BNSS की धारा 210(1)(c) के तहत संज्ञान लेते समय गवाहों के बयान दर्ज करना या पीड़ित पक्ष को बुलाना अनिवार्य नहीं — पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का निर्णय

⚖️ महत्वपूर्ण निर्णय: BNSS की धारा 210(1)(c) के तहत संज्ञान लेते समय गवाहों के बयान दर्ज करना या पीड़ित पक्ष को बुलाना अनिवार्य नहीं — पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का निर्णय

📍 न्यायालय: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट

📜 प्रावधान: भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) की धारा 210(1)(c)

📝 प्रकरण: मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान (Taking Cognizance) लेने की प्रक्रिया में गवाहों के बयान या पीड़ित को तलब किए बिना ही कार्यवाही प्रारंभ करने को चुनौती दी गई थी।


📌 क्या कहा कोर्ट ने?

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि:

“धारा 210(1)(c) BNSS, 2023 के तहत यदि मजिस्ट्रेट के समक्ष कोई पुलिस रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है, तो मजिस्ट्रेट को संज्ञान लेने के लिए गवाहों के बयान दर्ज करना या पीड़ित पक्ष को बुलाना कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है।”


📚 प्रासंगिक कानूनी प्रावधान: धारा 210(1)(c), BNSS, 2023

यह धारा मजिस्ट्रेट को अधिकार देती है कि वह पुलिस द्वारा जांच के उपरांत प्रस्तुत रिपोर्ट (charge sheet या final report) के आधार पर सीधे संज्ञान ले सकता है, बशर्ते कि अपराध संज्ञेय (cognizable) हो।


⚖️ कोर्ट की तर्कशील व्याख्या:

  • मजिस्ट्रेट के पास प्राथमिक उद्देश्य होता है कि यह देखा जाए कि क्या पुलिस रिपोर्ट में संज्ञेय अपराध के घटित होने का संकेत है।
  • यदि रिपोर्ट में पर्याप्त तथ्यों और साक्ष्यों का उल्लेख है, तो संविधानिक और वैधानिक दृष्टिकोण से मजिस्ट्रेट संज्ञान लेने के लिए स्वतंत्र है
  • गवाहों की गवाही या पीड़ित की व्यक्तिगत उपस्थिति केवल उस स्थिति में आवश्यक हो सकती है जब मजिस्ट्रेट को संज्ञान लेने में संदेह हो या मामला अस्पष्ट हो।

🧾 न्यायालय का प्रमुख निष्कर्ष:

  1. मजिस्ट्रेट के समक्ष जब पुलिस रिपोर्ट धारा 173 CrPC (अब BNSS) के अंतर्गत प्रस्तुत होती है, तो वह अपनी संतुष्टि के आधार पर संज्ञान ले सकता है।
  2. साक्ष्य की पुष्टि या गवाहों की व्यक्तिगत उपस्थिति पूर्व-शर्त नहीं है
  3. अभियोजन की प्रक्रिया को प्रारंभिक चरण में अनावश्यक तकनीकीताओं में उलझाना न्यायिक प्रक्रिया के उद्देश्य के विपरीत है।

📘 कानूनी महत्व:

  • इस निर्णय से मजिस्ट्रेट की विवेकाधिकार शक्ति को सशक्त किया गया है।
  • मुकदमे के प्रारंभिक चरणों में अनावश्यक विलंब से बचने में मदद मिलेगी।
  • यह विशेष रूप से फर्जी या दुर्भावनापूर्ण याचिकाओं के दुरुपयोग को भी रोकने में सहायक होगा।

📝 निष्कर्ष:

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का यह निर्णय BNSS, 2023 की व्याख्या में स्पष्टता लाता है, जिसमें मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने की प्रक्रिया को सरल और तर्कसंगत बनाने का प्रयास किया गया है। यह निर्णय भविष्य में अन्य मामलों में न्यायिक संतुलन बनाए रखने और न्यायिक समय की बचत हेतु मिसाल बनेगा।