IndianLawNotes.com

Anvar P.V. v. P.K. Basheer (2014) इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता के लिए धारा 65B प्रमाणपत्र अनिवार्य

Anvar P.V. v. P.K. Basheer (2014) इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता के लिए धारा 65B प्रमाणपत्र अनिवार्य

1. प्रस्तावना (Introduction)

सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग के साथ, अदालतों में प्रस्तुत किए जाने वाले साक्ष्यों में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स का महत्व तेजी से बढ़ा है — जैसे ईमेल, SMS, कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स (CDRs), CCTV फुटेज, कंप्यूटर प्रिंटआउट, ऑडियो-वीडियो क्लिप्स, आदि।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में धारा 65B को Information Technology Act, 2000 द्वारा जोड़ा गया, ताकि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के प्रमाणीकरण और स्वीकार्यता की प्रक्रिया स्पष्ट हो।

Anvar P.V. v. P.K. Basheer (2014) में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कहा —

“जब भी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की कॉपी को साक्ष्य के रूप में पेश किया जाता है, तो धारा 65B(4) के तहत प्रमाणपत्र अनिवार्य है। इसके बिना कॉपी आधारित इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य स्वीकार्य नहीं होगा।”

इस फैसले ने पहले के Navjot Sandhu (2005) (Parliament Attack Case) में अपनाए गए लचीले दृष्टिकोण को बदल दिया।


2. मामले का पृष्ठभूमि (Background of the Case)
2.1 तथ्य (Facts)
  • Anvar P.V. और P.K. Basheer के बीच निर्वाचन याचिका दायर हुई थी।
  • याचिकाकर्ता (Anvar) ने आरोप लगाया कि Basheer ने चुनाव अभियान के दौरान भड़काऊ गीत और अवैध प्रचार किया।
  • साक्ष्य के रूप में CDs और ऑडियो रिकॉर्डिंग प्रस्तुत की गईं, जिनमें कथित तौर पर आपत्तिजनक भाषण और गाने थे।
  • ये रिकॉर्डिंग मूल उपकरण से नहीं, बल्कि उनकी कॉपी (CDs) के रूप में प्रस्तुत की गईं।
2.2 निचली अदालत का दृष्टिकोण
  • ट्रायल कोर्ट ने कहा कि CDs स्वीकार्य हैं, भले ही धारा 65B का प्रमाणपत्र न हो।
  • इस फैसले में Navjot Sandhu (2005) का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया था कि 65B प्रमाणपत्र न होने पर भी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य अन्य धाराओं (63 और 65) के तहत स्वीकार किए जा सकते हैं।

3. मुख्य कानूनी प्रश्न (Legal Issue)

क्या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की कॉपी (जैसे CD, प्रिंटआउट, पेनड्राइव, आदि) को बिना धारा 65B(4) के प्रमाणपत्र के अदालत में स्वीकार किया जा सकता है?


4. धारा 65B – एक संक्षिप्त अवलोकन (Section 65B Overview)
4.1 धारा 65B(1)
  • इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स को साक्ष्य के रूप में मान्यता देता है, यदि उन्हें विश्वसनीय तरीके से संग्रहीत और पुनः प्रस्तुत किया गया हो।
4.2 धारा 65B(4)प्रमाणपत्र की आवश्यकता
  • जब इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की कॉपी को पेश किया जाता है, तो एक अधिकृत व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित प्रमाणपत्र अनिवार्य है, जिसमें होना चाहिए:
    1. रिकॉर्ड के निर्माण और संग्रहण की प्रक्रिया का विवरण,
    2. प्रयुक्त उपकरण का विवरण,
    3. और यह घोषणा कि रिकॉर्ड बिना बदलाव के है।

5. सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण (Supreme Court’s Analysis)
5.1 Navjot Sandhu का पुनर्मूल्यांकन
  • कोर्ट ने माना कि Navjot Sandhu में अपनाया गया दृष्टिकोण (कि बिना प्रमाणपत्र भी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य स्वीकार्य है) गलत था।
  • धारा 65B एक विशेष प्रावधान है, और जब भी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की कॉपी पेश की जाती है, तो केवल इसी के अनुसार साक्ष्य स्वीकार होगा।
5.2 प्रमाणपत्र की अनिवार्यता
  • यदि कोई इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड मूल रूप में (जैसे हार्ड डिस्क या सर्वर) सीधे अदालत में लाया जाता है, तो 65B प्रमाणपत्र जरूरी नहीं।
  • लेकिन यदि कॉपी (प्रिंटआउट, CD, DVD, पेनड्राइव) पेश की जाती है, तो 65B(4) का प्रमाणपत्र अनिवार्य है।
5.3 द्वितीयक साक्ष्य नियमों की अस्वीकृति
  • धारा 63 और 65 (Secondary Evidence) के सामान्य प्रावधान इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड पर तब लागू नहीं होंगे, जब यह कॉपी के रूप में प्रस्तुत हो।
  • इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के लिए केवल धारा 65B ही लागू होगी।

6. निर्णय (Judgment)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा —

  1. CDs और अन्य कॉपी-आधारित इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य बिना 65B(4) प्रमाणपत्र के स्वीकार्य नहीं हैं।
  2. Navjot Sandhu का दृष्टिकोण आंशिक रूप से गलत था और इसे ओवररूल किया जाता है।
  3. ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया कि वह केवल 65B प्रमाणपत्र युक्त इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को ही मान्यता दे।

7. महत्व (Significance of the Case)
  • स्पष्टता – इस केस ने इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता के नियमों को स्पष्ट और कठोर बनाया।
  • प्रक्रिया की शुद्धता – अब पुलिस और जांच एजेंसियों को साक्ष्य एकत्र करते समय 65B प्रमाणपत्र तैयार करना अनिवार्य हो गया।
  • छेड़छाड़ पर रोक – प्रमाणपत्र में रिकॉर्डिंग की प्रक्रिया और उपकरण का विवरण होने से छेड़छाड़ की संभावना कम होती है।

8. आलोचना (Criticism)
  • तकनीकी बोझ – ग्रामीण या छोटे मामलों में जांच एजेंसियों के पास तकनीकी क्षमता की कमी के कारण 65B प्रमाणपत्र लाना मुश्किल हो सकता है।
  • साक्ष्य अस्वीकृति का खतरा – प्रमाणपत्र की कमी के कारण कई मामलों में महत्वपूर्ण साक्ष्य तकनीकी आधार पर खारिज हो सकते हैं, भले ही वह असल में सही हो।

9. बाद के मामलों में प्रभाव (Impact in Later Cases)
Shafhi Mohammad v. State of Himachal Pradesh (2018)
  • कोर्ट ने कहा कि अगर पक्षकार के पास प्रमाणपत्र लाने की शक्ति नहीं है, तो अपवाद हो सकता है।
  • लेकिन यह Anvar P.V. की कठोरता को थोड़ा कम करता है।
Arjun Panditrao Khotkar v. Kailash Kushanrao Gorantyal (2020)
  • तीन जजों की पीठ ने फिर से कहा कि 65B प्रमाणपत्र mandatory है, और Shafhi Mohammad को आंशिक रूप से गलत ठहराया।
  • मूल उपकरण पेश होने पर ही प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होगी।

10. निष्कर्ष (Conclusion)

Anvar P.V. v. P.K. Basheer (2014) भारतीय इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य कानून में टर्निंग पॉइंट है। इसने स्पष्ट किया कि —

  • इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की कॉपी को स्वीकार करने के लिए धारा 65B(4) का प्रमाणपत्र अनिवार्य है।
  • बिना प्रमाणपत्र, ऐसे साक्ष्य अदालत में अस्वीकार्य होंगे।
  • इस फैसले ने Navjot Sandhu (2005) की लचीली व्याख्या को समाप्त कर साक्ष्य प्रक्रिया को अधिक कठोर और तकनीकी रूप से सुरक्षित बनाया।

यह निर्णय आज भी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता के मामलों में मुख्य मार्गदर्शक है, और पुलिस, वकील तथा न्यायालय सभी को इसकी प्रक्रियाओं का पालन करना आवश्यक है।