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BNS (भारतीय न्याय संहिता ) Part- 14

बीएनएस धारा 352 क्या है |

BNS Section 352

       क्या कभी ऐसा हुआ है जब किसी व्यक्ति ने आपके साथ बहुत ही अपमानजनक भाषा में या गाली-गलौज करके बात की हो। जिससे वहाँ पर मौजूद सभी लोगों के सामने आपका बहुत ही अपमान (Insult) हुआ हो। ऐसे हालात में हम सभी को गुस्सा आना भी एक आम सी बात है। लेकिन उसी गुस्से के कारण यदि हम उस व्यक्ति के साथ झगड़ा करते है तो हम किसी ना किसी कानूनी समस्या में फंस सकते है। इसीलिए ऐसे हालात में समझदारी से काम लेकर उस व्यक्ति के खिलाफ हमें क्या कानूनी कार्यवाही करनी है, इसकी जानकारी होना बहुत जरुरी है। इसीलिए आज हम ऐसे ही मामलों से जुड़ी भारतीय न्याय संहिता की एक अहम धारा के बारे में आपको जानकारी देंगे, कि बीएनएस की धारा 352 क्या है? और यह किस अपराध में लागू होती है? BNS 352 के उल्लंघन की सजा और जमानत का प्रावधान?

      किसी भी व्यक्ति के लिए उसका सम्मान सबसे जरुरी होता है, जिसकी रक्षा के लिए हमारे देश के अंदर आवश्यक कानून बनाए गए है। पहले जब भी इस प्रकार की घटना होती थी तो भारतीय दंड संहिता की धारा (IPC) 504 के तहत उन पर कार्यवाही की जाती थी। परन्तु नए कानून यानी भारतीय न्याय संहिता (BNS) के लागू होने के बाद से भविष्य में ऐसे अपराधों के लिए धारा 352 के तहत केस दर्ज कर कार्यवाही की जाएगी। इसलिए BNS Section 352 से जुड़ी हर आवश्यक जानकारी विस्तार से जानने व समझने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़े।

बीएनएस की धारा 352 क्या है – BNS Section 352 

        भारतीय न्याय संहिता की धारा 352 के प्रावधान अनुसार बताया गया है, कि यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर (Intentionally) किसी भी व्यक्ति का अपमान (Insult) करने या उसको उकसाने (Provoke) के लिए कोई भी ऐसा गलत कार्य करता है। जिससे उस व्यक्ति को गुस्सा आए और वहाँ पर झगड़े का माहौल बन जाए।

        यानी अगर कोई व्यक्ति आपका अपमान करके आपको उकसाने व सार्वजनिक शांति (Public Peace) को भंग करने की कोशिश करता है, तो उस पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 352 के तहत आपराधिक मामला दर्ज कर कार्यवाही की जा सकती है। यह अपमान मौखिक, लिखित व किसी प्रकार के गलत इशारों द्वारा भी किया जा सकता है।

बीएनएस की धारा 352 के अपराध के आवश्यक तत्व:
  • जानबूझकर अपमान: कार्य जानबूझकर किया जाना चाहिए और दूसरे व्यक्ति का अपमान करने के इरादे से किया जाना चाहिए।
  • उकसावा: अपराधी का इरादा किसी व्यक्ति का अपमान करके उसकी शांति भंग (Breach of Peace) करने या कोई अन्य अपराध करने के लिए उसे उकसाने का होना चाहिए।
  • सार्वजनिक शांति: सार्वजनिक शांति का अर्थ है समाज व समुदाय की शांति, जिसके आस-पास किसी भी प्रकार की हिंसा ना हो।
  • अनजाने में नहीं: अगर कोई अनजाने में आपका अपमान करता है तो BNS Section 352 लागू नहीं होती है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 352 के अपराध का उदाहरण:

        एक दिन साहिल बाजार में किसी सामान को लेने के लिए लाइन में इंतजार कर रहा था। उसे लाइन में लगे हुए 1 घंटे से भी ज्यादा का समय हो गया था, लेकिन उसका नंबर अभी तक नहीं आया था। अचानक से विशाल नाम का एक व्यक्ति वहाँ पर आता है, और लाइन में साहिल से आगे आकर घुस जाता है। जिसके कारण साहिल विशाल को बोलता है कि तुम्हें लाइन में पीछे लगना चाहिए, हम पहले से यहाँ खड़े है।

        जिसके बाद विशाल पीछे मुड़ता है और साहिल के पास जाकर जानबूझकर उसका अपमान करने के लिए गाली-गलौज (Abuse) व बुरा-भला कहने लगता है। जिसके कारण साहिल को भी गुस्सा आ जाता है, और वहाँ लड़ाई जैसे माहौल बन जाता है। ऐसे में यदि साहिल विशाल के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज (Complaint Register) करा देता है तो विशाल के खिलाफ BNS Section 352 के तहत कार्यवाही की जा सकती है।

बीएनएस सेक्शन 352 में सजा का प्रावधान – Punishment of BNS Section 352 

         बीएनएस की धारा 352 का उल्लंघन करने की सज़ा (Punishment) के रुप में बताया गया है, कि जो कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी व्यक्ति का अपमान करके उन्हें हिंसा (Violence) या आपराधिक कार्यों को करने के लिए उकसाने की कोशिश करता हैं। ऐसे अपराध करने वाले व्यक्तियों को न्यायालय द्वारा दोषी (Guilty) पाये जाने पर दो साल तक की कैद व जुर्माना या दोनों की सजा से दंडित किया जा सकता है।

BNS Section 352 में जमानत कब व कैसे मिलती है

       बीएनएस की धारा 352 को गैर-संज्ञेय अपराध (Non-Cognizable Offence) के दायरे में रखा गया है, इसके साथ ही यह एक जमानत (Bail) योग्य अपराध भी माना जाता है। इसका मतलब है कि आरोपी व्यक्ति को जमानत के लिए आवेदन करने के बाद अधिकार के तौर पर जमानत आसानी से मिल जाती है। ऐसे मामलों में जमानत आवेदनों पर आम तौर पर मजिस्ट्रेट द्वारा सुनवाई (Hearing) की जाती है।

BNS Section 352 के तहत जमानत की प्रक्रिया:-
  • यदि किसी व्यक्ति को BNS की धारा 352 का उल्लंघन करने के लिए गिरफ़्तार किया जाता है, तो सबसे पहले पुलिस उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश करेगी।
  • जिसके बाद अभियुक्त (Accused) या उनके वकील मजिस्ट्रेट की अदालत में जमानत के लिए आवेदन दायर कर सकते हैं।
  • इसके बाद मजिस्ट्रेट अपराध की गंभीरता, अभियुक्त के भागने या सबूतों से छेड़छाड़ करने की संभावना और उनके फिर से किसी अपराध को करने की संभावना पर विचार करेंगे।
  • ये सारी कार्यवाही होने के बाद मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को जमानत देने के फैसला ले सकते है।
कुछ ऐसे कार्य जो आपको BNS Section 352 के तहत अपराधी बना सकते हैं:-
  • किसी भी व्यक्ति को अपमानित करने या परेशान करने के लिए गंदे शब्दों या अपमानजनक भाषा का प्रयोग करना।
  • किसी अन्य व्यक्ति को शारीरिक नुकसान या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की धमकी देना, जिससे उन्हें अपमान व डर महसूस हो।
  • किसी व्यक्ति को डराने या परेशान करने के लिए गंदे या अपमानजनक इशारे (Gestures) करना।
  • सार्वजनिक रूप से किसी को गाली-गलौज करना या अपमानजनक टिप्पणी करना, जिससे तनाव व अशांति पैदा हो।
  • किसी धार्मिक समूह (Religious Groups) या व्यक्ति के धार्मिक विश्वासों या प्रथाओं का अपमान करना या उनका मजाक उड़ाना, जिससे हिंसा होने की संभावना बन सकती है।
  • किसी व्यक्ति या समूह की जाति (Cast) के आधार पर अपमानजनक टिप्पणी करना या भेदभावपूर्ण व्यवहार करना।
  • झूठी या भड़काऊ अफवाहें (Rumors) फैलाना जो किसी व्यक्ति या समूह की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकती हैं या हिंसा भड़का सकती हैं।

निष्कर्ष:- इस धारा का मुख्य उद्देश्य जानबूझकर अपमान करने व झगड़े के लिए उकसाने की कोशिश करने वाले लोगों को दंड देकर पीड़ित व्यक्ति को न्याय (Justice) दिलाने का है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अगर कोई आपका अपमान करता है तो आपने खुद मामले को अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए। यदि आपको भड़काने के इरादे से आपका अपमान किया गया है, तो कानून का उपयोग करके आप आरोपी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही कर सकते है। ऐसे मामलों पर BNS 352 के तहत जल्द से जल्द कार्यवाही करने के लिए आप हमारे अनुभवी वकीलों के सलाह घर बैठे भी प्राप्त कर सकते है।

बीएनएस धारा 353 क्या है |

BNS Section 353

        अक्सर हम सोशल मीडिया पर ऐसी खबरें देखते हैं जिन खबरों के सच होने की पुष्टि करना मुश्किल होता है। कई बार लोग बिना किसी सबूत के ही किसी व्यक्ति या समूह के खिलाफ झूठे आरोप लगा देते हैं। इससे न केवल उस व्यक्ति या समूह की प्रतिष्ठा खराब होती है, बल्कि समाज में भी तनाव और अशांति फैलती है।इसलिए यह समझना बेहद जरूरी है कि झूठी खबरें फैलाना कितना खतरनाक हो सकता है। धारा 353 हमें इस बात के लिए जागरूक करती है कि हमें किसी भी सूचना को बिना सोचे-समझे शेयर नहीं करना चाहिए। इस लेख में हम सार्वजनिक उपद्रव फैलाने वाले बयान के अपराध से जुडी इस धारा के बारे में जानेंगे कि, बीएनएस की धारा 353 क्या है (BNS Section 353)? इस सेक्शन में सजा कितनी होती है और धारा 353 में जमानत मिलती है या नही?

        सोशल मीडिया और इंटरनेट के आने से झूठी खबरें फैलाना बहुत आसान हो गया है। पहले झूठी खबरें फैलाने या समाज में अशांति फैलाने के अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 505 का इस्तेमाल होता था। लेकिन अब ऐसे मामलों में बीएनएस की धारा 353 लागू होती है। BNS को नए कानून के रुप में लागू कर पुरानी धाराओं को अपडेट करके नई धाराएं बनाई गईं ताकि इन नए तरह के अपराधों से निपटा जा सके। इसलिए अगर आप जानना चाहते हैं कि धारा झूठी जानकारी फैलाना आपके जीवन को कैसे प्रभावित कर सकती है, तो इस लेख को पूरा पढ़ें।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 353 क्या है – BNS Section 353 

         बीएनएस की धारा 353 भारतीय समाज में शांति और सौहार्द (Cordiality) बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह उन अपराधों से संबंधित है जो किसी भी व्यक्ति द्वारा झूठी जानकारी, अफवाहें या भयावह समाचार फैलाने के लिए किए जाते हैं, जिससे समाज में विभिन्न समूहों के बीच तनाव, शत्रुता या नफरत का माहौल उत्पन्न हो सकता है। इसका मुख्य उद्देश्य समाज में शांति बनाए रखना और लोगों के बीच किसी भी प्रकार के विवाद या हिंसा (Conflict or Violence) को रोकना है।

       सरल भाषा में कहे तो, यह धारा उन लोगों को दंडित करती है जो जानबूझकर झूठी सूचना (False Information) फैलाकर अलग-अलग समूहों के बीच दुश्मनी या नफरत पैदा करते हैं।

       BNS की धारा 353 में सार्वजनिक उपद्रव फैलाने वाले बयान के अपराध को अलग-अलग उपधाराओं के द्वारा बताया गया है, जो इस तरह से है:-

बीएनएस धारा 353 की उपधारा (1):- यदि कोई व्यक्ति झूठी जानकारी, अफवाह या गलत रिपोर्ट बनाता है और उसे प्रकाशित या प्रसारित (Published Or Broadcast) करता है, चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (जैसे इंटरनेट, टीवी, सोशल मीडिया) से हो या किसी अन्य माध्यम से, तो यह धारा 353 (1) के तहत अपराध माना जाएगा।

         धारा 353 (1) में अपराधों को इसके तीन खण्ड (Clause) A, B, C में भी अलग-अलग प्रकार से बताया गया है।

धारा 353 (1) खण्ड (A) – सेनानौसेनावायुसेना के सैनिकों को विद्रोह के लिए उकसाना:

        अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर ऐसी गलत जानकारी देता है या अफवाह (Rumour) फैलाता है जिससे भारतीय सेना, नौसेना, या वायुसेना के सैनिकों में विद्रोह (Rebellion) की भावना उत्पन्न हो तो यह अपराध है। इसका उद्देश्य यह है कि सेना और उसके अधिकारी देश की सुरक्षा और शांति के प्रति अपने कर्तव्यों का सही तरीके से पालन करें।

धारा 353 (1) खण्ड (B) – जनता में भय पैदा करना:

          अगर कोई व्यक्ति झूठी खबर या जानकारी के जरिए जनता या किसी विशेष वर्ग में डर फैलाने का इरादा रखता है। जिससे किसी व्यक्ति को राज्य के खिलाफ या सार्वजनिक शांति (Public Peace) के खिलाफ अपराध करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है, तो यह भी एक अपराध है। यह इसलिए जरूरी है ताकि किसी भी झूठी खबर के कारण समाज में डर या हिंसा (Violence) न फैले।

धारा 353 (1) खण्ड (C) – विभिन्न समुदायों के बीच नफरत फैलाना:-

         अगर कोई व्यक्ति किसी वर्ग या समुदाय को किसी अन्य वर्ग या समुदाय के खिलाफ अपराध करने के लिए उकसाता है, या उसके उकसाने (Provoke) की संभावना होती है, तो यह भी इस धारा के तहत अपराध माना जाएगा। इस तरह की अफवाहें या झूठी जानकारियाँ समाज में साम्प्रदायिक हिंसा (Communal Violence) और अस्थिरता का कारण बन सकती हैं।

बीएनएस धारा 353 की उपधारा (2): अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी धर्म या जाति के बारे में गलत जानकारी, अफवाह या चौंकाने वाली खबरें बनाता है या उसे बढ़ावा देता है तो यह अपराध है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (जैसे सोशल मीडिया, वेबसाइट) का भी उपयोग शामिल है।

        इस धारा के तहत कोई भी ऐसा बयान या रिपोर्ट बनाना या उसे प्रकाशित करना जिसका उद्देश्य किसी धार्मिक, भाषाई या क्षेत्रीय समूहों के बीच शत्रुता, घृणा या द्वेष को बढ़ाना हो तो यह एक गंभीर अपराध माना जाएगा।

बीएनएस सेक्शन 353 की उपधारा (3): अगर कोई व्यक्ति पूजा के स्थान (जैसे मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि) में या धार्मिक पूजा या समारोह के दौरान उपधारा (2) में बताए गए अपराध करता है, तो वह दंड का पात्र होगा।

       यह अपराध किसी धार्मिक समारोह में भी हो सकता है, जहां लोग एकत्र होते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति वहां गलत जानकारी या अफवाह फैलाता है, जिससे लोगों के बीच तनाव या घृणा उत्पन्न होती है, तो यह अपराध माना जाएगा।

BNS 353 के अपराध को साबित करने वाले मुख्य तत्व
  • किसी भी तरह की झूठी खबर, अफवाह या भयावह सूचना फैलाना।
  • यह सूचना किसी भी माध्यम से फैलाई जा सकती है, जैसे कि सोशल मीडिया, समाचार पत्र, या मुंह-जबानी।
  • फैलाई गई झूठी सूचना का मकसद विभिन्न समूहों के बीच नफरत, दुश्मनी या बुरा भला पैदा करना होना चाहिए।
  • इन समूहों में धार्मिक, जातिगत, या राजनीतिक समूह शामिल हो सकते हैं।
  • व्यक्ति को यह जानकर झूठी सूचना फैलानी चाहिए कि इससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ेगा।
  • यह एक जानबूझकर किया गया अपराध होना चाहिए गलती से नहीं।

उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर किसी विशेष धर्म के लोगों के बारे में झूठी और अपमानजनक बातें लिखता है, तो वह बीएनएस सेक्शन 353 के तहत दोषी पाया जा सकता है।

कुछ ऐसे कार्य जिनको करना धारा 353 के तहत आरोपी बना सकता है
  • किसी विशेष धर्म, जाति या समुदाय के खिलाफ झूठी और अपमानजनक पोस्ट करना।
  • किसी धर्म की मान्यताओं या प्रतीकों का अपमान करना।
  • किसी विशेष जाति के लोगों के बारे में झूठी अफवाहें फैलाना।
  • किसी राजनीतिक विरोधी के खिलाफ झूठे आरोप लगाकर उनकी छवि खराब करना।
  • किसी विशेष समूह के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषण देना।
  • झूठी खबरों को सच बताकर लोगों को गुमराह करना।
  • किसी घटना के बारे में झूठी अफवाहें फैलाकर दहशत फैलाना।
  • विभिन्न धार्मिक या जातिगत समूहों के बीच झगड़ा करवाने के लिए उकसाना।
  • देश की एकता और अखंडता को कमजोर करने वाले कार्य करना।
  • किसी समूह के खिलाफ हिंसा भड़काने वाले नारे लगाना।
बीएनएस सेक्शन 353 के अपराध का उदाहरण

        रिया नाम की लड़की एक छोटे से शहर में रहती थी। वह सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय थी और अक्सर अपनी राय साझा करती थी। एक दिन उसने अपने शहर के एक प्रसिद्ध मंदिर के बारे में एक झूठी बात को पोस्ट किया। उसने लिखा कि इस मंदिर में कुछ अजीब गतिविधियां हो रही हैं और यहां कुछ गलत हो रहा है। उसने इस पोस्ट में कई झूठे आरोप लगाए और मंदिर के पुजारी पर गंभीर आरोप लगाए।

       रिया की पोस्ट तेजी से वायरल हो गई और पूरे शहर में तनाव फैल गया। लोगों ने मंदिर के बाहर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया और मंदिर के पुजारी के खिलाफ नारे लगाने लगे। पुलिस को स्थिति को नियंत्रित करने के लिए बुलाना पड़ा। इस मामले में रिया को धारा 353 के तहत दोषी ठहराया जा सकता है क्योंकि उसने जानबूझकर झूठी सूचना फैलाई और इससे विभिन्न समूहों के बीच नफरत पैदा की।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 353 के अपराध की सजा

        बीएनएस की धारा 353 के अपराध में सजा (Punishment) को अपराध की गंभीरता के आधार पर अलग-अलग प्रकार से इसकी उपधाराओं (Sub-Sections) के द्वारा बताया गया है जो कि इस तरह से है:-

  • BNS 353 (1) की सजा:- यदि कोई व्यक्ति धारा 353(1) व इसके खण्डों में बताई गई गलत जानकारी या अफवाह फैलाने का दोषी पाया जाता है, तो उसे तीन साल तक की जेल व जुर्माने की सजा से दंडित किया जा सकता है।
  • BNS 353 (2) की सजा:- अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी धर्म या जाति के बारे में गलत जानकारी, अफवाह या चौंकाने वाली खबरें बनाता है या उसे बढ़ावा देने के जुर्म का दोषी पाया जाता है तो उसे तीन साल तक की जेल व जुर्माने की सजा दी जा सकती है।
  • BNS 353 (3) की सजा:- अगर कोई व्यक्ति पूजा के स्थान (जैसे मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि) में या धार्मिक पूजा या समारोह के दौरान उपधारा (2) में बताए गए अपराध करता है। तो उस व्यक्ति को न्यायालय के द्वारा दोषी (Guilty) पाये जाने पर पाँच साल तक की जेल व जुर्माना लगाकर सजा दी जा सकती है।
BNS Section 353 के अपराध के लिए अपवाद

         यह अपवाद (Exception) उन मामलों से संबंधित है जहां किसी व्यक्ति के खिलाफ धार्मिक स्थल या समारोह में गलत जानकारी फैलाने के लिए कार्रवाई नहीं की जाएगी। इसे सरल भाषा में समझते हैं:

  • यदि कोई व्यक्ति ऐसा बयान, कोई सूचना, अफवाह या रिपोर्ट बनाता, प्रकाशित या प्रसारित करता है और उसके पास यह मानने के लिए उचित आधार है कि वह जो जानकारी दे रहा है, वह सच है तो यह अपराध नहीं माना जाएगा।
  • इसका मतलब है कि यदि व्यक्ति ने यह जानकारी बिना किसी बुरे इरादे के और अच्छे विश्वास में (मतलब बिना किसी नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से) साझा की है, तो वह दंड से बच सकता है।
  • यदि वह व्यक्ति जानबूझकर किसी समुदाय (Community) के खिलाफ घृणा, शत्रुता या द्वेष फैलाने का इरादा नहीं रखता है, तो यह भी इस अपवाद का हिस्सा है।
बीएनएस​ की धारा 353 में जमानत किस प्रकार व कब मिलती है

         बीएनएस की धारा 353 उन अपराधों से संबंधित है जो सार्वजनिक भलाई को प्रभावित करते हैं। इसलिए यह अपराध संज्ञेय (Cognizable) होते है, जिसका अर्थ है कि पुलिस बिना वारंट के ऐसे कार्य करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है और जांच शुरू कर सकती है। इसके साथ ही धारा 353 गैर-जमानती (Non-bailable) भी है। जिसका मतलब है कि जिस भी व्यक्ति पर इस धारा के तहत आरोप लगाए जाते हैं, तो उसे जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है।

निष्कर्ष:- BNS Section 353 का मुख्य उद्देश्य समाज में भ्रामक जानकारी के प्रसार को रोकना है। इस प्रकार के अपराध न केवल कानून का उल्लंघन करते हैं, बल्कि समाज की शांति और सामंजस्य को भी खतरे में डालते हैं। इसलिए इस धारा के तहत दंड के लिए बनाए गए प्रावधान सख्त हैं, ताकि लोगों को सचेत किया जा सके और समाज में सद्भाव बनाए रखा जा सके।

बीएनएस धारा 354 क्या है |

BNS Section 354

         आज हम बात करेंगे एक ऐसे अपराध की जो हमारे समाज में धीरे-धीरे अपनी जड़ें जमा रहा है। यह अपराध है, धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग कर लोगों को डराना और धमकाना। हम अक्सर सुनते हैं कि कैसे लोग धर्म के नाम पर लोगों को लूट रहे हैं, उन्हें धमका रहे हैं और उनकी आस्था का फायदा उठा रहे हैं। ये अपराध न सिर्फ व्यक्तिगत जीवन को बर्बाद करते हैं बल्कि पूरे समाज में अशांति फैलाते हैं। आज हम धार्मिक चीजों का डर दिखाकर मजबूर करने के अपराध से संबंध रखने वाली भारतीय न्याय संहिता की धारा के बारे में बताएंगे कि बीएनएस धारा 354 क्या है (BNS Section 354) और इसमें किन कार्यों को करना अपराध माना जाता हैं? BNS 354 के उल्लंघन की सजा और जमानत का प्रावधान?

         किसी व्यक्ति को धार्मिक भावनाओं का डर दिखाकर किए जाने वाले अपराधों के लिए कुछ समय पहले तक भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 508 का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन अब इन मामलों से निपटने के लिए भारतीय न्याय संहिता की धारा (BNS) 354 का उपयोग किया जाता है। यह धारा ऐसे अपराधों में जल्द से जल्द कार्यवाही करने के लिए बनाई गई है। जिसमें इसमें धार्मिक या आध्यात्मिक डर का उपयोग करके किसी को कुछ करने या न करने के लिए मजबूर करने को शामिल किया गया है। इसलिए इस अपराध के बारे में विस्तार से जानने व समझने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़े।

बीएनएस की धारा 354 क्या है – BNS Section 354 

       भारतीय न्याय संहिता की धारा 354 एक कानूनी प्रावधान (Legal Provision) है जो किसी व्यक्ति को धार्मिक या आध्यात्मिक (Religious Or Spiritual) डर दिखाकर उसे कुछ करने या न करने के लिए मजबूर करने से संबंधित है। इसका अर्थ यह है कि अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को यह कहते हुए डराता है कि अगर वह उसकी बात नहीं मानेगा तो उसे भगवान की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा या कोई अनहोनी घटित होगी तो यह कानूनी रूप से अपराध माना जाएगा।

        उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति यह कहकर किसी को डरा रहा है कि “अगर तुम यह काम नहीं करोगे, तो भगवान तुम्हें दंड देंगे” या “तुम्हारे साथ बुरा होगा” तो यह उस व्यक्ति के द्वारा धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग (Misuse) किया गया है। जिसे कानूनन गलत व अपराध माना गया है।

BNS की धारा 354 को लागू करने वाली मुख्य बाते
  1. स्वेच्छा से प्रेरित करना: अगर कोई व्यक्ति किसी को ऐसा काम करने के लिए कहता है, जिसे वह कानूनी रूप से करने के लिए मजबूर नहीं है, जैसे कि अपने पैसे किसी और को देना या कोई अनुचित कार्य करना तो यह अपराध है।
  2. कानूनी अधिकार को रोकना: अगर कोई व्यक्ति किसी के कानूनी अधिकार (जैसे कि अपनी संपत्ति रखने का अधिकार) को रोकने की कोशिश करता है और कहता है कि “अगर तुमने ऐसा किया तो भगवान नाराज हो जाएंगे,” तो वह भी अपराध है।
  3. दैवीय अप्रसन्नता का डर: कोई व्यक्ति अगर किसी दूसरे को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करता है कि अगर वह उसकी बात नहीं मानेगा, तो भगवान या कोई दैवीय शक्ति उससे नाराज हो जाएगी और उसका जीवन खराब हो जाएगा तो यह भी एक कानूनी अपराध है।
बीएनएस सेक्शन 354 के जुर्म का सरल उदाहरण

          श्याम एक छोटे से शहर में रहता था। एक दिन उसके पड़ोसी ने उसे बताया कि उसके घर में भूत-प्रेत हैं और उसके कारण उसके परिवार को नुकसान हो रहा है। पड़ोसी ने श्याम को कहा कि वह एक तांत्रिक के पास जाए जो इस समस्या का समाधान कर सकता है। जब श्याम तांत्रिक के पास गया तो उस तांत्रिक ने श्याम से कहा कि उसे एक बड़ी रकम देनी होगी और कुछ विशेष अनुष्ठान करने होंगे। डर के मारे श्याम ने तांत्रिक को पैसे दे दिए और उसके कहे अनुसार सब कुछ किया। इस मामले में तांत्रिक ने श्याम की आस्था का फायदा उठाकर उसे ठगा। इसलिए उस पर BNS की धारा 354 के तहत कार्यवाही की जा सकती है।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 354 के अपराध के दोषी को सजा कितनी मिलती है

          BNS की धारा 354 में दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को एक वर्ष तक की कारावास व जुर्माना (Imprisonment or Fine), या दोनों से दंडित (Punished) किया जा सकता है। इसका मतलब है कि आरोपी को एक साल तक जेल भेजा जा सकता है, या उस पर आर्थिक दंड (जुर्माना) लगाया जा सकता है, या दोनों ही सजा एक साथ दी जा सकती हैं। सजा की अवधि और जुर्माने की राशि (Amount) अदालत द्वारा मामले की गंभीरता के आधार पर तय की जाती है।

बीएनएस की धारा 354 में जमानत के लिए क्या कानूनी प्रावधान है?

         भारतीय न्याय संहिता की धारा 354 के तहत किसी व्यक्ति को धार्मिक चीजों का डर दिखाने का अपराध गैर-संज्ञेय और जमानती (Non-Cognizable Or Bailable) होता है। गैर-संज्ञेय अपराधों में पुलिस को जांच या गिरफ्तारी के लिए पहले मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होती है। जमानती होने के कारण आरोपी को इस अपराध में आसानी से जमानत (Bail) मिल जाती है, यानी आरोपी को जमानत के आधार पर रिहा किया जा सकता है।

BNS Section 354 के तहत अपराध माने जाने वाले कार्य
  • किसी व्यक्ति को यह कहकर डराया जाए कि अगर उसने पैसे नहीं दिए तो उस पर भगवान का प्रकोप होगा या उसके साथ कुछ बहुत ही बुरा होगा।
  • किसी लड़की या लड़के को धार्मिक मान्यताओं (Religious Beliefs) का हवाला देकर विवाह के लिए दबाव डालना।
  • किसी व्यक्ति को धमकी देकर किसी विशेष धर्म या संप्रदाय में शामिल होने के लिए मजबूर करना।
  • किसी विशेष व्यक्ति या समूह के खिलाफ धार्मिक भावनाओं (Religious Sentiments) को भड़काकर नफरत फैलाना।
  • अंधविश्वास ( Superstition) फैलाकर लोगों को गुमराह करना और उनसे पैसे ऐंठना।
  • किसी व्यक्ति के सम्मान को नुकसान पहुंचाने के लिए धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग करना।
  • किसी व्यक्ति का समाज से बहिष्कार करने की धमकी देकर उसे डराना।
  • किसी व्यक्ति को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के लिए धार्मिक भावनाओं का गलत उपयोग करना।
  • किसी व्यक्ति को झूठे आरोप (False Blame) लगाकर बदनाम करने के लिए धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग करना।
  • किसी व्यक्ति को जादू-टोना या भूत-प्रेत का डर दिखाकर उसे डराना और उससे पैसे ऐंठना।

निष्कर्ष:- BNS की धारा 354 के तहत किसी व्यक्ति को धार्मिक या आध्यात्मिक डर का उपयोग करके कुछ करने या न करने के लिए मजबूर करना अपराध है। यह धारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करती है और लोगों को धार्मिक या आध्यात्मिक डर से मुक्त रहने का अधिकार देती है।

बीएनएस धारा 355 क्या है |

BNS Section 355

        हम सभी एक शांतिपूर्ण समाज में रहना चाहते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कभी जानबूझकर तो कभी अनजाने में दूसरों की शांति भंग करते हैं। आपने अक्सर देखा होगा कि कई बार लोग नशे में धुत होकर सड़कों पर हंगामा करते हैं, या फिर पार्कों में शराब पीकर लोगों को परेशान करते हैं। ऐसे मामलों में पुलिस क्या कार्रवाई करती है? क्या आपको पता है कि इन मामलों में कौन सा कानून लागू होता है? इसलिए इन्हीं बातों को आज हम भारतीय न्याय संहिता की धारा 355 के द्वारा जानेंगे कि, बीएनएस की धारा 355 क्या है? (BNS Section 355) और यह कब लागू होती है? शराब पीकर उत्पात करने की सजा क्या है और इस सेक्शन के लगने पर आरोपी को जमानत कैसे मिलती है?

          नशे में धुत होकर सार्वजनिक जगहों पर गलत आचरण करने के अपराधों पर पहले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 510 के तहत कार्रवाई होती थी। लेकिन अब भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के लागू होने के बाद इस तरह के अपराधों के लिए BNS की धारा 355 का इस्तेमाल किया जाता है।

बीएनएस की धारा 355 का अपराध क्या है – BNS Section 355 

        भारतीय न्याय संहिता की धारा 355 सार्वजनिक स्थान (Public Places) पर नशे में धुत होकर उत्पात मचाने वाले व्यक्ति के लिए दंड का प्रावधान (Provision) करती है। इस धारा के अनुसार जो कोई व्यक्ति शराब पीकर नशे की हालत में किसी सार्वजनिक स्थान या किसी ऐसे स्थान पर जहां उसका जाना मना हो। वहाँ जाकर किसी भी प्रकार का गलत व्यवहार करता है जिससे वहाँ मौजूद लोगों किसी भी प्रकार की समस्या होती है तो ऐसे व्यक्ति पर BNS की धारा 355 लागू की जा सकती है।

धारा 355 के अपराध में जानने योग्य कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:-
  • आरोपी व्यक्ति नशे में (Drunk) होना चाहिए।
  • आरोपी (Accused) व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर होना चाहिए, जैसे कि सड़क, पार्क, बाजार आदि।
  • नशे की हालत में कोई भी ऐसा कार्य किया गया होगा, जिससे अन्य लोगों को परेशानी हुई होगी।
इस धारा के तहत किन-किन कार्यों को अपराध माना जा सकता है?
  • सड़क पर शराब के नशे में चिल्लाना।
  • पार्क में नशे की हालत में जोर-जोर से हंसना या गाना।
  • बाजार में नशे में धुत होकर लोगों से उलझना।
  • नशे में किसी सार्वजनिक स्थल पर गाली-गलौज करना।
  • बस स्टॉप पर नशे में अशोभनीय हरकतें (Indecent Act) करना।
  • रेलवे स्टेशन पर नशे में धक्का-मुक्की करना।
  • सार्वजनिक स्थान पर नशे में सो जाना और रास्ते को बाधित करना।
  • नशे में सार्वजनिक शौचालय में उत्पात मचाना।
  • सार्वजनिक स्थल पर नशे में लोगों को परेशान करना।
बीएनएस की सेक्शन 355 के अपराध का सरल उदाहरण

       रमेश और सुरेश दोनों अच्छे दोस्त थे और एक ही कॉलोनी में रहते थे। एक दिन रमेश ने अपने दोस्तों के साथ शाम को पार्टी करने का फैसला किया। पार्टी में रमेश ने बहुत ज्यादा शराब पी ली। जब पार्टी खत्म हुई, तो वह नशे में धुत होकर सड़क पर निकल आया।रात का समय था और कॉलोनी के लोग आराम से सो रहे थे। लेकिन रमेश को अपनी शराब की नशे में कुछ समझ नहीं आ रहा था।

        वह सड़क पर जोर-जोर से चिल्लाने लगा और गाना गाने लगा। उसकी तेज आवाज से आस-पास के लोग जाग गए और परेशान होने लगे। कुछ लोगों ने रमेश को शांत करने की कोशिश की, लेकिन वह उल्टा उनसे ही उलझने लगा। उसकी हरकतें असभ्य और गैर-जिम्मेदाराना थीं जिससे लोगों को परेशानी हो रही थी। इसके बाद पुलिस वहाँ आ जाती है, और रमेश के खिलाफ BNS Section 355 के तहत कार्यवाही करती है।

बीएनएस धारा 355 के अपराध की सजा – Punishment Under BNS Section 355

          बीएनएस सेक्शन 355 अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति नशे की हालत में उत्पात मचाने का दोषी (Guilty) पाया जाता है, तो उसे साधारण कारावास (Simple Imprisonment) की सजा दी जा सकती है जो 24 घंटे तक हो सकती है। या उस पर 10 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है, या दोनों सजा दी जा सकती है।

      इसके साथ ही उस व्यक्ति को समाज सेवा (Social Service) की सजा दी जाती है, तो इसका मतलब यह होता है कि दोषी को समाज के लिए किसी प्रकार की सेवा करनी पड़ती है, जैसे सार्वजनिक स्थानों की सफाई, वृद्धाश्रम में सेवा आदि।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 355 में जमानत का प्रावधान

          बीएनएस की धारा 355 के अनुसार नशे की हालत में लोगों को परेशान करने का यह अपराध जमानती (Bailable) है, जिसका अर्थ है कि आरोपी को पुलिस स्टेशन से ही जमानत (Bail) मिल सकती है। इसके साथ ही सबसे जरुरी बात यह कि यह एक संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) नहीं है, इसलिए पुलिस इस अपराध में आरोपी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तारी नहीं कर सकती है।

          BNS की धारा 355 समाज में शांति और अनुशासन बनाए रखने के लिए लागू की जाती है, और इसका उद्देश्य सार्वजनिक स्थानों पर शराब पी कर किए जाने वाले गलत व्यवहार को रोकना है।

बीएनएस धारा 356 क्या है |

BNS Section 356

         आज के समय में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ झूठी अफवाहे फैलाना या झूठी खबरें फैलाना बहुत ही साधारण सी बात हो गई है। ना सिर्फ किताबों व पोस्टरों द्वारा बल्कि अब तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर झूठी खबरें फैलाकर किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच दिया जाता है। इससे व्यक्ति का सामाजिक जीवन, करियर और मानसिक स्वास्थ्य भी बहुत बुरे तरीके से प्रभावित हो सकता है। ऐसे अपराधों को मानहानि कहा जाता है और भारत में यह दंडनीय होते है। इसलिए इस लेख में आज हम मानहानि के अपराध में लागू की जाने वाली भारतीय न्याय संहिता की धारा को समझेंगे कि, बीएनएस की धारा 356 क्या है (BNS Section 356)? मानहानि (Defamation) की धारा 356 कब व कैसे लागू होती है? इस धारा के तहत आरोपी को मिलने वाली सजा और जमानत की जानकारी?

           मानहानि एक ऐसा अपराध है, जिसने कई लोगों की जिंदगियां तबाह कर दी हैं। पहले इस तरह के अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499 व 502 लागू की जाती थी। लेकिन BNS ने नए कानून के रुप में जब से IPC की जगह ली है। ऐसे मामलों को BNS की धारा 356 के तहत दर्ज किया जाने लगा है। इसलिए देश के प्रत्येक नागरिक को इस अपराध के सभी प्रावधानों व अन्य उपयोगी कानूनी जानकारियों को सरल भाषा में समझना बहुत ही आवश्यक है।

बीएनएस की धारा 356 क्या है – BNS Section 356 

         बीएनएस की धारा 356 मानहानि (Defamation) के अपराध के बारे में बताती है। जिसमें किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा व सम्मान (Prestige & Honour) को हानि पहुंचाने वाले झूठे बयान दिए जाते हैं। मानहानि तब होती है जब किसी व्यक्ति के बारे में ऐसी गलत जानकारी फैलाई जाती है जो उसकी सामाजिक छवि (Social Image) को नुकसान पहुंचाती है।

मानहानि दो प्रकार की होती है:-

  1. परोक्ष निंदा (Indirect condemnation): जब किसी व्यक्ति के खिलाफ लिखित (Written) रूप में, चित्र, कार्टून बनाकर या किसी अन्य तरीके से झूठे और अपमानजनक बयान (false and defamatory statements) दिए जाते हैं। वह परोक्ष निंदा कहलाती है।
  2. प्रत्यक्ष निंदा (Direct condemnation): जब मौखिक (Verbal) रूप से यानी बोलकर किसी व्यक्ति के बारे में झूठे और अपमानजनक बयान दिए जाते हैं। यह आमतौर पर किसी सार्वजनिक स्थान (Public Places) पर या लोगों के सामने बोला जाता है, जिससे किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान होता है।

        भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 में मानहानि के अपराध को अलग-अलग तरीकों को 4 उपधाराओं (Sub-Sections) में विस्तार से बताया गया है। आइये उन सभी उपधाराओं को सरल भाषा में विस्तार से जानते है:-

बीएनएस धारा 356 (1):- इस उपधारा में इस अपराध की परिभाषा दी गई है। जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ कोई ऐसा झूठा बयान (Statement) देता है जो उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाता है। ऐसा बयान जानबूझकर या किसी व्यक्ति से बदला लेने के लिए किया गया हो तो इसे मानहानि का अपराध माना जाएगा।

बीएनएस धारा 356 (2): इसमें धारा (1) में बताए गए मानहानि के अपराध के लिए दिए जाने वाले दंड के बारे में बताया गया है। यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के सम्मान को ठेस पहुँचा कर मानहानि का अपराध करता है, तो उसे सजा (Punishment) के तौर पर साधारण कारावास (Simple Imprisonment), जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ सकता है।

बीएनएस सेक्शन 356 (3): यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ कोई गलत जानकारी, गलत बयान या उसके खिलाफ कोई गलत लेख लिख कर उसकी प्रतिष्ठा(Prestige) को नुकसान पहुँचाएगा। उस व्यक्ति पर BNS 356(3) के तहत कार्यवाही की जाएगी।
उदाहरण: मान लीजिए सुरेश समाचार पत्र में अजय के बारे में झूठी खबर छापता है कि वह भ्रष्टाचार के अपराध में शामिल है, जबकि सुरेश को यह पता है कि यह जानकारी गलत है। लेकिन फिर भी वो इस झूठी खबर को छापकर अजय की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाता है।

बीएनएस सेक्शन 356 (4):- अगर कोई व्यक्ति किसी किताब, अखबार, पत्रिका जैसी किसी सामग्री को बेचता है। जिसमें किसी व्यक्ति के सम्मान या प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाली बाते लिखी हो। ऐसे अपराध करने वाले व्यक्ति पर BNS 356(4) के तहत कार्यवाही की जाएगी।
उदाहरण:- अगर सुरेश किसी किताब या अखबार में ऐसा लेख प्रकाशित करता है या बेचता है। जिसमें अजय की छवि खराब करने वाली बातें लिखी हों, तो उसे सजा दी जा सकती है।

ऐसे कार्य जिनको करना मानहानि के अपराध की धारा 356 के तहत दंडनीय माना जा सकता है
  • किसी व्यक्ति के बारे में झूठी या अपमानजनक खबर छापना।
  • सार्वजनिक तौर पर या मीडिया में किसी के खिलाफ गलत बयान देना।
  • किसी व्यक्ति के बारे में अपमानजनक या गंदे चित्र छापना, जैसे कि किसी की छवि (Image) खराब करने वाला कार्टून बनाना।
  • किसी व्यक्ति के खिलाफ झूठी जानकारी वाला विज्ञापन (Advertisement) देना, जैसे कि किसी की ईमदारी पर सवाल उठाना।
  • किसी व्यक्ति के बारे में अखबार, किताबों में गलत जानकारी वाले लेख (Article) छापना।
  • सोशल मीडिया पर किसी के खिलाफ अपमानजनक पोस्ट करना, जैसे कि किसी की छवि को नुकसान पहुंचाने वाली बातें शेयर करना।
  • किसी व्यक्ति के खिलाफ झूठे दस्तावेज (False Documents) बनाना और उन्हें सभी लोगों को दिखाना। जैसे किसी व्यक्ति के खिलाफ झूठी रिपोर्ट तैयार करना।
  • किसी के बारे में झूठी अफवाहे (Rumors) फैलाना।
  • किसी पर झूठे आरोप (False Blames) लगाना या उसके खिलाफ गलत बयान देना।
मानहानि के जुर्म का सरल उदाहरण

       सुमित और करिश्मा दोनों एक ही ऑफिस में काम करते हैं। एक दिन सुमित ने करिश्मा के खिलाफ ऑफिस में एक गलत अफवाह फैलानी शुरू कर दी कि करिश्मा कंपनी के पैसे चुरा रही है। सुमित ने इस अफवाह को ऑफिस के सभी कर्मचारियों और कुछ बाहरी लोगों के बीच फैला दिया। जिससे करिश्मा का सबके सामने बहुत ही अपमान हुआ। करिश्मा ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा की सुमित उसको बदनाम करने के लिए ऐसी बाते फैला रहा है। जिसके बाद करिश्मा ने सुमित के खिलाफ BNS Section 356 के तहत मानहानि का मुकदमा दायर किया।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 में सजा – BNS Section 356 Punishment 

        बीएनएस की धारा 356 के तहत मानहानि के अपराध में दी जाने वाली सजाओं को भी इसकी उपधाराओं (Sub-Sections) में बताए गए अपराधों की तरह ही अलग-अलग प्रकार से बताया गया है। जो कि प्रकार से है:-

  • BNS 356(2) में सजा:- सेक्शन 356(2) के अनुसार जो कोई भी व्यक्ति मानहानि के अपराध का दोषी (Guilty) पाया जाता है उसे सजा के तौर पर दो साल तक की जेल व जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। इस धारा में यह भी प्रावधान (Provision) है कि आरोपी को जेल या जुर्माने के बजाय सामुदायिक सेवा (Community Service) के रूप में दंडित किया जा सकता है। इसमें अपराधी से समाज के लिए कुछ सेवा कार्य करवाए जा सकते हैं, जैसे कि सफाई, सामाजिक जागरूकता अभियान आदि।
  • BNS 356 (3) में सजा:- जो भी व्यक्ति किसी लेख या चित्र के माध्यम से किसी गलत जानकारी को छापकर मानहानि का अपराध करता है, उसे 2 साल तक की कारावास व जुर्माने की सजा दी जा सकती है।
  • BNS 356 (4) में सजा:- जो भी व्यक्ति किसी ऐसी पुस्तक, अखबार को बेचता है या प्रकाशित करता है, जिसमें किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाली बात लिखी हो। ऐसे व्यक्ति को दोषी पाये जाने पर एक अवधि की कारावास से लेकर 2 साल तक की कैद की सजा से दंडित किया जा सकता है। इसके साथ ही दोषी व्यक्ति पर जुर्माना (Fine) भी लगाया जा सकता है।
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 356 में जमानत का क्या प्रावधान है

          बीएनएस की धारा 356 के तहत यदि किसी व्यक्ति पर मानहानि के अपराध का मामला दर्ज किया जाता है, तो वह व्यक्ति आसानी से जमानत (Bail) ले सकता है और उसे जेल नहीं जाना पड़ेगा। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि धारा 356 जमानती (Bailable) होती है। इसके साथ ही मानहानि का अपराध गैर-संज्ञेय (Non-Cognizable) होता है, जिसमें पुलिस बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के जांच शुरू नही कर सकती है। इस मामले की सुनवाई किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है।

BNS Section 356 में मानहानि के अपराध के कुछ आवश्यक अपवाद

मानहानि के अपराध में कुछ विशेष अपवाद (Exceptions) भी होते हैं, जिसका अर्थ है कि कुछ ऐसी बाते जिनके होने पर Defamation का अपराध नहीं माना जाएगा। जो कि इस प्रकार है:-

  • अगर कोई व्यक्ति सच्चे तथ्य (True Facts) या बातों को लोगों के सामने लाता है, और उसका उद्देश्य किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं बल्कि सच्चाई को सामने लाना है। तो इसे मानहानि नहीं माना जाएगा। जैसे, किसी भ्रष्टाचार या अपराध के सच को उजागर करना।
  • यदि कोई बयान या जानकारी समाज के हित में है, तो यह Defamation का अपराध नहीं माना जाएगा।
  • उदाहरण के लिए किसी नेता के गलत आचरण के बारे में जानकारी देना जिससे जनता सच जान सके।
  • यदि किसी व्यक्ति की आलोचना (Criticism) अच्छे इरादों के साथ की जाती है, जैसे कि सुधार या जागरूकता के लिए तो उसे भी मानहानि नहीं माना जाएगा।
  • उदाहरण के लिए यदि कोई शिक्षक किसी छात्र की गलतियों की आलोचना करता है तो वह Defamation नहीं मानी जाएगी।
  • यदि किसी बयान को मजाक के रूप में लिया जाता है और उसका उद्देश्य किसी का अपमान करना नहीं है, तो वह भी मानहानि के अंतर्गत नहीं आएगा। लेकिन मजाक में भी उस सीमा को पार नहीं करना चाहिए जिससे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान हो।

निष्कर्ष:- BNS Section 356 को लागू करने का मुख्य उद्देश्य देश के हर नागरिक की प्रतिष्ठा की रक्षा करना है, ताकि समाज में उनकी छवि को झूठे बयानों व अफवाहों से किसी भी प्रकार का नुकसान न पहुँचाया जा सके। इस धारा के तहत मानहानि करने वाले व्यक्ति को कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है, और उसे सजा भी हो सकती है। अगर आप ऐसे किसी भी कानूनी मामले में कानूनी सहायता घर बैठे पाना चाहते है तो आप आज ही हमारे अनुभवी वकीलों से बात कर सहायता प्राप्त कर सकते है।

बीएनएस धारा 357 क्या है |

BNS Section 357

असहाय व्यक्ति की जरूरतों को पूरा करने और आपूर्ति करने के अनुबंध का उल्लंघन

        जो कोई, किसी ऐसे व्यक्ति की देखभाल करने या उसकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक वैध अनुबंध से बंधा हुआ है, जो युवावस्था, या मानसिक बीमारी, या किसी बीमारी या शारीरिक कमजोरी के कारण, अपनी स्वयं की देखभाल करने में असहाय या असमर्थ है। सुरक्षा या अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए, स्वेच्छा से ऐसा करने से चूक जाता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा दी जाएगी जिसे तीन महीने तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना जो पांच हजार रुपये तक बढ़ाया जा सकता है, या दोनों से दंडित किया जाएगा।

बीएनएस धारा 358 क्या है |

BNS Section 358

निरसन और बचत

(1) भारतीय दंड संहिता को इसके द्वारा निरस्त किया जाता है।

(2) उप-धारा (1) में निर्दिष्ट संहिता के निरसन के बावजूद, इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा, –

(ए) इस प्रकार निरस्त की गई संहिता की पिछली कार्रवाई या उसके तहत विधिवत किया गया कुछ भी या भुगतना; या
(बी) इस प्रकार निरस्त संहिता के तहत अर्जित, उपार्जित या उपगत कोई भी अधिकार, विशेषाधिकार, दायित्व या दायित्व; या
(सी) इस प्रकार निरस्त की गई संहिता के विरुद्ध किए गए किसी भी अपराध के संबंध में कोई जुर्माना, या सजा; या
(डी) ऐसे किसी दंड, या सज़ा के संबंध में कोई जांच या उपाय; या

(ई) उपरोक्त किसी भी दंड या सजा के संबंध में कोई कार्यवाही, जांच या उपाय, और ऐसी कोई कार्यवाही या उपाय शुरू किया जा सकता है, जारी रखा जा सकता है या लागू किया जा सकता है, और ऐसा कोई जुर्माना लगाया जा सकता है जैसे कि उस संहिता को निरस्त नहीं किया गया हो।

(3) इस तरह के निरसन के बावजूद, उक्त संहिता के तहत किया गया कोई भी काम या कोई कार्रवाई इस संहिता के संबंधित प्रावधानों के तहत की गई या की गई मानी जाएगी।

(4) उप-धारा (2) में विशेष मामलों का उल्लेख निरसन के प्रभाव के संबंध में सामान्य खंड अधिनियम, 1897 की धारा 6 के सामान्य अनुप्रयोग पर प्रतिकूल प्रभाव डालने या प्रभावित करने वाला नहीं माना जाएगा।