शीर्षक:
“AI और Deepfake ट्रैकिंग के लिए CERT-In जैसे सरकारी निगरानी तंत्र को सशक्त बनाना समय की मांग”
भूमिका:
वर्तमान डिजिटल युग में जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने मानव जीवन को अभूतपूर्व गति और सहूलियत प्रदान की है, वहीं इसकी एक अनियंत्रित शाखा — डीपफेक टेक्नोलॉजी — समाज, लोकतंत्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा बनती जा रही है।
फर्जी वीडियो, नकली आवाज़ें, और डिजिटल रूप से छेड़े गए चेहरे आज सोशल मीडिया और इंटरनेट पर सहजता से फैलाए जा रहे हैं, जिनका मकसद भ्रम फैलाना, बदनाम करना, चुनावों को प्रभावित करना, या सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ना होता है।
इन खतरों से निपटने के लिए भारत को मजबूत और सक्षम सरकारी निगरानी तंत्र की आवश्यकता है, और इस दिशा में CERT-In (Indian Computer Emergency Response Team) को विशेष सशक्तिकरण और उन्नत संसाधनों से लैस किया जाना बेहद जरूरी है।
CERT-In: मौजूदा भूमिका और सीमाएँ
CERT-In, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के अंतर्गत कार्यरत भारत का राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नोडल एजेंसी है। यह इंटरनेट सुरक्षा खतरों की निगरानी, डेटा उल्लंघनों की रिपोर्टिंग, और साइबर इमरजेंसी पर प्रतिक्रिया देने के लिए जिम्मेदार है।
हालांकि CERT-In के पास साइबर हमलों और मालवेयर जैसे खतरों की पहचान और प्रतिक्रिया की क्षमता है, लेकिन AI-आधारित खतरों जैसे डीपफेक की पहचान, प्रमाणीकरण और त्वरित कार्रवाई की दिशा में इसकी भूमिका अभी सीमित और असंगठित है।
AI और Deepfake से उत्पन्न खतरों की जटिलता
- नकली वीडियो और ऑडियो का तेजी से प्रसार, जिसे आम आदमी असली समझकर प्रतिक्रिया करता है।
- राजनीतिक दुष्प्रचार और चुनावी हस्तक्षेप, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं कमजोर होती हैं।
- महिलाओं के विरुद्ध अश्लील डीपफेक, जिससे उनकी निजता और गरिमा को ठेस पहुंचती है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा, जैसे कि किसी नेता के नाम से नकली बयान जारी कर संवेदनशीलता भड़काना।
CERT-In को कैसे सशक्त किया जा सकता है?
1. तकनीकी संसाधनों का उन्नयन
- AI-संचालित डीपफेक डिटेक्शन सिस्टम को CERT-In के नेटवर्क में शामिल किया जाए।
- रियल-टाइम स्कैनिंग इंजन तैयार किया जाए जो सोशल मीडिया, मेसेजिंग प्लेटफॉर्म और वेबसाइटों पर वायरल हो रही संदिग्ध सामग्री की पहचान कर सके।
- Multilingual Data Processing Tools विकसित किए जाएं जो भारत की भाषाई विविधता में तैयार हो रहे डीपफेक कंटेंट को ट्रैक कर सकें।
2. विशेष प्रशिक्षित साइबर यूनिट
- एक समर्पित “AI Threat Analysis Cell” का गठन हो, जिसमें डिजिटल फॉरेंसिक, मशीन लर्निंग, वीडियो वॉटरमार्किंग और ब्लॉकचेन विशेषज्ञ शामिल हों।
- CERT-In के अधिकारियों को AI फोरेंसिक और Deepfake Detection में अंतरराष्ट्रीय मानकों पर प्रशिक्षित किया जाए।
3. अनिवार्य रिपोर्टिंग प्रणाली
- सोशल मीडिया कंपनियों और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों (ISPs) को डीपफेक गतिविधियों की अनिवार्य रिपोर्टिंग के लिए बाध्य किया जाए।
- CERT-In को 30 मिनट के भीतर रिपोर्टिंग और 6 घंटे में कार्रवाई की जिम्मेदारी दी जाए (विशेष मामलों में)।
4. जनता के लिए जागरूकता और शिकायत पोर्टल
- आम नागरिकों के लिए एक सुलभ रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म विकसित किया जाए जहां कोई भी डीपफेक कंटेंट की शिकायत कर सके।
- शिकायतों के समाधान हेतु ट्रैकिंग आईडी और रियल टाइम अपडेट की व्यवस्था हो।
5. अन्य एजेंसियों से समन्वय
- CERT-In का समन्वय राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB), इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB), CBI, और राज्यों के साइबर सेल के साथ बेहतर बनाया जाए।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग जैसे INTERPOL, Europol और Tech कंपनियों से तालमेल के लिए एक विशेष डेस्क तैयार हो।
अंतरराष्ट्रीय उदाहरण:
- अमेरिका में Homeland Security और FBI ने AI आधारित “Media Authenticity Systems” को अपने निगरानी ढांचे में जोड़ा है।
- यूरोपियन यूनियन ने “Anti-Disinformation Task Force” के तहत डीपफेक ट्रैकिंग मॉड्यूल लागू किया है।
- साउथ कोरिया में NIS (National Intelligence Service) ने Deepfake detection को राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में शामिल कर लिया है।
निष्कर्ष:
AI और Deepfake तकनीक के खतरों से निपटने के लिए हमें पारंपरिक साइबर सुरक्षा ढांचों से आगे बढ़ना होगा। CERT-In जैसे संगठनों को मात्र प्रतिक्रिया देने वाला निकाय न बनाकर पूर्वानुमान और रोकथाम की दिशा में काम करने वाला प्रभावी निगरानी तंत्र बनाया जाना आवश्यक है।
यदि सरकार तकनीकी, कानूनी और मानव संसाधनों के स्तर पर CERT-In को सशक्त करती है, तो भारत ना केवल डीपफेक जैसे डिजिटल खतरों का सामना कर सकेगा, बल्कि डिजिटल लोकतंत्र और नागरिकों की निजता की रक्षा भी सुनिश्चित कर पाएगा।
यह सशक्तिकरण, भविष्य की साइबर चुनौतियों से निपटने की नींव बनेगा।