CrPC (संशोधन) अधिनियम, 2005 और पीड़ित को मुआवजे का अधिकार – एक विस्तृत अध्ययन
1. प्रस्तावना
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Criminal Procedure Code – CrPC) का मूल उद्देश्य न केवल अपराधियों को दंडित करना है, बल्कि अपराध पीड़ितों को न्याय और पुनर्वास प्रदान करना भी है। पारंपरिक आपराधिक न्याय प्रणाली में पीड़ित का स्थान अपेक्षाकृत कमजोर था, क्योंकि पूरा ध्यान अपराधी की गिरफ्तारी, मुकदमा और सजा पर केंद्रित रहता था। इसी कमी को दूर करने के लिए CrPC (संशोधन) अधिनियम, 2005 लाया गया, जिसमें पहली बार अपराध पीड़ितों को मुआवजा (Compensation) देने के लिए एक वैधानिक प्रावधान जोड़ा गया।
2. संशोधन की पृष्ठभूमि
संशोधन से पहले पीड़ितों को मुआवजा देने का कोई स्पष्ट प्रावधान CrPC में नहीं था।
- अदालतें कभी-कभी भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 357 के तहत जुर्माने की राशि से पीड़ित को कुछ मुआवजा देती थीं, लेकिन यह पर्याप्त और व्यवस्थित नहीं था।
- संयुक्त राष्ट्र अपराध पीड़ित घोषणा (UN Declaration on Victims of Crime, 1985) में सदस्य देशों से अपेक्षा की गई कि वे पीड़ितों के लिए मुआवजा और पुनर्वास की व्यवस्था करें।
- भारत में इस अंतर्राष्ट्रीय मानक को लागू करने और मानवाधिकार दृष्टिकोण अपनाने के लिए 2005 का संशोधन लाया गया।
3. CrPC (संशोधन) अधिनियम, 2005 की प्रमुख विशेषताएं
(A) धारा 357A का समावेश – पीड़ित मुआवजा योजना
- इस धारा के तहत हर राज्य सरकार को अपनी Victim Compensation Scheme (VCS) बनाना अनिवार्य किया गया।
- इस योजना में अपराध के कारण घायल हुए या आश्रित विहीन हुए पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने की प्रक्रिया और मानदंड तय किए जाते हैं।
(B) राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की भूमिका
- राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (State Legal Services Authority – SLSA) या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) को मुआवजे के वितरण और निर्णय का दायित्व दिया गया।
(C) मुआवजा कब मिलेगा?
- जब अपराधी की पहचान नहीं हो पाती या वह पकड़ा नहीं जाता।
- जब अपराधी सजा से पहले मर जाता है या फरार हो जाता है।
- जब अदालत को लगता है कि जुर्माने की राशि पर्याप्त नहीं है।
(D) अंतरिम मुआवजा (Interim Compensation)
- पीड़ित को तुरंत आर्थिक सहायता की आवश्यकता होने पर अंतरिम मुआवजा दिया जा सकता है, ताकि उसका उपचार या पुनर्वास हो सके।
4. प्रक्रिया
- आवेदन – पीड़ित या उसके परिजन SLSA/DLSA को आवेदन देते हैं।
- जांच – प्राधिकरण अपराध की गंभीरता, पीड़ित की स्थिति और आर्थिक नुकसान का आकलन करता है।
- निर्णय – मुआवजे की राशि तय करके पीड़ित को दी जाती है।
- अंतरिम सहायता – गंभीर मामलों में तुरंत दी जा सकती है।
5. मुआवजे की राशि
- राशि का निर्धारण प्रत्येक राज्य की Victim Compensation Scheme में किया गया है।
- अलग-अलग अपराधों जैसे बलात्कार, एसिड अटैक, मानव तस्करी, हत्या, स्थायी विकलांगता आदि के लिए अलग राशि निर्धारित होती है।
- उदाहरण: कई राज्यों में बलात्कार पीड़िता के लिए ₹2 लाख से ₹5 लाख, एसिड अटैक पीड़िता के लिए ₹3 लाख से ₹8 लाख तक मुआवजा तय है।
6. संशोधन का महत्व
- पीड़ित केंद्रित न्याय प्रणाली की ओर बदलाव – पहले जहां ध्यान केवल अपराधी पर था, अब पीड़ित के पुनर्वास पर भी है।
- मानवाधिकारों की रक्षा – अपराध पीड़ित के जीवन और गरिमा को पुनर्स्थापित करने का प्रयास।
- आर्थिक सुरक्षा – पीड़ित के उपचार, पुनर्वास और जीविकोपार्जन के लिए मदद।
- राज्य की जिम्मेदारी – अपराध पीड़ितों की सहायता को राज्य का कानूनी दायित्व बनाया गया।
7. न्यायालय के दृष्टांत
- Laxmi v. Union of India (2014) – सुप्रीम कोर्ट ने एसिड अटैक पीड़िताओं के लिए न्यूनतम ₹3 लाख मुआवजा तय करने का निर्देश दिया।
- Delhi Domestic Working Women’s Forum v. Union of India (1995) – बलात्कार पीड़िताओं के लिए मुआवजा व पुनर्वास योजना बनाने पर बल दिया गया।
- Ankush Shivaji Gaikwad v. State of Maharashtra (2013) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को मुआवजा देने के अधिकार का सक्रिय उपयोग करना चाहिए।
8. चुनौतियां और आलोचनाएं
- राज्यों में असमानता – सभी राज्यों में मुआवजे की राशि और प्रक्रिया अलग-अलग है, जिससे न्याय में असमानता।
- प्रक्रिया में देरी – पीड़ित को मुआवजा मिलने में कई बार वर्षों लग जाते हैं।
- जागरूकता की कमी – अधिकांश पीड़ित और वकील इस योजना के बारे में नहीं जानते।
- राशि की अपर्याप्तता – कई मामलों में मुआवजा वास्तविक नुकसान और पीड़ा की तुलना में बहुत कम है।
9. सुधार के सुझाव
- राष्ट्रीय स्तर पर एकसमान योजना – सभी राज्यों के लिए न्यूनतम मुआवजा मानक तय हो।
- तेज प्रक्रिया – 60 दिनों के भीतर मुआवजा प्रदान करने की समयसीमा।
- स्वत: कार्रवाई – गंभीर अपराधों में पीड़ित को आवेदन के बिना स्वतः मुआवजा मिलना चाहिए।
- मनोवैज्ञानिक परामर्श और पुनर्वास – आर्थिक सहायता के साथ मानसिक व सामाजिक समर्थन भी उपलब्ध कराया जाए।
10. निष्कर्ष
CrPC (संशोधन) अधिनियम, 2005 के तहत धारा 357A का समावेश भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में एक ऐतिहासिक बदलाव है। यह बदलाव पीड़ितों को केवल सहानुभूति नहीं, बल्कि ठोस आर्थिक और सामाजिक समर्थन प्रदान करता है। हालांकि इसके क्रियान्वयन में कई चुनौतियां हैं, लेकिन यह व्यवस्था न्याय को अधिक मानवीय, संवेदनशील और संतुलित बनाती है। भविष्य में यदि इसे और सशक्त एवं प्रभावी बनाया जाए, तो यह लाखों अपराध पीड़ितों के जीवन में वास्तविक बदलाव ला सकती है।