शीर्षक: “Aureliano Fernandes बनाम गोवा राज्य एवं अन्य: POSH कानून के प्रभावी पालन हेतु सुप्रीम कोर्ट की सख्ती”
प्रस्तावना:
महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करना एक संवेदनशील और गंभीर विषय है। इसी उद्देश्य से भारत में Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013 यानी POSH अधिनियम लागू किया गया। हाल ही में Aureliano Fernandes बनाम गोवा राज्य एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रभावी अनुपालन के संबंध में केंद्र सरकार, सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से फॉलो-अप शपथ पत्र (affidavits) मांगे हैं।
मामले की पृष्ठभूमि:
यह याचिका गोवा राज्य से संबंधित थी, जहां याचिकाकर्ता Aureliano Fernandes ने कार्यस्थल पर POSH अधिनियम के तहत सुरक्षा उपायों की कमी को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया कि अधिकांश संस्थानों में Internal Complaints Committees (ICC) का गठन नहीं हुआ है या वे प्रभावी रूप से कार्य नहीं कर रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट की 3 दिसंबर, 2023 की व्यापक दिशानिर्देशें:
सुप्रीम कोर्ट ने POSH अधिनियम के बेहतर और ईमानदारीपूर्ण क्रियान्वयन के लिए अनेक निर्देश जारी किए थे, जिनमें शामिल थे:
- सभी संस्थानों में ICC का गठन अनिवार्य।
- कर्मचारियों को POSH नियमों का प्रशिक्षण देना।
- नोडल अधिकारियों की नियुक्ति और शिकायत प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना।
- वार्षिक रिपोर्टिंग और निगरानी तंत्र विकसित करना।
नवीन आदेश (मई 2025):
अब सुप्रीम कोर्ट ने सभी सरकारों से यह रिपोर्ट मांगी है कि इन दिशानिर्देशों का पालन अब तक किस हद तक हुआ है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह “सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि ज़मीनी क्रियान्वयन की पड़ताल” है।
न्यायालय ने दोहराया कि कार्यस्थलों पर महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित करना एक संवैधानिक कर्तव्य है और इसमें किसी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
प्रभाव और महत्व:
- यह आदेश सुनिश्चित करता है कि सभी सरकारी, निजी और शैक्षणिक संस्थान POSH अधिनियम का ईमानदारी से पालन करें।
- इससे महिलाओं को कार्यस्थल पर सुरक्षा और गरिमा से काम करने का अधिकार सुनिश्चित होता है।
- यह निर्देश राज्य एवं केंद्र सरकारों पर जवाबदेही का दबाव भी बनाता है।
निष्कर्ष:
Aureliano Fernandes बनाम गोवा राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता यह दिखाती है कि देश की सर्वोच्च न्यायपालिका महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर है। POSH कानून को केवल कागज़ों पर लागू करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसका ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन सुनिश्चित करना आवश्यक है। इस दिशा में यह निर्णय एक सकारात्मक और प्रभावशाली कदम है, जो न केवल कानूनी अनुपालन को बढ़ावा देगा बल्कि कार्यस्थल पर महिलाओं की गरिमा और आत्मसम्मान की रक्षा भी करेगा।