IndianLawNotes.com

Donoghue v. Stevenson (1932): Neighbour Principle और निर्माता की उपभोक्ता के प्रति उत्तरदायित्व

Donoghue v. Stevenson (1932): Neighbour Principle और निर्माता की उपभोक्ता के प्रति उत्तरदायित्व

प्रस्तावना

न्यायशास्त्र और Law of Torts में Donoghue v. Stevenson (1932 AC 562, House of Lords) का निर्णय ऐतिहासिक महत्व रखता है। इस मामले ने आधुनिक Law of Negligence की नींव रखी और प्रसिद्ध Neighbour Principle स्थापित किया। इस सिद्धांत ने यह स्पष्ट कर दिया कि कोई भी निर्माता (manufacturer) केवल अपने प्रत्यक्ष अनुबंध-पक्ष (contracting party) के प्रति ही नहीं, बल्कि अंतिम उपभोक्ता (ultimate consumer) के प्रति भी सावधानी (duty of care) बरतने के लिए उत्तरदायी है।

इस निर्णय से पहले उपभोक्ता और निर्माता के बीच कोई प्रत्यक्ष संविदात्मक संबंध (privity of contract) न होने पर उपभोक्ता को न्यायालय से राहत पाना कठिन होता था। परंतु Donoghue v. Stevenson ने उपभोक्ता संरक्षण के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया।


मामले के तथ्य (Facts of the Case)

  1. वादी (Plaintiff): श्रीमती Donoghue, स्कॉटलैंड की निवासी।
  2. प्रतिवादी (Defendant): Stevenson, जिंजर बीयर का निर्माता।
  3. Donoghue अपनी एक मित्र के साथ कैफ़े गई। वहाँ उसकी मित्र ने उसके लिए जिंजर बीयर खरीदी।
  4. जिंजर बीयर एक अपारदर्शी बोतल में थी, जिसे Stevenson ने निर्मित और पैक किया था।
  5. जब Donoghue ने बीयर को गिलास में डाला और पिया, तब तक सब सामान्य था। लेकिन जब बोतल के शेष भाग को डाला गया तो उसमें एक सड़ा हुआ घोंघा (decomposed snail) निकला।
  6. इस घटना से Donoghue को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ हुईं — गैस्ट्रो-एन्टेराइटिस और मानसिक आघात।
  7. चूँकि Donoghue ने सीधे निर्माता से खरीदारी नहीं की थी, इसलिए उसका Stevenson के साथ कोई प्रत्यक्ष अनुबंध (contract) नहीं था।

इस स्थिति में Donoghue ने Stevenson पर tort of negligence का दावा दायर किया।


मुख्य विधिक प्रश्न (Legal Issues)

  1. क्या किसी निर्माता की उपभोक्ता के प्रति सावधानी बरतने की कानूनी जिम्मेदारी है, भले ही उनके बीच कोई संविदात्मक संबंध न हो?
  2. क्या उपभोक्ता, केवल tort law के आधार पर निर्माता से क्षतिपूर्ति का दावा कर सकता है?
  3. Neighbour Principle का वास्तविक दायरा और अनुप्रयोग क्या है?

न्यायालय का निर्णय (Judgment of the House of Lords)

  • मामला House of Lords में पहुँचा, जहाँ Lord Atkin ने ऐतिहासिक निर्णय दिया।
  • उन्होंने कहा:
    • निर्माता का यह कर्तव्य है कि वह अपने उत्पाद को अंतिम उपभोक्ता तक सुरक्षित रूप से पहुँचाए।
    • यदि निर्माता यह जानता है कि उसका उत्पाद उपभोक्ता तक सीधे पहुँचेगा और उसमें दोष होने पर उपभोक्ता को हानि हो सकती है, तो उस पर duty of care बनती है।
    • संविदात्मक संबंध (contractual privity) का अभाव इस जिम्मेदारी को समाप्त नहीं करता।

Lord Atkin का प्रसिद्ध कथन:
“You must take reasonable care to avoid acts or omissions which you can reasonably foresee would be likely to injure your neighbour.”


Neighbour Principle (पड़ोसी सिद्धांत)

इस मामले से निकला मुख्य सिद्धांत है – Neighbour Principle

  • कौन है पड़ोसी (Neighbour)?
    Lord Atkin के अनुसार:
    “Your neighbour is the person who is so closely and directly affected by your act that you ought reasonably to have them in contemplation as being so affected when you are directing your mind to the acts or omissions which are called in question.”
  • सरल शब्दों में, Neighbour Principle का अर्थ है:
    • वह प्रत्येक व्यक्ति जो आपके कार्य या लापरवाही से प्रत्यक्ष और निकट रूप से प्रभावित हो सकता है।
    • निर्माता के लिए उसका पड़ोसी अंतिम उपभोक्ता है।
    • डॉक्टर के लिए उसका पड़ोसी रोगी है।
    • चालक के लिए उसका पड़ोसी सड़क पर चलने वाला अन्य यात्री है।

इस मामले से स्थापित विधिक सिद्धांत (Legal Principles Established)

  1. Duty of Care – निर्माता का उपभोक्ता के प्रति सावधानी बरतने का दायित्व है।
  2. Negligence – यदि कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जो उसके पड़ोसी को नुकसान पहुँचा सकता है और उसने उचित सावधानी नहीं बरती, तो यह negligence है।
  3. Privity of Contract not essential – उपभोक्ता और निर्माता के बीच प्रत्यक्ष अनुबंध न होने पर भी उपभोक्ता क्षतिपूर्ति का दावा कर सकता है।
  4. Consumer Protection Jurisprudence – इस निर्णय ने आधुनिक उपभोक्ता अधिकार कानूनों की नींव रखी।

महत्व (Significance of the Case)

  1. Modern Law of Negligence की नींव – यह निर्णय tort of negligence का आधारभूत स्तंभ है।
  2. Consumer Rights का विकास – उपभोक्ताओं को न्यायालय में अधिकार प्राप्त हुआ कि वे निर्माता से प्रत्यक्ष दावे कर सकें।
  3. Welfare State Concept – इसने यह सुनिश्चित किया कि समाज में हर व्यक्ति अपने कार्यों के परिणाम के लिए जिम्मेदार हो।
  4. Global Influence – इस सिद्धांत को भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया सहित अनेक देशों ने अपनाया।

भारत में Donoghue v. Stevenson का प्रभाव

भारत में Law of Torts प्रायः अंग्रेजी कॉमन लॉ पर आधारित है। Donoghue v. Stevenson के सिद्धांत को भारतीय न्यायालयों ने व्यापक रूप से स्वीकार किया।

  • M.C. Mehta v. Union of India (Oleum Gas Leak Case, 1987)
    • सुप्रीम कोर्ट ने “Absolute Liability” का सिद्धांत दिया।
    • यह Donoghue v. Stevenson के duty of care से आगे बढ़ा और कहा कि औद्योगिक संस्थाएँ अपने कार्यों से हुए नुकसान की पूरी जिम्मेदारी लेंगी।
  • Indian Consumer Protection Act, 1986 (अब 2019)
    • इस कानून ने उपभोक्ताओं को यह अधिकार दिया कि वे सीधे निर्माता और सेवा प्रदाता से शिकायत कर सकें।
    • यह पूरी तरह Neighbour Principle पर आधारित है।
  • Municipal Corporation of Delhi v. Subhagwanti (1966)
    • न्यायालय ने नगर निगम को उत्तरदायी ठहराया क्योंकि उसकी लापरवाही से घड़ी-टॉवर गिरकर लोगों की मृत्यु हुई।

समान प्रकरण (Related Cases)

  1. Grant v. Australian Knitting Mills (1936) – दोषपूर्ण अंडरवियर से बीमारी होने पर अदालत ने निर्माता को उत्तरदायी ठहराया।
  2. Heaven v. Pender (1883) – इस केस ने duty of care की अवधारणा का प्रारंभिक रूप प्रस्तुत किया।
  3. M.C. Mehta v. Union of India (1987) – Absolute Liability सिद्धांत, भारतीय न्यायशास्त्र में Donoghue के सिद्धांत का विस्तार।
  4. Rylands v. Fletcher (1868) – यद्यपि यह case strict liability पर आधारित था, परंतु Donoghue ने व्यक्तिगत जिम्मेदारी को और स्पष्ट किया।

आलोचनाएँ (Criticism of the Case)

  1. Neighbour Principle की व्यापकता – आलोचकों का मत है कि यह सिद्धांत अत्यधिक व्यापक है और जिम्मेदारी का दायरा अनिश्चित कर देता है।
  2. Judicial Activism का आरोप – कुछ विद्वानों ने कहा कि Lord Atkin ने कानून बनाने जैसा कार्य किया।
  3. Damages का निर्धारण – इस सिद्धांत से उत्पन्न दावों में मुआवजे की गणना जटिल हो सकती है।

न्यायशास्त्रीय महत्व (Jurisprudential Importance)

  • इस निर्णय ने यह सिद्ध किया कि Tort Law केवल corrective justice तक सीमित नहीं है, बल्कि यह preventive justice का भी साधन है।
  • यह मामला Rule of Reasonable Foresight को स्थापित करता है, यानी कोई भी व्यक्ति अपने कार्य के संभावित प्रभावों को समझकर कार्य करे।
  • इसने सामाजिक न्याय, उत्तरदायित्व और नागरिक सुरक्षा को नया आयाम दिया।

निष्कर्ष (Conclusion)

Donoghue v. Stevenson (1932) ने आधुनिक Law of Negligence की नींव रखी और यह स्पष्ट कर दिया कि कोई भी व्यक्ति अपने कार्यों के परिणाम से मुक्त नहीं है। Neighbour Principle ने यह सुनिश्चित किया कि निर्माता अंतिम उपभोक्ता के प्रति उत्तरदायी है और उपभोक्ता को प्रत्यक्ष संविदात्मक संबंध न होने पर भी न्यायालय से क्षतिपूर्ति प्राप्त हो सकती है।

भारतीय संदर्भ में यह सिद्धांत उपभोक्ता संरक्षण कानून, पर्यावरण कानून और औद्योगिक उत्तरदायित्व के क्षेत्र में अत्यधिक प्रासंगिक है। इस प्रकार यह मामला न केवल अंग्रेजी कानून बल्कि विश्व की न्यायव्यवस्था में एक शाश्वत मील का पत्थर है।