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Attachment Order का उल्लंघन नहीं चलेगा: बॉम्बे हाई कोर्ट ने गार्निशी को दी सख्त चेतावनी

“Attachment Means What It Says”: गार्निशी को भुगतान रोकना ही होगा जब तक न्यायालय अन्यथा अनुमति न दे — बॉम्बे हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय


 प्रस्तावना

भारतीय न्यायपालिका में न्यायालयों द्वारा दिए गए आदेशों की अवमानना या उल्लंघन एक गंभीर विषय है। हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि जब किसी देनदार की संपत्ति या बैंक खाते पर “Attachment” (संलग्नता) का आदेश जारी होता है, तो उसका अर्थ बिल्कुल वैसा ही होता है जैसा लिखा गया है। अर्थात्, गार्निशी (Garnishee) — यानी वह व्यक्ति या संस्था जो देनदार की राशि रखती है — को तत्काल सभी भुगतान रोकने होंगे और न्यायालय की अनुमति के बिना कोई भी लेन-देन नहीं करना चाहिए।

यह निर्णय न केवल न्यायिक आदेशों की शक्ति को रेखांकित करता है, बल्कि बैंकिंग संस्थाओं, सरकारी निकायों और निजी कंपनियों के लिए भी एक स्पष्ट चेतावनी है कि अदालत द्वारा जारी आदेशों का पालन करना उनका विधिक दायित्व है।


 पृष्ठभूमि: गार्निशी आदेश क्या होता है?

Garnishee Order सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के अंतर्गत एक ऐसा आदेश होता है जो न्यायालय किसी देनदार के देनदार (यानी वह व्यक्ति या संस्था जिसके पास देनदार की राशि या संपत्ति है) के खिलाफ जारी करता है।

उदाहरण के लिए, यदि “A” ने “B” से पैसा उधार लिया है और “C” के पास “A” का पैसा जमा है, तो “B” अदालत में आवेदन कर सकता है कि “C” के पास रखी राशि पर Attachment Order जारी किया जाए, ताकि “A” के बकाये की वसूली की जा सके। इस स्थिति में “C” गार्निशी कहलाता है।

इस आदेश के तहत “C” को “A” को कोई भुगतान करने की अनुमति नहीं रहती जब तक कि अदालत अन्यथा निर्देश न दे।


 केस के तथ्य

इस मामले में एक याचिकाकर्ता ने न्यायालय में दावा किया कि एक सरकारी एजेंसी के विरुद्ध पारित आदेश के बावजूद, गार्निशी (Bank) ने देनदार के खाते से भुगतान जारी रखे।

न्यायालय ने पाया कि संबंधित बैंक को पहले ही देनदार के खाते पर “Attachment Order” की सूचना दी जा चुकी थी। इसके बावजूद बैंक ने भुगतान करना जारी रखा, जिससे आदेश की अवहेलना हुई।

न्यायालय ने कहा कि एक बार जब Attachment Order लागू हो जाता है, तब उस खाते या संपत्ति पर किसी भी प्रकार का लेन-देन, भुगतान या ट्रांसफर करना स्पष्ट रूप से अवैध और न्यायालय की अवमानना के समान है।


 न्यायालय का अवलोकन (Court’s Observation)

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट शब्दों में कहा:

“Attachment means what it says. Once an attachment order is passed, the garnishee is bound to stop all payments or transactions related to that property or account until the court permits otherwise.”

न्यायालय ने आगे यह भी कहा कि ऐसे आदेशों का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया की प्रभावशीलता को बनाए रखना है। यदि बैंक, कंपनियां या सरकारी विभाग इन आदेशों को गंभीरता से नहीं लेते, तो न्यायिक आदेशों का सम्मान समाप्त हो जाएगा और विधि का शासन कमजोर पड़ जाएगा।


गार्निशी की कानूनी स्थिति

CPC की Order XXI Rules 46 से 46B तक के प्रावधान गार्निशी आदेशों को नियंत्रित करते हैं। इन नियमों के तहत:

  1. न्यायालय किसी बैंक या संस्था को आदेश दे सकता है कि वह देनदार के खाते में रखी राशि पर रोक लगाए।
  2. गार्निशी को यह दिखाना होता है कि उसके पास ऐसी कोई राशि या संपत्ति नहीं है, या वह पहले ही भुगतान कर चुका है।
  3. यदि गार्निशी आदेश की अवहेलना करता है, तो वह Contempt of Court (अदालत की अवमानना) या Decree Holder के नुकसान की भरपाई के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

 न्यायालय का तर्क (Court’s Reasoning)

न्यायालय ने कहा कि “Attachment” शब्द का अर्थ है पूर्ण रोक। यह केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देनदार न्यायालय की प्रक्रिया से बच न सके या संपत्ति को हटा न दे।

बैंक या संस्था के लिए यह आवश्यक है कि आदेश मिलते ही:

  • खाते को तुरंत “Freeze” किया जाए,
  • सभी भुगतान रोक दिए जाएं,
  • न्यायालय को सूचित किया जाए कि आदेश का पालन कर लिया गया है,
  • और आगे के किसी भी भुगतान के लिए न्यायालय की अनुमति ली जाए।

न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी भी प्रकार की व्याख्या या औचित्य देकर आदेश की अवहेलना नहीं की जा सकती। यदि कोई संदेह हो तो गार्निशी को न्यायालय से स्पष्टता प्राप्त करनी चाहिए, न कि मनमाने ढंग से भुगतान करना।


 निर्णय (Judgment)

न्यायालय ने कहा कि बैंक का व्यवहार “गंभीर लापरवाही” के समान है। उसने न केवल आदेश का पालन नहीं किया, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न की।

इसलिए, न्यायालय ने बैंक के खिलाफ कठोर चेतावनी जारी की और भविष्य में ऐसे मामलों में अनुशासनात्मक कार्रवाई की संभावना का संकेत दिया।

अदालत ने कहा कि जब कोई न्यायिक आदेश “Attachment” के रूप में पारित होता है, तो उसकी उपेक्षा न्यायालय के आदेशों को निरर्थक बना देती है। इस प्रकार, गार्निशी का दायित्व है कि वह आदेश को अक्षरशः लागू करे।


कानूनी प्रभाव और परिणाम

इस निर्णय के कई व्यापक प्रभाव हैं:

  1. बैंकिंग संस्थाएं: अब बैंकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि जैसे ही कोई “Attachment Order” प्राप्त हो, वह तुरंत खाते को ब्लॉक करें और आंतरिक रिकॉर्ड में इसका उल्लेख करें।
  2. सरकारी विभाग: सरकारी निकायों को भी आदेशों का पालन करने के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया बनानी होगी ताकि भविष्य में अवमानना के मामले न हों।
  3. विवाद निपटान: यह निर्णय उन सभी वादियों के लिए राहत है जो वर्षों से न्यायिक आदेशों के अनुपालन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
  4. कानूनी स्पष्टता: अब यह स्पष्ट हो गया है कि “Attachment” का अर्थ केवल अस्थायी रोक नहीं बल्कि पूर्ण प्रतिबंध है।

 न्यायालय के शब्दों में अनुशासन

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा बनाए रखना हर संस्था का कर्तव्य है। यदि आदेशों का पालन नहीं किया गया, तो न्यायिक प्रणाली पर लोगों का विश्वास डगमगा जाएगा।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि “Rule of Law” का अर्थ केवल कानून का अस्तित्व नहीं, बल्कि उसका प्रभावी कार्यान्वयन भी है।

इसलिए, गार्निशी चाहे सरकारी संस्था हो या निजी बैंक — उसे आदेशों का पालन करना ही होगा।


  1. निष्कर्ष

इस निर्णय ने यह सिद्ध कर दिया कि न्यायालय के आदेशों की उपेक्षा किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं है। “Attachment means what it says” — इस वाक्य के माध्यम से बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक सशक्त संदेश दिया है कि न्यायिक आदेशों की भाषा को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

गार्निशी, चाहे वह बैंक हो या कोई अन्य संस्था, को न्यायालय की अनुमति के बिना एक भी भुगतान या ट्रांसफर नहीं करना चाहिए। अन्यथा, यह न केवल अवमानना होगी बल्कि न्यायिक अनुशासन का गंभीर उल्लंघन भी माना जाएगा।

यह निर्णय न्यायिक आदेशों की गरिमा, कानूनी अनुशासन और Rule of Law के महत्व को सुदृढ़ करने वाला ऐतिहासिक उदाहरण बन गया है। 

बॉम्बे हाई कोर्ट का यह निर्णय सभी संस्थाओं के लिए एक स्पष्ट चेतावनी है — “जब न्यायालय कहता है कि भुगतान रोक दो, तो रोक दो। आदेश का अर्थ वही है जो वह कहता है।”