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“Assault under Section 130 BNS — डराना भी उतना ही अपराध है जितना मारना”

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 130 — मारपीट (Assault): जब डर भी अपराध बन जाता है


🔹 प्रस्तावना

भारतीय दंड व्यवस्था का उद्देश्य केवल अपराधी को दंडित करना नहीं है, बल्कि समाज में शांति, सुरक्षा और न्याय का वातावरण बनाए रखना भी है। यही उद्देश्य भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) की धारा 130 में निहित है। यह धारा “मारपीट (Assault)” से संबंधित है, जो पुराने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 351 का प्रतिस्थापन (replacement) है।

मारपीट शब्द का सामान्य अर्थ है किसी व्यक्ति को पीटना या शारीरिक रूप से नुकसान पहुँचाना, परंतु कानूनी अर्थ में मारपीट का मतलब मात्र शारीरिक चोट नहीं बल्कि ‘मारने का डर पैदा करना’ भी है।
यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे को जानबूझकर इस प्रकार धमकाता है या ऐसा व्यवहार करता है कि सामने वाले को लगे कि उसे तुरंत हानि पहुँच सकती है, तो वह “मारपीट” या “Assault” कहलाता है।

इस लेख में हम विस्तारपूर्वक समझेंगे कि धारा 130 BNS के अंतर्गत “Assault” क्या है, इसके आवश्यक तत्व क्या हैं, कौन-कौन सी परिस्थितियाँ इस अपराध के अंतर्गत आती हैं, क्या सजा निर्धारित है, और न्यायालयों ने इस विषय पर क्या व्याख्या की है।


🔹 धारा 130 BNS का विधिक प्रावधान

धारा 130 के अनुसार —

“यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को इस प्रकार से धमकाता है या किसी शारीरिक क्रिया द्वारा ऐसा संकेत करता है, जिससे उस व्यक्ति को यह भय हो कि उसे तुरंत शारीरिक हानि पहुँचाई जा सकती है, तो वह ‘मारपीट’ (Assault) का अपराध करता है।”

अर्थात, कानून के अनुसार किसी व्यक्ति को वास्तव में चोट पहुँचाना आवश्यक नहीं है, केवल इतना पर्याप्त है कि उसके व्यवहार या इशारे से सामने वाले को वास्तविक भय हो कि उसे हानि पहुँच सकती है।


🔹 Assault का वास्तविक अर्थ

‘Assault’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द “Assultus” से हुई है, जिसका अर्थ है “किसी पर अचानक आक्रमण करना”।
लेकिन विधिक दृष्टि में “Assault” का अर्थ केवल हमला करना नहीं है, बल्कि हमले की तैयारी या धमकी देना भी है।

उदाहरण के लिए —

  • यदि कोई व्यक्ति डंडा उठाकर किसी की ओर बढ़ता है,
  • या गुस्से में हथियार लहराकर कहता है “मैं अभी तुझे मार दूँगा”,
    तो यह “Assault” है, भले ही उसने वास्तव में वार नहीं किया हो।

इससे यह स्पष्ट होता है कि “Assault” मानसिक भय और शारीरिक खतरे के बीच की वह स्थिति है जहाँ सामने वाला व्यक्ति खुद को तत्काल हानि के खतरे में महसूस करता है।


🔹 अपराध के आवश्यक तत्व (Essential Ingredients of Assault)

धारा 130 के अंतर्गत “मारपीट” सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित तत्व आवश्यक हैं —

  1. इरादा या ज्ञान (Intention or Knowledge):
    अभियुक्त का उद्देश्य या ज्ञान यह होना चाहिए कि उसकी क्रिया से सामने वाले को भय या नुकसान हो सकता है।
  2. क्रिया या इशारा (Act or Gesture):
    अभियुक्त द्वारा कोई ऐसा शारीरिक इशारा या संकेत किया गया हो जो भय उत्पन्न करे। जैसे — मुट्ठी उठाना, हथियार दिखाना, गुस्से में आगे बढ़ना आदि।
  3. तत्काल भय की संभावना (Apprehension of Immediate Hurt):
    सामने वाले व्यक्ति को यह महसूस होना चाहिए कि उसे तुरंत हानि पहुँच सकती है। यदि भय भविष्य के लिए हो, तो वह “Assault” नहीं होगा।
  4. वास्तविक चोट आवश्यक नहीं (No Physical Contact Required):
    यदि अभियुक्त ने वार नहीं किया, फिर भी अगर भय उत्पन्न हुआ है, तो अपराध पूर्ण हो जाता है।

🔹 उदाहरण (Illustrations)

  1. मुट्ठी उठाना:
    “क” ने “ख” की ओर मुट्ठी उठाकर कहा — “मैं तुझे अभी मार दूँगा।” यह मारपीट है, भले ही उसने वार न किया हो।
  2. हथियार दिखाना:
    यदि कोई व्यक्ति चाकू या बंदूक निकालकर किसी को धमकाता है, तो यह भी Assault है।
  3. डंडा लेकर आगे बढ़ना:
    यदि व्यक्ति किसी पर डंडा उठाकर इस प्रकार आगे बढ़े कि सामने वाला डर जाए कि अब वार होगा, तो यह भी धारा 130 के अंतर्गत अपराध है।
  4. फर्ज़ी धमकी:
    यदि पिस्तौल खाली है, लेकिन सामने वाले को यह ज्ञात नहीं है और वह डर गया, तो भी Assault माना जाएगा, क्योंकि भय वास्तविक था।

🔹 वास्तविक हिंसा और Assault का अंतर

बिंदु Assault (धारा 130) Actual Hurt (धारा 131 एवं अन्य)
1. परिभाषा केवल भय या धमकी वास्तविक शारीरिक चोट
2. संपर्क शारीरिक संपर्क आवश्यक नहीं शारीरिक संपर्क आवश्यक
3. दंड 3 माह की कैद या ₹1000 जुर्माना या दोनों चोट की गंभीरता के अनुसार भिन्न
4. उदाहरण हथियार लहराना, धमकाना वार करना, खून निकलना आदि
5. उद्देश्य भय उत्पन्न करना चोट पहुँचाना

🔹 सजा (Punishment)

धारा 130 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति “Assault” करता है तो उसे —

तीन महीने तक का कारावास, या
एक हजार रुपये तक का जुर्माना, या
दोनों से दंडित किया जा सकता है।

यह अपराध जमानती (Bailable) है और सामान्यतः संज्ञेय (Cognizable) नहीं है, अर्थात् पुलिस बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के स्वतः गिरफ्तारी नहीं कर सकती।


🔹 न्यायिक दृष्टांत (Judicial Precedents)

  1. R v. St. George (1840):
    अभियुक्त ने शिकायतकर्ता पर पिस्तौल तान दी। भले ही पिस्तौल खाली थी, लेकिन शिकायतकर्ता को लगा कि उसे गोली मारी जा सकती है। अदालत ने कहा कि यह Assault है, क्योंकि भय वास्तविक था।
  2. Stephens v. Myers (1830):
    एक व्यक्ति ने सभा में दूसरे व्यक्ति की ओर मुट्ठी उठाई लेकिन बीच में लोगों ने रोक लिया। अदालत ने कहा कि यह “Assault” है क्योंकि उसके इशारे से सामने वाले को तत्काल हानि का भय हुआ।
  3. State of Maharashtra v. Mohd. Yakub (1980):
    सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति की क्रिया मात्र से यह स्पष्ट हो जाए कि उसका उद्देश्य किसी को भयभीत करना है, तो “Assault” सिद्ध हो सकता है।

🔹 अपराध का उद्देश्य (Object of Law)

इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य है —

  • समाज में शांति और सुरक्षा बनाए रखना,
  • लोगों को डर या धमकी से मुक्त वातावरण देना,
  • तथा यह सुनिश्चित करना कि कोई व्यक्ति दूसरे को भय दिखाकर उसकी स्वतंत्रता या आत्म-सम्मान को ठेस न पहुँचाए।

यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत निहित “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार” की रक्षा करता है। क्योंकि भय या धमकी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, जो “जीवन” का ही एक आवश्यक घटक है।


🔹 व्यावहारिक उदाहरण (Practical Situations)

  1. सड़क झगड़ा:
    ट्रैफिक विवाद में एक व्यक्ति ने गाड़ी से उतरकर दूसरे पर हाथ उठाया और कहा — “मैं तुझे अभी सबक सिखाता हूँ।” सामने वाला डर गया। यह Assault है।
  2. पड़ोसी विवाद:
    पड़ोसी ने जमीन को लेकर झगड़े में डंडा उठाकर कहा — “तेरी हिम्मत हुई तो यहाँ कदम रखना।” यहाँ भय उत्पन्न हुआ, अतः यह भी धारा 130 के अंतर्गत अपराध है।
  3. घरेलू हिंसा के संदर्भ में:
    यदि पति पत्नी को बार-बार धमकाता है कि “मैं तुझे जान से मार दूँगा”, और उसकी बातों से पत्नी को वास्तविक भय होता है, तो यह भी Assault है।

🔹 मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण

“Assault” केवल शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक अपराध भी है, क्योंकि यह व्यक्ति के मन में असुरक्षा और भय की भावना उत्पन्न करता है।
कानून इस बात को स्वीकार करता है कि भय का प्रभाव भी उतना ही गंभीर हो सकता है जितना शारीरिक दर्द का प्रभाव।
इसलिए धारा 130 BNS एक रक्षात्मक प्रावधान है, जो व्यक्ति की मानसिक शांति और आत्मसम्मान की रक्षा करता है।


🔹 सामाजिक दृष्टिकोण

समाज में कई बार विवाद केवल शब्दों और इशारों तक सीमित रहते हैं, लेकिन कुछ लोग इन्हें भय और आतंक का रूप दे देते हैं।
यदि ऐसे कार्यों को अपराध न माना जाए तो समाज में धमकी और दबाव की संस्कृति बढ़ेगी।
इसलिए धारा 130 जैसी धाराएँ आवश्यक हैं जो यह सुनिश्चित करें कि कोई भी व्यक्ति दूसरों को भय दिखाकर कानून हाथ में न ले।


🔹 कानून का दायरा

धारा 130 का दायरा केवल व्यक्ति विशेष तक सीमित नहीं है, बल्कि —

  • पुलिसकर्मी द्वारा की गई अवैध धमकी,
  • अधिकारी द्वारा अधीनस्थ को शारीरिक हानि की धमकी,
  • या भीड़ द्वारा किसी को डराने का प्रयास —
    इन सभी स्थितियों में यह धारा लागू हो सकती है।

🔹 सीमाएँ (Limitations)

हालाँकि, प्रत्येक झगड़ा या कठोर शब्द “Assault” नहीं होता।
यदि किसी ने केवल दूर से गाली दी, पर भय की तत्काल संभावना नहीं थी, तो यह Assault नहीं माना जाएगा।
इसी प्रकार यदि दोनों व्यक्ति के बीच पर्याप्त दूरी है और कोई तत्काल वार संभव नहीं, तो यह अपराध नहीं बनेगा।


🔹 भविष्य में प्रासंगिकता

Bharatiya Nyaya Sanhita के लागू होने के बाद यह धारा न केवल पारंपरिक हमलों बल्कि ऑनलाइन धमकियों, सोशल मीडिया के माध्यम से किए गए भय और सार्वजनिक स्थानों पर आक्रामक व्यवहार पर भी लागू की जा सकती है।
भविष्य में अदालतें इस धारा को डिजिटल युग के संदर्भ में भी व्याख्यायित करेंगी।


🔹 निष्कर्ष (Conclusion)

धारा 130 BNS इस सिद्धांत पर आधारित है कि “कानून केवल शारीरिक हानि से नहीं, बल्कि भय और धमकी से भी सुरक्षा प्रदान करता है।”
यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि कोई व्यक्ति अपने व्यवहार, शब्दों या इशारों से दूसरे के मन में भय न उत्पन्न करे।
मारना ही अपराध नहीं — बल्कि मारने का डर पैदा करना भी अपराध है।

कानून का यह प्रावधान समाज में सुरक्षा, अनुशासन और मानव गरिमा को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
यदि प्रत्येक व्यक्ति यह समझ ले कि उसका गुस्सा या धमकी भी अपराध बन सकती है, तो निश्चित ही समाज में हिंसा की घटनाएँ कम होंगी और शांति का वातावरण स्थापित होगा।


👉 सारांश:

  • धारा 130 BNS “Assault” यानी “मारपीट” से संबंधित है।
  • वास्तविक वार आवश्यक नहीं, केवल भय या धमकी पर्याप्त है।
  • सजा — 3 माह तक कैद या ₹1000 जुर्माना या दोनों।
  • यह अपराध जमानती है।
  • उद्देश्य — भय और हिंसा रहित समाज की स्थापना।