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Dr. Laxman Balkrishna Joshi v. Dr. Trimbak Bapu Godbole (1969): चिकित्सक की देखभाल, सावधानी और मेडिकल रिकॉर्ड की कानूनी महत्ता

Dr. Laxman Balkrishna Joshi v. Dr. Trimbak Bapu Godbole (1969): चिकित्सक की देखभाल, सावधानी और मेडिकल रिकॉर्ड की कानूनी महत्ता

भारत में चिकित्सा सेवा केवल एक पेशा (Profession) नहीं, बल्कि एक पवित्र दायित्व (Sacred Duty) माना जाता है। चिकित्सक को समाज में “जीवन रक्षक” (Saviour of Life) के रूप में देखा जाता है। परंतु जब चिकित्सक से अपेक्षित मानक (Standard of Care) का पालन नहीं होता, तब यह प्रश्न उठता है कि क्या उसे कानूनी रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय Dr. Laxman Balkrishna Joshi v. Dr. Trimbak Bapu Godbole (1969) अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस मामले ने भारतीय विधि में चिकित्सकीय लापरवाही (Medical Negligence) के मानकों को स्पष्ट किया और यह स्थापित किया कि चिकित्सक का कर्तव्य है कि वह उचित देखभाल (Due Care), सावधानी (Caution) और दक्षता (Competence) के साथ उपचार करे। साथ ही अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि चिकित्सा रिकॉर्ड (Medical Records) न केवल रोगी की सुरक्षा के लिए बल्कि न्यायिक जांच के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।


मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)

इस मामले के तथ्य इस प्रकार थे:

  • डॉ. लक्ष्मण बालकृष्ण जोशी एक चिकित्सक थे जिन्होंने एक मरीज का उपचार किया।
  • मरीज के इलाज के दौरान चिकित्सक द्वारा उचित देखभाल और सावधानी बरती गई या नहीं, इस पर विवाद उत्पन्न हुआ।
  • यह आरोप लगाया गया कि चिकित्सक ने मानक चिकित्सा प्रक्रिया का पालन नहीं किया और अपेक्षित सावधानी नहीं बरती, जिसके कारण मरीज की मृत्यु हो गई।
  • मामला अंततः सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां यह प्रश्न उठा कि चिकित्सक पर “उचित देखभाल और सावधानी बरतने” की क्या कानूनी जिम्मेदारी है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (Supreme Court’s Judgment)

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित किए, जो आज भी चिकित्सा कानून (Medical Jurisprudence) में मार्गदर्शक हैं:

  1. उचित देखभाल का कर्तव्य (Duty of Care):
    अदालत ने कहा कि हर चिकित्सक का प्राथमिक कर्तव्य है कि वह अपने मरीज के प्रति उचित देखभाल और सावधानी बरते। इसका अर्थ यह नहीं है कि चिकित्सक से चमत्कार की अपेक्षा की जाए, बल्कि यह अपेक्षा है कि वह चिकित्सा पेशे में स्वीकृत मानक (Standard) के अनुसार कार्य करे।
  2. मानक सावधानी का सिद्धांत (Standard of Reasonable Care):
    सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि चिकित्सक को वही सावधानी और दक्षता बरतनी चाहिए जो किसी भी “साधारण दक्षता प्राप्त चिकित्सक” (Ordinarily Competent Practitioner) से अपेक्षित है। यदि चिकित्सक इस मानक का पालन करता है तो उसे लापरवाह नहीं माना जा सकता।
  3. असफलता और लापरवाही में अंतर (Difference between Failure and Negligence):
    कोर्ट ने कहा कि इलाज के असफल हो जाने मात्र से चिकित्सक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। लापरवाही तभी सिद्ध होगी जब चिकित्सक अपेक्षित मानक की देखभाल में विफल हो।
  4. मेडिकल रिकॉर्ड का महत्व (Importance of Medical Records):
    अदालत ने यह भी माना कि चिकित्सा रिकॉर्ड का सही-सही संधारण (Maintenance) अत्यंत आवश्यक है। मेडिकल रिकॉर्ड ही यह प्रमाणित कर सकता है कि चिकित्सक ने कौन-सा उपचार दिया, कौन-सी सावधानी बरती और मरीज की स्थिति का क्या आकलन किया गया। इसीलिए रिकॉर्ड न केवल मरीज के स्वास्थ्य के लिए बल्कि न्यायालय के लिए भी महत्वपूर्ण साक्ष्य (Evidence) है।

कानूनी सिद्धांत (Legal Principles Established)

  1. Duty of Care in Three Stages:
    चिकित्सक का “Duty of Care” तीन स्तरों पर होता है—

    • मरीज को स्वीकार करने में (Acceptance of Patient)
    • निदान और उपचार चुनने में (Diagnosis and Choice of Treatment)
    • उपचार के दौरान सावधानी बरतने में (Administration of Treatment)
  2. Bolam Test का प्रभाव:
    यह निर्णय ब्रिटेन के Bolam v. Friern Hospital Management Committee (1957) के सिद्धांत से मेल खाता है, जिसके अनुसार यदि कोई चिकित्सक उस पद्धति का पालन करता है जिसे पेशे में कुशल चिकित्सकों का एक जिम्मेदार वर्ग उचित मानता है, तो उसे लापरवाह नहीं ठहराया जाएगा।
  3. Civil और Criminal Liability:
    अदालत ने यह भी संकेत दिया कि चिकित्सक की लापरवाही केवल दीवानी (Civil) जिम्मेदारी ही नहीं, बल्कि गंभीर मामलों में दंडात्मक (Criminal) जिम्मेदारी भी ला सकती है।

मेडिकल रिकॉर्ड की प्रासंगिकता (Relevance of Medical Records)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चिकित्सा रिकॉर्ड का रख-रखाव हर चिकित्सक और अस्पताल का कानूनी एवं नैतिक कर्तव्य है। इसके महत्व को निम्न बिंदुओं में समझा जा सकता है:

  1. प्रमाण (Evidence): न्यायालय में यह दिखाने के लिए कि कौन-सा उपचार किया गया, कौन-सी दवाएं दी गईं, और मरीज की क्या स्थिति थी।
  2. पारदर्शिता (Transparency): यह मरीज और चिकित्सक के बीच विश्वास बनाए रखता है।
  3. जवाबदेही (Accountability): यदि कोई विवाद होता है, तो रिकॉर्ड चिकित्सक की जिम्मेदारी या निर्दोषता को स्पष्ट करता है।
  4. कानूनी सुरक्षा (Legal Protection): सही रिकॉर्ड रखने से चिकित्सक को झूठे आरोपों से बचाव मिलता है।

इस निर्णय का प्रभाव (Impact of the Judgment)

  1. Medical Negligence Jurisprudence में मील का पत्थर (Landmark in Medical Negligence Jurisprudence):
    यह निर्णय भारत में मेडिकल नेग्लिजेंस कानून का आधार स्तंभ बन गया।
  2. चिकित्सकों के लिए चेतावनी (Warning for Doctors):
    चिकित्सकों को यह संदेश गया कि उन्हें बिना उचित सावधानी और देखभाल के उपचार करने पर कानूनी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
  3. मरीजों के अधिकारों की सुरक्षा (Protection of Patient Rights):
    इस फैसले ने मरीजों के “सुरक्षित और उचित इलाज” के अधिकार को मजबूत किया।
  4. मेडिकल संस्थानों की जिम्मेदारी (Responsibility of Medical Institutions):
    अस्पताल और स्वास्थ्य संस्थानों को मेडिकल रिकॉर्ड रखने और डॉक्टरों को प्रशिक्षित करने पर अधिक ध्यान देना पड़ा।

निष्कर्ष (Conclusion)

Dr. Laxman Balkrishna Joshi v. Dr. Trimbak Bapu Godbole (1969) का निर्णय भारतीय विधि में चिकित्सा लापरवाही से संबंधित प्रमुख मील का पत्थर है। इसने यह स्थापित किया कि—

  • चिकित्सक का कर्तव्य है कि वह उचित देखभाल, सावधानी और कौशल का प्रयोग करे।
  • इलाज में असफल होना और लापरवाही करना, दोनों अलग-अलग बातें हैं।
  • मेडिकल रिकॉर्ड चिकित्सक और मरीज दोनों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है।

यह निर्णय न केवल चिकित्सकों को उनकी जिम्मेदारी का बोध कराता है, बल्कि मरीजों को भी यह भरोसा देता है कि न्यायपालिका उनके अधिकारों की रक्षा के लिए तत्पर है। आज के समय में जब चिकित्सा विवादों की संख्या बढ़ रही है, यह फैसला और भी अधिक प्रासंगिक हो गया है।