1. भारत का संविधान क्या है?
भारत का संविधान एक लिखित और विस्तृत दस्तावेज़ है, जो देश की सर्वोच्च कानून व्यवस्था है। यह 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। इसमें नागरिकों के अधिकार, सरकार की संरचना, कर्तव्यों और कार्यों का स्पष्ट विवरण है। यह संसदीय प्रणाली, संघीय संरचना, स्वतंत्र न्यायपालिका और मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है। संविधान में कुल 25 भाग, 12 अनुसूचियाँ और 395 अनुच्छेद (मूल रूप से) हैं। यह एक जीवंत दस्तावेज है, जिसे समय-समय पर संशोधित किया जाता है।
2. मौलिक अधिकारों का महत्व क्या है?
मौलिक अधिकार संविधान के भाग III में वर्णित हैं (अनुच्छेद 12 से 35 तक)। ये अधिकार भारतीय नागरिकों को स्वतंत्रता, समानता और न्याय की गारंटी प्रदान करते हैं। ये सरकार के खिलाफ नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। इनमें प्रमुख अधिकार हैं – समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार, और संवैधानिक उपचार का अधिकार। डॉ. अंबेडकर ने इसे संविधान की आत्मा कहा। इन अधिकारों को अदालत में लागू करवाया जा सकता है।
3. राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत (DPSP) क्या हैं?
राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत संविधान के भाग IV (अनुच्छेद 36 से 51) में वर्णित हैं। ये सिद्धांत राज्य को सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में मार्गदर्शन देते हैं। इनका उद्देश्य ऐसा कल्याणकारी राज्य स्थापित करना है जो समानता, गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दे। हालांकि ये सिद्धांत न्यायालय में लागू नहीं किए जा सकते, परंतु नीति निर्माण में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये भारतीय संविधान को सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण से संतुलित बनाते हैं।
4. संविधान की विशेषताएँ क्या हैं?
भारतीय संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है। इसकी मुख्य विशेषताओं में संघात्मक संरचना, संसदीय प्रणाली, मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य, राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत, स्वतंत्र न्यायपालिका और न्यायिक पुनरावलोकन शामिल हैं। इसमें भारतीय परिस्थितियों के अनुसार अनेक विदेशी संविधानों से विशेषताएँ ली गई हैं। यह एक जीवंत और लचीला संविधान है, जिसे संशोधन द्वारा समयानुसार बदला जा सकता है। धर्मनिरपेक्षता, गणराज्य व्यवस्था, सार्वभौमिक मताधिकार और सामाजिक न्याय जैसे मूल्य इसे विशेष बनाते हैं।
5. संविधान की उद्देशिका (Preamble) का महत्व क्या है?
संविधान की उद्देशिका संविधान की आत्मा मानी जाती है। यह बताती है कि भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है। इसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को सभी नागरिकों को सुनिश्चित करने की बात कही गई है। उद्देशिका संविधान की व्याख्या में मार्गदर्शन करती है और इसके मूल उद्देश्यों को स्पष्ट करती है। सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती वाद में इसे संविधान की प्रस्तावना और मूल संरचना का अंग माना है।
6. संविधान का स्रोत क्या है?
भारतीय संविधान के स्रोतों में सबसे प्रमुख स्रोत संविधान सभा है, जिसने विभिन्न विदेशी संविधानों का अध्ययन कर भारत के लिए उपयुक्त प्रावधानों को अपनाया। इसमें ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली, अमेरिका के मौलिक अधिकार और न्यायिक पुनरावलोकन, आयरलैंड के राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत, ऑस्ट्रेलिया की समवर्ती सूची आदि को शामिल किया गया। साथ ही, भारत की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विविधताओं को ध्यान में रखकर विशेष व्यवस्थाएँ बनाई गईं।
7. मौलिक कर्तव्य क्या हैं?
मौलिक कर्तव्य संविधान के भाग IV-A (अनुच्छेद 51A) में 42वें संशोधन (1976) द्वारा जोड़े गए। प्रारंभ में ये 10 थे, अब 11 हैं। ये नागरिकों को देश के प्रति कर्तव्य और उत्तरदायित्व का बोध कराते हैं, जैसे – संविधान का पालन करना, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना, पर्यावरण की रक्षा करना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना आदि। हालाँकि ये न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं हैं, परंतु नैतिक दृष्टिकोण से इनका पालन आवश्यक है।
8. संविधान संशोधन की प्रक्रिया क्या है?
संविधान संशोधन अनुच्छेद 368 के अंतर्गत होता है। इसमें तीन प्रकार की प्रक्रिया है – सामान्य बहुमत से, विशेष बहुमत से, और विशेष बहुमत के साथ आधे राज्यों की मंजूरी से। कुछ संशोधन केवल संसद द्वारा, जबकि कुछ संशोधन राज्यों की सहमति से किए जाते हैं। संशोधन की प्रक्रिया लचीली और कठोर दोनों है। सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती वाद में कहा कि संविधान की “मूल संरचना” को संशोधित नहीं किया जा सकता।
9. न्यायिक पुनरावलोकन क्या है?
न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review) वह शक्ति है जिसके तहत उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय यह तय कर सकते हैं कि कोई कानून या कार्यपालिका का आदेश संविधान के अनुरूप है या नहीं। यदि वह असंवैधानिक पाया जाता है, तो न्यायालय उसे निरस्त कर सकता है। यह सिद्धांत भारत में मार्बरी बनाम मैडिसन (अमेरिका) से लिया गया है और भारतीय संविधान में अनुच्छेद 13, 32, और 226 में इसका आधार है। यह संविधान की सर्वोच्चता और नागरिक अधिकारों की रक्षा का माध्यम है।
10. धर्मनिरपेक्षता का संवैधानिक स्वरूप क्या है?
भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता को समर्थन देता है, जिसका अर्थ है कि राज्य किसी धर्म को विशेष संरक्षण नहीं देगा, न ही किसी धर्म के आधार पर भेदभाव करेगा। यह सिद्धांत 42वें संशोधन द्वारा उद्देशिका में जोड़ा गया। अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। भारत में सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता है, जहाँ राज्य सभी धर्मों का समान सम्मान करता है और धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।
11. भारतीय संघ की प्रकृति क्या है?
भारतीय संविधान एक संघात्मक ढांचे की स्थापना करता है, लेकिन यह अमेरिका जैसे संघों से भिन्न है। अनुच्छेद 1 में भारत को “राज्यों का संघ” कहा गया है। इसमें दो स्तरीय सरकारें हैं – केंद्र और राज्य। यद्यपि इसमें संघात्मक तत्व हैं जैसे शक्तियों का विभाजन, लिखित संविधान, स्वतंत्र न्यायपालिका, परंतु केंद्र को अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं, जैसे अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन। अतः भारत को एक “केंद्रीयकृत संघ” कहा जा सकता है। यह संघात्मक होने के साथ-साथ एकात्मक भी है।
12. संसद की संरचना क्या है?
भारतीय संसद द्विसदनीय है, जिसमें तीन घटक होते हैं – राष्ट्रपति, राज्यसभा (उच्च सदन) और लोकसभा (निम्न सदन)। राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है, जो विधेयकों को मंजूरी देता है। राज्यसभा स्थायी सदन है, जिसमें 245 सदस्य होते हैं, जबकि लोकसभा में अधिकतम 552 सदस्य हो सकते हैं, जो जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव से चुने जाते हैं। संसद विधायी, वित्तीय और संवैधानिक संशोधन की शक्तियों से युक्त है। यह कानून निर्माण की सर्वोच्च संस्था है।
13. लोकसभा और राज्यसभा में अंतर स्पष्ट करें।
लोकसभा जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुनी जाती है, जबकि राज्यसभा के सदस्य विधानसभाओं द्वारा चुने जाते हैं। लोकसभा में सदस्य 5 वर्षों के लिए चुने जाते हैं, राज्यसभा स्थायी सदन है और इसके एक तिहाई सदस्य हर दो वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं। लोकसभा में विधेयकों पर अंतिम निर्णय की शक्ति अधिक होती है, विशेष रूप से धन विधेयकों के संबंध में। प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं, राज्यसभा के प्रति नहीं।
14. संविधान में आपातकालीन उपबंध क्या हैं?
संविधान में तीन प्रकार के आपातकालों की व्यवस्था है:
- राष्ट्रीय आपातकाल (Art. 352) – युद्ध, बाह्य आक्रमण या विद्रोह की स्थिति में।
- राज्य आपातकाल (Art. 356) – राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल होने पर।
- आर्थिक आपातकाल (Art. 360) – देश की वित्तीय स्थिरता पर खतरे की स्थिति में।
आपातकाल में मौलिक अधिकारों पर रोक लगाई जा सकती है और केंद्र सरकार को राज्यों पर विस्तृत अधिकार मिलते हैं। यह व्यवस्था संविधान की संघात्मक प्रकृति को एकात्मक में बदल देती है।
15. संविधान का अनुच्छेद 32 क्या है?
अनुच्छेद 32 को डॉ. अंबेडकर ने संविधान की “आत्मा और हृदय” कहा है। यह नागरिकों को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में प्रत्यक्ष रूप से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने की शक्ति देता है। इसके अंतर्गत 5 प्रकार की रिट्स – हैबियस कॉर्पस, मंडमस, सर्टियोरारी, क्वो वारंटो, और प्रोहिबिशन – जारी की जा सकती हैं। यह न्यायिक संरक्षण का शक्तिशाली माध्यम है और संविधान की सर्वोच्चता तथा नागरिक स्वतंत्रता की गारंटी है।
16. अनुच्छेद 14 में समानता का अधिकार क्या है?
अनुच्छेद 14 सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण की गारंटी देता है। यह मनमानी के विरुद्ध सुरक्षा देता है। इसका मतलब है कि राज्य किसी के साथ अनुचित भेदभाव नहीं कर सकता। हालाँकि, इसमें वर्गीकरण का सिद्धांत भी लागू होता है – यदि वर्गीकरण तार्किक और उद्देश्यपूर्ण हो तो अलग व्यवहार न्यायसंगत हो सकता है। यह अनुच्छेद न्याय और निष्पक्षता की बुनियाद है।
17. अनुच्छेद 21 का महत्व क्या है?
अनुच्छेद 21 प्रत्येक व्यक्ति को “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता” के अधिकार की गारंटी देता है। यह केवल नागरिकों तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी व्यक्तियों पर लागू होता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस अनुच्छेद की व्याख्या करते हुए इसमें जीवन के अधिकार के अंतर्गत स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण, गरिमापूर्ण जीवन, निजता आदि को शामिल किया है। यह संविधान का सबसे जीवंत और व्याख्यायोग्य अनुच्छेद बन गया है।
18. राइट टू एजुकेशन (शिक्षा का अधिकार) क्या है?
86वें संविधान संशोधन (2002) के तहत अनुच्छेद 21A जोड़ा गया, जिसमें 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है। इसे मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है। इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 45 को संशोधित कर राज्य को यह कर्तव्य दिया गया कि वह 6 वर्ष तक के बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा सुनिश्चित करे। यह शिक्षा के अधिकार को कानूनी रूप से लागू करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
19. अनुच्छेद 19 के तहत स्वतंत्रता का अधिकार क्या है?
अनुच्छेद 19 भारतीय नागरिकों को छह मूलभूत स्वतंत्रताएँ प्रदान करता है:
- वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- शांतिपूर्ण सभा की स्वतंत्रता
- संघ बनाने की स्वतंत्रता
- स्वतंत्र रूप से देश में घूमने की स्वतंत्रता
- किसी भी स्थान पर निवास करने की स्वतंत्रता
- किसी भी व्यवसाय या व्यापार को अपनाने की स्वतंत्रता
हालांकि, ये स्वतंत्रताएँ पूर्ण नहीं हैं, इन पर राज्य उचित प्रतिबंध लगा सकता है, जैसे – सुरक्षा, नैतिकता, शिष्टाचार, आदि के आधार पर।
20. सामाजिक न्याय का संवैधानिक महत्व क्या है?
सामाजिक न्याय का तात्पर्य है समाज में समान अवसर, संसाधनों का समतुल्य वितरण, और पिछड़े वर्गों का उत्थान। संविधान की उद्देशिका, अनुच्छेद 15(4), 16(4), और राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत (खासकर अनुच्छेद 38, 39, 46) सामाजिक न्याय को बढ़ावा देते हैं। आरक्षण नीति, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और रोजगार में विशेष प्रावधान इसके उदाहरण हैं। सामाजिक न्याय भारतीय संविधान का मूल उद्देश्य है, जो एक समानतावादी और समतामूलक समाज की स्थापना की दिशा में कार्य करता है।
21. स्वतंत्र न्यायपालिका का महत्व क्या है?
स्वतंत्र न्यायपालिका लोकतंत्र की रीढ़ होती है। यह कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र रहकर संविधान की रक्षा करती है और नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षित रखती है। भारत में न्यायपालिका स्वतंत्र है – न्यायाधीशों की नियुक्ति, वेतन और कार्यकाल संविधान द्वारा सुरक्षित हैं। अनुच्छेद 50 में राज्य को न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करने का निदेश है। स्वतंत्र न्यायपालिका ही न्यायिक पुनरावलोकन, संविधान की व्याख्या और कानूनों की वैधता की जांच कर सकती है। यह न्याय और कानून के शासन की गारंटी देती है।
22. संघ और राज्य सूची में अंतर क्या है?
भारत में शक्तियों का वितरण तीन सूचियों के माध्यम से होता है:
- संघ सूची (List I) – केंद्र सरकार के विषय जैसे रक्षा, विदेश नीति, मुद्रा।
- राज्य सूची (List II) – राज्य सरकार के विषय जैसे पुलिस, स्वास्थ्य, स्थानीय सरकार।
- समवर्ती सूची (List III) – दोनों के विषय जैसे शिक्षा, पर्यावरण।
यदि समवर्ती सूची के विषय पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बनाएँ और टकराव हो, तो केंद्र का कानून प्रभावी रहेगा। यह व्यवस्था अनुच्छेद 246 में दी गई है।
23. विधायिका और कार्यपालिका में अंतर स्पष्ट करें।
विधायिका कानून बनाती है, जबकि कार्यपालिका उन कानूनों को लागू करती है। भारत में संसद (लोकसभा और राज्यसभा) विधायिका है और राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा मंत्रिपरिषद कार्यपालिका का भाग हैं। कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है, विशेष रूप से लोकसभा के प्रति। कार्यपालिका प्रशासनिक निर्णय लेती है, जबकि विधायिका नीति निर्धारण करती है। दोनों शासन के दो अलग-अलग लेकिन सहायक अंग हैं।
24. राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत और मौलिक अधिकारों में अंतर क्या है?
मौलिक अधिकार नागरिकों को न्यायालय में प्रवर्तनीय अधिकार प्रदान करते हैं, जबकि राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं हैं। मौलिक अधिकार व्यक्ति केंद्रित हैं, जबकि नीति निदेशक सिद्धांत समाज केंद्रित होते हैं। अधिकारों में स्वतंत्रता और सुरक्षा की भावना होती है, जबकि निदेशक सिद्धांत कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। संविधान मौलिक अधिकारों को सर्वोपरि मानता है, लेकिन न्यायपालिका ने दोनों के बीच संतुलन की आवश्यकता को भी स्वीकार किया है।
25. अनुच्छेद 370 क्या है और इसका महत्व क्या रहा है?
अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करता था। इसके तहत राज्य को संविधान के अनेक प्रावधानों से छूट दी गई थी। केंद्र सरकार को राज्य में कानून लागू करने के लिए राज्य सरकार की सहमति आवश्यक थी। 5 अगस्त 2019 को राष्ट्रपति के आदेश द्वारा अनुच्छेद 370 को प्रभावहीन बना दिया गया और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया। यह कदम ऐतिहासिक था और इससे भारत की संघीय एकता को मजबूती मिली।
26. भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मुख्य तत्व क्या हैं?
संविधान की प्रस्तावना भारत को संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करती है। इसमें चार प्रमुख उद्देश्य हैं – न्याय (सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक), स्वतंत्रता (विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, उपासना), समानता (अवसरों में और कानून के समक्ष), और बंधुत्व (व्यक्तियों के बीच सम्मान और अखंडता)। प्रस्तावना संविधान की आत्मा मानी जाती है और संविधान की व्याख्या में दिशा देती है।
27. संविधान सभा की भूमिका क्या थी?
संविधान सभा भारत का संविधान बनाने वाली संस्था थी। इसका गठन 1946 में किया गया और इसमें विभिन्न क्षेत्रों, जातियों और वर्गों के प्रतिनिधि शामिल थे। डॉ. बी. आर. अंबेडकर इसके प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। सभा ने लगभग तीन वर्ष (2 वर्ष 11 महीने 18 दिन) में संविधान को तैयार किया। इसके सदस्य विचार-विमर्श, बहस और संशोधनों के माध्यम से एक लोकतांत्रिक, समतामूलक और आधुनिक संविधान की रचना में सफल रहे।
28. न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) क्या है?
न्यायिक सक्रियता वह स्थिति है जब न्यायपालिका केवल विवाद निपटाने तक सीमित न रहकर, सार्वजनिक हितों की रक्षा हेतु स्वेच्छा से हस्तक्षेप करती है। यह विशेषतः जनहित याचिका (PIL) के माध्यम से होता है। इसके तहत न्यायालय प्रशासन, पर्यावरण, मानवाधिकार, शिक्षा आदि मुद्दों पर स्वतः संज्ञान लेकर दिशा-निर्देश देता है। यह लोकतंत्र को सशक्त बनाने और प्रशासन को उत्तरदायी बनाने में मदद करता है, लेकिन इसके दुरुपयोग की संभावना भी बनी रहती है।
29. संवैधानिक उपचार का अधिकार क्यों महत्वपूर्ण है?
संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32) मौलिक अधिकारों को प्रभावशाली बनाता है। इसके अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में हो, तो वह सीधे सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है। यह अधिकार सभी अन्य अधिकारों की रक्षा की गारंटी देता है। इसमें रिट जारी करने की शक्ति शामिल है, जिससे नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए न्याय की मांग कर सकते हैं। यह अधिकार भारतीय लोकतंत्र की आत्मा है।
30. संविधान की लचीलापन और कठोरता का विश्लेषण करें।
भारतीय संविधान न तो पूर्णतः कठोर है और न ही पूर्णतः लचीला। कुछ संशोधन जैसे संसद में सामान्य बहुमत से किए जा सकते हैं (अनुच्छेद 368 के बाहर), कुछ विशेष बहुमत से, और कुछ को विशेष बहुमत के साथ आधे राज्यों की मंजूरी भी चाहिए। इस प्रकार यह एक मिश्रित प्रकृति का संविधान है – आवश्यकतानुसार इसे बदला जा सकता है, लेकिन इसकी मूल संरचना को नहीं छुआ जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने “मूल संरचना सिद्धांत” द्वारा इसकी सीमा तय कर दी है।
31. भारतीय संविधान का उद्देश्य क्या है?
भारतीय संविधान का मुख्य उद्देश्य एक लोकतांत्रिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और गणराज्यात्मक राज्य की स्थापना करना है, जहाँ सभी नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व प्राप्त हो। यह उद्देशिका में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है। संविधान नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है, सत्ता के तीनों अंगों – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका – की शक्तियों और सीमाओं को निर्धारित करता है। इसका उद्देश्य एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है, जिसमें सभी वर्गों का संतुलित विकास हो।
32. समानता के अधिकार की सीमा क्या है?
अनुच्छेद 14 के तहत सभी को कानून के समक्ष समानता का अधिकार प्राप्त है, लेकिन यह अधिकार पूर्ण नहीं है। राज्य तार्किक वर्गीकरण के आधार पर भेदभाव कर सकता है, जैसे आरक्षण नीति, महिलाओं, बच्चों और कमजोर वर्गों के लिए विशेष प्रावधान। अनुच्छेद 15(3) और 15(4) ऐसी व्यवस्थाओं को संविधान सम्मत मानता है। अतः समानता का अधिकार समानता के साथ न्यायसंगत भिन्नता की अनुमति भी देता है।
33. संविधान में संघात्मक विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं?
भारतीय संविधान में निम्नलिखित संघात्मक विशेषताएँ हैं:
- शक्तियों का वितरण – तीन सूचियों के माध्यम से
- लिखित संविधान
- संविधान की सर्वोच्चता
- स्वतंत्र न्यायपालिका
- संविधान संशोधन की विशेष प्रक्रिया
हालाँकि भारत में केंद्र को अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं, फिर भी उपर्युक्त विशेषताएँ भारत को एक संघात्मक राज्य का स्वरूप देती हैं।
34. मौलिक अधिकार और विधायी शक्तियों के बीच संबंध क्या है?
विधायिका कानून बनाते समय मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकती। अनुच्छेद 13 स्पष्ट करता है कि यदि कोई कानून मौलिक अधिकारों का हनन करता है तो वह शून्य (null and void) होगा। इस प्रकार मौलिक अधिकार संविधान पर एक सीमितता (limitation) लगाते हैं। न्यायपालिका इन अधिकारों की व्याख्या करके यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी विधायी या कार्यपालिका का कार्य संविधान के विरुद्ध न हो।
35. संसद द्वारा कानून निर्माण की प्रक्रिया क्या है?
संसद में कानून निर्माण की प्रक्रिया इस प्रकार होती है:
- विधेयक (Bill) लोकसभा या राज्यसभा में प्रस्तुत किया जाता है।
- तीन वाचन (readings) में बहस व संशोधन होते हैं।
- दोनों सदनों से पारित होने के बाद विधेयक राष्ट्रपति को भेजा जाता है।
- राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद वह विधेयक अधिनियम (Act) बन जाता है।
धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है। राज्यसभा की सीमित भूमिका होती है।
36. राज्यपाल की भूमिका क्या है?
राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। राज्यपाल की भूमिका केंद्र और राज्य के बीच संपर्क सेतु की होती है। वह राज्य में विधेयकों को स्वीकृति, अस्वीकृति या राष्ट्रपति के पास भेज सकता है। वह मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है और संवैधानिक संकट की स्थिति में रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजता है। राज्यपाल की भूमिका संवैधानिक तथा प्रतीकात्मक दोनों होती है।
37. अनुच्छेद 15 का क्या महत्व है?
अनुच्छेद 15 राज्य को यह प्रतिबंधित करता है कि वह केवल धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं करेगा। हालांकि इसमें कुछ सकारात्मक भेदभाव (positive discrimination) की अनुमति दी गई है, जैसे महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान। यह समानता और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन स्थापित करता है।
38. अनुच्छेद 19 की सीमाएँ क्या हैं?
अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त स्वतंत्रताएँ पूर्ण नहीं हैं। इन पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं जैसे –
- राष्ट्र की सुरक्षा
- सार्वजनिक व्यवस्था
- नैतिकता
- मानहानि
- न्यायालय की अवमानना
उदाहरण: वाक् स्वतंत्रता के नाम पर कोई व्यक्ति हिंसा भड़काने वाला भाषण नहीं दे सकता। ये सीमाएँ अनुच्छेद 19(2) से 19(6) तक में दी गई हैं।
39. भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों की प्रकृति क्या है?
मौलिक कर्तव्य संविधान के भाग IV-A में अनुच्छेद 51A के तहत दिए गए हैं। ये नागरिकों से अपेक्षित नैतिक जिम्मेदारियाँ हैं, जैसे – संविधान का सम्मान करना, पर्यावरण की रक्षा, महिलाओं का सम्मान, कर का भुगतान आदि। ये न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं हैं, परंतु न्यायपालिका ने कई बार इनका उल्लंघन रोकने के लिए कर्तव्यों को कानूनों के माध्यम से लागू किया है। ये कर्तव्य नागरिक चेतना और उत्तरदायित्व को जागरूक करने का माध्यम हैं।
40. भारतीय संविधान में धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार क्या है?
अनुच्छेद 25 से 28 के तहत धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। इसके अंतर्गत –
- प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, उसका प्रचार और पालन करने की स्वतंत्रता है।
- धार्मिक संस्थानों को अपने धार्मिक मामलों को संचालित करने की स्वतंत्रता है।
- धार्मिक शिक्षा को राज्य द्वारा नियंत्रित शैक्षणिक संस्थानों में नहीं पढ़ाया जा सकता।
हालाँकि यह स्वतंत्रता सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है। भारत में सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता अपनाई गई है, जो सभी धर्मों का समान सम्मान करती है।
41. अनुच्छेद 29 और 30 का क्या महत्व है?
अनुच्छेद 29 और 30 भारत में अल्पसंख्यकों को सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार प्रदान करते हैं।
- अनुच्छेद 29: किसी भी वर्ग के नागरिकों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति की रक्षा का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यक समुदायों को अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और उन्हें संचालित करने का अधिकार देता है।
यह प्रावधान देश की सांस्कृतिक विविधता और अल्पसंख्यकों की पहचान को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक हैं।
42. भारतीय लोकतंत्र की विशेषताएँ क्या हैं?
भारतीय लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएँ हैं:
- प्रत्यक्ष जन प्रतिनिधित्व
- सार्वभौमिक मताधिकार
- बहुदलीय प्रणाली
- संवैधानिक सरकार
- न्यायिक स्वतंत्रता
- मौलिक अधिकारों की गारंटी
लोकतंत्र में सरकार जनता के लिए, जनता द्वारा, और जनता की होती है। भारत में चुनाव आयोग स्वतंत्र रूप से निष्पक्ष चुनाव कराता है। प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिक भागीदारी भी इसकी विशेषताएँ हैं।
43. भारतीय संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत क्या है?
“मूल संरचना सिद्धांत” (Basic Structure Doctrine) के अनुसार संविधान के कुछ मूल तत्व जैसे – लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, न्यायिक समीक्षा, संघात्मकता, मौलिक अधिकार आदि – को संशोधन द्वारा भी बदला नहीं जा सकता। यह सिद्धांत सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती वाद (1973) में प्रतिपादित किया। इसका उद्देश्य संविधान की स्थिरता और उसके मूल आदर्शों की रक्षा करना है।
44. अनुच्छेद 226 और 32 में अंतर स्पष्ट करें।
- अनुच्छेद 32: सुप्रीम कोर्ट को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में सीधे रिट जारी करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 226: उच्च न्यायालय को रिट जारी करने का अधिकार देता है, न केवल मौलिक अधिकारों के लिए, बल्कि अन्य विधिक अधिकारों के लिए भी।
दोनों अनुच्छेद नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के साधन हैं, लेकिन अनुच्छेद 226 का क्षेत्राधिकार अधिक व्यापक है।
45. अनुच्छेद 51A के अंतर्गत कौन-कौन से मौलिक कर्तव्य हैं?
अनुच्छेद 51A में 11 मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख है, जैसे:
- संविधान का पालन करना
- राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करना
- भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा करना
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना
- पर्यावरण और सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा
- महिलाओं का सम्मान
इन कर्तव्यों का उद्देश्य नागरिकों में कर्तव्य-बोध और राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत करना है।
46. संसद की विधायी शक्तियाँ क्या हैं?
भारतीय संसद को संघ सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है (अनुच्छेद 245–246)। विशेष परिस्थितियों में संसद राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है जैसे:
- आपातकाल की स्थिति
- राज्य सभा का प्रस्ताव (Art. 249)
- राज्यों की सहमति (Art. 252)
संसद के पास बजट, कराधान, संविधान संशोधन, और केंद्रीय योजनाओं से संबंधित विधायी अधिकार भी हैं।
47. नीति निदेशक सिद्धांतों का व्यावहारिक महत्व क्या है?
हालाँकि नीति निदेशक सिद्धांत न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं हैं, फिर भी ये राज्य की नीति निर्माण में मार्गदर्शन करते हैं। कई कल्याणकारी योजनाएँ जैसे – पंचायती राज, शिक्षा का अधिकार, मनरेगा, महिला सशक्तिकरण, श्रम कल्याण – इन्हीं सिद्धांतों से प्रेरित हैं। न्यायपालिका ने समय-समय पर इन सिद्धांतों को मौलिक अधिकारों के साथ जोड़कर इनका कार्यान्वयन सुनिश्चित किया है।
48. समान अवसर का अधिकार क्या है?
अनुच्छेद 16 में सभी नागरिकों को सरकारी सेवाओं में समान अवसर की गारंटी दी गई है। कोई भी नागरिक धर्म, जाति, लिंग, वंश, आदि के आधार पर पद से वंचित नहीं किया जा सकता। हालाँकि यह अनुच्छेद अनुसूचित जातियों, जनजातियों, पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की अनुमति भी देता है, जिससे सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो सके।
49. अनुच्छेद 17 – अस्पृश्यता उन्मूलन का अधिकार क्या है?
अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है और इसके व्यवहार को दंडनीय बनाता है। यह एक सामाजिक क्रांति का प्रावधान है जो समानता और मानव गरिमा की स्थापना करता है। “अस्पृश्यता (उन्मूलन) अधिनियम, 1955” और “अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989” इस अनुच्छेद के क्रियान्वयन हेतु बनाए गए हैं।
50. भारत में नागरिकता प्राप्ति के तरीके क्या हैं?
भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार नागरिकता प्राप्त करने के पाँच तरीके हैं:
- जन्म द्वारा
- वंशानुक्रम द्वारा
- पंजीकरण द्वारा
- प्राकृतिककरण द्वारा
- क्षेत्र के समावेश द्वारा
इसके अलावा नागरिकता को त्यागा या छीना भी जा सकता है। नागरिकता भारत की राष्ट्रीय पहचान और अधिकारों का आधार है।
51. भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ क्या है?
भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य किसी धर्म को न तो अपनाता है और न ही किसी धर्म का विरोध करता है। यह सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान (Equal Respect) की नीति अपनाता है। अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। संविधान की प्रस्तावना में भी ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द 42वें संशोधन (1976) द्वारा जोड़ा गया। भारत में सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हुए सामाजिक समरसता को बढ़ावा देती है।
52. प्रस्तावना की कानूनी स्थिति क्या है?
प्रस्तावना संविधान का परिचयात्मक भाग है, जिसमें संविधान के उद्देश्य, आदर्श और मूल मूल्य उल्लेखित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती वाद (1973) में कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है। हालांकि, बेरूबर यूनियन केस (1960) में कोर्ट ने कहा था कि प्रस्तावना स्वतंत्र नहीं, बल्कि केवल मार्गदर्शक है। अब यह स्पष्ट है कि प्रस्तावना की सहायता से संविधान की व्याख्या की जा सकती है, परंतु यह अपने आप में न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं है।
53. अनुच्छेद 23 और 24 क्या निषेध करते हैं?
- अनुच्छेद 23: मानव तस्करी, बेगार और बलात श्रम को निषिद्ध करता है। इसका उल्लंघन दंडनीय अपराध है।
- अनुच्छेद 24: 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी खतरनाक कार्य (जैसे खदान, फैक्ट्री आदि) में नियोजित करना प्रतिबंधित करता है।
ये अनुच्छेद श्रमिकों और बच्चों की गरिमा की रक्षा करते हैं और एक कल्याणकारी समाज की दिशा में कार्य करते हैं।
54. मौलिक अधिकार और नीति निदेशक सिद्धांतों के बीच संतुलन का महत्व क्या है?
मौलिक अधिकार व्यक्ति के व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करते हैं, जबकि नीति निदेशक सिद्धांत समाज के सामूहिक कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए हैं। दोनों संविधान के उद्देश्य पूर्ति के लिए आवश्यक हैं। न्यायपालिका ने कहा है कि दोनों के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। कई मामलों में जैसे मिनर्वा मिल्स केस (1980) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकार और नीति निदेशक सिद्धांत एक-दूसरे के पूरक और सहयोगी हैं।
55. अनुच्छेद 300A – संपत्ति के अधिकार की वर्तमान स्थिति क्या है?
संपत्ति का अधिकार पहले एक मौलिक अधिकार था (अनुच्छेद 31), लेकिन 44वें संविधान संशोधन (1978) द्वारा इसे हटा दिया गया। अब यह सांविधिक अधिकार है और अनुच्छेद 300A के अंतर्गत आता है। इसके अनुसार, किसी व्यक्ति की संपत्ति को कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के बिना छीना नहीं जा सकता। यह अब मौलिक अधिकार नहीं है, परंतु नागरिकों को संपत्ति के संरक्षण की कानूनी गारंटी अवश्य देता है।
56. सामाजिक समानता का संवैधानिक प्रावधान क्या है?
भारतीय संविधान सामाजिक समानता के लिए अनेक प्रावधान करता है:
- अनुच्छेद 14 – कानून के समक्ष समानता
- अनुच्छेद 15 – भेदभाव का निषेध
- अनुच्छेद 17 – अस्पृश्यता का उन्मूलन
- अनुच्छेद 46 – कमजोर वर्गों के हितों की सुरक्षा
इसके अतिरिक्त, आरक्षण, शिक्षा, रोजगार, तथा सामाजिक कल्याण योजनाएँ संविधान द्वारा सामाजिक न्याय और समानता सुनिश्चित करने के प्रयास हैं।
57. नीति निदेशक सिद्धांतों के प्रमुख वर्ग कौन-कौन से हैं?
राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत तीन प्रमुख वर्गों में बाँटे जा सकते हैं:
- सामाजिक और आर्थिक कल्याण संबंधी – जैसे अनुच्छेद 38, 39, 41, 42
- गांधीवादी सिद्धांत – जैसे अनुच्छेद 40 (पंचायती राज), 43 (कुटीर उद्योग)
- अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत और शांति – जैसे अनुच्छेद 51 (अंतरराष्ट्रीय संबंधों में न्याय और शांति का पालन)
इनका उद्देश्य है – एक न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज की स्थापना।
58. न्यायिक पुनरावलोकन और न्यायिक सक्रियता में अंतर क्या है?
- न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review): न्यायपालिका द्वारा कानूनों और कार्यपालिका के आदेशों की संवैधानिक वैधता की जांच।
- न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism): न्यायालय द्वारा सामाजिक या सार्वजनिक हितों में स्वप्रेरणा से हस्तक्षेप करना।
न्यायिक पुनरावलोकन संविधान के अंतर्गत अधिकार है, जबकि सक्रियता न्यायपालिका की भूमिका को विस्तार देने की प्रवृत्ति है।
59. 42वाँ संविधान संशोधन क्यों महत्वपूर्ण है?
42वाँ संविधान संशोधन (1976) को “मिनी संविधान” कहा जाता है। इसके प्रमुख प्रभाव:
- प्रस्तावना में “समाजवादी”, “धर्मनिरपेक्ष”, और “राष्ट्रीय एकता” शब्द जोड़े गए
- नीति निदेशक सिद्धांतों को प्राथमिकता दी गई
- न्यायपालिका की शक्तियों में कटौती की गई
- मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया
यह संशोधन कार्यपालिका की शक्तियों को बढ़ाने और समाजवादी सोच को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से किया गया था।
60. संविधान की सर्वोच्चता का क्या अर्थ है?
भारतीय संविधान देश का सर्वोच्च कानून है। इसके विरुद्ध कोई भी कानून, आदेश या कार्य अमान्य होगा। अनुच्छेद 13 के अनुसार यदि कोई कानून मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है तो वह शून्य माना जाएगा। न्यायपालिका संविधान की व्याख्या करती है और यह सुनिश्चित करती है कि कोई संस्था या व्यक्ति इसकी सीमाओं का उल्लंघन न करे। यह सर्वोच्चता भारत में कानून के शासन (Rule of Law) की नींव है।
61. भारत में कानून के शासन (Rule of Law) का सिद्धांत क्या है?
Rule of Law का अर्थ है –
- सभी नागरिक कानून के समक्ष समान हैं
- कानून सर्वोच्च है, न कि व्यक्ति
- प्रशासन और सरकार भी कानून के अधीन हैं
भारतीय संविधान में यह सिद्धांत अनुच्छेद 14 (समानता) और अनुच्छेद 21 (न्यायपूर्ण प्रक्रिया) के माध्यम से व्याप्त है। यह एक न्यायिक, उत्तरदायी और समानतापूर्ण शासन प्रणाली का आधार है।
62. भारतीय संविधान में विधि का शासन (Rule of Law) का महत्व क्या है?
“Rule of Law” अर्थात विधि का शासन का अर्थ है कि देश में कानून सर्वोच्च है और सभी नागरिक, चाहे वे आम हों या उच्च पद पर, कानून के अधीन हैं। यह सिद्धांत अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) में समाहित है। इसका उद्देश्य मनमानी शासन को रोकना और न्यायिक प्रक्रिया द्वारा अधिकारों की सुरक्षा करना है। यह लोकतंत्र, मानवाधिकार और न्याय का आधार है।
63. संविधान में समानता का अधिकार कैसे संरक्षित किया गया है?
संविधान में समानता का अधिकार अनुच्छेद 14 से 18 के तहत संरक्षित है:
- अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता
- अनुच्छेद 15: धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव का निषेध
- अनुच्छेद 16: सार्वजनिक सेवाओं में समान अवसर
- अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का अंत
- अनुच्छेद 18: उपाधियों का उन्मूलन
इन प्रावधानों का उद्देश्य है कि समाज में न्याय, गरिमा और समान अवसर की स्थापना हो।
64. नीति निदेशक सिद्धांतों में सामाजिक न्याय के सिद्धांत कौन-कौन से हैं?
सामाजिक न्याय से आशय है – समाज के सभी वर्गों को समान अवसर और संसाधनों में भागीदारी। भारतीय संविधान में कई नीति निदेशक सिद्धांत सामाजिक न्याय को बढ़ावा देते हैं:
- अनुच्छेद 38: सामाजिक व्यवस्था की स्थापना
- अनुच्छेद 39: समान वेतन, संसाधनों का वितरण
- अनुच्छेद 41: काम, शिक्षा और सहायता का अधिकार
- अनुच्छेद 46: अनुसूचित जातियों और जनजातियों का उत्थान
इनका उद्देश्य है – वर्गहीन और शोषणमुक्त समाज का निर्माण।
65. मौलिक अधिकारों की न्यायिक व्याख्या का महत्व क्या है?
न्यायपालिका ने मौलिक अधिकारों की व्याख्या कर उन्हें व्यापक और जीवन्त बनाया है। उदाहरण के लिए:
- अनुच्छेद 21 को विस्तृत कर इसमें गरिमामय जीवन, निजता, स्वास्थ्य, पर्यावरण, शिक्षा आदि शामिल किए गए।
- अनुच्छेद 19 की सीमाओं की व्याख्या कर संतुलन स्थापित किया गया।
इस व्याख्या ने नागरिकों के अधिकारों को विकसित और प्रभावशाली बनाया है और लोकतंत्र को सुदृढ़ किया है।
66. संविधान का अनुच्छेद 21A क्या कहता है?
अनुच्छेद 21A, 86वें संविधान संशोधन (2002) द्वारा जोड़ा गया। इसके अनुसार, 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार है। यह शिक्षा का अधिकार अब न्यायालय में प्रवर्तनीय है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराए। यह प्रावधान भारत को शिक्षित समाज बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
67. रिट क्या है? पाँच रिट्स के नाम बताइए।
रिट (Writ) एक विशेष प्रकार का आदेश होता है जो न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा हेतु जारी करता है। संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 के तहत पाँच प्रमुख रिट्स हैं:
- हैबियस कॉर्पस – अवैध बंदी से मुक्ति
- मंडमस – कर्तव्य पालन का आदेश
- सर्टियोरारी – अवैध आदेश को रद्द करना
- प्रोहिबिशन – निचली अदालत को कार्य से रोकना
- क्वो वारंटो – अवैध पद धारण पर प्रश्न
ये रिट्स न्यायिक संरक्षण के शक्तिशाली माध्यम हैं।
68. संसद के विशेषाधिकार क्या हैं?
संसद के सदस्य कुछ विशेषाधिकारों का उपभोग करते हैं ताकि वे स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकें:
- सदन में बोले गए किसी भी शब्द पर न्यायिक कार्यवाही नहीं हो सकती।
- गिरफ्तारी से विशेष सुरक्षा (सत्र के दौरान)
- गोपनीय कार्यवाही की रक्षा
- सदन के भीतर अनुशासन बनाए रखने का अधिकार
ये विशेषाधिकार संसद की स्वायत्तता और गरिमा की रक्षा हेतु आवश्यक हैं।
69. प्रस्तावना में वर्णित “बंधुत्व” का क्या अर्थ है?
संविधान की प्रस्तावना में बंधुत्व (Fraternity) का अर्थ है – देश के सभी नागरिकों के बीच सामाजिक एकता, सहिष्णुता और पारस्परिक सम्मान की भावना का विकास। यह राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। बंधुत्व बिना जाति, धर्म, भाषा आदि के भेदभाव के सभी को एक नागरिक के रूप में जोड़ता है। यह सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय भावना को बल देता है।
70. नीति निदेशक सिद्धांतों को लागू करने में आने वाली बाधाएँ क्या हैं?
नीति निदेशक सिद्धांत न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं हैं, इसलिए सरकारें इन्हें नजरअंदाज कर सकती हैं। मुख्य बाधाएँ हैं:
- आर्थिक संसाधनों की कमी
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी
- न्यायिक प्रवर्तन की अनुपस्थिति
- प्रशासनिक अक्षमता
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें संविधान के नैतिक सिद्धांत मानते हुए इनका पालन करने की आवश्यकता पर बल दिया है।
71. भारतीय संविधान में समाजवादी तत्व कौन-कौन से हैं?
समाजवाद का अर्थ है – संसाधनों का न्यायसंगत वितरण, कमजोर वर्गों की सुरक्षा और आर्थिक समानता। भारतीय संविधान में समाजवाद निम्न रूपों में है:
- प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ शब्द (42वाँ संशोधन)
- अनुच्छेद 38, 39 (राजकोषीय समानता, न्यूनतम आजीविका)
- आरक्षण प्रणाली
- सार्वजनिक क्षेत्र का विकास
यह सब एक समता आधारित कल्याणकारी राज्य की स्थापना के उद्देश्य से है।
72. संविधान के अनुसार “भारत का संघ राज्यों का संघ” क्यों कहा गया है?
अनुच्छेद 1 में भारत को “राज्यों का संघ” कहा गया है, लेकिन यह एक कृत्रिम संघ (artificial federation) है, क्योंकि:
- राज्यों के पास पृथक संप्रभुता नहीं है
- संसद राज्यों की सीमाएँ बदल सकती है (अनुच्छेद 3)
- एकात्मक तत्व अधिक हैं
यह शब्द ब्रिटिश भारत की रियासतों के एकीकरण को भी दर्शाता है। इसलिए भारत एक केंद्राभिमुख संघात्मक राज्य है।
73. “भारत संप्रभु राष्ट्र है” – इसका क्या तात्पर्य है?
संविधान की प्रस्तावना में भारत को “संप्रभु” घोषित किया गया है। इसका अर्थ है कि भारत आंतरिक और बाह्य मामलों में पूर्ण स्वतंत्र है। कोई भी बाहरी शक्ति भारत के मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। भारत अपने संविधान और कानूनों के अनुसार शासन करता है। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत स्वतंत्र निर्णय ले सकता है, जैसे कि युद्ध, संधि या व्यापार समझौते। संप्रभुता ही किसी राष्ट्र की राजनीतिक स्वतंत्रता और स्वशासन का प्रतीक है।
74. न्याय का संवैधानिक महत्व क्या है?
संविधान की प्रस्तावना में न्याय को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप में वर्णित किया गया है।
- सामाजिक न्याय: सभी वर्गों को समान अवसर
- आर्थिक न्याय: संसाधनों का समान वितरण
- राजनीतिक न्याय: मताधिकार व राजनीतिक भागीदारी
मौलिक अधिकार और नीति निदेशक सिद्धांत न्याय के विभिन्न पहलुओं को सुनिश्चित करते हैं। न्याय भारतीय संविधान की मूल भावना और उद्देश्य है, जो समाज में समानता और समरसता लाता है।
75. संसद राज्य सूची के विषयों पर कब कानून बना सकती है?
सामान्यतः राज्य सूची के विषयों पर कानून राज्य विधानमंडल बनाता है, परंतु कुछ स्थितियों में संसद भी बना सकती है:
- राज्यसभा का विशेष प्रस्ताव (अनुच्छेद 249)
- राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा (अनुच्छेद 250)
- दो या अधिक राज्यों की सहमति (अनुच्छेद 252)
- अंतरराष्ट्रीय संधि के क्रियान्वयन हेतु (अनुच्छेद 253)
इन प्रावधानों से भारत में एक केंद्राभिमुख संघीय ढांचा स्पष्ट होता है।
76. संविधान की आठवीं अनुसूची का महत्व क्या है?
संविधान की आठवीं अनुसूची में भारत की मान्यता प्राप्त भाषाएँ सूचीबद्ध हैं। प्रारंभ में इसमें 14 भाषाएँ थीं, वर्तमान में 22 भाषाएँ हैं। इसका उद्देश्य भारतीय भाषाओं की संरक्षा, संवर्धन और समानता सुनिश्चित करना है। ये भाषाएँ सरकारी परीक्षा, प्रशासन और शिक्षा के माध्यम से प्रयोग में लाई जाती हैं। यह अनुसूची भारत की भाषाई विविधता और सांस्कृतिक धरोहर को मान्यता देती है।
77. संसद की दो सदनों की संरचना का महत्व क्या है?
भारतीय संसद दो सदनों – लोकसभा (निम्न सदन) और राज्यसभा (उच्च सदन) – से मिलकर बनती है।
- लोकसभा जनता के सीधे प्रतिनिधियों से बनी होती है
- राज्यसभा राज्यों के प्रतिनिधित्व का प्रतीक है
दोनों सदनों से कानून पारित होता है, जिससे संतुलन, जांच और परामर्श की प्रक्रिया मजबूत होती है। यह द्विसदनीय व्यवस्था विधायी प्रक्रिया को अधिक लोकतांत्रिक और विवेकपूर्ण बनाती है।
78. “प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत” का क्या अभिप्राय है?
प्राकृतिक न्याय का अर्थ है – न्याय की मूलभूत और नैतिक अवधारणा, जिसमें निष्पक्षता, सुनवाई का अधिकार और पूर्वाग्रह रहित निर्णय शामिल हैं। इसके दो प्रमुख सिद्धांत हैं:
- न्यायिक सुनवाई का अधिकार (Audi alteram partem)
- कोई भी व्यक्ति अपने ही मामले में न्यायाधीश नहीं हो सकता (Nemo judex in causa sua)
प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत प्रशासनिक और न्यायिक निर्णयों में निष्पक्षता और न्याय की गारंटी देता है।
79. भारतीय संविधान में “नैतिकता” का महत्व क्या है?
संविधान केवल कानूनों का समूह नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों और आदर्शों का भी प्रतिनिधित्व करता है।
- प्रस्तावना में न्याय, समानता, बंधुत्व जैसे नैतिक तत्व हैं
- नीति निदेशक सिद्धांत सामाजिक नैतिकता का मार्गदर्शन करते हैं
- मौलिक कर्तव्य नागरिकों के नैतिक दायित्व हैं
नैतिकता संविधान के क्रियान्वयन में सद्भाव, जवाबदेही और उत्तरदायित्व की भावना को सशक्त बनाती है।
80. “प्रशासनिक विवेक” का संवैधानिक दायरा क्या है?
प्रशासनिक विवेक का तात्पर्य है कि कार्यपालिका अपने अधिकार क्षेत्र में निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होती है, परंतु यह स्वतंत्रता संविधान, विधि और न्यायसंगत प्रक्रिया से बंधी होती है। यदि प्रशासनिक विवेक मनमाने ढंग से प्रयोग हो, तो न्यायपालिका उसे न्यायिक पुनरावलोकन द्वारा निरस्त कर सकती है। प्रशासनिक विवेक लोक हित, उत्तरदायित्व और पारदर्शिता के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए।
81. भारत के संघात्मक ढांचे की विशेषताएँ बताइए।
भारत एक केंद्राभिमुख संघ है जिसकी विशेषताएँ हैं:
- संविधान द्वारा शक्तियों का वितरण (अनुच्छेद 245–246)
- तीन सूचियाँ – संघ, राज्य, समवर्ती
- केंद्र को अधिक शक्तियाँ
- एकल नागरिकता और एकल संविधान
- संसद द्वारा राज्य की सीमाएँ बदलने की शक्ति (अनुच्छेद 3)
हालाँकि कुछ संघीय तत्व जैसे स्वतंत्र न्यायपालिका और शक्तियों का वितरण भी इसमें समाहित हैं। अतः यह एक मिश्रित प्रकृति का संघ है।
82. न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को सुनिश्चित करने वाले उपाय कौन-कौन से हैं?
न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने हेतु संविधान ने कई उपाय किए हैं:
- न्यायाधीशों की सुरक्षित नियुक्ति प्रक्रिया
- निर्धारित कार्यकाल और वेतन
- न्यायाधीशों को केवल महाभियोग प्रक्रिया द्वारा ही हटाया जा सकता है
- कार्यपालिका से अलग प्रशासनिक नियंत्रण
- न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति
इन उपायों का उद्देश्य है कि न्यायपालिका निर्भीक और निष्पक्ष होकर न्याय कर सके।
83. संविधान की प्रस्तावना में “लोकतांत्रिक गणराज्य” का क्या अभिप्राय है?
“लोकतांत्रिक गणराज्य” का अर्थ है:
- लोकतांत्रिक: सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है, सभी नागरिकों को समान मताधिकार प्राप्त है।
- गणराज्य: राज्य का प्रमुख (राष्ट्रपति) विरासत में नहीं, बल्कि निर्वाचित होता है।
यह दोनों शब्द भारत में जनता की सर्वोच्चता, समानता और उत्तरदायित्व को दर्शाते हैं। भारत का शासन तंत्र लोगों के लिए, लोगों द्वारा और लोगों का है।
84. भारतीय संविधान में “एकल नागरिकता” का क्या महत्व है?
भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान है, जिसका अर्थ है कि कोई भी भारतीय नागरिक पूरे देश में एक समान अधिकारों का उपभोग करता है, चाहे वह किसी भी राज्य का निवासी हो। यह व्यवस्था राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बढ़ावा देती है। एकल नागरिकता नागरिकों को पूरे भारत में स्वतंत्र रूप से घूमने, कार्य करने और बसने का अधिकार देती है। यह व्यवस्था भारत के एकात्मक स्वरूप को भी दर्शाती है।
85. नीति निदेशक सिद्धांतों का संवैधानिक दर्जा क्या है?
राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत संविधान के भाग IV (अनुच्छेद 36 से 51) में वर्णित हैं। ये सिद्धांत न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं हैं, परंतु सरकार की नीति और कानून निर्माण में मार्गदर्शन करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में कहा है कि ये सिद्धांत संविधान की आत्मा हैं और राज्य का नैतिक कर्तव्य है कि वह इनका पालन करे। इन्हें कल्याणकारी राज्य की स्थापना हेतु आवश्यक माना गया है।
86. अनुच्छेद 32 को “मौलिक अधिकारों का संरक्षक” क्यों कहा जाता है?
अनुच्छेद 32 के अंतर्गत कोई भी नागरिक मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकता है। यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को रिट्स जारी करने की शक्ति देता है। डॉ. अम्बेडकर ने इसे “संविधान की आत्मा और हृदय” कहा था। यह मौलिक अधिकारों की संरक्षा और प्रवर्तन का सबसे प्रभावी उपाय है और भारतीय नागरिकों को संवैधानिक संरक्षण देता है।
87. अनुच्छेद 21 के अंतर्गत “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता” की अवधारणा क्या है?
अनुच्छेद 21 के अनुसार, “किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता, सिवाय विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार।” सुप्रीम कोर्ट ने इस अनुच्छेद का व्यापक व्याख्या करते हुए इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण, गरिमामय जीवन, निजता आदि को भी शामिल किया है। यह अधिकार व्यक्ति की मौलिक गरिमा और अस्तित्व की रक्षा करता है।
88. भारत में “लोक कल्याणकारी राज्य” की अवधारणा का संवैधानिक आधार क्या है?
भारतीय संविधान लोक कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना करता है, जहाँ राज्य नागरिकों की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक भलाई के लिए कार्य करता है। इसका आधार है:
- प्रस्तावना में “न्याय”
- नीति निदेशक सिद्धांत – अनुच्छेद 38, 39, 41, 43
- शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसी योजनाएँ
इस व्यवस्था का उद्देश्य है कि सभी वर्गों को समान अवसर और गरिमामय जीवन मिले।
89. संविधान की संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची क्या हैं?
शक्ति विभाजन हेतु संविधान में तीन सूचियाँ बनाई गई हैं:
- संघ सूची (List I): केवल संसद को अधिकार, जैसे रक्षा, विदेश नीति
- राज्य सूची (List II): केवल राज्य विधानमंडल को अधिकार, जैसे पुलिस, स्वास्थ्य
- समवर्ती सूची (List III): दोनों को अधिकार, जैसे शिक्षा, वन, विवाह
यदि समवर्ती सूची पर राज्य और केंद्र का कानून टकराता है, तो केंद्रीय कानून प्रभावी होता है (अनुच्छेद 254)।
90. अनुच्छेद 19 में उल्लिखित स्वतंत्रताएँ कौन-कौन सी हैं?
अनुच्छेद 19(1) नागरिकों को निम्नलिखित 6 मूलभूत स्वतंत्रताएँ प्रदान करता है:
- अभिव्यक्ति और विचार की स्वतंत्रता
- शांतिपूर्ण सभा की स्वतंत्रता
- संघ बनाने की स्वतंत्रता
- भारत में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता
- भारत में कहीं भी निवास करने की स्वतंत्रता
- किसी भी व्यवसाय, व्यापार, या पेशे को अपनाने की स्वतंत्रता
इन अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं (अनुच्छेद 19(2) से 19(6) तक)।
91. “संविधान का संशोधन” क्यों आवश्यक होता है?
समय और परिस्थितियों के अनुसार संविधान में परिवर्तन आवश्यक होता है ताकि यह वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों के साथ सामंजस्य बनाए रख सके। संविधान के अनुच्छेद 368 में संशोधन की प्रक्रिया दी गई है। संशोधन द्वारा जैसे:
- नए अधिकार जोड़े गए (जैसे 21A)
- नीति निदेशक सिद्धांतों में संशोधन
- आरक्षण, भाषा, पंचायती राज जैसे बदलाव
संविधान में लचीलापन और स्थिरता का संतुलन बनाए रखने हेतु संशोधन आवश्यक है।
92. मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध क्यों आवश्यक हैं?
मौलिक अधिकार निरंकुश नहीं हैं। इन पर कुछ संविधानसम्मत प्रतिबंध आवश्यक हैं ताकि:
- राष्ट्र की सुरक्षा बनी रहे
- सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता की रक्षा हो
- अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन न हो
उदाहरण: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कोई व्यक्ति हिंसा या घृणा फैलाने का कार्य नहीं कर सकता। ये प्रतिबंध संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी हैं।
93. संविधान में “अंतरराष्ट्रीय शांति” के सिद्धांत को कहाँ स्थान दिया गया है?
अनुच्छेद 51 नीति निदेशक सिद्धांतों के अंतर्गत भारत को अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बढ़ाने, युद्ध के उन्मूलन, संधियों के सम्मान, अंतरराष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने हेतु प्रोत्साहित करता है। यह भारत के वैश्विक दृष्टिकोण को दर्शाता है और भारत की विदेश नीति को संवैधानिक आधार प्रदान करता है।
94. “कानून के समक्ष समानता” और “समान संरक्षण” में क्या अंतर है?
- कानून के समक्ष समानता: सभी व्यक्ति विधि के समान हैं (कोई विशेषाधिकार नहीं)।
- समान संरक्षण: समान परिस्थितियों में सभी को समान विधिक उपाय प्राप्त होंगे।
संविधान का अनुच्छेद 14 दोनों को सुनिश्चित करता है। इसका उद्देश्य है कि न्याय में पक्षपात या भेदभाव न हो, और सभी को समान अवसर प्राप्त हो।
95. संविधान की “मौलिक संरचना” का सिद्धांत क्या है?
मौलिक संरचना सिद्धांत के अनुसार संविधान के कुछ आवश्यक तत्व जैसे – लोकतंत्र, न्यायिक स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता, संघीयता आदि को संशोधन द्वारा भी नहीं बदला जा सकता। यह सिद्धांत सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती केस (1973) में प्रतिपादित किया। इसका उद्देश्य संविधान की आत्मा की रक्षा करना है ताकि कोई भी सरकार मनमाने रूप से संविधान को न बदल सके।
96. संविधान की प्रस्तावना का व्याख्यात्मक महत्व क्या है?
प्रस्तावना संविधान का उद्देश्य, आदर्श और मूलभावना दर्शाती है। यह बताती है कि भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है और सभी नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व प्रदान करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने प्रस्तावना को संविधान का हिस्सा माना है और इसकी सहायता से संविधान की व्याख्या की जा सकती है।
97. नीति निदेशक सिद्धांतों का प्रभावी कार्यान्वयन कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है?
इन सिद्धांतों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए आवश्यक है:
- राजनीतिक इच्छाशक्ति
- पर्याप्त आर्थिक संसाधन
- न्यायिक सक्रियता और दिशा
- सशक्त लोक शिकायत तंत्र
इन सिद्धांतों को कानूनों, योजनाओं और नीतियों के माध्यम से लागू किया जा सकता है, जैसे – शिक्षा का अधिकार, पंचायती राज, महिला सशक्तिकरण आदि।
98. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की रिट शक्तियों में क्या अंतर है?
- अनुच्छेद 32: सुप्रीम कोर्ट केवल मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में रिट जारी कर सकता है।
- अनुच्छेद 226: उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के साथ-साथ अन्य विधिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में भी रिट जारी कर सकता है।
इस प्रकार, उच्च न्यायालय की रिट शक्ति अधिक विस्तृत है।
99. भारतीय संविधान में “न्याय” के तीन प्रकार कौन-कौन से हैं?
संविधान की प्रस्तावना में न्याय को तीन भागों में विभाजित किया गया है:
- सामाजिक न्याय – सभी को समान अवसर
- आर्थिक न्याय – संसाधनों का न्यायसंगत वितरण
- राजनीतिक न्याय – सभी को राजनीतिक भागीदारी
इन तीनों का उद्देश्य है एक समतामूलक और समरस समाज की स्थापना।
100. “लोकतंत्र में नागरिकों की भूमिका” क्या है?
लोकतंत्र में नागरिक केवल मतदाता नहीं, बल्कि सक्रिय सहभागी होते हैं। उनकी भूमिकाएँ हैं:
- मतदान द्वारा नेतृत्व चुनना
- कानूनों का पालन करना
- सामाजिक उत्तरदायित्व निभाना
- शासन पर निगरानी रखना
- अधिकारों के साथ कर्तव्यों का पालन
जागरूक और जिम्मेदार नागरिक लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करते हैं और शासन को उत्तरदायी बनाते हैं।