संविधान की प्रस्तावना, उद्देश्य और महत्व – एक विस्तृत लेख
1. प्रस्तावना का परिचय
भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble) संविधान का वह संक्षिप्त प्रारंभिक वक्तव्य है, जिसमें देश के मूल उद्देश्य, आदर्श, और संविधान निर्माताओं की दृष्टि का स्पष्ट चित्रण किया गया है। यह संविधान का “आइना” (Mirror) है, जो यह दर्शाता है कि भारत किस प्रकार का राज्य होगा और किन आदर्शों के आधार पर इसका शासन चलेगा।
संविधान की प्रस्तावना में निहित शब्द न केवल कानूनी महत्व रखते हैं, बल्कि वे हमारे राष्ट्रीय जीवन के नैतिक और राजनीतिक दर्शन का भी आधार हैं।
2. भारतीय संविधान की प्रस्तावना का मूल पाठ
भारत के संविधान की प्रस्तावना इस प्रकार है –
“हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा इसके समस्त नागरिकों को :
न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक;
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता;
स्थिति और अवसर की समता;
तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
3. प्रस्तावना के मुख्य घटक
- हम भारत के लोग (We the People of India) –
इसका अर्थ है कि संविधान की शक्ति का स्रोत भारत के नागरिक हैं, न कि कोई बाहरी सत्ता। यह जनसत्ता के सिद्धांत को व्यक्त करता है। - सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न (Sovereign) –
भारत किसी भी बाहरी शक्ति के अधीन नहीं है और स्वयं निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है। - समाजवादी (Socialist) –
समाज में आर्थिक असमानताओं को दूर कर समान अवसर प्रदान करने और सामाजिक-आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता। - पंथनिरपेक्ष (Secular) –
राज्य का कोई आधिकारिक धर्म नहीं होगा और सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और व्यवहार होगा। - लोकतंत्रात्मक (Democratic) –
शासन जनता के द्वारा, जनता के लिए और जनता का होगा। - गणराज्य (Republic) –
राज्य का प्रमुख व्यक्ति जनता द्वारा निर्वाचित होगा, न कि किसी वंशानुगत प्रणाली से। - न्याय (Justice) –
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक – तीनों प्रकार का न्याय सुनिश्चित किया गया है। - स्वतंत्रता (Liberty) –
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता। - समता (Equality) –
अवसरों और स्थितियों में समानता तथा किसी भी प्रकार के भेदभाव का उन्मूलन। - बंधुता (Fraternity) –
राष्ट्र की एकता और अखंडता के साथ-साथ सभी नागरिकों में भाईचारे और गरिमा का भाव।
4. प्रस्तावना के उद्देश्य
प्रस्तावना संविधान की आत्मा है, जिसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
- राज्य की प्रकृति का निर्धारण – भारत को संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य घोषित करना।
- मौलिक आदर्शों की स्थापना – न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता को राष्ट्र का आधार बनाना।
- राष्ट्रीय एकता और अखंडता – नागरिकों में आपसी भाईचारा और राष्ट्र की एकता बनाए रखना।
- जनसत्ता की घोषणा – शासन की शक्ति जनता में निहित होना।
- संविधान का उद्देश्य स्पष्ट करना – यह बताना कि संविधान क्यों बनाया गया और किस दिशा में देश को ले जाएगा।
5. प्रस्तावना का महत्व
- संविधान की प्रस्तावना – संविधान की आत्मा
इसे संविधान का परिचय-पत्र (Identity Card) कहा जाता है। यह संविधान में निहित मूल दर्शन और आदर्शों को दर्शाता है। - संविधान की व्याख्या में मार्गदर्शन
न्यायालय संविधान के प्रावधानों की व्याख्या करते समय प्रस्तावना में वर्णित आदर्शों और उद्देश्यों को आधार बना सकते हैं। - मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्वों से संबंध
प्रस्तावना के आदर्श मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों में भी परिलक्षित होते हैं। - राष्ट्रीय एकता का प्रतीक
यह हमें एक राष्ट्र के रूप में जोड़ता है, चाहे हमारी भाषा, धर्म या संस्कृति कुछ भी हो।
6. प्रस्तावना की न्यायिक स्थिति
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्रस्तावना संविधान का अभिन्न अंग है और इसे संविधान संशोधन के माध्यम से बदला जा सकता है, परंतु संविधान की “मूल संरचना” (Basic Structure) को नहीं बदला जा सकता। - बेरुबरी यूनियन मामला (1960)
प्रारंभ में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है, लेकिन बाद में केशवानंद भारती मामले में इस विचार को पलट दिया गया।
7. प्रस्तावना में संशोधन
केवल एक बार – 42वें संविधान संशोधन, 1976 – में प्रस्तावना में तीन शब्द जोड़े गए –
- समाजवादी
- पंथनिरपेक्ष
- राष्ट्रीय एकता और अखंडता (Unity and Integrity of the Nation)
8. निष्कर्ष
भारतीय संविधान की प्रस्तावना न केवल एक औपचारिक घोषणा है, बल्कि यह हमारे राष्ट्र का वैचारिक आधार है। इसमें वर्णित आदर्श और उद्देश्य हमारे लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करते हैं और हमें यह याद दिलाते हैं कि हमारे देश की नींव न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता पर टिकी है।
यह प्रस्तावना हमें एक दिशा देती है और यह सुनिश्चित करती है कि देश का हर नागरिक गरिमा, समान अवसर और स्वतंत्रता के साथ जीवन जी सके।