Avnish Bajaj v. State (2008): कंपनी निदेशक की आपराधिक देयता पर दिल्ली हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
भूमिका
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) के लागू होने के बाद भारत में साइबर अपराधों और उनकी देयता को लेकर कई विवादास्पद प्रश्न उठे। इनमें से सबसे चर्चित और ऐतिहासिक मामलों में से एक है Avnish Bajaj v. State (2008), जिसे प्रायः Bazee.com Case कहा जाता है। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी कंपनी के निदेशक को आपराधिक रूप से केवल तभी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जब उसकी प्रत्यक्ष संलिप्तता (Direct Involvement) या ज्ञान (Knowledge) अपराध में सिद्ध हो।
यह निर्णय भारतीय कंपनी कानून और साइबर अपराध कानून दोनों में महत्वपूर्ण दृष्टांत (landmark precedent) बन गया।
मामले की पृष्ठभूमि
1. तथ्य (Facts of the Case)
- आरोपी कंपनी Bazee.com (अब eBay India का हिस्सा) एक ऑनलाइन मार्केटप्लेस थी।
- एक छात्र ने इस प्लेटफ़ॉर्म पर एक अश्लील वीडियो क्लिप (MMS clip) बिक्री के लिए डाल दिया। यह क्लिप कुख्यात Delhi Public School (DPS) MMS Scandal, 2004 से संबंधित थी।
- वीडियो क्लिप अश्लील होने के कारण, पुलिस ने आईटी एक्ट, 2000 की धारा 67 (अश्लील सामग्री का प्रकाशन और प्रसार) तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 292 (अश्लील सामग्री का वितरण) के तहत कार्यवाही शुरू की।
- पुलिस ने न केवल उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जिसने वीडियो अपलोड किया था, बल्कि कंपनी के CEO और प्रबंध निदेशक (MD), Avnish Bajaj को भी गिरफ्तार कर लिया।
2. मुख्य आरोप
- कंपनी के निदेशक होने के नाते Avnish Bajaj पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने अश्लील सामग्री को प्रकाशित और प्रसारित करने में लापरवाही बरती और कंपनी के कार्यों के लिए वे जिम्मेदार हैं।
विधिक प्रश्न (Legal Issues before the Court)
- क्या आईटी एक्ट, 2000 और आईपीसी की धाराओं के अंतर्गत कंपनी और उसके निदेशक को आपराधिक रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
- क्या केवल निदेशक या CEO होने के आधार पर बिना प्रत्यक्ष संलिप्तता सिद्ध किए दायित्व तय किया जा सकता है?
- क्या कंपनी (ज्यूरिडिकल पर्सन) पर ऐसे अपराधों का अभियोजन संभव है, जहां केवल कारावास (Imprisonment) की सजा निर्धारित है?
दोनों पक्षों के तर्क
अभियोजन पक्ष (Prosecution)
- कंपनी के माध्यम से अश्लील वीडियो बेचा गया, अतः कंपनी और उसके निदेशक अपराधी हैं।
- निदेशक कंपनी की सभी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होता है, इसलिए उसे व्यक्तिगत रूप से भी अभियुक्त बनाया जा सकता है।
- आईटी एक्ट और आईपीसी दोनों का एक साथ प्रयोग संभव है, इसलिए Avnish Bajaj पर अभियोजन वैध है।
प्रतिवादी पक्ष (Defence – Avnish Bajaj)
- निदेशक के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है कि उन्होंने स्वयं अश्लील वीडियो डाला हो या उसके बारे में जानकारी रखी हो।
- कंपनी एक स्वतंत्र कानूनी इकाई है, इसलिए उसका CEO केवल अपने पद के कारण आपराधिक रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
- धारा 67 (आईटी एक्ट) के तहत कंपनी पर मुकदमा चल सकता है, लेकिन केवल कारावास से दंडनीय अपराध होने के कारण कंपनी पर यह दायित्व लागू नहीं हो सकता।
दिल्ली हाईकोर्ट का निर्णय (Judgment by Delhi High Court, 2008)
1. कंपनी निदेशक की व्यक्तिगत देयता
- अदालत ने कहा कि निदेशक को केवल उसके पद के आधार पर जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
- किसी व्यक्ति को अपराध का दोषी ठहराने के लिए यह सिद्ध होना चाहिए कि उसने स्वयं प्रत्यक्ष रूप से अपराध में संलिप्तता दिखाई है या अपराध के बारे में ज्ञान होने के बावजूद कार्रवाई नहीं की।
- केवल “Managing Director” या “CEO” होने से ही आपराधिक दायित्व स्वतः नहीं बन जाता।
2. कंपनी की देयता
- अदालत ने माना कि कंपनी एक स्वतंत्र कानूनी इकाई है, और उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
- लेकिन जहां सजा केवल कारावास (imprisonment) है और जुर्माने (fine) का विकल्प नहीं है, वहां कंपनी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि कंपनी को कैद नहीं किया जा सकता।
3. अभियोजन के संबंध में आदेश
- अदालत ने Avnish Bajaj के खिलाफ आईटी एक्ट, 2000 की धारा 67 के अंतर्गत कार्यवाही रद्द कर दी, क्योंकि उनकी व्यक्तिगत संलिप्तता सिद्ध नहीं हुई।
- हालांकि, कंपनी और सीधे तौर पर अपराध करने वाले व्यक्ति पर मुकदमा जारी रखने की अनुमति दी गई।
न्यायालय की मुख्य टिप्पणियाँ (Key Observations)
- Corporate Criminal Liability – “कंपनी को आपराधिक रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, लेकिन केवल उसी हद तक जहां दंड का स्वरूप कंपनी पर लागू हो सकता है (जैसे जुर्माना)।”
- Director’s Liability – “निदेशक पर तभी दायित्व डाला जा सकता है जब यह स्पष्ट रूप से साबित हो कि उन्होंने अपराध करने में प्रत्यक्ष भूमिका निभाई या अपराध के बारे में जानते हुए भी रोकने की कोशिश नहीं की।”
- Principle of Vicarious Liability – “भारतीय दंड संहिता (IPC) में सामान्यतः विकेरियस लायबिलिटी (Vicarious Liability) का सिद्धांत लागू नहीं होता, जब तक कि कोई विशेष प्रावधान ऐसा न कहे।”
कानूनी महत्व और प्रभाव (Legal Significance and Impact)
- निदेशकों के अधिकारों की सुरक्षा – इस केस ने यह स्थापित किया कि कंपनी के निदेशक को केवल उसके पद के आधार पर आपराधिक रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
- साइबर अपराध कानून में स्पष्टता – आईटी एक्ट के अंतर्गत किस प्रकार कंपनी और उसके प्रबंध निदेशक पर कार्रवाई की जा सकती है, इसकी स्पष्टता हुई।
- कॉर्पोरेट गवर्नेंस (Corporate Governance) – इस फैसले के बाद निदेशकों को यह संदेश गया कि यदि वे कंपनी के कार्यों पर प्रत्यक्ष निगरानी रखते हैं तो ही वे जिम्मेदार होंगे।
- अभियोजन की सीमा (Prosecution Limits) – अभियोजन एजेंसियों को यह याद दिलाया गया कि किसी व्यक्ति को केवल उसके पदनाम के आधार पर आरोपी नहीं बनाया जा सकता।
- साइबर अपराधों की रोकथाम – इस मामले ने ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स को सावधान किया कि वे अपने प्लेटफ़ॉर्म पर डाले गए कंटेंट की निगरानी के लिए उचित सुरक्षा तंत्र विकसित करें।
समान दृष्टांत (Related Case Laws)
- Shiv Kumar Jatia v. State (2019, SC) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि MD/Director को तभी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जब प्रत्यक्ष संलिप्तता हो।
- Sunil Bharti Mittal v. CBI (2015, SC) – CEO/Director को केवल पद के आधार पर आपराधिक कार्यवाही में शामिल नहीं किया जा सकता।
- Standard Chartered Bank v. Directorate of Enforcement (2005, SC) – कंपनी आपराधिक देयता की पात्र है, लेकिन जहां केवल कारावास की सजा है, वहां कंपनी पर वह दायित्व लागू नहीं होगा।
निष्कर्ष
Avnish Bajaj v. State (2008) का निर्णय भारतीय न्यायशास्त्र में एक ऐतिहासिक पड़ाव है। इसने यह स्थापित किया कि कंपनी और उसके निदेशक की देयता अलग-अलग है, और निदेशक को केवल उसके पदनाम के आधार पर अपराधी नहीं ठहराया जा सकता।
यह फैसला न केवल साइबर कानून बल्कि कंपनी कानून और आपराधिक न्याय प्रणाली में भी एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में देखा जाता है। आज भी यह केस उन मामलों में उद्धृत किया जाता है, जहां यह प्रश्न उठता है कि क्या निदेशक/CEO को कंपनी के अपराधों के लिए स्वतः जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
Avnish Bajaj v. State (2008) – 10 महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर
Q.1: Avnish Bajaj v. State (2008) केस किस नाम से प्रसिद्ध है और इसकी पृष्ठभूमि क्या है?
Ans. यह केस Bazee.com Case या DPS MMS Case के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें एक अश्लील वीडियो (MMS क्लिप) ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म Bazee.com पर बेचा गया था। कंपनी के CEO Avnish Bajaj को भी आरोपी बनाया गया।
Q.2: इस मामले में मुख्य आरोप क्या थे?
Ans. आरोप यह था कि कंपनी और उसके निदेशक ने अश्लील वीडियो क्लिप को बेचने की अनुमति दी, जिससे आईटी एक्ट, 2000 की धारा 67 और आईपीसी की धारा 292 का उल्लंघन हुआ।
Q.3: Avnish Bajaj के विरुद्ध अभियोजन का आधार क्या था?
Ans. अभियोजन ने कहा कि Avnish Bajaj कंपनी के CEO और प्रबंध निदेशक हैं, अतः वे कंपनी की सभी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार हैं और उनके पद के आधार पर उन्हें आपराधिक दायित्व वहन करना चाहिए।
Q.4: प्रतिवादी (Avnish Bajaj) ने अपने बचाव में क्या तर्क दिया?
Ans.
- निदेशक होने के कारण स्वतः आपराधिक जिम्मेदारी नहीं बनती।
- उनके विरुद्ध कोई साक्ष्य नहीं है कि उन्होंने अश्लील वीडियो डाला या उसकी जानकारी रखी।
- कंपनी एक स्वतंत्र कानूनी इकाई है और केवल उसी पर अभियोजन चलना चाहिए।
Q.5: दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष मुख्य विधिक प्रश्न क्या था?
Ans. मुख्य प्रश्न था कि –
- क्या कंपनी के निदेशक को केवल उसके पदनाम (CEO/MD) के आधार पर आपराधिक रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
- क्या कंपनी पर केवल कारावास से दंडनीय अपराध का अभियोजन संभव है?
Q.6: अदालत ने कंपनी निदेशक की व्यक्तिगत देयता के बारे में क्या कहा?
Ans. अदालत ने कहा कि निदेशक तभी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जब उसकी प्रत्यक्ष संलिप्तता या अपराध के ज्ञान का प्रमाण हो। केवल पद के आधार पर दायित्व तय नहीं किया जा सकता।
Q.7: कंपनी की आपराधिक देयता पर अदालत का क्या दृष्टिकोण था?
Ans. अदालत ने माना कि कंपनी एक स्वतंत्र कानूनी इकाई है और उस पर मुकदमा चल सकता है। परंतु, जहां सजा केवल कारावास है और जुर्माने का विकल्प नहीं है, वहां कंपनी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
Q.8: इस निर्णय में अदालत ने कौन-सा सामान्य सिद्धांत दोहराया?
Ans. अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता में Vicarious Liability लागू नहीं होती, जब तक कि कोई विशेष कानून इसका प्रावधान न करे।
Q.9: इस केस का कानूनी महत्व क्या है?
Ans.
- निदेशक की व्यक्तिगत देयता पर स्पष्टता मिली।
- साइबर अपराध कानून में कंपनी और निदेशक की जिम्मेदारी अलग-अलग मानी गई।
- अभियोजन एजेंसियों को चेतावनी दी गई कि केवल पदनाम के आधार पर अभियुक्त नहीं बनाया जा सकता।
Q.10: इस केस से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण दृष्टांत कौन-से हैं?
Ans.
- Sunil Bharti Mittal v. CBI (2015, SC) – CEO को केवल पद के आधार पर आरोपी नहीं बनाया जा सकता।
- Shiv Kumar Jatia v. State (2019, SC) – निदेशक की व्यक्तिगत संलिप्तता आवश्यक है।
- Standard Chartered Bank v. Directorate of Enforcement (2005, SC) – कंपनी पर अभियोजन संभव है, परंतु केवल कारावास की सजा वाले अपराध में नहीं।