IndianLawNotes.com

BNSS की धारा 35: बिना वारंट गिरफ्तारी के नियम और नागरिक स्वतंत्रता की सुरक्षा

BNSS की धारा 35: बिना वारंट गिरफ्तारी के नियम और नागरिक स्वतंत्रता की सुरक्षा

भूमिका

भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) नागरिक स्वतंत्रता और सामाजिक व्यवस्था के बीच संतुलन बनाए रखने का कार्य करती है। 2023 में संसद ने भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita – BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Bharatiya Sakshya Adhiniyam – BSA) को पारित किया, जिन्होंने पुराने IPC, CrPC और Evidence Act की जगह ली। इन नए कानूनों का उद्देश्य आधुनिक समय के अनुरूप न्याय प्रणाली को अधिक प्रभावी, त्वरित और पारदर्शी बनाना है।

इसी क्रम में BNSS की धारा 35 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो पुलिस द्वारा बिना वारंट गिरफ्तारी (Arrest without Warrant) की प्रक्रिया और उसकी सीमाओं को निर्धारित करती है। यह धारा पुलिस को अधिकार तो देती है, लेकिन साथ ही नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए कई शर्तें और सुरक्षा उपाय भी प्रदान करती है।


धारा 35 का मुख्य प्रावधान

धारा 35 स्पष्ट करती है कि—

  1. संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) होने पर पुलिस अधिकारी बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकता है।
  2. गिरफ्तारी करते समय पुलिस को कारण बताना अनिवार्य है।
  3. यदि गिरफ्तारी आवश्यक न हो, तो पुलिस आरोपी को सीधे गिरफ्तार करने की बजाय नोटिस/समन देकर बुला सकती है
  4. यदि आरोपी नोटिस का पालन करता है, तो उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
  5. गिरफ्तारी केवल उन्हीं परिस्थितियों में होगी, जहाँ यह न्याय, जांच या समाज की सुरक्षा के लिए आवश्यक हो।

धारा 35 के अंतर्गत गिरफ्तारी की परिस्थितियाँ

पुलिस केवल उन्हीं मामलों में बिना वारंट गिरफ्तारी कर सकती है, जब—

  • अपराध संज्ञेय (Cognizable) हो और उसके लिए सजा सात वर्ष या उससे अधिक हो।
  • आरोपी फरार होने की संभावना हो।
  • आरोपी साक्ष्यों को नष्ट कर सकता हो।
  • आरोपी गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश कर सकता हो।
  • अपराध की गंभीरता के आधार पर गिरफ्तारी जनहित में आवश्यक हो।

गिरफ्तारी न होने पर नोटिस का प्रावधान

  • यदि पुलिस को लगे कि गिरफ्तारी आवश्यक नहीं है, तो वह आरोपी को धारा 35(3) के तहत नोटिस जारी करके बुला सकती है
  • आरोपी नोटिस का पालन करता है तो उसे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
  • केवल तब गिरफ्तारी हो सकती है जब आरोपी नोटिस की शर्तों का पालन न करे

आरोपी के अधिकार (Accused Rights) धारा 35 के तहत

BNSS धारा 35 केवल पुलिस को अधिकार नहीं देती, बल्कि आरोपी को भी कई मौलिक अधिकार प्रदान करती है:

  1. गिरफ्तारी का कारण जानने का अधिकार – आरोपी को यह बताना अनिवार्य है कि उसे किस अपराध में गिरफ्तार किया जा रहा है।
  2. वकील से सलाह का अधिकार – आरोपी को अपने अधिवक्ता से परामर्श लेने का अधिकार है।
  3. मुफ्त कानूनी सहायता का अधिकार – यदि आरोपी वकील रखने में असमर्थ है तो राज्य मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करेगा।
  4. मनमानी गिरफ्तारी से सुरक्षा – बिना पर्याप्त कारण बताए पुलिस किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकती।
  5. न्यायिक समीक्षा का अधिकार – आरोपी न्यायालय में अपनी गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती दे सकता है।

सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या

सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में गिरफ्तारी और नोटिस के संबंध में महत्वपूर्ण व्याख्याएँ की हैं:

  • Arnesh Kumar v. State of Bihar (2014) – अदालत ने कहा कि पुलिस केवल उन्हीं मामलों में गिरफ्तारी करे जहाँ यह आवश्यक हो। अन्यथा, धारा 41A (अब BNSS धारा 35) के तहत आरोपी को नोटिस देकर बुलाया जाए।
  • सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि नोटिस को शारीरिक रूप से (physically) देना आवश्यक है। केवल मौखिक सूचना या डिजिटल नोटिस पर्याप्त नहीं होगा।

धारा 35 और मौलिक अधिकार

यह प्रावधान सीधे तौर पर अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) से जुड़ा है।

  • अनुच्छेद 21 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता, सिवाय कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत।
  • धारा 35 यह सुनिश्चित करती है कि पुलिस केवल उसी स्थिति में गिरफ्तारी करेगी जब यह वास्तव में आवश्यक हो, अन्यथा आरोपी को कानूनी सुरक्षा प्रदान की जाएगी।

धारा 35 का उद्देश्य

  1. अपराध पर नियंत्रण – गंभीर अपराधों में पुलिस को तुरंत कार्रवाई का अधिकार देना।
  2. नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा – मनमानी गिरफ्तारी को रोकना और आरोपी को न्यायोचित अधिकार प्रदान करना।
  3. जांच प्रक्रिया को संतुलित करना – आरोपी को सहयोग के लिए नोटिस देकर बुलाना, जिससे अनावश्यक गिरफ्तारी से बचा जा सके।
  4. न्यायिक हस्तक्षेप की सुविधा – गिरफ्तारी की स्थिति में आरोपी को अदालत में अपनी बात रखने का अवसर मिलता है।

आलोचना और चुनौतियाँ

  1. पुलिस की विवेकाधीन शक्ति – धारा 35 पुलिस को काफी विवेकाधीन शक्ति देती है। इसका दुरुपयोग होने का खतरा बना रहता है।
  2. जमीनी स्तर पर अमल – व्यवहार में कई बार पुलिस बिना पर्याप्त कारण बताए गिरफ्तार कर लेती है।
  3. जागरूकता की कमी – आम जनता को अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होती, जिससे वे मनमानी गिरफ्तारी का शिकार बनते हैं।
  4. डिजिटल नोटिस की मान्यता – तकनीकी युग में यह प्रश्न भी उठता है कि क्या ई-मेल/व्हाट्सएप नोटिस को मान्य माना जाए या नहीं।

निष्कर्ष

BNSS धारा 35 भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में एक संतुलित प्रावधान है, जो पुलिस को गंभीर अपराधों में तुरंत कार्रवाई करने का अधिकार देता है और साथ ही आरोपी की स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा भी करता है।

  • यह धारा अपराध नियंत्रण के साथ-साथ नागरिक स्वतंत्रता को भी महत्व देती है।
  • सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश और इस धारा के सुरक्षा प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि गिरफ्तारी केवल आवश्यकता पड़ने पर ही की जाए।
  • भविष्य में इसका सही और न्यायपूर्ण क्रियान्वयन ही यह तय करेगा कि यह धारा वास्तव में अपराध नियंत्रण और स्वतंत्रता की रक्षा में कितनी प्रभावी सिद्ध होती है।