजीवों के अवैध व्यापार के विरुद्ध कार्य करता है।
40. जल संकट और वर्षा जल संचयन का संबंध स्पष्ट करें।
भारत में जल संकट गंभीर होता जा रहा है। भूजल का अत्यधिक दोहन और वर्षा जल का संरक्षण न होना इसके प्रमुख कारण हैं। वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) एक प्रभावी उपाय है जिससे वर्षा के जल को एकत्र कर भूजल पुनर्भरण किया जा सकता है। यह तकनीक सरल, सस्ती और पर्यावरण अनुकूल है। कई राज्यों में इसे भवन निर्माण के लिए अनिवार्य किया गया है। जल संकट से निपटने के लिए वर्षा जल संचयन को व्यापक रूप से अपनाना आवश्यक है।
41. पारिस्थितिक संकट (Ecological Crisis) क्या है?
पारिस्थितिक संकट तब उत्पन्न होता है जब प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, और जैव विविधता की हानि के कारण पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है। इसका असर न केवल वनस्पति और जीवों पर पड़ता है, बल्कि मानव समाज पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। सूखा, बाढ़, वैश्विक तापवृद्धि, और खाद्य संकट पारिस्थितिक संकट के लक्षण हैं। इससे निपटने के लिए सतत विकास, संरक्षण नीति और वैश्विक सहयोग जरूरी हैं।
42. पर्यावरणीय आंदोलनों की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
भारत में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कई जन आंदोलनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चिपको आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन, साइलेंट वैली प्रोजेक्ट विरोध, और अपिको आंदोलन जैसे प्रयासों ने सरकार का ध्यान पर्यावरणीय क्षति की ओर खींचा। इन आंदोलनों ने स्थानीय लोगों की भागीदारी, पारंपरिक ज्ञान और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा को प्रमुखता दी। इन्होंने पर्यावरणीय न्याय और जन अधिकारों की आवाज को बल दिया।
43. शहरीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव क्या है?
शहरीकरण से बुनियादी सुविधाएँ बढ़ती हैं, लेकिन इसके कारण पर्यावरण पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। जैसे – हरित क्षेत्र की कटौती, वायु और जल प्रदूषण में वृद्धि, कचरा प्रबंधन की समस्या, जल संकट और शोर प्रदूषण। निर्माण कार्यों और वाहनों की अधिकता से वायुमंडलीय गुणवत्ता घटती है। शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व अधिक होने के कारण संसाधनों का अत्यधिक उपयोग होता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव बढ़ता है।
44. प्लास्टिक प्रदूषण के दुष्परिणाम क्या हैं?
प्लास्टिक प्रदूषण वर्तमान समय की एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है। प्लास्टिक अपघटनीय नहीं होता, जिससे यह भूमि, जल और समुद्री जीवन के लिए खतरा बन जाता है। यह मिट्टी की उर्वरता को नष्ट करता है, जल निकासी व्यवस्था को अवरुद्ध करता है, और पशु-पक्षियों के लिए जानलेवा सिद्ध हो सकता है। समुद्रों में माइक्रोप्लास्टिक से समुद्री जीवन संकट में है। इससे बचने के लिए पुनःप्रयोग, बायोडिग्रेडेबल विकल्प, और सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध आवश्यक है।
45. जलवायु परिवर्तन की वैश्विक रणनीतियाँ क्या हैं?
जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु कई वैश्विक पहलें की गई हैं। प्रमुख समझौते हैं – क्योटो प्रोटोकॉल, पेरिस समझौता (Paris Agreement), और IPCC की रिपोर्टें। इनका उद्देश्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना, तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित रखना, और विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को तकनीकी व वित्तीय सहायता प्रदान करना है। सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) में भी जलवायु कार्य को प्रमुख स्थान दिया गया है।
46. कार्बन क्रेडिट क्या है?
कार्बन क्रेडिट एक व्यापारिक तंत्र है जिसके अंतर्गत कंपनियाँ अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की सीमा निर्धारित कर सकती हैं। यदि कोई कंपनी निर्धारित सीमा से कम उत्सर्जन करती है, तो वह अतिरिक्त उत्सर्जन अधिकार (क्रेडिट) बेच सकती है। दूसरी ओर, अधिक उत्सर्जन करने वाली कंपनियों को यह क्रेडिट खरीदना पड़ता है। यह तंत्र प्रदूषण नियंत्रण को एक प्रोत्साहन आधारित आर्थिक ढांचे से जोड़ता है।
47. भूजल संरक्षण क्यों आवश्यक है?
भूजल भारत में पेयजल और सिंचाई का प्रमुख स्रोत है, परंतु इसका अत्यधिक दोहन, प्रदूषण और रिचार्ज की कमी इसके लिए खतरा बन रहे हैं। कई क्षेत्रों में भूजल स्तर खतरनाक रूप से गिर गया है। भूजल संरक्षण के लिए वर्षा जल संचयन, ड्रिप सिंचाई, पुनर्भरण कुएँ और जल बचत की तकनीकें अपनाना आवश्यक हैं। सरकार ने इसके लिए ‘अटल भूजल योजना’ जैसी योजनाएँ भी शुरू की हैं।
48. वृक्षारोपण का पर्यावरणीय महत्व क्या है?
वृक्षारोपण वनों की कटौती, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से निपटने का एक प्रभावी उपाय है। पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं, ऑक्सीजन प्रदान करते हैं, और जैव विविधता को आश्रय देते हैं। यह जलवायु को संतुलित रखने, मृदा अपरदन रोकने और वर्षा को बढ़ावा देने में सहायक होते हैं। वृक्षारोपण को व्यक्तिगत, सामाजिक और सरकारी स्तर पर बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
49. जलवायु न्याय (Climate Justice) का क्या अर्थ है?
जलवायु न्याय का तात्पर्य यह है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और समाधान में समानता और न्याय का दृष्टिकोण हो। विकासशील देश जो उत्सर्जन में कम योगदान देते हैं, वे जलवायु परिवर्तन से अधिक प्रभावित होते हैं। अतः विकसित देशों को अधिक जिम्मेदारी उठानी चाहिए। यह अवधारणा पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोणों को एक साथ लाकर निष्पक्ष समाधान की बात करती है।
50. “Think Globally, Act Locally” का पर्यावरणीय संदर्भ में क्या अर्थ है?
इस वाक्य का अर्थ है कि पर्यावरण की समस्याओं को वैश्विक दृष्टिकोण से समझें, लेकिन उनके समाधान के लिए स्थानीय स्तर पर कार्य करें। उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है, परंतु इसके समाधान जैसे – वृक्षारोपण, जल संरक्षण, अपशिष्ट प्रबंधन आदि स्थानीय स्तर पर संभव हैं। यह विचारधारा प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण संरक्षण में भागीदार बनने के लिए प्रेरित करती है।