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CrPC (संशोधन) अधिनियम, 2018 – नाबालिग से बलात्कार पर मृत्युदंड का प्रावधान

CrPC (संशोधन) अधिनियम, 2018 – नाबालिग से बलात्कार पर मृत्युदंड का प्रावधान


1. प्रस्तावना

भारत में बाल यौन अपराध हमेशा से गंभीर चिंता का विषय रहे हैं, लेकिन 2018 में कठुआ (जम्मू-कश्मीर) में 8 वर्षीय बच्ची से सामूहिक बलात्कार और उन्नाव (उत्तर प्रदेश) में नाबालिग के साथ दुष्कर्म जैसी घटनाओं ने पूरे देश को झकझोर दिया। इन घटनाओं के बाद पूरे भारत में आक्रोश, प्रदर्शन और नाबालिग पीड़िताओं के लिए कठोर दंड की मांग तेज हो गई।
इस पृष्ठभूमि में केंद्र सरकार ने आपराधिक विधि (संशोधन) अध्यादेश, 2018 (Criminal Law Amendment Ordinance, 2018) जारी किया, जिसे बाद में संसद ने पारित कर आपराधिक विधि (संशोधन) अधिनियम, 2018 में बदल दिया। इस अधिनियम के तहत IPC, CrPC, भारतीय साक्ष्य अधिनियम और POCSO में महत्वपूर्ण संशोधन हुए।

इस संशोधन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू था — 12 वर्ष से कम आयु की बच्ची से बलात्कार पर मृत्युदंड का प्रावधान


2. पृष्ठभूमि और आवश्यकता

  • POCSO Act, 2012 ने बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के लिए विस्तृत कानूनी ढांचा दिया, लेकिन इसमें मृत्युदंड का प्रावधान नहीं था।
  • बढ़ती घटनाएं और समाज में असुरक्षा की भावना ने यह स्पष्ट किया कि केवल सजा नहीं, बल्कि कठोरतम दंड का डर पैदा करना आवश्यक है।
  • 2018 में देशभर में ‘Justice for Asifa’ और ‘Justice for Unnao Victim’ जैसी मुहिम ने कानून निर्माताओं को त्वरित कार्रवाई के लिए मजबूर किया।

3. 2018 संशोधन के मुख्य उद्देश्य

  1. नाबालिग (विशेषकर 12 वर्ष से कम आयु) के साथ बलात्कार पर मृत्युदंड
  2. बलात्कार मामलों में तेज जांच और सुनवाई
  3. पीड़िता की सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करना।
  4. नाबालिगों के खिलाफ अपराधियों के लिए कानून को और भयावह बनाना।

4. CrPC (संशोधन) अधिनियम, 2018 के प्रमुख प्रावधान (CrPC से संबंधित)

(A) जांच और ट्रायल में समय सीमा

  • धारा 173(1A) CrPC – 12 वर्ष से कम आयु की बच्ची से बलात्कार के मामलों में पुलिस को 2 महीने के भीतर जांच पूरी करनी होगी
  • धारा 309 CrPC – ट्रायल शुरू होने के बाद रोजाना सुनवाई होगी और 6 महीने में फैसला देने का लक्ष्य होगा।

(B) अपील की समय सीमा

  • धारा 374 और 377 CrPC में संशोधन – दोषसिद्धि या सजा के खिलाफ अपील को 6 महीने में निपटाना आवश्यक।

(C) FIR और मेडिकल जांच

  • धारा 164A CrPC – बलात्कार पीड़िता का मेडिकल परीक्षण 24 घंटे के भीतर अनिवार्य।
  • FIR दर्ज करने में देरी न हो, इसके लिए पुलिस अधिकारियों पर जवाबदेही तय।

(D) गोपनीयता और सुरक्षा

  • पीड़िता की पहचान उजागर न करने की अनिवार्यता (CrPC + IPC + Evidence Act में संयुक्त प्रावधान)।
  • अदालत में गवाही के समय आरोपी के सामने लाने से बचने के उपाय।

5. IPC के तहत संबंधित दंड प्रावधान (CrPC से जुड़ा संदर्भ)

  • धारा 376AB IPC – 12 वर्ष से कम आयु की बच्ची से बलात्कार पर 20 वर्ष से आजीवन कारावास या मृत्युदंड
  • धारा 376DA IPC – 12 वर्ष से कम आयु की बच्ची से सामूहिक बलात्कार पर आजीवन कारावास (पूरे जीवन) या मृत्युदंड
  • धारा 376DB IPC – सामूहिक बलात्कार और पीड़िता 12 वर्ष से कम हो, तो मृत्युदंड का प्रावधान।

6. भारतीय साक्ष्य अधिनियम और CrPC का समन्वय

  • बलात्कार मामलों में पीड़िता की चरित्र हत्या संबंधी सवाल अदालत में निषिद्ध (धारा 146 Evidence Act संशोधित)।
  • पीड़िता की वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग से गवाही का विकल्प, ताकि मानसिक आघात कम हो।

7. महत्व और प्रभाव

(i) न्याय में तेजी

  • जांच और सुनवाई के लिए तय समय सीमा ने लंबी कानूनी प्रक्रिया को छोटा करने की दिशा में कदम बढ़ाया।

(ii) कानून का भय

  • मृत्युदंड का प्रावधान गंभीर यौन अपराधियों के लिए निवारक (Deterrent) भूमिका निभाने का प्रयास करता है।

(iii) पीड़िता केंद्रित दृष्टिकोण

  • मेडिकल जांच, पहचान की सुरक्षा, त्वरित मुआवजा और मानसिक स्वास्थ्य सहायता से पीड़िता को न्यायिक प्रक्रिया में सम्मानजनक स्थान मिला।

8. न्यायालय के दृष्टांत

  • Manoharan v. State (2019) – सुप्रीम कोर्ट ने 7 वर्षीय बच्ची के बलात्कार और हत्या के मामले में मृत्युदंड बरकरार रखा, 2018 संशोधन के बाद कानून की कठोरता को मान्यता दी।
  • State of Rajasthan v. Pardeep (2019) – अदालत ने कहा कि नाबालिग के साथ बलात्कार ‘Rare of the Rarest’ श्रेणी का अपराध है, जिसमें मृत्युदंड दिया जा सकता है।

9. चुनौतियां

  1. कानून का क्रियान्वयन – कई राज्यों में जांच समय सीमा में पूरी नहीं होती।
  2. ग्रामीण क्षेत्रों में FIR दर्ज कराने में बाधाएं
  3. मृत्युदंड पर बहस – कई मानवाधिकार समूह इसे अप्रभावी और असंवैधानिक बताते हैं।
  4. फास्ट ट्रैक कोर्ट की कमी – समय सीमा के बावजूद केस लंबित रहते हैं।

10. सुधार के सुझाव

  • पुलिस को विशेष प्रशिक्षण – बाल यौन अपराधों की संवेदनशील जांच के लिए।
  • फास्ट ट्रैक कोर्ट्स का विस्तार – हर जिले में विशेष POCSO कोर्ट।
  • साक्ष्य संग्रह में तकनीकी सहयोग – DNA, फोरेंसिक टूल्स का अनिवार्य उपयोग।
  • पीड़िता पुनर्वास योजना – कानूनी सहायता, शिक्षा, और आर्थिक मदद।

11. निष्कर्ष

CrPC (संशोधन) अधिनियम, 2018 ने नाबालिगों के खिलाफ यौन अपराधों पर भारत की कानूनी व्यवस्था को और कठोर बनाया। यह कानून समाज को यह संदेश देता है कि बच्चों के साथ यौन अपराध न केवल नैतिक रूप से घृणित हैं, बल्कि इसके लिए सबसे कठोर दंड — मृत्युदंड भी दिया जा सकता है। हालांकि, सच्ची सफलता तभी संभव है जब कानून का क्रियान्वयन समयबद्ध, पारदर्शी और संवेदनशील तरीके से हो।