BNS की धारा 269: ज़मानत पर रिहा आरोपी कोर्ट में हाजिर नहीं हुआ? अब चलेगा अलग मुकदमा!

लेख शीर्षक: BNS की धारा 269: ज़मानत पर रिहा आरोपी कोर्ट में हाजिर नहीं हुआ? अब चलेगा अलग मुकदमा!

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) की धारा 269 (Section 269 BNS) आम नागरिकों और विशेष रूप से ज़मानत पर छूटे अभियुक्तों के लिए बेहद महत्वपूर्ण प्रावधान लेकर आई है। यह धारा साफ तौर पर कहती है कि यदि कोई व्यक्ति किसी आपराधिक मामले में जमानत या बंधपत्र (Bail or Bond) पर रिहा हुआ है, और वह न्यायालय द्वारा निर्धारित तिथि पर कोर्ट में उपस्थित नहीं होता, तो यह एक स्वतंत्र अपराध (Separate Offence) माना जाएगा, और अलग से मुकदमा चलाया जाएगा।


क्या कहती है धारा 269 BNS?

“यदि कोई अभियुक्त, जिसे किसी आपराधिक मामले में जमानत या बंधपत्र पर छोड़ा गया हो, न्यायालय की निर्धारित शर्तों का उल्लंघन करता है, विशेषकर कोर्ट में उपस्थिति से जुड़ी शर्तों का पालन नहीं करता, तो उस पर एक अतिरिक्त आपराधिक मामला दर्ज किया जा सकता है।”


सजा का प्रावधान:

  • अधिकतम सजा: 1 साल की कारावास
  • जुर्माना, या
  • दोनों हो सकते हैं।

सरल भाषा में समझिए:

यदि कोई व्यक्ति किसी आपराधिक मामले में जमानत या बंधपत्र पर रिहा हुआ है, और:

  • कोर्ट ने उसे तय तारीख़ पर पेश होने का आदेश दिया है।
  • लेकिन वह जानबूझकर या बिना पर्याप्त कारण के अनुपस्थित रहता है।

तो अब ऐसा करना सिर्फ जमानत की शर्त तोड़ना नहीं माना जाएगा, बल्कि एक नया अपराध माना जाएगा और अलग से मुकदमा चलाया जाएगा।


इस बदलाव का उद्देश्य क्या है?

  • अदालतों में अनुशासन बनाए रखना
  • विधिक प्रक्रिया का सम्मान सुनिश्चित करना
  • आरोपियों द्वारा न्यायिक प्रक्रिया को नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति को रोकना
  • बार-बार तारीख़ों पर गैर-हाजिर रहने वाले आरोपियों को सख्ती से नियंत्रित करना

पहले और अब में क्या अंतर आया?

विषय पहले (IPC) अब (BNS, 2023)
जमानत उल्लंघन केवल जमानत रद्द होती थी अब यह एक अलग अपराध माना जाएगा
कोर्ट में गैर-हाजिरी अवमानना मानी जाती थी अब इसके लिए सजा का स्पष्ट प्रावधान है
अभियोजन की प्रक्रिया जमानत वापस लेने की अर्जी अब अलग केस फाइल किया जा सकता है

न्यायपालिका की दृष्टि से:

न्यायालयों में लगातार यह देखा गया है कि आरोपी जानबूझकर सुनवाई की तारीख़ पर अनुपस्थित रहते हैं, जिससे मुकदमे की प्रक्रिया बाधित होती है और पीड़ितों को न्याय मिलने में देरी होती है। धारा 269 BNS इसी समस्या का समाधान प्रस्तुत करती है।


निष्कर्ष:

भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 269, एक सख्त लेकिन आवश्यक कानूनी प्रावधान है, जो न्यायिक व्यवस्था की गरिमा और प्रक्रिया की निरंतरता को बनाए रखने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। यह कानून आम जनता को यह संदेश देता है कि जमानत कोई छूट नहीं, बल्कि शर्तों के साथ दी गई जिम्मेदारी है। यदि आप ज़मानत पर बाहर हैं, तो कोर्ट की हर तारीख़ को गंभीरता से लें — वरना अब आपको अलग से कानून का सामना करना पड़ेगा।


(नोट: यह लेख BNS 2023 के कानून की व्याख्या है। किसी भी मामले में लागू दंड प्रक्रिया स्थानीय न्यायालय और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।)