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Bombay High Court का ऐतिहासिक निर्णय: International Non-Proprietary Names (INN) आधारित दवा नामों पर किसी कंपनी का एकाधिकार (Monopoly) नहीं—अदालत ने सिद्धांत की पुनः पुष्टि की

Bombay High Court का ऐतिहासिक निर्णय: International Non-Proprietary Names (INN) आधारित दवा नामों पर किसी कंपनी का एकाधिकार (Monopoly) नहीं—अदालत ने सिद्धांत की पुनः पुष्टि की

      भारत में दवा उद्योग (Pharmaceutical Industry) अत्यंत विकसित और प्रतिस्पर्धी क्षेत्र है। विश्व की दवा–निर्माण क्षमता में भारत की प्रमुख भूमिका है, लेकिन इसके साथ दवाओं के ट्रेडमार्क (Trademark) और जनरिक नामों (Generic Names) को लेकर कानूनी विवाद भी बार-बार सामने आते रहते हैं। विशेष रूप से International Non-Proprietary Names (INN) — जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित दवाओं के वैज्ञानिक, प्रचलित और गैर-एकाधिकार वाले नाम होते हैं — उन पर दवा कंपनियों द्वारा ट्रेडमार्क अधिकार लेने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही थी। ऐसे समय में Bombay High Court ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया है कि INN आधारित नामों पर कोई कंपनी व्यक्तिगत अधिकार या एकाधिकार दावा नहीं कर सकती।

       यह निर्णय न केवल भारतीय दवा उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि उपभोक्ता अधिकारों, सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति, और वैश्विक फार्मास्यूटिकल विनियमन के सिद्धांतों को भी मजबूती प्रदान करता है। अदालत ने कहा कि INN का उद्देश्य ही है कि उन्हें सार्वभौमिक उपयोग की स्वतंत्रता मिले, ताकि दवा की पहचान स्पष्ट, समान और चिकित्सकों तथा मरीजों के लिए आसानी से समझने योग्य हो।

इस विस्तृत विश्लेषणात्मक लेख में हम जानेंगे—

  • INN क्या है?
  • INN पर एकाधिकार क्यों संभव नहीं?
  • मामला क्या था?
  • High Court ने किन कानूनी सिद्धांतों पर विचार किया?
  • निर्णय का उद्योग, उपभोक्ता और कानून पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

1. International Non-Proprietary Names (INN) क्या होते हैं?

INN दवाओं के ऐसे अंतरराष्ट्रीय मानकीकृत नाम होते हैं जिन्हें WHO निर्धारित करता है ताकि:

  • किसी रासायनिक पदार्थ या दवा की पहचान विश्व स्तर पर समान रहे,
  • जनरिक दवाएँ बनाने वाली कंपनियाँ आसानी से दवा का उल्लेख कर सकें,
  • मरीजों, डॉक्टरों और फार्मासिस्टों को भ्रम की स्थिति न हो,
  • किसी भी कंपनी को वैज्ञानिक नाम पर एकाधिकार या निजी स्वामित्व न मिले।

उदाहरण के लिए:

  • Paracetamol
  • Amoxicillin
  • Ciprofloxacin
  • Metformin
  • Azithromycin

ये सभी INN नाम हैं और कोई भी कंपनी इन पर ट्रेडमार्क दावा नहीं कर सकती।

WHO का उद्देश्य है कि दुनिया भर के मरीज एक ही दवा को अलग-अलग नामों में न उलझें। इसलिए INN सदैव generic, universal और non-proprietary होते हैं।


2. विवाद क्या था?

मामला उन कंपनियों से जुड़ा था जो INN के समान, मिलते-जुलते या आंशिक रूप से व्युत्पन्न नामों पर ट्रेडमार्क claim कर रही थीं। इसके बाद वे अन्य दवा कंपनियों को वही नाम उपयोग करने से रोकने के लिए—

  • ट्रेडमार्क उल्लंघन (infringement)
  • passing off
  • मार्केट से समान नाम वाली दवाओं को हटाने

जैसे मुकदमे दायर कर रही थीं।

इस विवाद में याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट से आग्रह किया कि:

  • INN आधारित नाम उनके registered trademarks हैं,
  • इसलिए अन्य कंपनियों को उन नामों का उपयोग करने से रोका जाए।

प्रतिवादी कंपनियों ने तर्क दिया कि:

  • INN पर कोई भी कंपनी ट्रेडमार्क अधिकार नहीं ले सकती,
  • ऐसा करना WHO के दिशानिर्देशों के विरुद्ध है,
  • यदि INN आधारित नामों पर एक कंपनी का एकाधिकार हो जाए तो जनरिक दवा उद्योग प्रभावित होगा।

3. अदालत के समक्ष मुख्य प्रश्न

Bombay High Court को यह तय करना था कि—

क्या INN आधारित दवा नाम या उनसे मिलते-जुलते घटक ट्रेडमार्क हो सकते हैं?

या

क्या ऐसा दावा सार्वजनिक हित के विरुद्ध है?


4. Bombay High Court का तर्क: INN पर एकाधिकार कभी नहीं हो सकता

अदालत ने WHO गाइडलाइन, भारतीय ट्रेडमार्क कानून और सार्वजनिक हित को देखते हुए कई ठोस कारण दिए।

(1) INN वैश्विक सार्वजनिक संपत्ति (public property) हैं

अदालत ने कहा:

  • WHO ने INN को intentionally “non-proprietary” रखा है,
  • उनका उद्देश्य किसी कंपनी का निजी स्वामित्व कभी बनना नहीं है,
  • INN का मूल स्वरूप ही open source जैसा है।

(2) INN पर ट्रेडमार्क देना कानून के विरुद्ध है

भारतीय ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 9(1)(b) के अनुसार—

ऐसे नाम या शब्द जो दवा का प्रकार, गुणवत्ता, प्रकृति या वैज्ञानिक पहचान बताते हैं, उन्हें ट्रेडमार्क नहीं दिया जा सकता।

INN इसी श्रेणी में आते हैं।

(3) मरीजों और डॉक्टरों में भ्रम की संभावना बढ़ती है

यदि एक कंपनी INN या उसके हिस्से पर monopoly का दावा करेगी, और दूसरी कंपनी को रोक देगी, तो:

  • मरीज सही दवा नहीं पहचान पाएगा,
  • डॉक्टरों में भ्रम पैदा होगा,
  • दवा की उपलब्धता प्रभावित होगी।

(4) INN पर ट्रेडमार्क देना प्रतिस्पर्धा को खत्म करेगा

यदि INN आधारित नाम निजी स्वामित्व में चले गए—

  • जनरिक दवा कंपनियाँ उनके उपयोग से वंचित हो जाएँगी,
  • इससे दवाएँ महंगी होंगी,
  • स्वास्थ्य सेवाएँ प्रभावित होंगी।

(5) WHO की स्पष्ट नीति — INN को कभी ट्रेडमार्क न बनाया जाए

WHO की गाइडलाइन कहती है:

INN को किसी भी प्रकार से proprietary status नहीं दिया जा सकता।

अदालत ने इस नीति को भारतीय सार्वजनिक हित के अनुरूप माना।


5. अदालत के निर्णय की मुख्य बातें

✔ INN based दवा नामों पर कोई कंपनी एकाधिकार नहीं ले सकती।

✔ INN या उसके derivatives पर trademark claim अवैध है।

✔ मरीजों का भ्रम रोकना और सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा कानून का कर्तव्य है।

✔ Plaintiff कंपनी अन्य कंपनियों को ऐसे नामों के उपयोग से नहीं रोक सकती।

✔ यह निर्णय भारत के दवा बाजार में खुली प्रतियोगिता को बढ़ाएगा।


6. यह निर्णय क्यों अत्यंत महत्वपूर्ण है?

(A) सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा

दवाओं के नामों में भ्रम पैदा होना अत्यंत खतरनाक हो सकता है।
यदि समान दवाओं के लिए अलग-अलग कंपनियाँ “brand-like generic names” रख लें, तो—

  • गलत दवा देने की संभावना बढ़ती है,
  • मरीज की सेहत जोखिम में पड़ सकती है।

(B) दवाओं की कीमतें नियंत्रित रहेंगी

INN को proprietary नहीं बनाया जा सकता, इससे—

  • जनरिक दवा निर्माता मशीनरी बनी रहेगी,
  • कीमतें कम रहेंगी,
  • गरीब मरीजों को राहत मिलेगी।

(C) भारतीय और वैश्विक फार्मा मानकों में एकरूपता

WHO के मानकों को मानते हुए भारत ने एक सुदृढ़ वैश्विक संकेत दिया है कि—

  • वैज्ञानिक नाम global commons हैं,
  • उन पर private monopoly अस्वीकार्य है।

(D) फार्मा उद्योग में गलत ट्रेडमार्क प्रथाओं पर रोक

कई कंपनियाँ INN के समान लगने वाले नामों को ट्रेडमार्क करवाकर monopoly हासिल करने की कोशिश करती थीं।
यह प्रथा अब न्यायिक रूप से अनुचित घोषित हो गई।


7. भारतीय न्यायपालिका द्वारा पहले भी दी गई समान टिप्पणियाँ

Bombay High Court के इस निर्णय से पहले भी कई न्यायालयों ने कहा था कि—

  • Generic नामों या salt composition को ट्रेडमार्क नहीं बनाया जा सकता,
  • दवा उद्योग में उपभोक्ता संरक्षण सर्वोपरि है,
  • “passing off” की दलील INN के संदर्भ में टिक नहीं सकती क्योंकि वे non-proprietary हैं।

यह फैसला उन निर्णयों की पुनः पुष्टि करता है।


8. ट्रेडमार्क और दवा उद्योग: एक संवेदनशील संतुलन

भारत में दवाओं के ट्रेडमार्क दो श्रेणियों में होते हैं—

  1. Brand Names — कंपनी द्वारा बनाए गए विशिष्ट नाम
  2. Generic/INN Names — सार्वजनिक उपयोग हेतु स्वतंत्र नाम

Brand names पर monopoly संभव है।
लेकिन generic नाम पर नहीं।

कई कंपनियाँ INN के आस-पास नाम बनाकर ऐसा दिखावा करती थीं कि वे brand हैं, परंतु वास्तव में वे INN के derivative ही होते थे।
इसी प्रवृत्ति को अदालत ने कड़ाई से रोका।


9. WHO की चेतावनी: चिकित्सा सुरक्षा के लिए INN को non-proprietary रखना आवश्यक

WHO कई बार कह चुका है—

  • INN के उपयोग पर proprietary अधिकार देना दवा सुरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है,
  • इससे मरीजों और डॉक्टर्स में भ्रम फैल सकता है,
  • Health systems की uniformity पर असर पड़ता है।

Bombay High Court ने WHO के इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण को पूरी दृढ़ता से स्वीकार किया।


10. निर्णय का भविष्य पर प्रभाव

(1) फार्मा कंपनियों पर सीधा प्रभाव

  • वे INN या उसके भागों को trademark के रूप में claim नहीं कर पाएँगी।
  • उन्हें पूरी तरह नए, विशिष्ट और गैर-जनरिक brand names बनाने होंगे।

(2) जनरिक दवा उद्योग को मजबूती

  • competition बढ़ेगी,
  • मूल्य नियंत्रण बेहतर होगा,
  • उपलब्धता बढ़ेगी।

(3) मरीज और चिकित्सकों को स्पष्टता

  • एक दवा का एक ही सार्वभौमिक नाम रहेगा,
  • prescribing errors कम होंगे।

(4) भविष्य के मुकदमों पर असर

  • इस निर्णय को उद्धृत कर कई pending trademark मुकदमे समाप्त होंगे।
  • अदालतों में स्पष्ट सिद्धांत स्थापित हो गया है।

निष्कर्ष : निर्णय सार्वजनिक हित, वैश्विक मानक और कानूनी सिद्धांतों का सशक्त संगम है

      Bombay High Court का यह निर्णय केवल एक ट्रेडमार्क विवाद नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, सुरक्षा, सार्वजनिक हित और कानून के बीच संतुलन का आदर्श उदाहरण है। अदालत का यह कहना कि—

INN आधारित नामों पर कोई भी कंपनी एकाधिकार का दावा नहीं कर सकती,

भारतीय दवा उद्योग के लिए अत्यंत दूरगामी महत्व रखता है।

यह निर्णय—

  • WHO मानकों को मजबूती,
  • मरीजों की सुरक्षा,
  • दवा की उपलब्धता और
  • जनरिक दवा उद्योग के महत्व

सभी को एक साथ संरक्षित करता है।

कानून का मूल उद्देश्य यही है—
सार्वजनिक हित की रक्षा, चिकित्सा में स्पष्टता, और वैज्ञानिक नामों की सार्वभौमिक उपयोगिता को संरक्षित रखना।