Advocate Boris Paul and Anr. v. Union of India and Ors.(Supreme Court of India – Ashtamudi Wetland Conservation)
प्रस्तावना
भारतीय न्यायपालिका ने समय-समय पर यह स्पष्ट किया है कि पर्यावरण संरक्षण केवल एक नीतिगत या प्रशासनिक विषय नहीं है, बल्कि यह जीवन के मौलिक अधिकार (Article 21) का अभिन्न अंग है। इसी क्रम में Advocate Boris Paul and Anr. v. Union of India and Ors. का मामला एक महत्वपूर्ण निर्णय के रूप में सामने आया। इस प्रकरण में केरल उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार और राज्य वेटलैंड प्राधिकरण को यह निर्देश दिया कि वे आस्तमुदी वेटलैंड मैनेजमेंट यूनिट (Ashtamudi Wetland Management Unit) की स्थापना करें।
यह निर्णय केवल एक स्थानीय पर्यावरणीय विवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव पूरे देश की वेटलैंड संरक्षण नीति और पर्यावरण न्यायशास्त्र पर पड़ा है।
आस्तमुदी वेटलैंड का महत्व
- भौगोलिक स्थिति – आस्तमुदी झील (Ashtamudi Lake) केरल के कोल्लम जिले में स्थित है।
- Ramsar Site – इसे 2002 में Ramsar Convention (1971) के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय महत्व की वेटलैंड घोषित किया गया था।
- जैव विविधता (Biodiversity) – यहाँ 57 प्रजातियों की मछलियाँ, दुर्लभ जलपक्षी और विविध प्रकार के पौधे पाए जाते हैं।
- आर्थिक महत्व – यह झील स्थानीय मछुआरों, नाविकों और पर्यटन उद्योग के लिए आजीविका का प्रमुख स्रोत है।
- पर्यावरणीय कार्य – यह झील कार्बन उत्सर्जन को अवशोषित करती है, भूजल स्तर बनाए रखती है और बाढ़ नियंत्रण में सहायक है।
इस प्रकार, आस्तमुदी केवल एक झील नहीं बल्कि जीवन-रेखा है।
याचिका का तथ्यात्मक परिप्रेक्ष्य
- याचिका अधिवक्ता बोरिस पॉल और अन्य पर्यावरण कार्यकर्ताओं द्वारा दायर की गई।
- इसमें कहा गया कि झील का तेजी से क्षरण (Degradation) हो रहा है।
- मुख्य समस्याएँ –
- अवैध निर्माण और अतिक्रमण
- औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट द्वारा प्रदूषण
- असंगठित पर्यटन गतिविधियाँ
- अत्यधिक मछली पकड़ने और झींगा पालन (Shrimp farming)
- वनों की कटाई और तटीय क्षरण
- याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय से अनुरोध किया कि राज्य सरकार को बाध्य किया जाए कि वह एक विशेष प्रबंधन इकाई बनाए, जिससे झील का संरक्षण और पुनर्स्थापन संभव हो।
उच्च न्यायालय का निर्देश
केरल उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कई महत्वपूर्ण आदेश दिए:
- विशेष प्रबंधन इकाई का गठन –
- Ashtamudi Wetland Management Unit नामक एक स्वतंत्र इकाई स्थापित की जाए।
- यह इकाई संरक्षण, निगरानी और पुनर्स्थापन की पूरी जिम्मेदारी निभाएगी।
- कार्य योजना (Action Plan) –
- प्रदूषण नियंत्रण, जल गुणवत्ता सुधार और जैव विविधता संरक्षण हेतु ठोस योजना बनाई जाए।
- समुदाय की भागीदारी –
- स्थानीय मछुआरों, नाविकों और पर्यावरण संगठनों को इस प्रबंधन प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जाए।
- निरंतर रिपोर्टिंग –
- प्रबंधन इकाई अपनी प्रगति नियमित अंतराल पर अदालत और राज्य वेटलैंड प्राधिकरण को प्रस्तुत करेगी।
- विकास और संरक्षण का संतुलन –
- पर्यटन और आजीविका को पूरी तरह प्रतिबंधित नहीं किया गया, बल्कि सतत विकास (Sustainable Development) के सिद्धांत को लागू करने पर जोर दिया गया।
कानूनी विश्लेषण
(क) संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 21 – स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण जीवन के अधिकार का हिस्सा है।
- अनुच्छेद 48A – राज्य का कर्तव्य है कि वह पर्यावरण और वनों की रक्षा करे।
- अनुच्छेद 51A(g) – प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण करे।
(ख) विधिक प्रावधान
- Environment Protection Act, 1986
- Wetlands (Conservation and Management) Rules, 2017
- Biological Diversity Act, 2002
(ग) अंतरराष्ट्रीय दायित्व
- भारत Ramsar Convention, 1971 का हस्ताक्षरकर्ता है।
- Ashtamudi Lake को Ramsar site घोषित करने के बाद भारत पर यह दायित्व है कि वह इस वेटलैंड का संरक्षण और प्रबंधन सुनिश्चित करे।
प्रासंगिक न्यायिक नजीरें
- M.C. Mehta v. Union of India (1987 AIR 1086) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना जीवन के अधिकार का हिस्सा है।
- Vellore Citizens Welfare Forum v. Union of India (1996 5 SCC 647) – Precautionary Principle और Polluter Pays Principle को भारतीय कानून का हिस्सा माना गया।
- Indian Council for Enviro-Legal Action v. Union of India (1996 3 SCC 212) – प्रदूषण फैलाने वालों से पुनर्स्थापन लागत वसूलने का आदेश।
- M.I. Builders v. Radhey Shyam Sahu (1999 6 SCC 464) – पार्कों और पर्यावरणीय धरोहरों को अतिक्रमण और अवैध निर्माण से बचाने का आदेश।
ये सभी निर्णय इस बात को पुष्ट करते हैं कि न्यायपालिका वेटलैंड और पर्यावरण संरक्षण को गंभीरता से लेती है।
निर्णय का महत्व
- न्यायपालिका की सक्रियता – यह आदेश दिखाता है कि जब कार्यपालिका पर्यावरण संरक्षण में विफल रहती है, तब न्यायपालिका हस्तक्षेप कर सकती है।
- वेटलैंड नीति को मजबूती – इस निर्णय ने भारत की वेटलैंड संरक्षण नीति को अधिक प्रभावी बनाया।
- जन भागीदारी का महत्व – स्थानीय समुदायों की भूमिका पर विशेष बल दिया गया।
- सतत विकास – विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने का प्रयास।
- भविष्य के लिए नजीर – यह मामला अन्य वेटलैंड और झील संरक्षण मामलों में मिसाल (precedent) बनेगा।
चुनौतियाँ
- प्रभावी क्रियान्वयन – कई बार नीतियाँ बन जाती हैं, लेकिन उनका पालन नहीं होता।
- राजनीतिक और आर्थिक दबाव – उद्योग और पर्यटन लॉबी संरक्षण उपायों का विरोध कर सकती है।
- संसाधनों की कमी – वित्तीय और तकनीकी संसाधनों का अभाव प्रबंधन इकाई को कमजोर कर सकता है।
- लंबी न्यायिक प्रक्रिया – अदालतों के निरंतर हस्तक्षेप की आवश्यकता पड़ सकती है।
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
- यूरोप, अफ्रीका और एशिया के कई देशों में वेटलैंड प्रबंधन के लिए स्वतंत्र संस्थाएं बनाई गई हैं।
- भारत में यह पहला मौका है जब किसी वेटलैंड के लिए विशेष प्रबंधन इकाई गठित करने का न्यायालय ने आदेश दिया।
- इससे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि मजबूत होगी कि वह Ramsar Convention के तहत अपने दायित्वों को गंभीरता से निभा रहा है।
निष्कर्ष
Advocate Boris Paul and Anr. v. Union of India and Ors. का यह निर्णय भारतीय पर्यावरण कानून में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इसने यह स्थापित किया कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण केवल प्रशासन का काम नहीं, बल्कि न्यायपालिका और नागरिकों की भी साझा जिम्मेदारी है।
आस्तमुदी वेटलैंड प्रबंधन इकाई का गठन यह संदेश देता है कि यदि किसी क्षेत्र की पारिस्थितिकी संकट में हो, तो उसके लिए विशेष संस्थागत ढांचा तैयार करना आवश्यक है।
यह मामला हमें यह भी याद दिलाता है कि—
- पर्यावरण संरक्षण = जीवन का अधिकार
- सतत विकास = न्यायपालिका और नीतिनिर्माताओं की साझा जिम्मेदारी
- वेटलैंड संरक्षण = भविष्य की पीढ़ियों के लिए अमूल्य धरोहर
इस प्रकार, यह निर्णय केवल एक झील तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए एक आदर्श (Model) है कि किस प्रकार न्यायपालिका और नागरिक समाज मिलकर प्राकृतिक धरोहरों की रक्षा कर सकते हैं।