51. बैंकिंग कानून में “डिशनर ऑफ चेक” (Dishonour of Cheque) क्या है?
जब कोई चेक बैंक द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाता है और भुगतान नहीं किया जाता, तो इसे “डिशनर ऑफ चेक” कहते हैं। यह निम्न कारणों से हो सकता है – अपर्याप्त राशि, हस्ताक्षर मेल न खाना, चेक पर तिथि की गलती, खाता बंद होना या कानूनी प्रतिबंध। चेक बाउंस होने पर धारा 138, निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 के तहत दंडनीय अपराध होता है। इससे जुर्माना या कारावास हो सकता है। यह कानून चेक को एक वैध भुगतान माध्यम के रूप में सुरक्षा प्रदान करता है।
52. चेक बाउंस से संबंधित कानूनी प्रक्रिया
यदि चेक बाउंस हो जाए, तो प्राप्तकर्ता को 30 दिनों के भीतर चेक बाउंस की सूचना देकर कानूनी नोटिस भेजना होता है। भुगतान की मांग की जाती है और यदि 15 दिनों में भुगतान नहीं होता, तो 1 महीने के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज की जा सकती है। यह प्रक्रिया निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 की धारा 138 से 142 के तहत होती है। दोष सिद्ध होने पर 2 वर्ष तक की सजा और दोगुने तक जुर्माना लग सकता है।
53. “बैंकिंग लोकपाल स्कीम” के प्रमुख लाभ
बैंकिंग लोकपाल स्कीम ग्राहकों को बिना शुल्क के बैंकिंग विवादों का समाधान देने का माध्यम है। इसके तहत ग्राहक ऑनलाइन या डाक द्वारा शिकायत कर सकते हैं। इसका उद्देश्य समयबद्ध और सुलभ न्याय देना है। इस प्रक्रिया में वकील की आवश्यकता नहीं होती। यह RBI द्वारा संचालित होती है। यदि बैंक या ग्राहक किसी निर्णय से असंतुष्ट हों, तो वे अपील कर सकते हैं। यह स्कीम ग्राहकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए अत्यंत उपयोगी है।
54. “बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949” के तहत RBI की शक्तियाँ
RBI को बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के अंतर्गत विभिन्न शक्तियाँ प्राप्त हैं, जैसे बैंक को लाइसेंस देना, निरीक्षण करना, दिशा-निर्देश जारी करना, बैंकिंग नीति बनाना, ब्याज दरें नियंत्रित करना, और अस्वस्थ बैंकों को बंद करना। इसके अतिरिक्त, RBI को बैंकों के खाते, ऋण सीमा, और भुगतान संतुलन को नियंत्रित करने का भी अधिकार है। ये शक्तियाँ बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता और ग्राहकों की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
55. भारतीय बैंकिंग प्रणाली में डिजिटल पेमेंट के प्रकार
डिजिटल पेमेंट के प्रमुख प्रकार हैं –
- UPI (Unified Payments Interface)
- NEFT (National Electronic Funds Transfer)
- RTGS (Real Time Gross Settlement)
- IMPS (Immediate Payment Service)
- AePS (Aadhaar Enabled Payment System)
- मोबाइल वॉलेट (PhonePe, Paytm आदि)
इन माध्यमों से उपभोक्ता बिना नकद के सुरक्षित और तीव्र लेन-देन कर सकते हैं। RBI और NPCI (National Payments Corporation of India) द्वारा इन सेवाओं की निगरानी की जाती है। डिजिटल भुगतान भारत को कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर ले जा रहा है।
56. बैंक द्वारा ग्राहक की जानकारी सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी
बैंकिंग गोपनीयता का सिद्धांत यह कहता है कि बैंक को अपने ग्राहक की जानकारी (जैसे खाता विवरण, लेन-देन, पहचान) को गोपनीय रखना होता है। यह गोपनीयता तभी तोड़ी जा सकती है जब –
- ग्राहक अनुमति दे,
- कानून या अदालत का आदेश हो,
- सार्वजनिक हित में आवश्यक हो।
यदि बैंक इस कर्तव्य का उल्लंघन करता है, तो ग्राहक हर्जाना मांग सकता है। यह बैंकिंग संबंधों में विश्वास बनाए रखने का आधार है।
57. ATM (ऑटोमेटेड टेलर मशीन) की भूमिका
ATM एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन है जो ग्राहकों को 24×7 नकद निकासी, बैलेंस जांच, मिनी स्टेटमेंट और कुछ स्थानों पर जमा की सुविधा भी प्रदान करती है। ATM से ग्राहक स्वयं बैंकिंग कर सकते हैं। बैंक ATM के माध्यम से ऑपरेशनल लागत कम करते हैं और ग्राहकों को सुविधा देते हैं। आजकल बायोमेट्रिक और कार्डलेस ATM भी प्रचलित हो रहे हैं। ATM से संबंधित धोखाधड़ी को रोकने के लिए बैंक सतर्कता अपनाते हैं।
58. बैंकिंग क्षेत्र में “नो-फ्रिल्स अकाउंट” का महत्व
“नो-फ्रिल्स अकाउंट” एक ऐसा बचत खाता होता है जिसमें न्यूनतम बैलेंस की अनिवार्यता नहीं होती और बैंकिंग सुविधाएं सीमित होती हैं। इसे अब BSBDA (Basic Savings Bank Deposit Account) कहा जाता है। इसका उद्देश्य गरीब और ग्रामीण वर्ग को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ना है। इस खाते में चेकबुक, एटीएम कार्ड और सीमित मुफ्त लेन-देन की सुविधा दी जाती है। यह वित्तीय समावेशन की दिशा में एक बड़ा कदम है।
59. बैंक गारंटी में बैंक की भूमिका
बैंक गारंटी एक वचन होता है, जिसमें बैंक अपने ग्राहक की ओर से यह आश्वासन देता है कि यदि ग्राहक अपने दायित्व पूरे नहीं करता, तो बैंक भुगतान करेगा। यह व्यापारिक अनुबंधों में विश्वास और सुरक्षा का माध्यम है। बैंक गारंटी दो प्रकार की होती है – वित्तीय और प्रदर्शन गारंटी। बैंक गारंटी कानूनन बाध्यकारी होती है और इसके उल्लंघन पर कानूनी कार्यवाही संभव होती है।
60. निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 का महत्व
यह अधिनियम भारत में चेक, बिल ऑफ एक्सचेंज और प्रॉमिसरी नोट जैसे दस्तावेजों को विनियमित करता है। इसका उद्देश्य ऐसे दस्तावेजों के जरिए भुगतान की वैधता, प्रवर्तनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इसमें चेक बाउंस, डिशनर, हस्तांतरण, भुगतान आदि से संबंधित कानूनी प्रावधान शामिल हैं। यह अधिनियम बैंकिंग और वाणिज्यिक लेन-देन की नींव है।
61. ग्राहक शिक्षा का बैंकिंग में महत्व
ग्राहक को बैंकिंग उत्पादों, सुरक्षा उपायों, डिजिटल माध्यमों और अधिकारों की जानकारी होना आवश्यक है। शिक्षित ग्राहक धोखाधड़ी से बच सकते हैं, अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं और उचित वित्तीय निर्णय ले सकते हैं। बैंक और सरकार मिलकर वित्तीय साक्षरता शिविर, जन-धन अभियान, और डिजिटली साक्षर भारत अभियान के माध्यम से ग्राहक शिक्षा को बढ़ावा देते हैं।
62. भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007
यह अधिनियम भारत में भुगतान प्रणाली (जैसे UPI, NEFT, RTGS) के नियमन के लिए बनाया गया। यह RBI को भुगतान सेवा प्रदाताओं को लाइसेंस देने, निगरानी करने और नियम बनाने की शक्ति देता है। इसका उद्देश्य सुरक्षित, कुशल और सुलभ भुगतान व्यवस्था को सुनिश्चित करना है। यह डिजिटल बैंकिंग के युग में अत्यंत महत्वपूर्ण अधिनियम है।
63. बैंकों में आंतरिक नियंत्रण प्रणाली का महत्व
आंतरिक नियंत्रण प्रणाली (Internal Control System) बैंकों में धोखाधड़ी रोकने, नियमों का पालन सुनिश्चित करने, जोखिम प्रबंधन और निष्पक्ष लेखांकन के लिए होती है। इसमें ऑडिट, शाखा निरीक्षण, MIS रिपोर्टिंग, कार्य विभाजन और डिजिटल निगरानी शामिल होती है। RBI भी बैंकों की नियमित निरीक्षण करता है। यह प्रणाली बैंकिंग प्रणाली की विश्वसनीयता बनाए रखने हेतु अत्यंत आवश्यक है।
64. बैंकिंग में Basel Norms का योगदान
Basel Norms अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बैंकिंग क्षेत्र में जोखिम प्रबंधन और पूंजी पर्याप्तता के लिए बनाए गए दिशा-निर्देश हैं। Basel I, II और III तीन चरण हैं जो बैंकों की वित्तीय मजबूती, जोखिम नियंत्रण और क्रेडिट रिस्क की गणना सुनिश्चित करते हैं। भारत में RBI ने बैंकों पर Basel III लागू किया है। यह बैंकों को वैश्विक वित्तीय संकटों से बचाने में सहायक होते हैं।
65. खातों के प्रकार और उनकी विशेषताएँ
भारत में मुख्यतः 5 प्रकार के बैंक खाते होते हैं:
- बचत खाता (Savings Account) – सामान्य बचत हेतु, ब्याज प्राप्त होता है।
- चालू खाता (Current Account) – व्यवसाय हेतु, अधिक लेन-देन, बिना ब्याज।
- सावधि जमा (Fixed Deposit) – उच्च ब्याज के लिए निश्चित समय तक राशि जमा।
- पुनरावर्ती जमा (Recurring Deposit) – मासिक जमा, नियमित बचत को बढ़ावा।
- BSBDA / नो-फ्रिल्स अकाउंट – न्यूनतम शेष राशि की अनिवार्यता नहीं।
हर खाता एक विशिष्ट उद्देश्य और सुविधा के लिए होता है और बैंकिंग कानून द्वारा विनियमित होता है।
66. “क्रेडिट रेटिंग” का बैंकिंग में महत्व
क्रेडिट रेटिंग किसी संस्था या व्यक्ति की ऋण चुकाने की क्षमता का मूल्यांकन है। यह रेटिंग विभिन्न एजेंसियों (जैसे CRISIL, ICRA) द्वारा दी जाती है और इसका आधार होता है: वित्तीय स्थिति, अतीत का भुगतान व्यवहार, व्यवसाय की स्थिरता, आदि। बैंक ऋण देते समय क्रेडिट रेटिंग का उपयोग जोखिम मूल्यांकन में करते हैं। उच्च रेटिंग वाले ग्राहकों को कम ब्याज दरों पर ऋण मिलता है। यह प्रणाली ऋण की सुरक्षा और चूक की संभावना को कम करती है।
67. “क्रेडिट इनफॉर्मेशन ब्यूरो” (CIBIL) की भूमिका
CIBIL (Credit Information Bureau India Limited) भारत का प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसी है। यह ग्राहकों के ऋण और भुगतान से जुड़ा डेटा संग्रहित करता है और उस आधार पर क्रेडिट स्कोर (300–900 के बीच) प्रदान करता है। बैंक इस स्कोर का उपयोग ऋण स्वीकृति के लिए करते हैं। अच्छा स्कोर अधिक ऋण पाने में मदद करता है, जबकि खराब स्कोर ऋण अस्वीकृति का कारण बन सकता है। यह प्रणाली बैंकिंग क्षेत्र में पारदर्शिता और वित्तीय अनुशासन लाती है।
68. बैंकों में ग्राहक सेवा की निगरानी कैसे होती है?
ग्राहक सेवा की निगरानी के लिए बैंक ग्राहक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करते हैं। प्रत्येक शाखा में शिकायत रजिस्टर, हेल्पलाइन और शिकायत अधिकारी होते हैं। इसके अतिरिक्त, ग्राहक सेवा समिति, बैंकिंग लोकपाल, और RBI के निरीक्षण के माध्यम से भी निगरानी होती है। बैंक “ग्राहक अधिकार चार्टर” के अंतर्गत सेवा की गुणवत्ता सुनिश्चित करते हैं। ग्राहकों को समय पर सेवा, निष्पक्ष व्यवहार और शिकायतों का समाधान देना बैंक की कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है।
69. बैंकिंग में “नियामक अनुपालन” (Regulatory Compliance) का महत्व
नियामक अनुपालन का अर्थ है – बैंक द्वारा RBI, सेबी, वित्त मंत्रालय आदि के सभी नियमों और अधिनियमों का पालन करना। इसमें पूंजी पर्याप्तता, ऋण नीति, KYC/AML, ब्याज दर नियमन आदि शामिल हैं। अनुपालन से बैंक की विश्वसनीयता, स्थिरता और जोखिम नियंत्रण सुनिश्चित होता है। RBI नियमित निरीक्षण और ऑडिट के माध्यम से अनुपालन की जांच करता है। यदि कोई बैंक नियमों का उल्लंघन करता है, तो उस पर दंड या लाइसेंस निरस्त किया जा सकता है।
70. बैंकों की पुनर्पूंजीकरण (Recapitalization) प्रक्रिया क्या है?
पुनर्पूंजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सरकार या कोई अन्य संस्था बैंक में नई पूंजी निवेश करती है ताकि बैंक की पूंजी पर्याप्तता (Capital Adequacy Ratio) बनी रहे। यह विशेष रूप से तब किया जाता है जब बैंक घाटे में हो या NPA की दर अधिक हो। सरकार बॉन्ड या नकद के माध्यम से पूंजी देती है। यह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को वित्तीय रूप से मजबूत करने का उपाय है। यह RBI और वित्त मंत्रालय की निगरानी में होता है।
71. बैंकिंग क्षेत्र में विलय (Merger) और अधिग्रहण (Acquisition)
विलय वह प्रक्रिया है जिसमें दो या अधिक बैंक मिलकर एक इकाई बनाते हैं, जबकि अधिग्रहण में एक बैंक दूसरे को खरीद लेता है। भारत में सार्वजनिक बैंकों का विलय, जैसे PNB के साथ OBC और यूनाइटेड बैंक, वित्तीय मजबूती और संचालन कुशलता के लिए किया गया। इससे संचालन लागत घटती है, NPA का प्रबंधन सरल होता है, और बैंक की पहुंच व सेवा क्षेत्र बढ़ता है। RBI और सरकार की अनुमति से ही यह प्रक्रिया होती है।
72. बैंकों द्वारा जारी “ऋण पत्र” (Letter of Credit) क्या है?
Letter of Credit (LC) एक बैंकिंग दस्तावेज है, जिसमें बैंक विक्रेता को आश्वासन देता है कि वह ग्राहक की ओर से भुगतान करेगा, बशर्ते कि विक्रेता तय शर्तों का पालन करे। यह विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय व्यापार में उपयोग होता है। यह दस्तावेज जोखिम कम करता है और दोनों पक्षों को सुरक्षा देता है। LC बैंकिंग कानूनों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों (UCPDC) के अधीन कार्य करता है।
73. बैंकिंग अनुबंध में “Consideration” का महत्व
Consideration यानी प्रतिफल वह मूल्य है जो अनुबंध के पक्षकार एक-दूसरे को प्रदान करते हैं। बैंकिंग अनुबंध में, ग्राहक बैंक में पैसा जमा करता है, और बदले में बैंक ब्याज, सेवाएं या सुविधा देता है। इसी प्रकार, बैंक ऋण देता है और बदले में ब्याज प्राप्त करता है। यह अनुबंध को वैध बनाता है। भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के अनुसार, बिना वैध प्रतिफल के अनुबंध शून्य होता है।
74. ग्राहक का “नॉमिनी” निर्धारित करना क्यों आवश्यक है?
नॉमिनी वह व्यक्ति होता है जिसे खाता धारक अपनी मृत्यु के पश्चात खाते की राशि पाने के लिए अधिकृत करता है। यह प्रक्रिया सरल विरासत हस्तांतरण के लिए आवश्यक है। बैंक को मृत्यु प्रमाण-पत्र और पहचान-पत्र के बाद राशि नॉमिनी को दी जाती है। यदि नॉमिनी निर्धारित नहीं है, तो उत्तराधिकारी प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है। बैंकिंग कानूनों के अनुसार नॉमिनी की नियुक्ति विवाद को टालने का प्रभावी उपाय है।
75. बैंकिंग में “फ्रीजिंग ऑफ अकाउंट” क्या है?
यदि कोई खाता संदिग्ध लेन-देन, कानूनी निर्देश, या अवैध गतिविधियों में संलिप्त हो, तो बैंक उस खाते को फ्रीज कर सकता है। इसका अर्थ है कि उस खाते से कोई निकासी, स्थानांतरण या क्रेडिट नहीं हो सकता जब तक कि स्थिति स्पष्ट न हो जाए। RBI, ED, या न्यायालय द्वारा निर्देश दिए जा सकते हैं। यह कानून व्यवस्था, कर चोरी या मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी कार्रवाई के अंतर्गत किया जाता है।
76. बैंकिंग लॉ में ग्राहक का “ब्याज पर अधिकार”
बचत, सावधि जमा और अन्य निवेश पर ग्राहक को बैंक ब्याज देता है। ब्याज दरें RBI द्वारा तय की गई नीतियों और बाजार के आधार पर अलग-अलग होती हैं। यदि बैंक अनुबंधित ब्याज नहीं देता, तो ग्राहक बैंकिंग लोकपाल या उपभोक्ता न्यायालय में शिकायत कर सकता है। ब्याज एक वैधानिक दायित्व होता है और इसका भुगतान समय पर करना बैंक की जिम्मेदारी होती है।
77. बैंकिंग क्षेत्र में “नेट बैंकिंग” की सुरक्षा चुनौतियाँ
नेट बैंकिंग से ग्राहक ऑनलाइन खाते का संचालन कर सकता है, लेकिन इसके साथ साइबर खतरे भी जुड़े हैं, जैसे फ़िशिंग, पासवर्ड चोरी, OTP फ्रॉड। इसके लिए बैंक SSL एन्क्रिप्शन, टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन, और लॉगिन OTP जैसे सुरक्षा उपाय अपनाते हैं। ग्राहकों को भी पासवर्ड नियमित बदलना, लिंक पर क्लिक न करना, और पब्लिक नेटवर्क से लॉगिन से बचना चाहिए। RBI साइबर सुरक्षा गाइडलाइन के अंतर्गत बैंकिंग डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
78. बैंकिंग कानून में “लागत का सिद्धांत” (Doctrine of Lien)
Lien का अर्थ है – बैंक का अधिकार कि वह ग्राहक की संपत्ति या राशि को तब तक रोक सकता है जब तक कि ग्राहक उसका बकाया चुका न दे। यह अधिकार बैंकिंग सामान्य कानून के अधीन होता है। यदि ग्राहक ने ऋण लिया है और खाता में राशि है, तो बैंक उसे समायोजित कर सकता है। लेकिन यह अधिकार तभी वैध होता है जब ग्राहक को स्पष्ट सूचना दी गई हो और संपत्ति ऋण से जुड़ी हो।
79. “खाता संचालन की पद्धति” (Mode of Operation) का महत्व
जब ग्राहक खाता खोलता है, तो वह बैंक को यह निर्देश देता है कि खाता कौन संचालित करेगा — स्वयं, संयुक्त रूप से, या अधिकृत व्यक्ति के माध्यम से। जैसे – “Either or Survivor”, “Jointly”, “Power of Attorney” आदि। यह पद्धति खाता संचालन में पारदर्शिता और नियंत्रण सुनिश्चित करती है। बैंक इसी के आधार पर चेक, ट्रांजैक्शन, या निर्देशों को मान्यता देता है। इसके उल्लंघन पर बैंक जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
80. बैंकिंग क्षेत्र में “रिवर्स रेपो रेट” का प्रभाव
रिवर्स रेपो रेट वह दर है जिस पर RBI बैंकों से पैसा उधार लेता है। जब यह दर बढ़ाई जाती है, तो बैंक RBI के पास पैसा रखने को प्राथमिकता देते हैं, जिससे बाजार में नकदी की उपलब्धता घटती है। यह मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का एक तरीका है। बैंकिंग प्रणाली में यह एक मौद्रिक साधन है, जिसके माध्यम से RBI तरलता नियंत्रित करता है।
81. बैंकिंग में “KYC अपडेट” क्यों आवश्यक है?
KYC (Know Your Customer) की जानकारी समय-समय पर अपडेट करना आवश्यक होता है ताकि बैंक ग्राहकों की पहचान और पता सत्यापित कर सके। यदि KYC अपडेट नहीं किया गया, तो बैंक खाता फ्रीज कर सकता है। यह प्रक्रिया विशेष रूप से सुरक्षा, मनी लॉन्ड्रिंग रोकने और नियामक अनुपालन के लिए जरूरी होती है। ग्राहक को पहचान-पत्र, पते का प्रमाण और फोटो बैंक में जमा करना होता है।
82. “मर्जिंग ऑफ अकाउंट्स” का सिद्धांत क्या है?
यदि एक ही व्यक्ति के एक ही बैंक में एक से अधिक खाते हैं, और वह बैंक का ऋणी है, तो बैंक को यह अधिकार होता है कि वह सभी खातों को जोड़कर ऋण की वसूली कर सकता है। इसे “Set-off” भी कहा जाता है। यह सिद्धांत बैंकिंग अनुबंध और सामान्य कानून के तहत वैध होता है, बशर्ते कि खातों का स्वामित्व और प्रकृति समान हो।
83. बैंकिंग कानून में “मानव रहित शाखाएँ” (Digital-only Branches)
आजकल कई बैंक शाखाएँ पूर्णतः डिजिटल हो गई हैं – जहाँ ग्राहक स्वयं मशीनों, ATM, किओस्क, और वीडियो कॉल के माध्यम से सेवाएँ प्राप्त करता है। ये शाखाएँ कागज रहित, कर्मी रहित होती हैं, और ग्राहकों को 24×7 सुविधा देती हैं। ये बैंकिंग की आधुनिक दिशा का प्रतीक हैं, और RBI ने इसके लिए डिजिटल बैंकिंग गाइडलाइन जारी की हैं।
84. “ग्राहक पहचान संख्या (CIF)” का महत्व
CIF (Customer Information File) नंबर एक यूनिक कोड होता है जो बैंक ग्राहक की सभी बैंकिंग जानकारी को एक ही स्थान पर संग्रहीत करता है। इससे बैंक ग्राहक के खाते, ऋण, KYC, ट्रांजैक्शन आदि का रिकॉर्ड एक जगह रख सकता है। यह बैंकिंग में तकनीकी दक्षता और ग्राहक विश्लेषण के लिए अत्यंत उपयोगी है।
85. “ब्याज दर निर्धारण” की बैंकिंग प्रक्रिया
ब्याज दरें RBI की मौद्रिक नीति, बाजार की स्थिति, प्रतिस्पर्धा, और ग्राहक की जोखिम क्षमता के आधार पर तय की जाती हैं। ऋण और जमा पर अलग-अलग दरें होती हैं। MCLR, Repo Rate और Benchmark दरों के आधार पर बैंक अपनी दरें निर्धारित करते हैं। बैंकिंग कानून बैंकों को यह स्वतंत्रता देता है, लेकिन पारदर्शिता और ग्राहक को सूचना देना अनिवार्य है।
86. “बैंकिंग लॉ में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम” की भूमिका
यदि कोई ग्राहक बैंक सेवा से असंतुष्ट है, तो वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत जिला, राज्य या राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में शिकायत कर सकता है। बैंकिंग सेवाएँ उपभोक्ता सेवाओं की श्रेणी में आती हैं। ग्राहक खाता गड़बड़ी, अनुचित शुल्क, गलत लेन-देन, या सेवा की कमी पर कानूनी उपाय पा सकता है। यह बैंकिंग व्यवस्था में जवाबदेही और उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करता है।
87. बैंकिंग लॉ में “रेपो रेट” का क्या महत्व है?
Repo Rate वह दर है जिस पर बैंक RBI से अल्पकालिक ऋण लेते हैं। जब RBI Repo Rate बढ़ाता है, तो बैंकों को ऋण महंगा पड़ता है, जिससे वे उपभोक्ताओं को महंगे ऋण देते हैं और बाजार में नकदी की उपलब्धता घटती है। इसके विपरीत, Repo Rate घटाने से ऋण सस्ता हो जाता है और बाजार में नकदी प्रवाह बढ़ता है। Repo Rate मौद्रिक नीति का एक प्रमुख उपकरण है, जो मुद्रास्फीति नियंत्रण और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में उपयोगी होता है।
88. बैंकिंग लॉ में “NPAs” (Non-Performing Assets) का क्या अर्थ है?
NPA वह ऋण होता है जिसमें 90 दिन या अधिक समय तक मूलधन या ब्याज की अदायगी नहीं होती। यह बैंक के लिए जोखिम और घाटे का संकेत होता है। NPA की अधिकता से बैंक की लाभप्रदता, पूंजी, और साख प्रभावित होती है। बैंकों को RBI के निर्देशानुसार NPA की रिपोर्टिंग, प्रोविजनिंग और पुनर्प्राप्ति करनी होती है। SARFAESI Act, DRT और IBC जैसे कानूनों से NPA की वसूली संभव होती है।
89. SARFAESI अधिनियम, 2002 का बैंकिंग में क्या महत्व है?
SARFAESI Act (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act, 2002) बैंकों को बिना अदालत की प्रक्रिया के ऋण वसूली का अधिकार देता है। यदि कोई उधारकर्ता NPA घोषित होता है, तो बैंक उसकी संपत्ति जब्त कर सकते हैं, नीलाम कर सकते हैं और ऋण की वसूली कर सकते हैं। यह अधिनियम बैंकिंग प्रणाली को मजबूत बनाता है और डिफॉल्टरों के खिलाफ प्रभावी उपाय प्रदान करता है।
90. बैंकिंग में “DRT” (Debt Recovery Tribunal) की भूमिका
DRT ऋण विवादों के समाधान हेतु विशेष न्यायाधिकरण है। यह ₹20 लाख या उससे अधिक के ऋण वसूली मामलों की सुनवाई करता है। बैंक DRT में वाद दायर करके डिफॉल्टर से राशि वसूल सकते हैं। DRT को SARFAESI Act और RDDBFI Act, 1993 के अंतर्गत अधिकार प्राप्त हैं। DRT की प्रक्रिया त्वरित होती है और यह बैंकों को वसूली के लिए वैधानिक मंच प्रदान करता है।
91. बैंकिंग क्षेत्र में “ओवरड्राफ्ट सुविधा” क्या होती है?
ओवरड्राफ्ट (OD) एक बैंकिंग सुविधा है जिसके अंतर्गत ग्राहक को उसके खाते में जमा राशि से अधिक धन निकालने की अनुमति मिलती है। यह सुविधा व्यापारियों, कर्मचारियों या पेंशन धारकों को दी जाती है। इस पर ब्याज लिया जाता है और यह अल्पकालिक ऋण होता है। OD सुविधा खाते की प्रकृति, ग्राहक की साख और बैंक की नीति पर निर्भर करती है। यह व्यवसायिक लिक्विडिटी बनाए रखने का सरल उपाय है।
92. “Negotiable Instruments” की विशेषताएँ क्या हैं?
Negotiable Instruments (परिवर्तनीय लिखत) जैसे कि चेक, प्रॉमिसरी नोट और बिल ऑफ एक्सचेंज ऐसे दस्तावेज होते हैं जो भुगतान का वादा करते हैं और हस्तांतरित किए जा सकते हैं। इनकी विशेषताएँ हैं –
- सरलता से हस्तांतरण
- धारक को वैध शीर्षक
- कानून द्वारा संरक्षित अधिकार
- निश्चित राशि का भुगतान
इन दस्तावेजों को Negotiable Instruments Act, 1881 द्वारा नियंत्रित किया जाता है। ये बैंकिंग और वाणिज्यिक लेन-देन का आधार हैं।
93. बैंकों में “रिकरिंग डिपॉजिट” (Recurring Deposit) क्या होता है?
Recurring Deposit (RD) एक बचत योजना है जिसमें ग्राहक हर महीने निश्चित राशि जमा करता है और परिपक्वता पर ब्याज सहित भुगतान प्राप्त करता है। यह अल्पकालिक निवेश के लिए उपयोगी है। बैंक इस पर निश्चित ब्याज दर देते हैं, जो आमतौर पर बचत खाता से अधिक होता है। यह योजना नियमित आय वाले व्यक्तियों के लिए उपयुक्त है। RD में समयपूर्व निकासी पर जुर्माना लगाया जाता है।
94. बैंकिंग लॉ में “ग्राहक पहचान प्रक्रिया” (KYC) का उद्देश्य
KYC (Know Your Customer) का उद्देश्य ग्राहकों की पहचान और पते की पुष्टि करना है ताकि मनी लॉन्ड्रिंग, धोखाधड़ी और आतंकवाद को वित्तपोषण से रोका जा सके। इसमें पैन कार्ड, आधार, वोटर ID आदि दस्तावेज लिए जाते हैं। बैंक खाता खोलने से लेकर ऋण देने तक सभी सेवाओं में KYC आवश्यक है। RBI ने इसे अनिवार्य बनाकर बैंकिंग क्षेत्र को अधिक सुरक्षित और पारदर्शी बनाया है।
95. बैंकिंग में “नेट NPA” और “ग्रॉस NPA” का अंतर
Gross NPA वह कुल राशि है जो डिफॉल्ट की श्रेणी में आती है, जबकि Net NPA वह राशि है जो प्रोविजन घटाने के बाद बचती है।
📌 Gross NPA = Total bad loans
📌 Net NPA = Gross NPA – Provisions
Gross NPA बैंक की कुल ऋण गुणवत्ता को दर्शाता है जबकि Net NPA बैंक की वास्तविक जोखिम स्थिति को दर्शाता है। यह मूल्यांकन बैंक की वित्तीय स्थिरता के लिए आवश्यक होता है।
96. “बैंक गारंटी” और “लेटर ऑफ क्रेडिट” में अंतर
बैंक गारंटी में बैंक ग्राहक की विफलता की स्थिति में भुगतान करता है जबकि Letter of Credit (LC) में बैंक विक्रेता को शर्तों के अनुसार भुगतान की गारंटी देता है।
📌 गारंटी = Third-party default के लिए।
📌 LC = Trade Transaction के लिए।
दोनों दस्तावेज बैंकिंग कानूनी अनुबंध हैं और व्यापारिक सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं।
97. ग्राहक के खाते से अनधिकृत निकासी की स्थिति में बैंक की जिम्मेदारी
यदि ग्राहक के खाते से धोखे से या तकनीकी खामी के कारण राशि निकल जाती है, तो बैंक जांच कर दोष सिद्ध होने पर राशि लौटाता है। RBI की गाइडलाइन के अनुसार ग्राहक को 3 कार्यदिवस के अंदर सूचित करना चाहिए। यदि गलती बैंक की है, तो पूरी राशि लौटानी होती है। यह ग्राहक संरक्षण की दृष्टि से आवश्यक प्रावधान है।
98. “प्रायोजित बैंक” और “ग्रामीण बैंक” में संबंध
ग्रामीण बैंक (Regional Rural Banks – RRBs) को प्रायोजित बैंक द्वारा सहायता दी जाती है। प्रायोजित बैंक तकनीकी, वित्तीय और प्रशिक्षण सहायता प्रदान करता है। उदाहरण: PNB ने उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक को प्रायोजित किया है। RRB का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधा पहुंचाना है। ये बैंक NABARD, केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त स्वामित्व में होते हैं।
99. बैंकिंग लॉ में “रिकवरी एजेंसी” की भूमिका
रिकवरी एजेंसी वे निजी एजेंसियाँ होती हैं जिन्हें बैंक ऋण की वसूली के लिए नियुक्त करते हैं। ये एजेंट ग्राहकों से संपर्क करके बकाया वसूलते हैं। लेकिन इनकी कार्यप्रणाली RBI द्वारा निर्धारित आचार संहिता के अधीन होनी चाहिए। अभद्र भाषा, डराना-धमकाना या उत्पीड़न अवैध है। बैंक को उनकी गतिविधियों पर निगरानी रखनी होती है। ग्राहक शिकायत की स्थिति में बैंक और RBI के पास जा सकता है।
100. बैंकिंग में “एसेट क्लासिफिकेशन” का क्या अर्थ है?
एसेट क्लासिफिकेशन का अर्थ है – बैंकों द्वारा अपने ऋणों को उनकी चुकौती की स्थिति के अनुसार वर्गीकृत करना। यह चार प्रकार के होते हैं:
- Standard Assets – नियमित भुगतान हो रहा है।
- Sub-Standard Assets – 12 महीने से कम NPA।
- Doubtful Assets – 12 महीने से अधिक NPA।
- Loss Assets – जिसकी वसूली संभव नहीं।
यह वर्गीकरण RBI के निर्देशानुसार किया जाता है और बैंक की जोखिम स्थिति को दर्शाता है।