“Angad Soni बनाम Arpita Yadav मामला: आपराधिक मामले के बाद आपसी सहमति से तलाक – धारा 14(1) Hindu Marriage Act, 1955 की विवेचना”
प्रस्तावना:
भारत में विवाह कानूनों का उद्देश्य पति-पत्नी के संबंधों को कानूनी रूप से संरक्षित करना और उनके बीच उत्पन्न विवादों का न्यायपूर्ण समाधान प्रदान करना है। Angad Soni बनाम Arpita Yadav मामला ऐसे ही एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण पहलू को उजागर करता है, जहाँ एक ओर आपराधिक मामला दर्ज किया गया, वहीं दूसरी ओर दोनों पक्ष आपसी सहमति से तलाक की मांग लेकर आए। इस मामले में उच्च न्यायालय ने Hindu Marriage Act, 1955 की धारा 14(1) के अपवाद (Proviso) को प्रमुखता दी।
मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में पत्नी द्वारा पति के विरुद्ध आपराधिक शिकायत दर्ज करवाई गई थी। इसके पश्चात, दोनों पक्षों ने पारस्परिक सहमति से तलाक हेतु याचिका दायर की। सामान्यतः, हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 14(1) यह प्रावधान करती है कि विवाह के एक वर्ष के भीतर तलाक की याचिका नहीं दायर की जा सकती। लेकिन इस धारा के अपवाद (Proviso) में यह छूट दी गई है कि विशेष परिस्थितियों में, न्यायालय एक वर्ष से पूर्व भी तलाक की अनुमति दे सकता है।
मुख्य न्यायिक अवलोकन:
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस मामले में यह माना कि –
“यदि एक पक्ष दूसरे के विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज करता है और फिर दोनों पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेने को तैयार हो जाते हैं, तो यह एक विशेष परिस्थिति है जो मानसिक पीड़ा और विवाह के विघटन को दर्शाता है। ऐसी स्थिति में, Hindu Marriage Act की धारा 14(1) के तहत तलाक एक वर्ष से पहले भी प्रदान किया जा सकता है।”
अतः न्यायालय ने आपसी सहमति से तलाक को स्वीकृति दी और तलाक को वैध घोषित किया।
कानूनी विश्लेषण:
यह निर्णय बताता है कि –
- धारा 14(1) का उद्देश्य विवाह को स्थायित्व देना है, लेकिन यह पूर्ण नहीं है; न्यायालय विवेकाधिकार का प्रयोग कर सकता है।
- यदि विवाह असहनीय स्तर तक टूट चुका हो और दंपति आपराधिक विवादों में उलझ चुके हों, तो विवाह को बनाए रखने का प्रयास एक ‘formal burden’ मात्र रह जाता है।
- ऐसे मामलों में शीघ्र न्याय और सम्मानजनक अलगाव देना दोनों पक्षों के लिए हितकर होता है।
न्यायिक दृष्टिकोण का महत्व:
इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय “विवाह की संस्था” को बचाने की कोशिश तो करता है, लेकिन जब पति-पत्नी के बीच संबंध पूर्णतः समाप्त हो जाते हैं और आपसी सहमति बन जाती है, तो कानून को विवेकपूर्ण और मानवीय दृष्टिकोण से लागू किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष:
Angad Soni बनाम Arpita Yadav मामला न्यायिक विवेक और मानवीय दृष्टिकोण का उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ कोर्ट ने आपसी सहमति, मानसिक शांति और सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दी। यह फैसला भविष्य के उन मामलों के लिए मार्गदर्शक है जहाँ विवाह पूर्णतः विघटित हो चुका हो, और आपसी सहमति ही एकमात्र सम्मानजनक समाधान हो।