Default Bail का अधिकार और लंबित Regular Bail: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का निर्णय – Gurmeet Singh v. State of Punjab, CRM-M-021371/2025
भूमिका
भारतीय दंड न्याय व्यवस्था का एक प्रमुख उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता को अनुचित रूप से प्रतिबंधित न किया जाए। Default Bail यानी वैधानिक जमानत का प्रावधान इसी उद्देश्य को मजबूत करता है। यह अधिकार तब उत्पन्न होता है जब जांच एजेंसी निर्धारित समय सीमा में आरोपपत्र दाखिल करने में असफल रहती है।
हाल ही में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने Gurmeet Singh v. State of Punjab (CRM-M-021371/2025) में महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह स्पष्ट किया कि यदि Regular Bail याचिका लंबित भी हो, तब भी मजिस्ट्रेट अथवा सत्र न्यायालय Default Bail देने के लिए सक्षम है। इस फैसले ने आरोपी के मौलिक अधिकारों की रक्षा और न्यायालयों की शक्तियों की स्पष्टता पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला है।
मामले की पृष्ठभूमि
- गिरफ्तारी और जांच प्रक्रिया
गुरमीत सिंह को एक गंभीर अपराध में गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। - जांच की समय-सीमा
आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC, 1973) और अब भारतीय न्याय संहिता (BNSS, 2023) के अंतर्गत यह प्रावधान है कि—- सामान्य अपराधों में पुलिस को 60 दिन के भीतर,
- गंभीर अपराधों (10 वर्ष से अधिक की सजा योग्य) में 90 दिन के भीतर चार्जशीट दाखिल करनी होगी।
यदि यह अवधि पूरी हो जाती है और पुलिस चार्जशीट दाखिल नहीं करती, तो आरोपी Default Bail का हकदार बन जाता है।
- Regular Bail की पेंडेंसी
गुरमीत सिंह ने Regular Bail के लिए उच्च न्यायालय/सत्र न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया, जो लंबित था। - Default Bail की मांग
जांच की समय सीमा समाप्त होने के बाद, उसने Default Bail की मांग मजिस्ट्रेट/सत्र न्यायालय से की। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि चूँकि Regular Bail लंबित है, इसलिए Default Bail पर विचार नहीं किया जा सकता।
मुख्य कानूनी प्रश्न
- क्या मजिस्ट्रेट अथवा सत्र न्यायालय Default Bail दे सकता है जब Regular Bail की याचिका उच्चतर न्यायालय में लंबित हो?
- क्या Default Bail केवल एक statutory right है या यह fundamental right का भी हिस्सा है?
- क्या कोई प्रशासनिक नियम या आंतरिक आदेश Default Bail के अधिकार को सीमित कर सकता है?
संबंधित प्रावधान
- CrPC, 1973 – धारा 167(2): जांच पूरी न होने और रिपोर्ट समय पर दाखिल न होने पर आरोपी Default Bail का हकदार होगा।
- BNSS, 2023 – धारा 187(2): नए कानून में भी यही व्यवस्था रखी गई है।
- भारतीय संविधान – अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार।
- पूर्ववर्ती निर्णय:
- M. Ravindran v. Intelligence Officer (2020)
- Bikramjit Singh v. State of Punjab (2020)
- Uday Mohanlal Acharya v. State of Maharashtra (2001)
न्यायालय का तर्क (Reasoning)
- Default Bail मौलिक अधिकार का हिस्सा
अदालत ने कहा कि Default Bail केवल CrPC या BNSS का प्रावधान नहीं है, बल्कि यह अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अनिवार्य हिस्सा है। हिरासत केवल कानून द्वारा निर्धारित सीमा तक ही उचित मानी जा सकती है। - Regular Bail लंबित होना बाधा नहीं
अदालत ने स्पष्ट किया कि—- Regular Bail और Default Bail दो अलग-अलग आधारों पर आधारित हैं।
- Regular Bail का लंबित होना Default Bail के अधिकार को प्रभावित नहीं करता।
- यदि जांच समय सीमा पार हो जाए और चार्जशीट दाखिल न हो, तो Default Bail देना न्यायालय का कर्तव्य है।
- Indefeasible Right (अविच्छेद्य अधिकार)
जैसे ही समय सीमा पूरी होती है और चार्जशीट दाखिल नहीं होती, आरोपी स्वतः Default Bail का हकदार हो जाता है। इसे अदालत ने “indefeasible right” करार दिया। - आंतरिक नियम/आदेश अप्रासंगिक
अदालत ने यह भी कहा कि यदि कोई आंतरिक आदेश, अधिसूचना या प्रशासनिक नियम Default Bail देने की शक्ति को सीमित करता है, तो वह असंवैधानिक होगा क्योंकि यह मौलिक अधिकार से टकराता है।
न्यायालय का निर्णय (Holding)
- मजिस्ट्रेट और सत्र न्यायालय Default Bail देने के लिए पूरी तरह सक्षम हैं।
- Regular Bail की लंबित याचिका Default Bail की शक्ति को प्रभावित नहीं करेगी।
- पुलिस द्वारा समय सीमा में रिपोर्ट दाखिल न करने पर आरोपी को Default Bail देना अनिवार्य है।
निर्णय का महत्व
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा
यह फैसला आरोपी के अधिकारों को सशक्त बनाता है और यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति को अनुचित रूप से हिरासत में नहीं रखा जाएगा। - न्यायालयों की भूमिका स्पष्ट
अक्सर भ्रम की स्थिति रहती थी कि Regular Bail लंबित होने पर Default Bail दी जा सकती है या नहीं। इस निर्णय ने स्थिति स्पष्ट कर दी। - पुलिस और अभियोजन पर दबाव
यह फैसला पुलिस को समय पर जांच पूरी करने के लिए बाध्य करता है। अन्यथा आरोपी स्वतः जमानत पर रिहा हो जाएगा। - न्यायिक प्रक्रिया का संरक्षण
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि प्रक्रिया की खामियाँ आरोपी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकतीं।
आलोचनात्मक दृष्टिकोण
- सकारात्मक पहलू
- आरोपी की स्वतंत्रता का संरक्षण।
- न्यायालय की सक्रियता।
- Fundamental Rights और Statutory Provisions का संतुलन।
- नकारात्मक पहलू / चुनौतियाँ
- गंभीर अपराधों के आरोपी भी समय सीमा पार होने पर जमानत पा सकते हैं।
- अभियोजन पक्ष के लिए जटिल जांचों में समय सीमा का पालन कठिन हो सकता है।
- समाज में यह धारणा बन सकती है कि तकनीकी आधार पर अपराधी छूट जाते हैं।
तुलनात्मक दृष्टि
- सुप्रीम कोर्ट ने भी Bikramjit Singh v. State of Punjab (2020) में कहा था कि Default Bail एक indefeasible right है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी कई बार यह माना है कि Default Bail केवल प्रक्रिया नहीं, बल्कि मौलिक अधिकार है।
- यह निर्णय उसी धारा को आगे बढ़ाता है और High Court के स्तर पर स्पष्ट करता है कि लंबित Regular Bail इस अधिकार में बाधक नहीं है।
निष्कर्ष
Gurmeet Singh v. State of Punjab (2025) का निर्णय भारतीय न्यायशास्त्र में एक मील का पत्थर है। अदालत ने साफ कहा कि Default Bail का अधिकार मौलिक अधिकार है और इसे किसी भी बहाने या लंबित Regular Bail याचिका के आधार पर रोका नहीं जा सकता।
यह फैसला न केवल आरोपी की स्वतंत्रता की गारंटी है बल्कि पुलिस और अभियोजन को भी कानूनन समयसीमा के भीतर अपने कर्तव्यों का पालन करने की याद दिलाता है।
संक्षेप में, यह निर्णय दर्शाता है कि—
👉 व्यक्ति की स्वतंत्रता न्याय व्यवस्था का केंद्रबिंदु है।
👉 प्रक्रियात्मक खामियों से आरोपी के अधिकार छीने नहीं जा सकते।
👉 Default Bail न्यायपालिका का संवैधानिक दायित्व है।