“ALL EYES ON SHARMISHTHA: कहां गई लोकतंत्र की आवाज़?”

शीर्षक: “ALL EYES ON SHARMISHTHA: कहां गई लोकतंत्र की आवाज़?”

लेख:

एक समय था जब लोकतंत्र का अर्थ था — जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा चुनी गई सरकार। लेकिन आज के हालात में यह परिभाषा कहीं धुंधली सी हो गई है। क्या वाकई हम उस लोकतंत्र में जी रहे हैं जहां हर आवाज़ को सुना जाता है, हर सवाल का जवाब दिया जाता है और हर नागरिक को बराबरी का हक़ हासिल है?

“ALL EYES ON SHARMISHTHA” — यह वाक्य केवल एक ट्रेंड नहीं है, यह उस दर्द और सवाल की गूंज है जो आज की जनता महसूस कर रही है। शार्मिष्ठा कौन है, कहां गई, और क्यों गई — ये सवाल अकेले एक व्यक्ति के गुम होने से जुड़े नहीं हैं, ये सवाल उस सिस्टम से जुड़े हैं जिसमें आवाज़ें दबाई जाती हैं, विरोध को देशद्रोह कहा जाता है, और सवाल पूछना अपराध बन जाता है।

लोकतंत्र का मौन:

आज के समय में सोशल मीडिया, न्यूज़ चैनल्स और राजनीतिक गलियारों में जो शोर सुनाई देता है, वह दरअसल मौन का दूसरा रूप है। इस शोर में सच खो जाता है, और सत्ताधारी वर्ग की सुविधा अनुसार “लोकतंत्र” को परिभाषित किया जाता है। शार्मिष्ठा का गायब होना केवल एक घटना नहीं, एक प्रतीक है — उस डर का, उस खामोशी का, जो आज हर जागरूक नागरिक के मन में घर कर गई है।

कहां है जवाबदेही?

जब कोई शार्मिष्ठा गायब होती है, तो जवाबदेही भी गायब हो जाती है। सरकार, प्रशासन, मीडिया — सब चुप हैं। लोकतंत्र का मूलभूत सिद्धांत है पारदर्शिता और जवाबदेही, लेकिन जब सत्ता खुद को सवालों से ऊपर समझने लगे, तब लोकतंत्र केवल एक दिखावा बन जाता है।

क्या अब भी लोकतंत्र ज़िंदा है?

इस सवाल का उत्तर हमें खुद देना है। जब तक हम चुप रहेंगे, तब तक हर शार्मिष्ठा गायब होती रहेगी। लेकिन जिस दिन हम आवाज़ उठाएंगे, एक होकर खड़े होंगे, उसी दिन लोकतंत्र फिर से सांस लेगा।

निष्कर्ष:

“ALL EYES ON SHARMISHTHA” केवल एक मांग नहीं, एक चेतावनी है — कि अगर आज हम नहीं जागे, तो कल हमारी आवाज़ भी कहीं खो जाएगी। लोकतंत्र को ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है कि हम सवाल पूछें, जवाब मांगें और अन्याय के खिलाफ खड़े हों।

लोकतंत्र तभी बचेगा, जब हम खामोश नहीं रहेंगे।