Conflict & War Law (विवाद और युद्ध कानून)


विवाद और युद्ध कानून (Conflict and War Law)

एक गहन अध्ययन


परिचय

जहाँ एक ओर विश्व शांति के लिए संयुक्त राष्ट्र और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ कार्यरत हैं, वहीं दूसरी ओर सशस्त्र संघर्ष (armed conflict) और युद्ध (war) आज भी मानवता के सामने एक गंभीर संकट बने हुए हैं। आधुनिक अंतरराष्ट्रीय कानून ने ऐसे समय में मानवाधिकारों की रक्षा और युद्ध की सीमाओं को निर्धारित करने के लिए विशेष कानूनों की रचना की है, जिन्हें “विवाद और युद्ध कानून” कहा जाता है।

विवाद और युद्ध कानून, जिसे अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून (International Humanitarian Law – IHL) भी कहा जाता है, का उद्देश्य है — युद्ध की स्थितियों में मानव जीवन की रक्षा, गैर-लड़ाकों (non-combatants) की सुरक्षा, और हथियारों तथा युद्ध के तरीकों पर नियंत्रण।


1. युद्ध कानून की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
(i) प्राचीन भारत में युद्ध नीति
  • महाभारत और मनुस्मृति जैसे ग्रंथों में भी युद्ध के नियम वर्णित हैं — जैसे कि रात्रि में युद्ध न करना, निहत्थों पर आक्रमण न करना आदि।
  • यह सिद्धांत “धर्मयुद्ध” के अंतर्गत आता था।
(ii) आधुनिक युग में विकास
  • 1859 में बैटल ऑफ सोल्फेरिनो के बाद हेनरी ड्यूनांट ने “रेड क्रॉस” की स्थापना की और युद्ध पीड़ितों के लिए कानूनी व्यवस्था की मांग उठाई।
  • इसके परिणामस्वरूप जेनेवा संधियाँ (Geneva Conventions) अस्तित्व में आईं।

2. युद्ध और संघर्ष कानून के स्रोत
स्रोत विवरण
जेनेवा संधियाँ (1949) युद्ध में घायल, बीमार सैनिकों, कैदियों और नागरिकों की सुरक्षा के लिए चार मुख्य संधियाँ।
हेग कन्वेंशन (1899, 1907) हथियारों, युद्ध विधियों और जमीन-संबंधी नियमों पर नियंत्रण।
अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) का रोम संविधि (1998) युद्ध अपराध, मानवता के विरुद्ध अपराध, नरसंहार आदि के लिए दंड व्यवस्था।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर (1945) शांति बनाए रखने और युद्ध को रोकने के लिए कानूनी रूपरेखा।
अन्य मानवाधिकार संधियाँ जैसे ICCPR, ICESC आदि जो युद्ध के समय भी लागू रहते हैं।

3. युद्ध कानून का उद्देश्य
  • युद्ध की भयावहता को सीमित करना
  • निर्दोष नागरिकों की सुरक्षा करना
  • युद्ध के नियम और नैतिकता स्थापित करना
  • युद्ध अपराधों के लिए उत्तरदायित्व तय करना
  • शांतिपूर्ण समाधान को प्राथमिकता देना

4. युद्ध कानून के प्रमुख सिद्धांत
(i) विभेद का सिद्धांत (Principle of Distinction)

सैनिकों और नागरिकों में स्पष्ट भेद होना चाहिए। नागरिकों, अस्पतालों, धार्मिक स्थलों को निशाना बनाना प्रतिबंधित है।

(ii) अनुपात का सिद्धांत (Principle of Proportionality)

किसी सैन्य हमले में अपेक्षित सैन्य लाभ के मुकाबले अतिरेक नुकसान नहीं होना चाहिए।

(iii) आवश्यकता का सिद्धांत (Military Necessity)

सिर्फ वही हिंसा उचित है जो सैन्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए आवश्यक हो।

(iv) अनावश्यक पीड़ा का निषेध (No Unnecessary Suffering)

ऐसे हथियार या विधियाँ जो अत्यधिक और अनावश्यक पीड़ा दें, उन्हें प्रतिबंधित किया गया है।


5. जेनेवा संधियों का विवरण
(i) प्रथम संधि

जमीनी युद्ध में घायल सैनिकों की सुरक्षा।

(ii) द्वितीय संधि

जल युद्ध (naval warfare) में घायल सैनिकों और नाविकों की सुरक्षा।

(iii) तृतीय संधि

युद्धबंदियों (Prisoners of War – POWs) के अधिकार और उनकी मानवीय सुरक्षा।

(iv) चतुर्थ संधि

सामान्य नागरिकों की युद्ध के दौरान सुरक्षा।

(प्रोटोकॉल्स I, II, III)

1977 और 2005 में जुड़े प्रोटोकॉल्स ने अंतरराष्ट्रीय और गैर-अंतरराष्ट्रीय संघर्षों में सुरक्षा के प्रावधान बढ़ाए।


6. युद्ध अपराध (War Crimes)
क्या है युद्ध अपराध?

वह कृत्य जो युद्ध कानूनों का गंभीर उल्लंघन करते हैं।

उदाहरण:
  • नागरिकों की हत्या
  • बलात्कार, यातना
  • रेड क्रॉस चिह्न का दुरुपयोग
  • रासायनिक/जैविक हथियारों का प्रयोग
  • बंधकों का उपयोग
न्यायिक मंच:
  • अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC)
  • युद्ध अपराध ट्राइब्यूनल (जैसे नुरेमबर्ग, युगोस्लाविया, रवांडा आदि)

7. भारत और युद्ध कानून
(i) भारत जेनेवा संधियों का पक्षकार है।

भारत ने 1949 की चारों जेनेवा संधियों को स्वीकृति दी है।

(ii) भारत युद्धबंदियों के साथ उचित व्यवहार करता है।

1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारत ने लगभग 90,000 पाकिस्तानी युद्धबंदियों को जेनेवा संधियों के अनुसार रखा।

(iii) भारत ICC का सदस्य नहीं है।

भारत ने ICC के रोम संविधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं क्योंकि इसमें राजनीतिक दखल की आशंका और संप्रभुता पर खतरे की संभावना जताई जाती है।


8. भारत के संविधान में युद्ध की स्थिति
प्रावधान विवरण
अनुच्छेद 352 राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करने का अधिकार (युद्ध, आक्रमण या बाहरी आक्रामकता के समय)
अनुच्छेद 51 अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में भारत का दायित्व
सातवीं अनुसूची (संघ सूची) युद्ध और शांति पर कानून बनाना केवल केंद्र सरकार का कार्यक्षेत्र

9. युद्ध और मीडिया: सूचना का युद्ध

आधुनिक युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि प्रचार, अफवाह और सूचना नियंत्रण से भी लड़े जाते हैं। युद्ध कानून मीडिया को भी सीमित करते हैं:

  • अफवाहें फैलाना अपराध माना जा सकता है
  • युद्ध क्षेत्र की रिपोर्टिंग नियंत्रित होती है
  • प्रचार सामग्री पर प्रतिबंध लगाए जाते हैं

10. वर्तमान वैश्विक सन्दर्भ
(i) रूस-यूक्रेन युद्ध (2022–वर्तमान)
  • नागरिक ठिकानों पर हमले युद्ध अपराध माने गए
  • लाखों लोगों का विस्थापन
  • अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा ICC में जांच शुरू
(ii) इज़राइल-गाजा संघर्ष
  • युद्ध अपराध के आरोप, जेनेवा संधियों की अपील
  • मानवीय गलियारों और सहायता पर विवाद

11. युद्ध कानून की आलोचना और सीमाएँ
  • प्रभावी प्रवर्तन की कमी
  • शक्तिशाली देशों का दायित्व से बचना
  • ICC पर पक्षपात के आरोप
  • आतंकवाद जैसे आधुनिक संघर्षों में कानून अप्रभावी साबित हो रहे हैं

12. युद्ध कानून का भविष्य
  • तकनीक आधारित युद्ध (ड्रोन, साइबर अटैक) के लिए नए कानूनों की आवश्यकता
  • मानव सुरक्षा (Human Security) को प्राथमिकता
  • प्रभावी प्रवर्तन तंत्र का निर्माण
  • मानवाधिकार और IHL का एकीकरण

निष्कर्ष

विवाद और युद्ध कानून मानवता के लिए वह ढाल हैं जो युद्ध की विभीषिकाओं में भी एक नैतिक रेखा खींचते हैं। ये कानून हमें यह स्मरण कराते हैं कि “युद्ध में भी कानून होते हैं”।

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए यह आवश्यक है कि वह अंतरराष्ट्रीय युद्ध कानूनों को स्वीकार करे, अपने संविधान के अनुरूप उन्हें कार्यान्वित करे, और वैश्विक शांति में भागीदार बने।