“Bata बनाम Crocs मामला : डिज़ाइन उल्लंघन पर Crocs की ‘Passing Off’ सूट की ग्राह्यता के विरुद्ध Footwear निर्माताओं की याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज — बौद्धिक संपदा संरक्षण पर ऐतिहासिक टिप्पणी”
प्रस्तावना
भारतीय न्यायपालिका द्वारा बौद्धिक संपदा (Intellectual Property Rights—IPR) के क्षेत्र में निरंतर विकसित होते न्यायिक दृष्टिकोण के बीच, सुप्रीम कोर्ट का Bata v. Crocs संबंधी निर्णय एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर बनकर सामने आया है। इस निर्णय में शीर्ष अदालत ने Bata सहित कई Footwear निर्माताओं द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें Crocs द्वारा दायर passing off suits की maintainability (ग्राह्यता) को चुनौती दी गई थी। यह मामला न केवल डिज़ाइन कानून (Designs Act, 2000) की सीमाओं को समझने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि ‘passing off’ और ‘design infringement’ के जटिल संबंधों पर व्यापक न्यायिक मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि यदि किसी उत्पाद का डिज़ाइन डिज़ाइन अधिनियम के तहत पंजीकृत हो या उसकी अवधि समाप्त हो चुकी हो, तब भी यदि वह बाज़ार में विशिष्ट पहचान रखता है, तो ट्रेड-ड्रेस या passing off आधारित कार्रवाई जारी रह सकती है। यह फैसला भारत में डिज़ाइन एवं ट्रेड-ड्रेस संरक्षण के भविष्य को गहराई से प्रभावित करेगा।
मामले की पृष्ठभूमि
Crocs Inc. ने अपने विशिष्ट ‘perforated clogs’ प्रकार के जूते का डिज़ाइन विश्व भर के कई न्यायक्षेत्रों में पंजीकृत करा रखा है। भारत में डिज़ाइन के पंजीकरण को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ और कई निर्माताओं—जैसे Bata, Relaxo, Action आदि—ने इसी शैली के footwear बाजार में उतारे। इसके बाद Crocs ने विभिन्न निर्माताओं के खिलाफ डिज़ाइन उल्लंघन एवं “passing off” के आधार पर वाद दायर किए।
इन कंपनियों ने तर्क दिया कि:
- यदि कोई डिज़ाइन डिज़ाइन अधिनियम के तहत पंजीकृत है, तो समाप्ति के बाद भी passing off का दावा नहीं किया जा सकता।
- डिज़ाइन अधिनियम एक संपूर्ण (complete code) है, और उसी डिज़ाइन पर ट्रेडमार्क अथवा ट्रेड-ड्रेस आधारित दावा maintainable नहीं होगा।
- Crocs का उत्पाद purely functional है, इसलिए passing off नहीं बनता।
इन दलीलों को निचली अदालतों और दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा ख़ारिज कर दिया गया था, जिसके विरुद्ध कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट में प्रमुख मुद्दे
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार किया—
1. क्या डिज़ाइन अधिनियम, 2000 ट्रेड-ड्रेस आधारित passing off सूट को प्रतिबंधित करता है?
2. क्या एक ही उत्पाद के संबंध में डिज़ाइन और ट्रेडमार्क दोनों तरह की सुरक्षा संभव है?
3. क्या Crocs अपनी विशिष्ट पहचान (distinctiveness) सिद्ध कर सकती है, विशेष रूप से तब जब डिज़ाइन की अवधि बीत चुकी हो?
4. क्या Bata तथा अन्य निर्माताओं की याचिकाएँ maintainability पर आधारित वाजिब चुनौती पेश करती हैं?
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
1. याचिकाओं का खारिज होना
सुप्रीम कोर्ट ने Bata सहित अन्य footwear कंपनियों की याचिकाओं को यह कहते हुए पूरी तरह खारिज कर दिया कि Crocs द्वारा दायर passing off suits maintainable हैं और इन suits को डिज़ाइन अधिनियम का उल्लंघन मानकर अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
2. डिज़ाइन संरक्षण और Passing Off — अलग-अलग रास्ते
अदालत ने विस्तार से स्पष्ट किया कि:
- डिज़ाइन अधिनियम ‘novelty’ और ‘originality’ की रक्षा करता है, जो मुख्यतः उत्पाद के दृश्य स्वरूप (aesthetic appearance) पर केंद्रित है।
- Passing off एक Common Law Remedy है, जो उपभोक्ता की भ्रमित होने की संभावना, goodwill एवं reputation की रक्षा करता है।
इस प्रकार दोनों संरक्षण के क्षेत्र अलग हैं, और डिज़ाइन अधिनियम ट्रेड-ड्रेस आधारित दावा रोकता नहीं है।
3. ट्रेड-ड्रेस की स्वतंत्रता को मान्यता
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि कोई संरचना (shape) बाज़ार में किसी ब्रांड से गहराई से जुड़ चुकी है, तो उसके शोषण के विरुद्ध ट्रेड-ड्रेस आधारित कार्रवाई उचित है, भले ही डिज़ाइन की अवधि समाप्त क्यों न हो चुकी हो।
4. “Functional Features” का आकलन
कंपनियों का कहना था कि Crocs की design functional है:
- यानी उपयोगिता आधारित संरचना है
- इसलिए ट्रेडमार्क/ट्रेड ड्रेस सुरक्षा नहीं मिल सकती
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि:
- यदि उत्पाद का स्वरूप (shape) कार्यात्मक तत्वों से आगे बढ़कर source identifier का रूप धारण कर ले,
- तो Passing off action जारी रहेगा।
5. Crocs की विशिष्ट पहचान का प्राथमिक स्तर पर स्वीकार
अदालत ने यह माना कि:
- Crocs के perforated clogs भारत में व्यापक रूप से पहचाने जाते हैं
- उनके स्वरूप में विशिष्टता (distinctiveness) प्रतीत होती है
- इस स्तर पर suits को ख़ारिज करना उचित नहीं होगा
- नीचे की अदालतों को सबूतों के आधार पर मामले की merits पर सुनवाई करनी चाहिए
कानूनी विश्लेषण : इस फैसले का महत्व
A. डिज़ाइन बनाम ट्रेडमार्क — अधिकारों के सह-अस्तित्व की पुष्टि
यह निर्णय यह स्थापित करता है कि:
डिज़ाइन संरक्षण समाप्त होने पर भी, यदि उत्पाद का आकार बाजार में ब्रांड पहचान का प्रतीक बन चुका है, तो ट्रेड-ड्रेस संरक्षण चलता रहेगा।
यह भारतीय IPR jurisprudence को अमेरिकी एवं यूरोपीय सिद्धांतों के समकक्ष खड़ा करता है।
B. Passing Off के दायरे का विस्तार
यह फैसला बताता है कि:
- Passing off केवल लोगो, नाम, रंग संयोजन तक सीमित नहीं है
- बल्कि shape, configuration और overall appearance का भी संरक्षण कर सकता है
- यदि उपभोक्ता उस appearance को किसी विशिष्ट ब्रांड से जोड़ता है
C. Footwear उद्योग में Competition Practices पर बड़ा प्रभाव
अब local manufacturers:
- किसी लोकप्रिय डिज़ाइन की नकल कर
- उसे slightly alter कर
- बाजार में बेचकर
- ट्रेड-ड्रेस दावों से खुद को बचा नहीं पाएंगे
यह पूरे Footwear उद्योग में compliance और design originality की प्रवृत्ति को बढ़ाएगा।
D. Litigation Landscape में बदलाव
Crocs से प्रेरित होकर अन्य कंपनियाँ भी:
- अपनी विशिष्ट designs को brand identity के रूप में पेश करेंगी
- ट्रेड-ड्रेस आधारित suits दायर करने को प्रोत्साहित होंगी
- intellectual property के उल्लंघन पर गंभीर कार्रवाई बढ़ेगी
आलोचनात्मक विश्लेषण
कुछ विशेषज्ञ इस निर्णय को “अत्यधिक ब्रांड-केंद्रित” बताते हैं और कहते हैं कि इससे बाज़ार में प्रतिस्पर्धा कम हो सकती है। उनके अनुसार:
- डिज़ाइन संरक्षण की सीमित अवधि इसलिए होती है कि eventually public domain में आ जाए
- परंतु ट्रेड-ड्रेस claim के माध्यम से protection अनिश्चित काल तक बढ़ सकता है
दूसरी ओर मजबूत दृष्टिकोण यह है कि:
- Competition constructive होनी चाहिए
- Blind copying को संरक्षण नहीं मिलना चाहिए
- उपभोक्ता भ्रमित होना अस्वीकार्य है
अदालत का निर्णय इसी संतुलित दृष्टिकोण को आगे बढ़ाता है।
निचली अदालतों में अब आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने suits की maintainability पर अंतिम मुहर लगा दी है। अब निचली अदालतें:
- यह निर्धारित करेंगी कि Crocs के clogs वास्तव में विशिष्ट पहचान रखते हैं या नहीं
- उपभोक्ता भ्रमित होने की संभावना कितनी है
- Bata एवं अन्य कंपनियों का उत्पाद क्या deceptive similarity रखता है
- क्या copying mala fide थी
इसमें व्यापक साक्ष्य-संग्रह, expert testimony और उपभोक्ता perception analysis शामिल होंगे।
निष्कर्ष
Supreme Court द्वारा Bata एवं अन्य निर्माताओं की याचिकाओं को खारिज करने का निर्णय भारतीय IPR कानून में एक महत्वपूर्ण मोड़ प्रस्तुत करता है। यह फैसला स्पष्ट संदेश देता है कि मात्र डिज़ाइन की अवधि समाप्त हो जाने का अर्थ यह नहीं है कि किसी ब्रांड की shape-based पहचान को खुली छूट मिल गई है।
Passing off एक व्यापक और मजबूत common law remedy है, जो उपभोक्ता हितों और बाजार में सत्यनिष्ठा को संरक्षित करता है। यह निर्णय न केवल footwear उद्योग बल्कि सभी उन क्षेत्रों को प्रभावित करेगा जहाँ उत्पाद का स्वरूप ब्रांड की पहचान का मूल हिस्सा बन गया है—जैसे mobile devices, automobiles, luxury goods, furniture आदि।