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BNS (भारतीय न्याय संहिता ) Part 5

बीएनएस धारा 107 क्या है |

BNS Section 107

मानसिक बीमारी से पीड़ित बच्चे या व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाना

        यदि अठारह वर्ष से कम आयु का कोई व्यक्ति, मानसिक बीमारी से ग्रस्त कोई व्यक्ति, कोई विक्षिप्त व्यक्ति या नशे की हालत में कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, तो जो कोई भी ऐसी आत्महत्या के लिए उकसाएगा, उसे मौत या आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा। या दस वर्ष से अधिक की अवधि के लिए कारावास, और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।

बीएनएस धारा 108 क्या है |

BNS Section 108

        इंसान का जीवन बहुत ही कीमती होता है, जो कि बहुत ही मुश्किल से मिलता है। इसलिए उपहार के रुप में मिले इस जीवन की रक्षा करना भी प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। परन्तु कई बार कुछ लोगों के जीवन में ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं कि कुछ लोग परेशान होकर आत्महत्या का सहारा लेने पर मजबूर हो जाते हैं। ऐसे मामलों में अक्सर यह देखा जाता है कि आत्महत्या करने में किसी दूसरे व्यक्ति के होने की वजह पाई जाती है। जिसमें ऐसा कार्य करने के लिए किसी व्यक्ति को बहुत तंग किया जाता है या ऐसा करने के लिए उकसाया जाता है। आत्महत्या के लिए किसी व्यक्ति को मजबूर करना कानूनी रुप से अपराध माना जाता है। इसलिए आज हम इसी अपराध से संबंधित भारतीय न्याय संहिता की धारा के प्रावधानों के बारे में जानेंगे कि, बीएनएस धारा 108 क्या है (BNS Section 108 )? यह कब लागू होती है? BNS 108 में अपराध की सजा क्या है? यह धारा जमानती है या गैर-जमानती है?

           आत्महत्या (Suicide) करने के लिए मजबूर करने के मामलों पर पहले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता था। लेकिन कानूनी बदलावों के बाद BNS के नए कानून के रुप में लागू होने के बाद इन मामलों को भारतीय न्याय संहिता की धारा 108 से बदल दिया गया है। इसलिए इस लेख के द्वारा आम लोगों से लेकर इस अपराध के आरोपों से जुझ रहे व्यक्तियों को भी BNS Section 108 के सभी प्रावधानों व बचाव की जानकारी मिलेगी।

बीएनएस की धारा 108 क्या है – BNS Section 108 

         भारतीय न्याय संहिता की धारा 108 में आत्महत्या के लिए उकसाने या मजबूर (Incitement to suicide) करने के कार्य को अपराध के रुप में बताया गया है। इसका मतलब है कि यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए प्रोत्साहित (Encouraged) करता है, मजबूर करता है, या निर्देश (Instructions) देता है। तो उस व्यक्ति को धारा 108 के तहत कार्यवाही कर दंडित किया जा सकता है।

भारतीय न्याय संहिता 108 के लागू होने की मुख्य बातें

यह धारा निम्नलिखित स्थितियों में लागू होती है:

  • जब कोई व्यक्ति सीधा किसी दूसरे व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए कहता है।
  • जब कोई व्यक्ति ऐसी परिस्थितियां (Situations) पैदा करता है जिसके कारण दूसरा व्यक्ति आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाता है।
  • जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को आत्महत्या करने में किसी भी प्रकार से सहायता करता है।
  • यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करने का प्रयास (Attempt to suicide) करता है और वह जिंदा बच जाए, तो भी जिस व्यक्ति ने उसे ऐसा कदम उठाने के लिए मजबूर किया था। उस व्यक्ति पर बीएनएस की धारा 108 लागू होगी।
  • किसी को दोषी साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष (Prosecutors) को यह साबित करना होगा कि उकसाने वाले का आत्महत्या को प्रोत्साहित करने या मदद करने का इरादा था। केवल किसी ऐसे व्यक्ति के साथ बहस या असहमति होना पर्याप्त नहीं होगा।
आत्महत्या के लिए उकसाना क्या होता है?

       मान लीजिए यदि कोई व्यक्ति किसी दिन खुद को बहुत ज्यादा परेशान (Upset) महसूस कर रहा है और आत्महत्या करने के बारे में सोच रहा है। उसी समय अगर कोई व्यक्ति उस व्यक्ति को अपनी किसी बात के द्वारा आत्महत्या करने के लिए प्रोत्साहित करता या उसकी मदद करता है। तो ऐसे कार्यों को आत्महत्या के लिए उकसाना माना जा सकता है। जैसे:- किसी व्यक्ति को ऐसा कोई सामान लाकर देना जिससे वो खुद को नुकसान पहुँचा सकता है। या किसी को इतना परेशान करना जिससे वो पुरी तरह से आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाए।

आत्महत्या के लिए उकसाना एक अपराध क्यों है?

          आत्महत्या करने का फैसला कोई इंसान तब ही लेता है जब वो अपने जीवन में पूरी तरह से टूट चूका हो। ऐसे समय में वो व्यक्ति खुद को बहुत ही कमजोर व लाचार (Weak & Helpless) महसूस करता है। ऐसे में जब कोई व्यक्ति आत्महत्या के लिए उसे उकसाता है, तो वह उस व्यक्ति की कमजोरी का फायदा उठाता है और उस व्यक्ति को मर जाने के उसके निर्णय में मदद करता है। इसीलिए भारतीय कानून के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने वालों को दंडित किया जाता है।

BNS 108 के अपराध का उदाहरण

          एक बार अमित नाम का एक स्टूडेंट परीक्षा में फैल हो जाने के बाद बहुत ही निराश महसूस कर रहा था। जिसकी वजह से उसके मन में अपने भविष्य को लेकर बहुत सारी गलत बाते आ रही थी। उसी समय वहाँ पर प्रिया नाम की उसकी एक दोस्त आती है, और अमित उसे अपनी परेशान होने की सारी बात बता देता है। लेकिन प्रिया उसका हौसला बढ़ाने के बजाय उसे और भी निराश करना शुरु कर देती है। उसने कहा कि वह अब अपनी जीवन में कभी भी कुछ हासिल नहीं कर पाएगा और उसे बस अपनी जान ले लेनी चाहिए।

        प्रिया की ये बाते सुनकर अमित और भी ज्यादा परेशान हो जाता है, जिसके बाद वो आत्महत्या करने के बारे में सोचने लग जाता है। इसके कुछ ही समय बाद अमित बहुत ही ज्यादा तंग आकर छत से कूदकर आत्महत्या कर लेता है। कुछ दिनों बाद अन्य छात्रों की मदद से पता चलता है कि प्रिया ने ही उसको ऐसा कार्य करने के लिए उकसाया था। जिसके बाद पुलिस के द्वारा प्रिया पर BNS Section 108 के तहत कार्यवाही की जाती है।

BNS Section 108 के तहत कुछ दंडनीय कार्य
  • किसी को आत्महत्या करने के लिए कहना, उसे ऐसा करने के लिए कोई सामान देना या उसे मजबूर करना।
  • जहर, हथियार या इस प्रकार के कार्य को करने का तरीका बताकर सहायता करना।
  • किसी को परेशान करना, गलत सोचने के लिए मजबूर करना, या लगातार आत्महत्या के बारे में सोचने के लिए मजबूर करना।
  • किसी को मानसिक रुप से अपमानित करके या कमजोर बनाकर।
  • कर्ज में डुबोकर या वित्तीय (Financially) रूप से कमजोर बनाकर।
  • मारपीट या शारीरिक नुकसान पहुंचाना जिससे वो ऐसा अपने जीवन को खत्म करने पर मजबूर हो जाए।
  • परिवार और दोस्तों से अलग करके, सामाजिक रूप से अलग करके मजबूर करना।
  • आत्महत्या करने का स्थान या तरीका ढूंढने में मदद करना।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 108 के अपराध की सजा

      बीएनएस की धारा 108 में सजा के प्रावधान (Provision) के लिए बताया गया है, कि यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है। जिसमें बाद में यह साबित हो जाता है कि किसी अन्य व्यक्ति ने उस व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाया है, तो उस व्यक्ति को दस साल तक की कैद और जुर्माना की सजा से दंडित (Punished) किया जा सकता है।

       इस प्रकार के अपराध में उकसाने के लिए दोस्त, रिश्तेदार, या कोई भी अन्य व्यक्ति शामिल हो सकता है, जिसने उस व्यक्ति को ऐसा कार्य करने के लिए मजबूर किया हो।

बीएनएस की धारा 108 में जमानत कब और कैसे मिलती है

        बीएनएस की धारा 108 के तहत किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए प्रेरित करना या उकसाना एक संज्ञेय अपराध (Cognizable Crime) होता है। यदि किसी भी व्यक्ति पर इस अपराध के लिए आरोप (Blame) लगते है, तो उस व्यक्ति को पुलिस बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकती है। इसके साथ ही इस अपराध की गंभीरता को देखते हुए गैर-जमानती (Non-Bailable) भी रखा गया है। जिसका मतलब है कि इस अपराध के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को जमानत (Bail) मिलना मुश्किल हो जाता है।

BNS Section 108 के तहत लगे आरोप के खिलाफ बचाव कैसे करें
  1. ऐसे अपराध में यदि आप पर कार्यवाही कि जाती है, तो सबसे पहले आपको किसी वकील (lawyer) की सहायता की आवश्यकता पड़ती है। जो आपके केस को अच्छे से समझकर आपके बचाव के लिए आपकी मदद करेगा।
  2. इसके बाद आपको कैसे भी करके यह साबित करना होगा कि आपका इरादा किसी भी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने या उकसाने का नहीं था।
  3. इसके साथ ही आप को यह भी साबित करना होगा कि आप पर दूसरे पक्ष के द्वारा किसी बात का गलत मतलब निकालकर झूठे आरोप (False Allegations) लगाए गए है।
  4. आप आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के साथ अपने पिछले संबंधों के सबूतों को पेश कर सकते है। जो ये साबित करते हो कि आप ने उस व्यक्ति की हमेशा भलाई के लिए ही सोचा है।
  5. मरने वाले व्यक्ति को पहले से ही अगर कोई मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ थी या वो किसी अन्य व्यक्ति की वजह से परेशान रहता था। लेकिन आरोप आप पर लगाए गए है तो आप कोर्ट में यह सारी बाते बताकर बचाव के लिए अपना पक्ष रख सकते है।
  6. अगर आपके पास कोई ऐसा सबूत है जो ये साबित कर सके कि उस व्यक्ति का आत्महत्या करने का खुद का फैसला था, तो ऐसे सबूत को भी जरुर पेश करें।
  7. अपने वकील पर भरोसा रखे व उनके सभी निर्देशों का पालन करें, अगर आप निर्दोष (Innocent) होंगे तो आप जरुर ऐसे मामलों से बच जाएंगे।

महत्वपूर्ण नोट:- ये सभी बचाव उपाय तभी काम कर सकते है जब आपने सच में कोई अपराध नहीं किया होगा और आपके पास आपके बचाव के लिए सभी सबूत (Evidence) भी होंगे। इसलिए ऐसे मामलों में किसी भी कानूनी कार्यवाही से पहले आपको किसी वकील से परामर्श लेने की सलाह दी जाती है।

निष्कर्ष (Conclusion) :- बीएनएस की धारा 108 आत्महत्या को रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह उन लोगों को रोकने में मदद करती है जो दूसरों को आत्महत्या करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, और यह उन लोगों को न्याय (Justice) दिलाने में भी मदद करती है जो पीड़ित हुए हैं। इस प्रकार के मामलों से जुड़ी किसी भी कानूनी सलाह या सहायता के लिए आप आज ही हमारे वकीलों से बात कर सकते है।

बीएनएस धारा 109 क्या है |

BNS Section 109

           आज के समय में लोग छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे से लड़ने झगड़ने लग जाते है, जो कि आगे चलकर एक बड़ी दुश्मनी का रुप ले लेती है। इसी दुश्मनी के चलते लोग एक दूसरे को नुकसान पहुँचाने के लिए कोई ना कोई कदम जरुर उठाते है। ऐसे में किसी व्यक्ति को मारने के लिए हमला (Attack) करने का केवल प्रयास करना भी आपको कई वर्षों तक जेल का कैदी बना सकता है। इसलिए आज हम आपको हत्या के प्रयास से जुड़े अपराध की धारा के बारे में बताएंगे, की बीएनएस की धारा 109 क्या है (BNS Section 109 )? और हत्या के प्रयास की धारा कब लगती है – मुख्य बिंदु? इस धारा में सजा, जमानत और बचाव?

         किसी भी व्यक्ति को जान से मारने के लिए कोई भी कदम उठाना हत्या करने का प्रयास कहलाता है। इस अपराध में कुछ महीनों पहले तक आईपीसी की धारा 307 के प्रावधानों के तहत कार्यवाही की जाती थी। परन्तु BNS के लागू होने के बाद से इसे बीएनएस की धारा 109 से बदल दिया गया है। इस बदलाव के बाद से भविष्य में हत्या के प्रयास से संबंधित सभी मामले धारा 109 के तहत ही दर्ज किए जाएंगे। इसलिए इस अपराध से जुड़े बदलावों व बचाव उपायों से संबंधित सभी जानकारी प्राप्त करने के लिए इस लेख को पूरा पढ़े।

बीएनएस धारा 109 क्या है – यह कब लगती है – BNS Section 109 

        भारतीय न्याय संहिता की धारा 109 एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रावधान है जो हत्या के प्रयास (Attempt To Murder) के अपराध से संबंधित है। जब कोई व्यक्ति किसी भी व्यक्ति की हत्या कर देता है तो उस व्यक्ति पर बीएनएस की धारा 103 के तहत कार्यवाही की जाती है। लेकिन धारा 109 ऐसे मामलों में लागू होती है जहां कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी दूसरे व्यक्ति की जान लेने की कोशिश करता है, लेकिन वह अपने इस कार्य में सफल नहीं होता।

       इसका मतलब है कि जब भी कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को जान से मारने के इरादे (Intention) से किसी भी प्रकार का हमला करता है। परन्तु वह उस व्यक्ति को जान से मारने में सफल नहीं हो पाता तो उस व्यक्ति पर BNS 109 के तहत कार्यवाही की जाती है।

उदाहरण:- रमेश सुरेश को जान से मारने के इरादे से गोली चलाकर हमला करता है, परन्तु गोली सुरेश को नहीं लगती और सुरेश बच जाता है। ऐसे मामले को हत्या का प्रयास कहा जाता है।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 109 के अपराध की मुख्य बातें:-

        हत्या के प्रयास के अपराध को साबित करने के लिए निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक है:-

  • इरादा: अपराधी का इरादा किसी दूसरे व्यक्ति को जान से मारने का होना चाहिए।
  • कार्य: अपराधी ने जान लेने के इरादे से कोई ऐसा कार्य किया हो। जिसके करने से सामने वाले व्यक्ति की जान भी जा सकती थी। जैसे गोली चलाना, चाकू मारना आदि।
  • असफल प्रयास: अपराधी के द्वारा किया गया हमला या प्रयास असफल रहा हो। यानी उस हमले के कारण किसी व्यक्ति की जान नहीं गई हो।
BNS 109 के तहत अपराध में शामिल मुख्य कार्य
  • चाकू, बंदूक, या किसी अन्य खतरनाक हथियार (Dangerous Weapon) के द्वारा किसी पर हमला करना।
  • किसी व्यक्ति को खाने पीने की वस्तु में जहर (Poison) देकर मारने का प्रयास करना।
  • जानबूझकर किसी व्यक्ति की जान लेने के लिए उसे पानी में डुबाने का प्रयास करना।
  • जान से मारने के लिए किसी का गला घोंटने का प्रयास करना।
  • किसी को ऊंचाई से धक्का देकर या चलती गाड़ी के सामने धक्का देकर मारने का प्रयास करना।
  • किसी को गंभीर रूप से घायल करने का प्रयास करना, जिससे उसकी मृत्यु हो सकती है।
  • जान से मारने की धमकी देकर और उसे अंजाम देने का प्रयास करना।
  • किसी को मारने के लिए दूसरों को उकसाना या प्रेरित करना।
  • किसी को मारने के लिए हथियार या अन्य उपकरण उपलब्ध करवाना।

         ये सभी कुछ ऐसे कार्य है जिनको करने पर किसी भी व्यक्ति पर BNS Section 109 के अपराध के तहत कार्यवाही की जा सकती है। इसके साथ ही इनसे अलग भी बहुत से ऐसे कार्य हो सकते है जो हत्या के प्रयास के अपराध से जुड़े हो सकते है।

बीएनएस सेक्शन 109 के अपराध का उदाहरण

          रवि और प्रदीप दोनों बचपन के दोस्त थे। वे दोनों एक ही शहर में रहते थे और एक ही स्कूल में पढ़ते थे। वे अक्सर एक साथ समय बिताते थे और एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त थे। कुछ समय से रवि, प्रदीप की प्रेमिका अंजली से प्यार करने लगा था। एक दिन प्रदीप को जब इस बात का पता चलता है, तो वह बहुत गुस्सा हो जाता है। जिसके बाद प्रदीप रवि को धमकी देता है कि अगर उसने अंजली से बात करना बंद नहीं किया तो वो उसे जान से मार देगा।

         लेकिन रवि फिर भी नहीं माना और अंजली से मिलता रहा। एक दिन प्रदीप रवि को एक सुनसान जगह बुलाता है। जिसके बाद वह उस पर चाकू से हमला कर देता है, लेकिन रवि वहाँ से बचकर भाग जाता है। इस मामले में प्रदीप ने रवि को जान से मारने की नीयत से हमला किया था। लेकिन वह रवि को मारने में सफल नहीं हुआ। इसलिए प्रदीप पर BNS की धारा 109 के तहत हत्या के प्रयास के अपराध का मुकदमा दर्ज कर लिया जाता है।

BNS Section 109 में सजा (Punishment) कितनी होती है?

        भारतीय न्याय संहिता की धारा 109 में हत्या करने के प्रयास के अपराध की सजा को तीन प्रकार से बताया गया है। जो कि इस प्रकार है:-

  1. जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को जान से मारने के इरादे से हमला करता है, और यदि किए गए उस प्रयास (Attempt) से सामने वाले व्यक्ति को कोई चोट (Injury) नहीं लगती। तो दोषी व्यक्ति को 10 वर्ष तक की कारावास (Imprisonment) व जुर्माने (Fine) से दंडित किया जा सकता है।
  2. परन्तु अगर उस प्रयास के दौरान पीड़ित व्यक्ति को चोट या गंभीर चोट लग जाती है। तो ऐसे अपराध के दोषी (Guilty) पाये जाने वाले व्यक्ति आजीवन कारावास (Life Imprisonment) तक की सजा व जुर्माने से दंडित (Punished) किया जा सकता है।
  3. यदि कोई व्यक्ति जिसे पहले से ही किसी अपराध के दोषी पाये जाने पर आजीवन कारावास की सजा मिली हो। ऐसा व्यक्ति किसी भी व्यक्ति की हत्या का प्रयास करता है और सामने वाले व्यक्ति को किसी भी प्रकार से घायल (Injured) कर देता है। तो ऐसे व्यक्ति को उसकी बाकी बची पूरी जिंदगी के लिए कारावास की सजा या मृत्युदंड से दंडित किया जा सकता है।
बीएनएस की धारा 109 में जमानत कब व कैसे मिलती है

       बीएनएस सेक्शन 109 के अनुसार हत्या का प्रयास करना एक बेहद ही गंभीर अपराध माना जाता है। जिसमें आरोपी व्यक्ति द्वारा किए गए अपराध के कारण किसी व्यक्ति की जान जाने की भी संभावना हो सकती है। इसलिए इस अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए ही इसे संज्ञेय व गैर-जमानती (Cognizable Or Non-Bailable) रखा गया है।

       जिसका मतलब है कि इस अपराध के आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तारी के बाद जमानत (Bail) नहीं दी जा सकेगी। इसके साथ ही ऐसे अपराध में कोर्ट के बाहर किसी भी प्रकार का समझौता (Not Compoundable) भी नहीं किया जा सकता है।

BNS 109 के आरोपी व्यक्तियों के लिए बचाव उपाय
  • किसी भी अपराध के आरोप लगने पर सबसे पहले कदम हमारा ये होना चाहिए की हमें ऐसे अपराधों से निपटने में अनुभवी किसी वकील (Lawyer) से मिलना चाहिए।
  • वकील से मिलकर उसे अपने मामले से जुड़ी सारी जानकारी विस्तार से बताए।
  • किसी भी बात को अपने वकील से ना छिपाए क्योंकि पता नहीं कौन सी बात आपके बचाव के काम आ सकती है।
  • यदि आप पर इस अपराध के आरोप लगे है तो आप यह दावा कर सकते है कि आपने केवल अपनी आत्मरक्षा (Self Defence) में हमला किया था।
  • अगर आपका किसी को मारने का इरादा नहीं था तो यह बात भी आपके बचाव के काम आ सकती है। जिसमें आप सबूतों (Evidences) के द्वारा साबित कर सकते है कि आपने जानबूझकर किसी को घायल नहीं किया है।
  • अपने बचाव के लिए ज्यादा से ज्यादा सबूत व गवाह इकट्ठा करें।
  • यदि आपको झूठे केस में फंसाया जा रहा है, तो ये सबूत ही आपका बचाव कर सकते है।
  • इसके अलावा अगर आप मानसिक रुप से किसी बीमारी से पीड़ित है तो ये बात भी आपके बचाव के रुप में काम आ सकती है।

निष्कर्ष :- BNS Section 109 के तहत हत्या का प्रयास करना एक बहुत ही गंभीर अपराध होता है। इसलिए इस अपराध को करने वाले व्यक्तियों को कठोर दंड देने के लिए ये सभी प्रावधान (Provision) बनाए गए है। जिनका मुख्य उद्देश्य ऐसे गंभीर अपराधों को रोकना व पीड़ित व्यक्तियों को समय पर न्याय (Justice) दिलाना है। यदि आप हत्या के प्रयास के अपराध के शिकार हुए हैं या किसी ऐसे मामले को करने के आरोप में शामिल है। जिसके लिए आप किसी भी प्रकार की कानूनी सहायता प्राप्त करना चाहते है तो आज ही हमारे वकील से संपर्क कर सकते है।

बीएनएस धारा 110 क्या है |

BNS Section 110

        तेजी से बदलते इस आधुनिक दौर में अपराधों के मामले भी बहुत ही तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। चाहे वह सड़क पर लापरवाही से गाड़ी चलाना हो, किसी झगड़े के दौरान हथियार का इस्तेमाल करना हो, हत्या के प्रयास से संबंधित मामले लगातार सामने आ रहे हैं। यह अपराध न केवल किसी व्यक्ति के जीवन को खतरे में डालते है बल्कि पूरे समाज की शांति और सुरक्षा को भी प्रभावित करते है। इसलिए आज हम भारतीय न्याय संहिता की धारा 110 के बारे में बताएंगे कि बीएनएस की धारा 110 में गैर-इरादतन हत्या का प्रयास क्या है (BNS Section 110 )? इस धारा के उल्लंघन करने पर क्या दंड मिलता है और क्या धारा 110 जमानती है?

        आज हम एक ऐसे कानूनी पहलू पर चर्चा करने जा रहे हैं जो हमारे समाज की सुरक्षा और शांति के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह है गैर-इरादतन हत्या का प्रयास। पहले इस तरह के आपराधिक मामलों के लिए भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 308 लगाई जाती थी। लेकिन कानून में किए गए बदलाव के बाद अब इन मामलों को भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 110 के तहत दर्ज किया जाता है। इसलिए इस अपराध से जुड़े सभी कानूनी उपायों को जानने व समझने के लिए आपको इस लेख को पूरा पढ़े।

बीएनएस की धारा 110 क्या है यह कब लगती है – BNS Section 110 

         भारतीय न्याय संहिता की धारा 110 गैर-इरादतन हत्या के प्रयास (Attempt to commit culpable homicide) के अपराध से संबंधित है। यह धारा उस व्यक्ति को दंडित करती है जो जानबूझकर या जानते हुए ऐसे कार्य करता है जिसके परिणामस्वरूप किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है। सरल भाषा में, गैर-इरादतन हत्या के प्रयास का अर्थ है जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की हत्या (Murder) करने का इरादा नहीं रखता है, लेकिन द्वारा किए गए कार्य ऐसे होते हैं कि वे किसी की मृत्यु (Death) का कारण बन सकते हैं।

       इसलिए BNS धारा 110 के अनुसार गैर-इरादतन हत्या का प्रयास तब होता है। जब कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी की हत्या करने का इरादा नहीं रखता है, लेकिन वह जानता है, कि उसके द्वारा किए गए कार्य से किसी को चोट लग सकती है या उसकी जान जा सकती है। फिर भी उसने सावधानी बरतने में लापरवाही की और उसके कार्य के कारण ही किसी को नुकसान पहुंचा।

इस धारा के लागू होने प्रमुख बिंदु
  • आरोपी (Accused) व्यक्ति ने कोई ऐसा कार्य किया होगा जो किसी अन्य व्यक्ति के लिए खतरा पैदा कर सकता है।
  • यह कार्य इतना खतरनाक होना चाहिए कि इससे किसी की जान जा सकती हो।
  • आरोपी व्यक्ति को यह समझना चाहिए था कि उसके कार्य के परिणामस्वरूप किसी को चोट (Injury) लग सकती है या उसकी जान जा सकती है। भले ही उसका इरादा जानबूझकर हत्या करने का न हो, लेकिन उसे इस बात का अंदाजा होना चाहिए था कि उसके कार्य के परिणाम क्या हो सकते हैं।
  • गैर-इरादतन हत्या के प्रयास के दोषी व्यक्ति को जेल व जुर्माने (Jail or fine) की सजा दी जा सकती है।
BNS Section 110 के तहत अपराध माने जाने वाले कुछ कार्य
  • लापरवाही से तेज गाड़ी चलाकर किसी व्यक्ति को गलती से टक्कर मार देना।
  • बंदूक या किसी अन्य खतरनाक हथियार (Dangerous Weapon) को लापरवाही से चलाकर किसी को चोट पहुंचा देना।
  • जल्दबाजी में किसी व्यक्ति को जहरीला पदार्थ (Toxic Substance) लापरवाही से दे देना।
  • ऊंचाई से किसी भारी वस्तु को फेंक देना जिससे किसी को चोट लग सकती है।
  • कोई वाहन चलाने के दौरान मोबाइल फोन पर बात करने की वजह से ध्यान भटकने से दुर्घटना हो जाए तो यह गैर-इरादतन हत्या का प्रयास हो सकता है।
  • किसी मशीन को खतरनाक तरीके से चलाने से किसी को चोट लग सकती है, इससे गैर-इरादतन हत्या का मामला बन सकता है।
बीएनएस की धारा 110 के जुर्म का सरल उदाहरण

        एक दिन अजय नाम का एक व्यक्ति बहुत ही तेज रफ्तार से गाड़ी चला रहा था, और उसकी गाड़ी इतनी तेज थी की वो राहुल नाम के एक पैदल यात्री से टकरा जाता है। जिससे राहुल को बहुत ही गंभीर चोट लग जाती है, भले ही अजय का इरादा जानबूझकर राहुल को टक्कर मारना न हो, लेकिन उसे पता होना चाहिए था कि तेज गति से गाड़ी चलाना खतरनाक है और इससे दुर्घटना हो सकती है। इस मामले में अजय को BNS 110 के तहत दोषी ठहराया जा सकता है।

बीएनएस धारा 110 के तहत दोषी को सजा कितनी होती है?

      भारतीय न्याय संहिता की धारा 110 में सजा के प्रावधान (Provision) अनुसार जो भी व्यक्ति गैर-इरादतन हत्या के प्रयास को करने का दोषी (Guilty) पाया जाएगा, उसे इस अपराध के लिए दो प्रकार से सजा दी जा सकती है। जो कि इस प्रकार है:-

  • मृत्यु होने की स्थिति में: यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु (Death) होती है और यह साबित हो जाता है कि आरोपी का जानबूझकर हत्या (Intentionally Murder) करने का इरादा नहीं किया था, परंतु उसके कार्य के परिणामस्वरूप मृत्यु हुई है तो दोषी व्यक्ति को तीन साल तक की सजा व जुर्माने से दंडित (Punished) किया जा सकता है।
  • चोट लगने की स्थिति में: यदि किसी व्यक्ति को आरोपी के द्वारा किए गए कार्यों द्वारा केवल चोटें (Injuries) आती हैं, मृत्यु नहीं होती तो उसे दोषी पाये जाने पर सात साल तक की जेल व जुर्माना लगाकर दंडित किया जा सकता है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 110 में जमानत के लिए कानूनी प्रावधान है

      भारतीय न्याय संहिता की धारा 110 के तहत गैर-इरादतन हत्या का प्रयास एक संज्ञेय व गैर-जमानती अपराध (Cognizable or Non-Bailable Offence) है। जो एक गंभीर अपराध के रूप में माना जाता है, और इसमें पुलिस तुरन्त आरोपी के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। गैर-जमानती होने के कारण इस अपराध में आरोपी व्यक्ति को जमानत (Bail) नहीं मिलती है।

        जमानत पाने के लिए आरोपी कुछ विशेष परिस्थितियों में न्यायालय (Court) में आवेदन कर सकता है , और जमानत देना या न देना न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है। लेकिन अधिकार के तौर पर इस अपराध में जमानत का मिलना मुश्किल हो सकता है।

बीएनएस धारा 111 क्या है |

BNS Section 111

          संगठित अपराध यह एक ऐसा अपराध है, जो समाज के लिए दिन-प्रतिदिन एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है। संगठित अपराध में कई लोग मिलकर एक साथ अपराध करते हैं, जैसे कि डकैती, हत्या, जबरन वसूली, और कई अन्य अपराध। आप सोच रहे होंगे कि संगठित अपराध से हमें क्या मतलब है और यह हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करता है? यह जानना बहुत जरूरी है क्योंकि संगठित अपराध न केवल व्यक्तिगत जीवन को बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करता है। यह कानून व्यवस्था को कमजोर करता है और लोगों में भय पैदा करता है। इसलिए इस आर्टिकल में हम ऐसे अपराध से जुडी धारा को समझेंगे कि, बीएनएस की धारा 111 क्या है (BNS Section 111 in Hindi)? यह धारा 111 कब लागू होती है? इस अपराध में सजा कितनी और जमानत कैसे मिलती है?

        कुछ समय पहले तक जब भारत में भारतीय दंड संहिता (IPC) लागू थी, तो उसमें संगठित अपराधों के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं था। यानी अगर कोई व्यक्ति किसी संगठित अपराध में शामिल होता था तो उसे सामान्य अपराधों के लिए ही सजा दी जाती थी। लेकिन हाल ही में कानूनी व्यवस्था में किए गए बदलावों के बाद भारतीय दंड संहिता की जगह भारतीय न्याय संहिता (BNS) लागू की गई है। BNS में पुरानी धाराओं के साथ-साथ कई नए प्रावधान जोड़े गए है, जिनमें से एक धारा 111 भी है। जिसके बारे में विस्तार से जानना हम सभी के लिए आवश्यक है।

बीएनएस की धारा 111 क्या है – BNS Section 111 

      भारतीय न्याय संहिता की धारा 111 जो संगठित अपराध (Organized Crime) से संबंधित है। संगठित अपराध एक गंभीर अपराध है जिसमें कई लोग मिलकर एक साथ अपराध करते हैं। इन अपराधों में डकैती, हत्या, जबरन वसूली, तस्करी, और कई अन्य अपराध (Crime) शामिल हो सकते हैं। धारा 111 का उद्देश्य संगठित अपराध को रोकना और इसमें शामिल व्यक्तियों को दंडित (Punished) करना है।

  1. बीएनएस की धारा 111(1):- इसमें केवल संगठित अपराध की परिभाषा (Definition) के बारे में बताया गया है। जिसमें अपराधी या अपराधियों का समूह मिलकर एक योजना (Plan) के तहत गैरकानूनी गतिविधियों (Illegal Activities) को अंजाम देते हैं। यह अपराध अक्सर लंबे समय तक चलने वाली प्रक्रियाओं के तहत होता है, और इसमें आर्थिक लाभ या अन्य भौतिक फायदे की प्राप्ति के लिए हिंसा, धमकी, भ्रष्टाचार, जबरन वसूली जैसी गतिविधियों का सहारा लिया जाता है।
  2. बीएनएस की धारा 111(2): इसमें संगठित अपराध को करने के लिए किए जाने वाले प्रयास (Attempt) व उसके परिणामों के कारण किसी की मृत्यु होने या मृत्यु ना होने पर दी जाने वाली सजा (Punishment) के बारे में बताया गया है।
  3. बीएनएस की धारा 111(3): इसका उद्देश्य ऐसे व्यक्तियों पर कड़ी सजा का प्रावधान (Provision) करना है, जो सीधे तौर पर संगठित अपराध में शामिल नहीं होते, लेकिन उसकी योजना, साजिश, या तैयारी में मदद करते हैं। धारा 111(3) के तहत केवल अपराध करने वालों को ही नहीं बल्कि उन्हें सहायता या सुविधाएं देने वालों को भी गंभीर दंड (Severe Penalties) दिया जाता है।
  4. बीएनएस सेक्शन 111(4):- अगर कोई व्यक्ति किसी संगठित अपराध को करने वाले गिरोह (Gang) का सदस्य है, तो उसे धारा 111(4) के तहत दोषी ठहराया जाएगा। इसका मतलब यह है कि केवल गिरोह में शामिल होने से भी किसी व्यक्ति को सजा मिल सकती है, भले ही उसने कोई अपराध नहीं किया हो।
  5. बीएनएस सेक्शन 111(5):- अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर संगठित अपराध के अपराधी या संगठित अपराध सिंडिकेट के सदस्य को अपने घर में छिपाता है या उसे पुलिस से बचाने का प्रयास करता है। तो उसे धारा 111(5) के तहत दोषी माना जाएगा। इसका मतलब यह है कि अगर कोई व्यक्ति किसी अपराधी को छिपाने में मदद करता है या उसे शरण देता है, तो उसे भी सजा मिलेगी। अपवाद:- इस उपधारा में एक विशेष छूट का प्रावधान किया गया है। अगर संगठित अपराधी को उसका पति या पत्नी आश्रय देता है या छिपाने की कोशिश करता है, तो इस उपधारा के तहत वह व्यक्ति सजा से मुक्त रहेगा। यह छूट केवल पति-पत्नी के संबंध में दी गई है।
  6. बीएनएस सेक्शन 111(6):- अगर कोई व्यक्ति किसी ऐसी संपत्ति (Property) को अपने पास रखता है, जो संगठित अपराध के माध्यम से प्राप्त की गई है, जैसे कि ड्रग्स, मानव तस्करी, जबरन वसूली या अन्य अवैध गतिविधियों से प्राप्त पैसे तो वह व्यक्ति इस उपधारा के तहत दोषी (Guilty) माना जाएगा।
  7. बीएनएस सेक्शन 111(7):- चल या अचल संपत्ति: इसमें ऐसी संपत्तियां शामिल होती हैं, जैसे ज़मीन, घर, गाड़ी, नकदी या अन्य मूल्यवान चीजें। अगर किसी व्यक्ति के पास ऐसी संपत्ति होती है और वह उसका वैध स्रोत (Legitimate sources) नहीं बता पाता तो उसे दोषी माना जाएगा। इसका मतलब यह है कि अगर संपत्ति संगठित अपराध से प्राप्त की गई है और व्यक्ति उसे अपने पास रखे हुए है, लेकिन वह यह साबित नहीं कर सकता कि यह संपत्ति उसे कैसे और कहां से मिली तो उसे इस उपधारा के तहत सजा दी जाएगी।
धारा 111 के तहत अपराध को साबित करने के लिए आवश्यक तत्व
  1. संगठित अपराध का होना: इसमें अपराध को साबित करने के लिए यह साबित करना होगा कि एक संगठित अपराध हुआ है।
  2. आरोपी की संलिप्तता: यह साबित करना होगा कि आरोपी (Accused) इस अपराध में शामिल था।
  3. आरोपी का जानना: यह साबित करना होगा कि आरोपी जानता था कि वह जो कर रहा है वह एक अपराध है।
कुछ ऐसे कार्य जिनको किए जाने पर धारा 111 लग सकती है
  • किसी व्यक्ति को चोरी, डकैती, हत्या या किसी अन्य अपराध करने के लिए कहना।
  • किसी अपराध को अंजाम देने में किसी व्यक्ति की मदद करना, जैसे कि अपराध के लिए हथियार उपलब्ध कराना, या अपराधी को छिपाने में मदद करना।
  • किसी अपराध को अंजाम देने की योजना बनाना या किसी अन्य व्यक्ति के साथ मिलकर अपराध करने की साजिश (Conspiracy) करना।
  • किसी अपराधी को पकड़े जाने से बचाने के लिए उसे शरण देना या छिपाना।
  • अगर किसी व्यक्ति को पता है कि कोई अपराध होने वाला है या हुआ है, और वह पुलिस को सूचना नहीं देता है, तो वह भी अपराध में शामिल माना जा सकता है।
  • किसी ऐसे संगठन का सदस्य बनना जो गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होता है।
  • किसी अपराध से प्राप्त धन को छुपाना या उसे सफेद करना।
  • किसी अपराध को अंजाम देने के लिए जाली दस्तावेज (Forged Documents) तैयार करना या उनका उपयोग करना।
  • किसी व्यक्ति को धमकाकर उससे पैसे वसूलना या उससे कोई काम करवाना।
संगठित अपराध​ की इस धारा का उदाहरण

      कपिल नाम का एक व्यक्ति एक संगठित अपराध सिंडिकेट का सदस्य (Member) है जो ड्रग्स की तस्करी में शामिल है। इस सिंडिकेट का उद्देश्य अवैध रूप से ड्रग्स का व्यापार करके पैसे कमाना है। कपिल इस अपराध में ड्रग्स बेचने के लिए लोगों को धमकी और जबरदस्ती करता है। अगर कपिल की ड्रग्स की तस्करी की गतिविधियों के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है (जैसे कि ड्रग्स के ओवरडोज से), तो उस पर BNS 111 (2) के तहत कार्यवाही की जा सकती है।

       इसके बाद कपिल ने अपने सिंडिकेट के लिए नई ड्रग्स लाने की साजिश रचता है और तस्करी के लिए किसी अन्य व्यक्ति को सहायता प्रदान करता है, जिसके लिए उस पर उपधारा (3) लागू हो सकती है।

      एक दिन कपिल राहुल नाम के किसी व्यक्ति को सिंडिकेट का सदस्य होने के नाते अपने घर पर छिपाने में मदद करता है जिसके कारण उस पर उपधारा (4) व उपधारा (5) लागू की जा सकती है।

        एक दिन पुलिस कपिल को पकड़ लेती है और उसकी संपत्ति के बारे में पूछताछ करती है। यदि कपिल ने संगठित अपराध से हासिल की चल या अचल संपत्ति को अपने पास रखा और इसका संतोषजनक हिसाब नहीं दे पाया (जैसे कि घर और गाड़ी जो उसने ड्रग्स से प्राप्त पैसे से खरीदी), तो उस पर BNS 111 की उपधारा (6) व (7) लागू हो सकती है।

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 111 के अपराध की सजा

     बीएनएस की धारा 111 के अपराध में सजा (Punishment) को अलग-अलग उपधाराओं (Sub-Sections) के द्वारा अपराध की गंभीरता के अनुसार बताया गया है। जो इस प्रकार से है:-

BNS 111(2) की सजा:- इसमें संगठित अपराध करने या प्रयास करने वाले व्यक्ति के लिए दो तरह की सजा का प्रावधान (Provision) किया गया है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि अपराध का परिणाम क्या होता है।

  1. अगर संगठित अपराध करने के कारण किसी व्यक्ति की मौत (Death) हो जाती है, तो दोषी व्यक्ति को मौत की सजा या आजीवन कारावास (Life Imprisonment) की सजा दी जा सकती है।

         इसके अलावा उसे जुर्माना भी देना होगा, जो दस लाख रुपये से कम नहीं होगा। मतलब दस लाख रुपये या इससे अधिक का जुर्माना (Fine) भी लगाया जा सकता है।

  1. अगर संगठित अपराध के कारण किसी की मौत नहीं होती है, तो अपराधी को कम से कम पांच साल की जेल होगी और यह सजा जिंदगी भर तक बढ़ाई जा सकती है। इसके अलावा उस पर पांच लाख रुपये या उससे ज्यादा का जुर्माना भी लगाया जाएगा।

BNS 111(3) की सजा:- इसके अनुसार संगठित अपराध से संबंधित किसी भी तरह की योजना बनाने या सहयोग करने के दोषी पाये जाने वाले व्यक्तियों को कम से कम 5 साल की सजा और पांच लाख रुपये या उससे अधिक का जुर्माना लगाया जाएगा। यह सजा परिस्थिति के आधार पर आजीवन कारावास तक भी बढ़ाई जा सकती है।

BNS 111(4) की सजा:- अगर व्यक्ति संगठित अपराध के किसी गिरोह (Gang) का हिस्सा है, तो उसे कम से कम 5 साल की जेल की सजा दी जाएगी। अपराध की गंभीरता के आधार पर सजा को उम्रकैद तक भी बढ़ाया जा सकता है। इसके साथ ही उसे कम से कम 5 लाख रुपये का जुर्माना देना होगा, और यह जुर्माना इससे अधिक भी हो सकता है।

BNS 111(5) की सजा:- अगर कोई व्यक्ति संगठित अपराध के अपराधी को छिपाने या उसे शरण देने का प्रयास करता है, तो उसे कड़ी सजा दी जाएगी। जिसमें दोषी व्यक्ति को कम से कम 3 साल की जेल होगी। अगर अपराध ज्यादा गंभीर है, तो उसे आजीवन कारावास की सजा भी दी जा सकती है। इसके साथ ही उसे पाँच लाख रुपये या उससे अधिक का जुर्माना देना होगा।

BNS 111(6) की सजा:- उपधारा (6) के अनुसार यदि कोई व्यक्ति संगठित अपराध से प्राप्त धन या संपत्ति को अपने पास रखता है या उसका उपयोग करता है, तो उसे कम से कम 3 साल की सजा और 2 लाख रुपये या उससे अधिक का जुर्माना भुगतना पड़ेगा। यह सजा परिस्थिति के आधार पर उम्रकैद तक भी बढ़ाई जा सकती है।

BNS 111(7) की सजा:- अगर किसी व्यक्ति के पास संगठित अपराध सिंडिकेट से जुड़ी संपत्ति है और वह उसका वैध हिसाब नहीं दे सकता, तो उसे कम से कम 3 साल की जेल और 1 लाख रुपये से अधिक का जुर्माना भुगतना पड़ेगा। इसके अलावा उसकी संपत्ति को भी जब्त (seized) कर लिया जाएगा। इसमें सजा की अवधि परिस्थिति के आधार पर 10 साल तक बढ़ाई जा सकती है।

बीएनएस सेक्शन 111 में जमानत कब व कैसे मिलती है

        BNS की धारा 111 के अंतर्गत जमानत मिलना ना मिलना उस अपराध की गंभीरता पर निर्भर करते हैं, जिसकी योजना बनाई गई थी। लेकिन मुख्य तौर पर धारा 111 में जमानत मिलना मुश्किल होता है, क्योंकि यह एक गैर-जमानती व संज्ञेय (Non-Bailable Or Cognizable) अपराध होता है।

      कुछ विशेष परिस्थितियों में जमानत (Bail) देने के लिए अदालत कई कारकों पर विचार कर सकती है, और उसके बाद ही जमानत के फैसले पर विचार करती है। इस अपराध से जुड़े सभी मामले सत्र न्यायालय (Sessions Court) द्वारा ही विचारणीय (Triable) होते है।

निष्कर्ष:- BNS Section 111 एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रावधान है जो संगठित अपराध से निपटने के लिए बनाया गया है। यह धारा उन लोगों के लिए एक चेतावनी है जो संगठित अपराध में शामिल होने की सोच रहे हैं। अगर कोई व्यक्ति धारा 111 के तहत दोषी पाया जाता है, तो उसे कड़ी सजा हो सकती है।

बीएनएस धारा 112 क्या है |

BNS Section 112

छोटे संगठित अपराध या सामान्य रूप से संगठित

(1) कोई भी अपराध जो वाहन की चोरी या वाहन से चोरी, घरेलू और व्यावसायिक चोरी, चाल चोरी, कार्गो अपराध, चोरी (चोरी का प्रयास, निजी संपत्ति की चोरी), संगठित चोरी से संबंधित नागरिकों के बीच असुरक्षा की सामान्य भावना पैदा करता है। जेब काटना, छीनना, दुकान से सामान चुराना या कार्ड स्किमिंग के माध्यम से चोरी करना और स्वचालित टेलर मशीन से चोरी करना या सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में गैरकानूनी तरीके से धन प्राप्त करना या टिकटों की अवैध बिक्री और सार्वजनिक परीक्षा के प्रश्न पत्रों की बिक्री और संगठित आपराधिक समूहों द्वारा किए गए संगठित अपराध के ऐसे अन्य सामान्य रूप या गिरोह, छोटे संगठित अपराध का गठन करेंगे और इसमें उक्त अपराध शामिल होंगे जब मोबाइल संगठित अपराध समूहों या गिरोहों द्वारा किए जाते हैं जो संपर्क, एंकर पॉइंट और स्थानांतरित होने से पहले की अवधि में क्षेत्र में कई अपराधों को अंजाम देने के लिए आपस में संपर्क, एंकर पॉइंट और लॉजिस्टिक समर्थन का नेटवर्क बनाते हैं। चालू.

(2) जो कोई भी उप-धारा (1) के तहत कोई छोटा संगठित अपराध करेगा या करने का प्रयास करेगा, उसे कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि एक वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है, और उत्तरदायी भी होगा सही करने के लिए।

बीएनएस धारा 113 क्या है |

BNS Section 113

आतंकवादी कृत्य का अपराध

(1) यदि कोई व्यक्ति भारत में या किसी विदेशी देश में भारत की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालने, आम जनता या उसके एक वर्ग को डराने के इरादे से कोई कार्य करता है, तो उसे आतंकवादी कार्य करने वाला माना जाता है। , या कोई कार्य करके सार्वजनिक व्यवस्था को भंग करना,–-

(i) बम, डायनामाइट या किसी अन्य विस्फोटक पदार्थ या ज्वलनशील सामग्री या आग्नेयास्त्रों या अन्य घातक हथियारों या जहर या हानिकारक गैसों या अन्य रसायनों या किसी अन्य पदार्थ (चाहे जैविक या अन्यथा) प्रकृति में खतरनाक का उपयोग इस तरह से किया जाए ताकि निर्माण किया जा सके। ऐसा माहौल बनाना या भय का संदेश फैलाना, जिससे किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए या उसे गंभीर शारीरिक क्षति पहुंचे, या किसी व्यक्ति का जीवन खतरे में पड़ जाए;
(ii) संपत्ति की क्षति या विनाश या समुदाय के जीवन के लिए आवश्यक किसी भी आपूर्ति या सेवाओं में व्यवधान, सरकारी या सार्वजनिक सुविधा, सार्वजनिक स्थान या निजी संपत्ति के विनाश के कारण क्षति या हानि का कारण बनना;
(iii) महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे में व्यापक हस्तक्षेप, क्षति या विनाश का कारण बनना;
(iv) सरकार या उसके संगठन को इस तरह से उकसाना या डराना-धमकाना जिससे किसी सार्वजनिक पदाधिकारी या किसी व्यक्ति की मौत या चोट लग जाए या होने की संभावना हो या किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने और जान से मारने या घायल करने की धमकी देने का कार्य करना। ऐसा व्यक्ति सरकार को कोई कार्य करने या करने से रोकने के लिए मजबूर करने, या देश की राजनीतिक, आर्थिक, या सामाजिक संरचनाओं को अस्थिर करने या नष्ट करने, या सार्वजनिक आपातकाल बनाने या सार्वजनिक सुरक्षा को कमजोर करने के लिए;
(v) गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की दूसरी अनुसूची में सूचीबद्ध किसी भी संधि के दायरे में शामिल है।

(2) जो कोई भी, आतंकवादी कृत्य करने का प्रयास करेगा या अपराध करेगा,––

(i) यदि ऐसे अपराध के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो पैरोल के लाभ के बिना मृत्यु या आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी, और जुर्माना भी लगाया जाएगा जो दस लाख रुपये से कम नहीं होगा;
(ii) किसी अन्य मामले में, कारावास से दंडनीय होगा, जिसकी अवधि पांच वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माना भी लगाया जा सकता है, जो पांच लाख रुपये से कम नहीं होगा।

(3) जो कोई भी आतंकवादी कृत्यों के लिए किसी संगठन, संघ या व्यक्तियों के समूह का षडयंत्र रचता है, संगठित करता है या करवाता है, या किसी आतंकवादी कृत्य की तैयारी के किसी भी कार्य में शामिल होने के लिए सहायता करता है, सुविधा देता है या अन्यथा षडयंत्र करता है, वह कारावास से दंडनीय होगा। ऐसी सज़ा जो पांच साल से कम नहीं होगी लेकिन जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माना भी लगाया जाएगा जो पांच लाख रुपये से कम नहीं होगा।

(4) कोई भी व्यक्ति, जो आतंकवादी संगठन का सदस्य है, जो आतंकवादी कृत्य में शामिल है, को कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माने से भी दंडनीय होगा जो इससे कम नहीं होगा पांच लाख रुपये.

(5) जो कोई, किसी आतंकवादी कृत्य का अपराध करने वाले किसी व्यक्ति को जानबूझकर आश्रय देता है या छिपाता है या आश्रय देने या छुपाने का प्रयास करता है, उसे कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि तीन साल से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। , और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा जो पांच लाख रुपये से कम नहीं होगा:

बशर्ते कि यह उपधारा किसी ऐसे मामले पर लागू नहीं होगी जिसमें अपराधी के पति या पत्नी द्वारा आश्रय या छिपाव किया गया हो।

(6) जो कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी संपत्ति को रखता है, आतंकवादी कृत्य या आतंकवाद की आय से प्राप्त या प्राप्त करता है, या आतंकवादी फंड के माध्यम से अर्जित करता है, या संपत्ति या धन रखता है, प्रदान करता है, एकत्र करता है या उपयोग करता है या संपत्ति, धन या उपलब्ध कराता है। वित्तीय सेवा या अन्य संबंधित सेवाओं का, किसी भी माध्यम से, पूर्ण या आंशिक रूप से किसी आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने या उसे सुविधाजनक बनाने के लिए उपयोग किया जाना, एक अवधि के लिए कारावास से दंडनीय होगा, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। जुर्माने के लिए उत्तरदायी होगा जो पांच लाख रुपये से कम नहीं होगा और ऐसी संपत्ति कुर्की और जब्ती के लिए भी उत्तरदायी होगी।

स्पष्टीकरण.- इस धारा के प्रयोजनों के लिए,– (ए) “आतंकवादी” किसी भी व्यक्ति को संदर्भित करता है जो –

(i) हथियारों, विस्फोटकों का विकास, निर्माण, स्वामित्व, अधिग्रहण, परिवहन, आपूर्ति या उपयोग करता है, या परमाणु, रेडियोलॉजिकल या अन्य खतरनाक पदार्थ छोड़ता है, या आग, बाढ़ या विस्फोट का कारण बनता है;
(ii) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी माध्यम से आतंकवादी कृत्य करता है, या प्रयास करता है, या साजिश रचता है;
(iii) आतंकवादी कृत्यों में प्रमुख या सहयोगी के रूप में भाग लेता है;

(बी) अभिव्यक्ति “आतंकवाद की आय” का वही अर्थ होगा जो गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 2 के खंड (जी) में दिया गया है;

(सी) “आतंकवादी संगठन, संघ या व्यक्तियों का समूह” किसी भी आतंकवादी या आतंकवादियों के समूह के स्वामित्व या नियंत्रण वाली किसी इकाई को संदर्भित करता है –

(i) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी माध्यम से आतंकवादी कृत्य करता है या करने का प्रयास करता है;—
(ii) आतंकवादी कृत्यों में भाग लेता है;—
(iii) आतंकवाद के लिए तैयारी करता है;—
(iv) आतंकवाद को बढ़ावा देता है;—
(v) दूसरों को आतंकवाद के लिए संगठित या निर्देशित करता है;—
(vi) आतंकवादी कृत्य को आगे बढ़ाने के सामान्य उद्देश्य से कार्य करने वाले व्यक्तियों के एक समूह द्वारा आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने में योगदान देता है, जहां योगदान जानबूझकर और आतंकवादी कृत्य को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से या समूह के इरादे की जानकारी के साथ किया जाता है। आतंकवादी कृत्य करना; या
(vii) अन्यथा आतंकवाद में शामिल है; या
(viii) गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की पहली अनुसूची में सूचीबद्ध कोई भी संगठन या सूचीबद्ध संगठन के समान नाम के तहत काम करने वाला कोई संगठन।

बीएनएस धारा 114 क्या है |

BNS Section 114

चोट पहुंचाना

जो कोई किसी व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा, बीमारी या दुर्बलता का कारण बनता है, उसे चोट पहुंचाना कहा जाता है।

बीएनएस धारा 115 क्या है |

BNS Section 115

        कई बार हमारे साथ कुछ इस प्रकार की घटना हो जाती है, जिनके होने की हमें बिलकुल भी उम्मीद नहीं होती है। अकसर भीड़ वाली जगहों जैसे बाजारों में कुछ लोग जानबूझकर धक्का-मुक्की कर देते है, जिसके कारण हमें चोट लग जाती है। इसके साथ ही बहुत से अन्य मामले भी ऐसे होते है, जिनमें जानबूझकर कोई व्यक्ति हमें चोट पहुँचा देता है। लेकिन हम उन पर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं कर पाते क्योंकि हमें अपनी सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों की जानकारी नहीं होती। भारतीय न्याय संहिता में ऐसे अपराधों को रोकने और सजा देने के लिए कई प्रावधान दिए गए है। इसलिए आज हम भारतीय न्याय संहिता की एक बहुत ही आवश्यक धारा के बारे में समझेंगे की, बीएनएस की धारा 115 क्या है (BNS Section 115)? इस धारा में जमानत, सजा और बचाव के क्या प्रावधान है?

        जानबूझकर किसी व्यक्ति को नुकसान पहुँचाना कानूनी रुप से दंडनीय अपराध (Punishable offence) है, जिस पर पहले भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 321 व 323 में केस दर्ज कर कार्यवाही की जाती थी। लेकिन 1 जुलाई 2024 से नए कानून के रुप में भारतीय न्याय संहिता (BNS) के पूरे देश में लागू होने के बाद से अब BNS की धारा 115 के तहत ऐसे अपराधों पर कार्यवाही की जाएगी। इसलिए नए कानूनी बदलाव की हर उपयोगी जानकारी जानने के लिए इस लेख को जरुर पढ़े।

बीएनएस की धारा 115 क्या है – BNS Section 115 

          भारतीय न्याय संहिता की धारा 115 में स्वेच्छा से चोट पहुंचाने (voluntarily causing hurt) के अपराध के बारे में बताया गया है। स्वेच्छा से चोट (Injury) पहुंचाने का अर्थ होता है, खुद की इच्छा से किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाना। धारा 115 को मुख्य रुप से दो उपधाराओं (Sub Sections) में बाँटा गया है, धारा 115( 1) व धारा 115 (2)। आइये इससे जुड़ी सभी जानकारियों को विस्तार से समझते है।

BNS Section 115 (1) – स्वेच्छा से चोट पहुँचाने की परिभाषा

        बीएनएस की धारा 115(1) में स्वेच्छा से चोट पहुँचाने के अपराध को परिभाषित किया गया है। जिसमें बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुँचाने के इरादे (Intention) से कोई ऐसा कार्य करता है। यह जानते हुए की उसके द्वारा किए गए कार्य करने से सामने वाले व्यक्ति को चोट लग सकती है। ऐसे कार्य को स्वेच्छा से चोट पहुंचाने का अपराध माना जाता है, और उस व्यक्ति पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।

BNS Section 115 (2) – स्वेच्छा से चोट पहुँचाने के अपराध के लिए सजा

       बीएनएस की धारा 115(2) में बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति यह जानते हुए भी कि उसके द्वारा किए गए कार्य से किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुँच सकती है। ऐसा अपराध करेगा तो उस व्यक्ति को भारतीय न्याय संहिता की धारा 115 (2) के तहत दंडित किया जाएगा। इस अपराध में कितनी सजा मिलती है इसके बारे में हम इसी लेख में आगे जानेंगे।

बीएनएस सेक्शन 115 लगने के मुख्य बिंदु
  • इरादा या ज्ञान (Intention or knowledge):- इसमें आरोपी व्यक्ति (Accused Person) का किसी दूसरे व्यक्ति को चोट पहुंचाने का इरादा होना चाहिए या इसे बात की जानकारी होनी चाहिए कि उसके द्वारा किए गए कार्य से दूसरे व्यक्ति को चोट लगने की पूरी संभावना है।
  • चोट पहुँचाने वाला कार्य (Act Causing injury):- आरोपी द्वारा कोई ऐसा कार्य किया जाना चाहिए जिसके परिणामस्वरूप सामने वाले व्यक्ति को सीधा चोट पहुँची हो। जैसे किसी को धक्का देना, आदि।
कुछ ऐसे कार्य जो BNS 115 के तहत अपराध माने जा सकते है:-
  • किसी को थप्पड़ मारना या मुक्का मारना।
  • किसी को लात मारना या ठोकर मारना, जिससे वह गिर जाए और उस व्यक्ति को चोट लग जाए।
  • किसी को जानबूझकर धक्का देना।
  • किसी व्यक्ति पर कोई सामान या वस्तु फेंक देना।
  • जानबूझकर किसी व्यक्ति के हाथ या अन्य अंग (Body Part) को जोर से पकड़कर परेशान करना।
  • जानबूझकर किसी को चौंकाने या डराने के लिए तेज आवाज करना, जिसे सामने वाले व्यक्ति को अचानक से नुकसान पहुंचे।

       इसके अलावा भी बहुत सारे ऐसे कार्य हो सकते है, जिनको आप करते है तो वह सेक्शन 115 के तहत अपराध माने जाएंगे।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 115 के जुर्म का उदाहरण:-

       प्रदीप और साहिल नाम के दो लड़के क्रिकेट के बहुत अच्छे खिलाड़ी होते है। एक दिन प्रदीप रोजाना की तरह मैदान में खेलने के लिए जाता है। उसी समय साहिल भी वही आ जाता है, और प्रदीप के साथ खेलने लग जाता है। खेलते-खेलते साहिल गेंद को जानबूझकर एक ऐसी जगह फेंक देता है, जहाँ पर आसानी से ना दिखाई देने वाले गड्डा होता है।

        साहिल को इस बात की जानकारी होती है कि वहाँ गड्डा है। जब प्रदीप बाल लेने वहाँ जाता है, तो उस गड्डे में गिर जाता है। जिसकी वजह से उसे चोट लग जाती है, इस मामले में यह साबित होता है कि साहिल ने प्रदीप को जानबूझकर (Intentionally) वहाँ भेजा जिससे उसे चोट लगी। इसलिए इस अपराध के लिए साहिल के खिलाफ BNS Section 115 के तहत कार्यवाही की जा सकती है।

बीएनएस धारा 115 के अपराध की सजा (Punishment)

      बीएनएस की धारा 115 में उपधारा (2) दण्ड (Punishment) निर्धारित करती है। जिसमें बताया गया है कि, जो कोई भी व्यक्ति धारा 120 की उपधारा(1) में दिए अपराध को छोड़कर स्वेच्छा से चोट पहुँचाने के अपराध का दोषी (Guilty) पाया जाता है। उस दोषी व्यक्ति को एक अवधि की कारावास (Imprisonment) जिसे एक वर्ष तक की सजा में बढ़ाया जा सकता है, की सजा से दंडित किया जाएगा। इसके साथ ही दोषी व्यक्ति को दस हजार रुपये तक के जुर्माने (Fine) से भी दंडित किया जा सकता है।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 115 में जमानत कैसे व कब मिलती है

       बीएनएस की धारा 115 के तहत आने वाला यह अपराध एक गैर-संज्ञेय (Non-Cognizable) अपराध होता है, जिसे गंभीर अपराधों की श्रेणी से अलग रखा गया है। इसके साथ ही यह अपराध जमानती (Bailable) भी होता है, जिसका मतलब है कि इस मामले में आरोपित व्यक्ति को जमानत आसानी से मिल जाती है।

बीएनएस धारा 115 में बचाव कैसे किया जा सकता है।

       यदि किसी व्यक्ति पर BNS 115 के अपराध के लिए कार्यवाही की जाती है, तो उस व्यक्ति के लिए इसी कानून के अंदर बचाव के कुछ आवश्यक उपाय दिए गए है, जिन बचाव उपायों की जानकारी आपको होना बहुत जरुरी है। इस अपराध के तहत कुछ ऐसी परिस्थितियाँ हैं जहाँ चोट पहुँचाना वैध (Valid) माना जा सकता है और आप पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही भी नहीं की जाएगी।

  • आप खुद को बेगुनाह (Innocent) साबित करने के लिए यह साबित कर सकते है कि आपका इरादा किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाने का नहीं था या आपको नहीं पता था कि आपके कार्यों से चोट लगने की संभावना है। जैसे – अंजाने में किसी को चोट लग जाना।
  • यदि आप खुद को या किसी और को नुकसान पहुँचाने से बचाने के लिए आत्मरक्षा (Self Defence) में सामने वाले व्यक्ति को चोट पहुँचाते है तो वह खुद की सुरक्षा में माना जाएगा।
  • किसी व्यक्ति ने पहले आपका बहुत अपमान (Insult) किया और आपको उकसाया (Provoke) जिसके कारण आपने उन्हें चोट पहुँचाई।
  • कोई ऐसा कार्य किया गया हो जिसमें चोट लगने वाले व्यक्ति की खुद की सहमति भी थी। (हालाँकि, गंभीर चोटों के लिए सहमति मान्य नहीं होगी) यानी उस व्यक्ति ने अपनी इच्छा से ऐसा कार्य किया जिसके कारण उसे चोट लगी। इसमें आप की कोई गलती नहीं मानी जाएगी।

        इसके अलावा आप खुद के बचाव के लिए मौके पर मौजूद लोगों की गवाही या सबूतों की सहायता ले सकते है। यदि फिर भी आपको किसी भी प्रकार की समस्या आती है, तो आप अपने बचाव के लिए एक अच्छे वकील की सहायता ले सकते है। जो ऐसे मामलों से आपको बचाने के लिए अच्छे से आपके केस को समझेगा व आपको निर्दोष साबित करने के लिए न्यायालय में आपके केस की पैरवी भी करेगा।

निष्कर्ष:- BNS Section 115 का मुख्य उद्देश्य लोगों को ऐसे अपराधों का शिकार होने से बचाना है, जो किसी व्यक्ति द्वारा जानबूझकर नुकसान पहुँचाने के लिए किया जाता है। यदि आप भी ऐसे किसी कानूनी मामले में सहायता चाहते है, तो आप आज ही हमारे अनुभवी वकीलों से बात करके अपनी समस्या का समाधान प्राप्त कर सकते है।

बीएनएस धारा 116 क्या है |

BNS Section 116

गंभीर चोट

        केवल निम्नलिखित प्रकार की चोट को “गंभीर” के रूप में नामित किया गया है, अर्थात्:–

(ए) नपुंसकता.

(बी) दोनों आंखों की रोशनी का स्थायी अभाव

(सी) दोनों कानों से सुनने की क्षमता स्थायी रूप से खत्म हो जाती है।

(डी) किसी भी सदस्य या संयुक्त का निजीकरण

(ई) किसी भी सदस्य या संयुक्त की शक्तियों का विनाश या स्थायी हानि।

(एफ) सिर या चेहरे का स्थायी विरूपण।

(छ) हड्डी या दांत का फ्रैक्चर या अव्यवस्था।

(ज) कोई भी चोट जो जीवन को खतरे में डालती है या जिसके कारण पीड़ित को पंद्रह दिनों के दौरान गंभीर शारीरिक दर्द होता है, या वह अपनी सामान्य गतिविधियों का पालन करने में असमर्थ हो जाता है।

बीएनएस धारा 117 क्या है |

BNS Section 117

        एक व्यक्ति जिसे जानबूझकर इतनी गंभीर चोट पहुंचाई जाती है कि वह पूरी जिंदगी के लिए अपाहिज हो जाता या उसका चेहरा हमेशा के लिए खराब हो जाता है। रोजाना इस तरह के अपराधों की खबरें अक्सर सुर्खियों में रहती हैं। चाहे वह घरेलू हिंसा हो, गुंडागर्दी हो या फिर किसी और कारण से जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे अपराधों से निपटने के लिए ही इस लेख में हम भारतीय न्याय संहिता की एक धारा के बारे में विस्तार से जानेंगे कि, बीएनएस की धारा 117 क्या है (BNS Section 117)? सेक्शन 117 के अपराध का दंड क्या है? ये धारा जमानती है या गैर-जमानती?

        पहले जब कोई व्यक्ति किसी को जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाता था, तो आरोपी व्यक्तियों पर आईपीसी (IPC) की धारा 322 के तहत मामला दर्ज किया जाता था। लेकिन हाल ही में हुए कानूनी बदलाव में BNS के लागू किए जाने के बाद गंभीर चोट पहुँचाने वाले आरोपी व्यक्तियों पर बीएनएस (BNS) की धारा 117 के प्रावधान अनुसार कार्यवाही की जाने लगी है। इस अपराध में कुछ नई बातों को जोड़ा गया है, जो पहले से ज्यादा गंभीर मामलों को बताती है। इसलिए सभी लोगों को इसकी जानकारी होना बहुत ही आवश्यक है।

बीएनएस की धारा 117 क्या है – BNS Section 117 

       भारतीय न्याय संहिता की धारा 117 के अंतर्गत स्वेच्छा से गंभीर चोट (Grievous hurt) पहुँचाने का अपराध शामिल है। इस धारा के अनुसार यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर और स्वेच्छा (यानि अपनी खुद की इच्छा) से किसी अन्य व्यक्ति को ऐसी चोट (Injury) पहुंचाता है जिससे गंभीर शारीरिक नुकसान होता है, तो यह अपराध धारा 117 के अंतर्गत आता है।

       इस प्रकार की चोटें आमतौर पर गंभीर होती हैं, जैसे हड्डी का टूटना, आंख की रोशनी चली जाना, कान की सुनने की क्षमता का खत्म हो जाना, या किसी अंग का हमेशा के लिए बेकार हो जाना।

       धारा 117 में अपराध के अलग-अलग तरीकों व परिस्थितियों को इसकी 4 उपधाराओं (Sub-Sections) के द्वारा विस्तार से बताया गया है, जो कि इस प्रकार से है:-

  • बीएनएस धारा 117 (1):- जो कोई भी किसी अन्य व्यक्ति को जानबूझकर ऐसी चोट पहुँचाता है। यह जानते हुए भी कि उससे सामने वाले व्यक्ति को ज्यादा व गंभीर चोट लग सकती है या गंभीर नुकसान हो सकता है। उस व्यक्ति पर धारा 117(1) लागू कर कार्यवाही की जाती है।
  • बीएनएस धारा 117 (2): जो भी व्यक्ति धारा 117(3) में बताए गए अपराध को छोड़कर खुद की इच्छा से किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुँचाता है, तो उस व्यक्ति को धारा 117(2) के अनुसार सजा (Punishment) दी जाती है।
  • बीएनएस सेक्शन 117(3): यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को ऐसी चोट पहुंचाता है जो उस व्यक्ति को हमेशा के लिए विकलांग (Disabled) बना देती है या उसे बहुत लंबे समय तक गंभीर रूप से बीमार या कमजोर कर देती है, तो उस अपराध को बहुत गंभीर माना जाता है। जिसमें दोषी (Guilty) पाये जाने वाले व्यक्ति को अन्य उपधाराओं में दी गई सजा से अधिक सजा दी जा सकती है।
  • बीएनएस सेक्शन 117(4):- अगर पाँच या उससे अधिक लोगों का एक समूह (Group) किसी व्यक्ति को उसकी नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, या किसी अन्य आधार पर गंभीर चोट पहुँचाता है, तो यह अपराध बहुत गंभीर माना जाता है। समूह के प्रत्येक सदस्य की जिम्मेदारी: इस स्थिति में उस समूह के प्रत्येक सदस्य को दोषी माना जाएगा, भले ही उन्होंने खुद चोट न पहुंचाई हो। इसका मतलब यह है कि अगर एक समूह में पांच या उससे अधिक लोग शामिल हैं और वे किसी व्यक्ति पर हमला (Attack) करते हैं, तो उस समूह के सभी लोग इस अपराध के दोषी माने जाएंगे।
BNS की धारा 117 के तहत गंभीर चोट पहुँचाने के अपराध के आवश्यक तत्व क्या हैं?
  • आरोपी (Accused) ने जानबूझकर और अपनी मर्जी से पीड़ित को चोट पहुंचाई हो। यानी उसने चोट पहुंचाने का इरादा (Intention) किया हो।
  • आरोपी द्वारा पहुंचाई गई चोट गंभीर प्रकृति की हो।
  • गंभीर चोट का मतलब है ऐसी चोट जो स्थायी विकलांगता का कारण बन सकती है।
  • यदि कोई व्यक्ति किसी भीड़ के हिस्से के रूप में किसी अन्य व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाता है, तो वह भी इस धारा के तहत दोषी पाया जा सकता है।
कुछ कार्य जिनको करना धारा 117 का अपराधी बना सकता है।
  • अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी की हड्डी तोड़ता है, जैसे कि मारपीट के दौरान, तो यह गंभीर चोट मारने का अपराध माना जाता है।
  • किसी की चेहरे पर तेज़ाब (Acid) डालना जिसके कारण उसकी आँखे या शरीर का अन्य कोई हिस्सा खराब हो जाए।
  • किसी व्यक्ति को इस प्रकार से मारना या उसे चोट पहुँचाना कि उसकी सुनने की क्षमता खत्म हो जाए या बहुत कम हो जाए।
  • किसी व्यक्ति को जानबूझकर आग या किसी अन्य गर्म वस्तु से इस तरह से जलाना कि उसकी त्वचा या शरीर के अंग (Skin or Body Parts) खराब हो जाए।
  • किसी को जानबूझकर किसी भी तरीके से जहर (Poison) देना जिससे उसकी जान खतरे में पड़ जाए या उसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हों।
  • अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति पर हथियार (Weapon) से हमला करता है, जैसे कि चाकू, बंदूक, या लोहे की रॉड से, और उससे गंभीर चोट पहुँचती है।
  • जानबूझकर किसी को ऊँचाई से धक्का देकर उसे गंभीर चोट पहुँचाना, जैसे कि सीढ़ियों से गिराना आदि।
  • किसी का गला घोंटने की कोशिश करना जिससे उसे साँस लेने में दिक्कत हो और उसकी जान को खतरा हो, यह भी गंभीर चोट का अपराध है।
  • किसी को जानबूझकर बहुत ठंडी या गर्म जगह पर लंबे समय तक छोड़ना, जिससे उसकी त्वचा या शरीर को गंभीर नुकसान हो, इनमें से कोई भी कार्य करने पर धारा 117 के तहत कार्यवाही की जा सकती है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 117 में गंभीर चोट पहुँचाने के अपराध की सजा

       बीएनएस की धारा 117 में स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुँचाने के अपराध की सजा को इस अपराध में होने वाले अन्य गंभीर नुकसानों के आधार पर अलग-अलग उपधाराओं (Sub-Sections) में बताया गया है। जो की इस तरह से है:-

  • BNS 117 (2) की सजा:- जो भी व्यक्ति उपधारा 3 में बताए गए अपराध को छोड़कर स्वेच्छा (Voluntarily) से किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुँचाने के दोषी पाया जाएगा। उसे अधिकतम 7 वर्ष तक की कैद हो सकती है, और इसके साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है। सजा की गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि अपराध की प्रकृति कितनी गंभीर है और उससे पीड़ित व्यक्ति को कितनी हानि हुई है।
  • BNS 117(3) की सजा:- यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को ऐसी चोट पहुँचाता है जिससे वो व्यक्ति हमेशा के लिए विकलांग (Disabled) हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को दोषी पाये जाने पर कम से कम 10 साल के कठोर कारावास (Rigorous Imprisonment) की सजा दी जाएगी। यह न्यूनतम सजा है, जिसका मतलब है कि इससे कम सजा नहीं दी जा सकती।
  • आजीवन कारावास: अगर अपराध बहुत गंभीर है, तो सजा 10 साल से अधिक भी बढ़ाई जा सकती है और आजीवन कारावास (Life Imprisonment) (यानी उस व्यक्ति को उसके जीवन के बाकी बचे समय के लिए जेल) तक हो सकती है। इसके साथ ही दोषी व्यक्ति पर अपराध की गंभीरता के हिसाब से जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
  • BNS 117(4) की सजा:- यदि पाँच या उससे अधिक लोगों का एक समूह किसी व्यक्ति को उसकी नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान, भाषा या किसी अन्य आधार पर गंभीर चोट पहुँचाता है, तो उस समूह के सभी लोग इस अपराध के दोषी (Guilty) माने जाएंगे। जिन पर इस अपराध के लिए 7 साल तक की जेल व जुर्माने का दंड लगाया जा सकता है।
बीएनएस की धारा 117 में जमानत कब व कैसे मिलती है

       भारतीय न्याय संहिता की धारा 117 के तहत आने वाला स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुँचाने का यह अपराध संज्ञेय (Cognizable) यानी गंभीर श्रेणी का अपराध होता है। जो कि गैर-जमानती अपराध (Non-Bailable Offence) भी है, इसका मतलब है कि आरोपी को इसमें तुरंत जमानत (Bail) नहीं मिलती है, बल्कि जमानत के लिए उसे न्यायालय में आवेदन करना पड़ता है और परिस्थितियों के आधार पर जमानत दी जाती है या नहीं दी जाती इसका फैसला केवल न्यायालय द्वारा ही लिया जा सकता है।

       यह अपराध सत्र न्यायालय (Sessions Court) द्वारा विचारणीय (Triable) होता है, साथ ही इसमें किसी भी प्रकार का समझौता भी नहीं किया जा सकता है।

BNS 117 के अपराध का उल्लंघन करने के आरोपी व्यक्ति के लिए बचाव
  • आरोपी यह दावा कर सकता है कि उसने किसी को भी जानबूझकर चोट नहीं पहुंचाई थी, बल्कि यह एक दुर्घटना थी।
  • आरोपी अपने बचाव (Defence) में यह भी साबित कर सकता है कि उसने खुद को बचाने के लिए या किसी अन्य व्यक्ति को बचाने के लिए ऐसा किया था।
  • यदि आरोपी द्वारा पीड़ित को पहुंचाई गई चोट गंभीर नहीं है तो उसको यह साबित करना होगा कि चोट इतनी गंभीर नहीं थी कि धारा 117 के दायरे में आए।
  • आरोपी यह दावा कर सकता है कि उसे किसी अन्य व्यक्ति की जगह गलत पहचाना (Wrong Identify) गया है।
  • अगर आरोपी व्यक्ति को कोई मानसिक बीमारी (Mental Illness) है जिसके कारण उसने यह अपराध किया, तो उसका वकील उसके बचाव के लिए उसकी रिपोर्ट न्यायालय में दिखा सकता है।
  • आरोपी अपने बचाव में यह भी दावा कर सकता है कि पुलिस ने जबरदस्ती (Forcefully) उससे बयान (Statement) लिए है जब की उसने ऐसा कोई अपराध नहीं किया है।
  • इन सभी बातों को साबित करने के लिए आपके पास सभी आवश्यक सबूतों व गवाहों (Evidences or Witnesses) का होना बहुत ही जरुरी है।
  • इसके साथ ही आरोपी व्यक्ति को ऐसे मामलों में अपने बचाव के लिए किसी अनुभवी वकील (Experienced Lawyer) की मदद जरुर लेनी चाहिए।

निष्कर्ष:- BNS Section117 स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुँचाने का अपराध एक गंभीर कानूनी मुद्दा है, जिसमें जानबूझकर किसी व्यक्ति को गंभीर शारीरिक हानि पहुँचाने की नीयत होती है। ऐसे कृत्य कानून की नजर में कड़ी सजा के पात्र होते हैं, जिसमें लंबी अवधि की जेल और जुर्माना शामिल हो सकता है। यदि आप किसी कानूनी समस्या का सामना कर रहे हैं, तो हमसे आज ही संपर्क करें। हम आपके पक्ष में खड़े हैं और आपको उचित कानूनी समाधान दिलाने के लिए तैयार हैं।

बीएनएस धारा 118 क्या है |

BNS Section 118

       क्या आप जानते हैं कि गुस्से में जानबूझकर किसी व्यक्ति पर किसी खतरनाक वस्तु से हमला करना आपको सारी उम्र जेल की सलाखों के पीछे भेज सकता है। जी हाँ अकसर हम किसी व्यक्ति से बदला लेने के चक्कर में कोई ऐसा अपराध कर देते है, जिसके बाद हमें पूरे जीवन अफसोस में गुजारना पड़ता है। यदि ऐसे अपराधों के लिए बनाए गई सजा व अन्य कानूनों की जानकारी हमें पहले से हो तो, इंसान ऐसे अपराधों को करने से पहले कई बार सोचेगा। इसलिए हम भारतीय न्याय संहिता की बहुत ही गंभीर अपराध की धारा के बारे में जानकारी देंगे की बीएनएस की धारा 118 क्या है (BNS Section 118)? यह किस अपराध में लागू होती है? धारा 118 की सजा और जमानत का प्रावधान?

       भारतीय न्याय संहिता को लागू हुए अभी कुछ ही समय हुआ है इसलिए आप सभी का यह जानना भी जरुरी है, कि ऐसे अपराधों के लिए पहले भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 324 व 326 लागू की जाती थी। परन्तु अब भविष्य में होने वाले इस प्रकार के सभी अपराधों के लिए भारतीय न्याय संहिता की धारा (BNS) 118 के तहत ही कार्यवाही की जाएगी। इसलिए देश के सभी नागरिकों के साथ-साथ जिन व्यक्तियों पर BNS Section 118 के तहत मामले दर्ज किए जा रहे है। उन सब को इस अपराध में होने वाली आगे की कार्यवाही व बचाव उपायों से जुड़ी जानकारी इस लेख से प्राप्त होगी। इसलिए इस लेख को अंत तक जरुर पढ़े।

बीएनएस धारा 118 क्या है यह कब लागू होती है- BNS Section 118 

        भारतीय न्याय संहिता की धारा 118 जो ख़तरनाक हथियारों या साधनों (Dangerous Weapons) के द्वारा स्वेच्छा से किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाने या गंभीर चोट पहुँचाने (hurt or grievous hurt) के अपराध के बारे में बताती है। यदि कोई व्यक्ति किसी भी खतरनाक हथियार या तरीकों द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को जानबूझकर (Intentionally) नुकसान पहुँचाने या गंभीर चोट पहुँचाने का अपराध करता है।

       उस व्यक्ति पर बीएनएस की धारा 118 व उसकी उपधाराओं (Sub-Sections) के तहत कार्यवाही की जाती है। बीएनएस की धारा 118 को दो उपधाराओं में अपराध की गंभीरता के हिसाब से बाँटा गया है। इन दोनों उपधाराओं में सजा को भी अलग-अलग प्रकार से बताया गया है।

  • बीएनएस धारा 118 की उपधारा (1):– इसमें बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति खुद की इच्छा से किसी खतरनाक हथियार या साधन का उपयोग करके किसी व्यक्ति को चोट पहुँचा देता है। तो उस व्यक्ति पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 118(1) लागू कर कार्यवाही की जाती है। इसमें केवल चोट के बारे में बताया गया है, मानव शरीर (Human Body) के किसी भी हिस्से में होने वाले किसी भी दर्द, या पीड़ा को चोट कहा जाता है।
  • बीएनएस धारा 118 की उपधारा (2): यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से किसी खतरनाक हथियार व अन्य साधन से किसी व्यक्ति को गंभीर चोट (Grievous Hurt) पहुँचाने का अपराध करेगा। उस व्यक्ति पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 118(2) के तहत कार्यवाही की जाती है। गंभीर चोट वो होती है जिनकी वजह से किसी व्यक्ति की जान को भी खतरा हो सकता है।

इन दोनों में समझने योग्य बात यह है कि उपधारा (1) में खतरनाक हथियार व साधन के उपयोग से केवल चोट लगने के बारे में बताया गया है। लेकिन उपधारा (2) में खतरनाक हथियारों व साधन द्वारा गंभीर चोट लगने के बारे में बताया गया है। इन दोनों में मुख्य अंतर चोट व गंभीर चोट के बीच देखने को मिलता है।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 118 के आवश्यक तत्व
  • आरोपी व्यक्ति ने पीड़ित व्यक्ति को जानबूझकर नुकसान पहुँचाया होगा या गंभीर चोट पहुँचाई होगी।
  • नुकसान पहुँचाने का कार्य जानबूझकर किया जाना चाहिए और आकस्मिक (Accidental) नहीं होना चाहिए।
  • नुकसान या चोट किसी खतरनाक हथियार (Dangerous Weapons) का उपयोग करके पहुँचाई गई होगी।
  • “खतरनाक हथियार” ऐसी वस्तु होती है जो हथियार के रुप में इस्तेमाल की जा सकती है। जिनकी इस्तेमाल से किसी व्यक्ति की मृत्यु या गंभीर चोट पहुँचने की संभावना होती है। जैसे बंदूक चाकू, तलवारें, एसिड और विस्फोटक आदि।
BNS 118 के तहत अपराध में शामिल कुछ कार्य
  • किसी व्यक्ति पर चाकू (Knife) से हमला करना और उसे चोट पहुंचाना।
  • किसी व्यक्ति पर बंदूक से गोली मारकर उसे घायल (Injured) करना या मार डालना।
  • किसी व्यक्ति को लाठी या डंडे से पीटना।
  • तेजधार हथियार जैसे कि कुल्हाड़ी, तलवार आदि से हमला करना।
  • एसिड फेंककर किसी व्यक्ति को गंभीर रूप से जलाना।
  • किसी व्यक्ति को जानबूझकर जहरीला पदार्थ या वस्तु खिलाना।
  • किसी भी विस्फोट (Explosion) वाली वस्तु का उपयोग करके नुकसान पहुँचाना।
  • किसी व्यक्ति पर गर्म तेल या पानी डालकर उसे जलाना।

       इनसे अलग भी अन्य प्रकार के कार्य हो सकते है जिनको करने वाले किसी भी व्यक्ति पर BNS Section 118 व उसकी उपधाराओं (Sub-Sections) के तहत कार्यवाही की जा सकती है।

बीएनएस सेक्शन 118 के जुर्म का उदाहरण

        अर्जुन और विवेक दोनों एक कॉलेज के हॉस्टल में रहते थे। वहाँ पर वे दोनों बहुत समय से एक साथ रहते थे और शुरूआत से ही दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती थी। लेकिन धीरे-धीरे उनके बीच छोटी-छोटी बातों पर कहासुनी होने लगी थी। जिसकी वजह से वे दोनों ही एक दूसरे से नफरत करने लगे थे।

         एक दिन दोनों अपने कमरे में ही बैठे होते है, और उनके बीच किसी बात को लेकर बहस हो जाती है। कुछ ही देर बाद बहस इतनी बढ़ जाती जिसमें अर्जुन जानबूझकर विवेक पर पास ही रखे चाकू से हमला (Attack) कर देता है। जिससे विवेक को बहुत ही गंभीर चोट लग जाती है, और वह घायल हो जाता है। इस घटना के बाद पुलिस वहां आती है और अर्जुन को गिरफ्तार कर लेती है।

       पुलिस अर्जुन के खिलाफ विवेक पर खतरनाक हथियार से हमला कर गंभीर चोट पहुंचाने के अपराध की धारा 118 के तहत केस दर्ज कर लेती है।

BNS Section 118 (1) (2) के तहत अपराध की सजा

         भारतीय न्याय संहिता की धारा 118 में स्वेच्छा से किसी भी व्यक्ति पर खतरनाक हथियार के द्वारा हमले के दोषी (Guilty) व्यक्तियों को सजा (Punishment) भी अपराध की गंभीरता को देखते हुए ही दी जाती है। जिनको इसकी उपधाराओं में ही बताया गया है, आइये विस्तार से जानते है:-

  • BNS 118 (1) की सजा :– जो भी व्यक्ति खुद की इच्छा से जानबूझकर किसी व्यक्ति को खतरनाक हथियार द्वारा नुकसान या चोट पहुंचाता है। उस व्यक्ति को न्यायालय द्वारा दोषी पाये जाने पर 3 साल तक की कैद, व 20,000 रुपये के जुर्माने (Fine) से दंडित (Punished) किया जाता है।
  • BNS 118 (2) की सजा:- इसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से किसी व्यक्ति को खतरनाक हथियार या साधन का उपयोग करके गंभीर चोट पहुँचाने का अपराध करता है। जिससे पीड़ित व्यक्ति (Victim Person) की जान जाने की भी संभावना (Possibility) बन सकती है। ऐसे व्यक्ति को दोषी पाये जाने पर कम से कम एक वर्ष से लेकर आजीवन कारावास (Life Imprisonment) व जुर्माने की सजा से दंडित किया जा सकता है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 118 में जमानत कब व कैसे मिलती है

        बीएनएस की धारा 118 में खतरनाक हथियारों व तरीकों के इस्तेमाल से चोट या गंभीर चोट पहुँचाना एक गंभीर अपराध माना जाता है। इसलिए यह एक संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) यानी ऐसा अपराध होता है, जिसके आरोपी व्यक्ति (Accused ) को पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है। इसके साथ ही अपराध की गंभीरता को देखते हुए गैर-जमानती (Non-Bailable) भी रखा गया है। जिसका मतलब है, कि आरोपी व्यक्ति अधिकार के तौर पर अपनी जमानत (Bail) के लिए आवेदन नहीं कर सकता है।

        यदि आपको धारा 118 के तहत गिरफ्तार किया गया हैं, तो आपको तुरंत एक वकील से संपर्क करना चाहिए। ऐसे मामलों में वकील (Lawyer) पहले आपके मामले को समझेगा व फिर आपको जमानत दिलाने की हर संभव कोशिश करेगा।

बीएनएस धारा 118 के अपराध में बचाव के लिए उपाय
  • सबसे पहले तो ऐसे किसी भी अपराध में फंसने से बचे, यानी कोई ऐसा कार्य ना करें जिससे आप पर इस अपराध के आरोप (Blame) लगे।
  • ऐसे मामलों से बचे रहने के लिए किसी भी तरह की हिंसक स्थिति (Violent Situation) से दूर रहें।
  • गुस्से आने पर तुरंत कोई भी निर्णय न लें। चाकू, बंदूक जैसी खतरनाक वस्तुओं को अपने पास न रखें।
  • यदि फिर भी किसी वजह से आप पर BNS 118 लागू हो जाती है तो ऐसे अपराध से बचाव के लिए सबसे पहले किसी अनुभवी वकील की सहायता ले जो आपको आगे की कार्यवाही के लिए कानूनी सलाह देगा।
  • अपने बचाव को मजबूत करने के लिए, सभी आवश्यक सबूतों व गवाहों (Evidences Or Witnesses) को इकट्ठा करें।
  • यदि आप निर्दोष हैं, तो पुलिस जांच में अपना पूरा सहयोग करें। अदालत में पेश हों और अपने बचाव को प्रस्तुत करें।
  • यदि आपने किसी हमले के जवाब में कोई कार्य किया था, तो आप आत्मरक्षा (Self Defence) का दावा भी कर सकते हैं।
  • यदि आपने अपराध नहीं किया है और किसी ने आपको किसी अन्य व्यक्ति की जगह मान कर गलत आरोप लगा दिए है। तो भी आप इसे अपने बचाव के लिए इस्तेमाल कर सकते है।
  • अगर पुलिस के पास आपके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं, तो सबूतों की कमी होने की बात भी आपके बचाव के रुप में काम आ सकती है।
  • यदि चोट लगने का कार्य किसी दुर्घटना (Accident) के कारण हुआ था, तो आप यह साबित कर सकते है कि आपने जानबूझकर ऐसा नहीं किया था।

निष्कर्ष :- BNS Section 118 सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखने में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। खतरनाक हथियारों या नुकसान पहुंचाने के साधनों के इस्तेमाल करने वाले दोषी व्यक्तियों को कठोर दंड दिलाकर पीड़ित व्यक्तियों को न्याय देती है। अगर आप भी किसी ऐसी ही कानूनी स्थिति का सामना कर रहे, जिसका आपको कोई समाधान नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में अपनी समस्या का घर बैठे समाधान पाने के लिए आप हमारे वकीलों से बात कर सकते है।