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Chargesheet देर से दाखिल होने पर आरोपी का Default Bail: CrPC 167(2) का अधिकार

Chargesheet देर से दाखिल होने पर आरोपी का Default Bail: CrPC 167(2) का अधिकार

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में आरोपी की हिरासत और जमानत से जुड़े प्रावधान न्यायपालिका और पुलिस प्रशासन दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। जब कोई व्यक्ति किसी अपराध में आरोपी होता है और उसे पुलिस द्वारा हिरासत में लिया जाता है, तो उसके अधिकार और पुलिस की समयबद्ध कार्रवाई की जिम्मेदारी कानूनी दृष्टि से स्पष्ट रूप से निर्धारित है। विशेष रूप से, CrPC की धारा 167(2) में आरोपी को “Default Bail” या “Statutory Bail” का अधिकार दिया गया है यदि पुलिस समय पर चार्जशीट दाखिल करने में विफल रहती है। इस लेख में हम विस्तार से चर्चा करेंगे कि यह अधिकार किस आधार पर मिलता है, इसकी सीमा, सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या और व्यवहारिक महत्त्व क्या है।


1. CrPC 167(2) का प्रावधान

धारा 167 भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की सबसे महत्वपूर्ण धाराओं में से एक है, जो गिरफ्तारी और पुलिस हिरासत की अवधि का निर्धारण करती है। विशेष रूप से, धारा 167(2) में यह प्रावधान है:

  • यदि कोई आरोपी पुलिस हिरासत में है और गंभीर अपराध (जैसे IPC के तहत 7 साल या उससे अधिक की सजा वाले अपराध) में चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती, तो आरोपी को Default Bail का हक है।
  • सामान्य अपराधों में भी, यदि पुलिस 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं करती, तो आरोपी को Statutory Bail दिया जाना चाहिए।
  • 90 दिनों के भीतर गंभीर अपराधों में चार्जशीट दाखिल न होने पर आरोपी को जमानत का हक है।

इसका अर्थ है कि पुलिस की देरी के कारण आरोपी को हिरासत में रखना कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं है, और इसे अदालत आसानी से नकार नहीं सकती।


2. Default Bail: Statutory Right

Default Bail को Statutory Right कहा जाता है क्योंकि यह किसी विशेष स्थिति में कानून द्वारा आरोपी को स्वतः प्राप्त अधिकार है। इसे Discretionary Bail से अलग माना जाता है।

  • Discretionary Bail में कोर्ट आरोपी के चरित्र, अपराध की गंभीरता, सबूतों की प्रकृति आदि पर विचार कर सकती है।
  • Default Bail में आरोपी का अधिकार Police की देरी पर आधारित होता है, न कि अपराध के सबूतों पर।

सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में स्पष्ट किया है कि Default Bail को आसानी से नकारा नहीं जा सकता। इसे आरोपी का संवैधानिक और कानूनी अधिकार माना जाता है।


3. किस परिस्थिति में Default Bail लागू होती है?

  1. अपराध की प्रकृति:
    • यदि अपराध IPC के तहत 7 साल या उससे अधिक की सजा का अपराध है, तो चार्जशीट 90 दिनों के भीतर दाखिल करनी होती है।
    • यदि अपराध 7 साल से कम की सजा का है, तो चार्जशीट 60 दिनों के भीतर दाखिल करनी होती है।
  2. पुलिस की देरी:
    • यदि पुलिस किसी भी वजह से निर्धारित अवधि में चार्जशीट दाखिल नहीं करती, तो आरोपी को Default Bail मिलना चाहिए।
  3. अदालत की भूमिका:
    • अदालत केवल इस बात की पुष्टि करती है कि चार्जशीट समय पर दाखिल नहीं हुई।
    • अदालत आरोपी को Evidence या अपराध की गंभीरता के आधार पर Default Bail से वंचित नहीं कर सकती।

4. सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय

a) Hussainara Khatoon v. State of Bihar (1979)

यह मामला भारतीय न्याय व्यवस्था में Default Bail की अवधारणा को स्पष्ट करने वाला है।

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि असहमति और देरी के कारण हिरासत में रखना अनुचित और गैरकानूनी है।
  • हिरासत में अत्यधिक समय तक रखे जाने वाले आरोपी का अधिकार है कि उसे तुरंत जमानत दी जाए यदि चार्जशीट समय पर दाखिल नहीं हुई।

b) S.K. Basu v. State of West Bengal (1996)

  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि Default Bail एक अधिकार है, सुविधा नहीं
  • पुलिस और प्रशासन को आरोपी को अनावश्यक हिरासत में रखने का कोई अधिकार नहीं है।

c) Gurcharan Singh v. State of Punjab (2003)

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि चार्जशीट समय पर दाखिल नहीं हुई है, तो आरोपी को स्वचालित रूप से जमानत मिलनी चाहिए।
  • Evidence की जांच Default Bail देने में बाधा नहीं बन सकती।

5. Default Bail की प्रक्रिया

Step 1: आवेदन

  • आरोपी या उसका अधिवक्ता कोर्ट में Default Bail के लिए आवेदन करता है।
  • आवेदन में यह उल्लेख किया जाता है कि चार्जशीट निर्दिष्ट अवधि में दाखिल नहीं हुई।

Step 2: कोर्ट का आदेश

  • कोर्ट चार्जशीट दाखिल होने की स्थिति की जांच करती है।
  • यदि पुलिस ने तय समय सीमा का उल्लंघन किया है, तो अदालत जमानत आदेश जारी करती है।

Step 3: शर्तें

  • कोर्ट आरोपी को जमानत देते समय कुछ शर्तें लगा सकती है, जैसे:
    • गिरफ्तारी होने पर कोर्ट में उपस्थित रहना
    • अपराध से संबंधित गवाहों या सबूतों से छेड़छाड़ न करना
  • इन शर्तों के बावजूद, Default Bail एक बाध्यकारी अधिकार है।

6. Default Bail के लाभ

  1. अनावश्यक हिरासत से बचाव:
    • आरोपी को लंबे समय तक हिरासत में रखना उसकी स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
  2. कानूनी निश्चितता:
    • पुलिस और प्रशासन को तय अवधि के भीतर चार्जशीट दाखिल करने के लिए बाध्य किया जाता है।
  3. मानवाधिकार की रक्षा:
    • International Human Rights और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अनुरूप है।
  4. सिस्टम पर निगरानी:
    • यह पुलिस और प्रशासन को अनुचित देरी से रोकता है और न्याय प्रणाली में पारदर्शिता बढ़ाता है।

7. Default Bail और Discretionary Bail में अंतर

विशेषता Default Bail Discretionary Bail
आधार Police की देरी अपराध की गंभीरता, आरोपी का चरित्र, सबूत
अधिकार Statutory Right कोर्ट का निर्णयात्मक अधिकार
Evidence का महत्व नहीं हाँ, महत्वपूर्ण
अदालत की भूमिका केवल समय सीमा जांच कोर्ट स्वतंत्र निर्णय ले सकती है

8. सामान्य भ्रांतियाँ

  1. “Default Bail सिर्फ गंभीर अपराध में मिलता है” – यह गलत है।
    • गंभीर अपराध में 90 दिन, अन्य अपराध में 60 दिन की अवधि होती है।
  2. “Evidence कमजोर होने पर Default Bail नहीं मिलेगा” – यह भी गलत है।
    • Evidence की शक्ति Default Bail को प्रभावित नहीं करती।
  3. “कोर्ट Default Bail मना सकती है” – केवल कानून में निर्दिष्ट परिस्थितियों में।

9. व्यवहारिक सुझाव

  1. अधिवक्ता की भूमिका:
    • Default Bail का आवेदन सही समय पर और विधिवत प्रस्तुत करना आवश्यक है।
  2. पुलिस और प्रॉसिक्यूशन की जिम्मेदारी:
    • चार्जशीट समय पर दाखिल करना अनिवार्य है।
    • अनावश्यक देरी से आरोपी की जमानत का हक बन जाता है।
  3. कोर्ट का नजरिया:
    • कोर्ट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आरोपी का Statutory Right बाधित न हो।

10. निष्कर्ष

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167(2) का उद्देश्य अभिनेता की अनावश्यक हिरासत से रक्षा करना और पुलिस प्रशासन को समयबद्ध कार्रवाई के लिए बाध्य करना है। Default Bail एक कानूनी और संवैधानिक अधिकार है, जिसे अदालत आसानी से नकार नहीं सकती। यह आरोपी की स्वतंत्रता और न्याय प्रणाली की पारदर्शिता दोनों की रक्षा करता है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों ने इसे और स्पष्ट किया है कि Default Bail को Statutory Right माना जाता है, और यह Evidence या अपराध की गंभीरता पर आधारित नहीं होता। इसलिए, यह भारतीय न्याय प्रणाली का एक अहम स्तंभ है, जो पुलिस और प्रशासनिक प्रणाली में अनुशासन बनाए रखने में मदद करता है।

याद रखिए: Default Bail केवल पुलिस की देरी पर आधारित होता है, न कि आरोपी की दोषसिद्धि पर। यह आरोपी के अधिकारों का संरक्षक है और भारतीय न्यायिक प्रणाली की मजबूती का प्रतीक है।


1. Default Bail क्या है?

उत्तर: Default Bail वह जमानत है जो आरोपी को कानून द्वारा स्वतः मिलती है, यदि पुलिस निर्धारित समय सीमा (60 या 90 दिन) के भीतर चार्जशीट दाखिल करने में विफल रहती है। इसे Statutory Right माना जाता है।


2. CrPC धारा 167(2) के तहत Default Bail कब लागू होती है?

उत्तर:

  • सामान्य अपराध: 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल न होने पर।
  • गंभीर अपराध (IPC के तहत 7 साल या उससे अधिक की सजा वाले अपराध): 90 दिनों के भीतर।

3. Default Bail और Discretionary Bail में क्या अंतर है?

उत्तर:

  • Default Bail: पुलिस की देरी पर आधारित, Statutory Right।
  • Discretionary Bail: कोर्ट का निर्णय, Evidence, अपराध की गंभीरता, आरोपी के चरित्र पर आधारित।

4. क्या Evidence की कमजोरी Default Bail को प्रभावित करती है?

उत्तर: नहीं। Default Bail केवल पुलिस की देरी पर आधारित है, Evidence की शक्ति इससे प्रभावित नहीं होती।


5. क्या कोर्ट Default Bail को आसानी से नकार सकती है?

उत्तर: नहीं। इसे Statutory Right माना जाता है और अदालत इसे आसानी से नकार नहीं सकती। केवल कानून में निर्दिष्ट परिस्थितियों में ही रोक संभव है।


6. Default Bail के लिए आवेदन कौन कर सकता है?

उत्तर: आरोपी स्वयं या उसके अधिवक्ता कोर्ट में Default Bail के लिए आवेदन कर सकता है।


7. सुप्रीम कोर्ट ने Default Bail पर क्या कहा है?

उत्तर:

  • Hussainara Khatoon v. Bihar (1979): हिरासत में अत्यधिक देरी गैरकानूनी है।
  • S.K. Basu v. West Bengal (1996): Default Bail एक अधिकार है।
  • Gurcharan Singh v. Punjab (2003): चार्जशीट न होने पर आरोपी को स्वतः जमानत मिलनी चाहिए।

8. Default Bail मिलने पर अदालत किन शर्तों को लगा सकती है?

उत्तर:

  • कोर्ट में उपस्थित रहने की शर्त।
  • अपराध से संबंधित गवाहों या सबूतों से छेड़छाड़ न करना।
  • अन्य सामान्य शर्तें जो केस की प्रकृति के अनुसार जरूरी हों।

9. Default Bail क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर:

  • अनावश्यक हिरासत से बचाता है।
  • पुलिस और प्रशासन को समय पर कार्रवाई के लिए बाध्य करता है।
  • आरोपी के मानवाधिकार (Article 21) की रक्षा करता है।

10. यदि पुलिस चार्जशीट समय पर दाखिल कर देती है तो क्या Default Bail मिलेगा?

उत्तर: नहीं। Default Bail केवल तब लागू होती है जब पुलिस निर्धारित अवधि में चार्जशीट दाखिल करने में विफल रहती है।