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🚔 थाने में पीड़ित की शिकायत दर्ज न करने पर कानूनी प्रावधान (2025)

🚔 थाने में पीड़ित की शिकायत दर्ज न करने पर कानूनी प्रावधान (2025)


          भारत में प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार है कि किसी भी अपराध की जानकारी पुलिस को दे और पुलिस उस पर उचित कार्यवाही करे। यदि पीड़ित या शिकायतकर्ता थाने में जाकर शिकायत (FIR) दर्ज कराना चाहता है और पुलिस अधिकारी शिकायत दर्ज करने से मना करता है, तो यह न केवल उसके अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि कानून के तहत दंडनीय भी है। 2025 में लागू नए आपराधिक कानूनों के तहत इस संबंध में स्पष्ट और कड़े प्रावधान किए गए हैं।


1. शिकायत दर्ज करने का कानूनी अधिकार :

भारत में अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita – BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 लागू हो चुके हैं। FIR दर्ज करने के प्रावधान BNSS, 2023 में शामिल हैं, जो पहले दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) में थे।

  • BNSS की धारा 173(1) (पूर्व CrPC की धारा 154) के अनुसार:
    यदि किसी व्यक्ति को यह सूचना मिलती है कि कोई संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) हुआ है, तो पुलिस अधिकारी बिना विलंब प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करेगा।
  • FIR लिखित या मौखिक दोनों तरीकों से दी जा सकती है। मौखिक सूचना को लिखित रूप में दर्ज करके शिकायतकर्ता से हस्ताक्षर कराना अनिवार्य है।

2. FIR दर्ज न करने पर कानूनी परिणाम :

BNSS, 2023 में स्पष्ट किया गया है कि यदि कोई पुलिस अधिकारी संज्ञेय अपराध की सूचना के बाद भी FIR दर्ज करने से मना करता है, तो यह कर्तव्य की अवहेलना मानी जाएगी।

  • BNSS धारा 173(3): यदि कोई अधिकारी FIR दर्ज करने से मना करता है, तो पीड़ित उच्च पुलिस अधिकारी (Superintendent of Police) के पास शिकायत कर सकता है, और SP को स्वयं FIR दर्ज कराने या जाँच करवाने का अधिकार है।
  • BNS, 2023 की धारा 184 (पूर्व IPC की धारा 166A): यदि पुलिस अधिकारी जानबूझकर FIR दर्ज करने से इनकार करता है, विशेष रूप से महिला पीड़ित के मामलों में (जैसे बलात्कार, छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न), तो उसे 2 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना हो सकता है।
  • महिला से संबंधित अपराध में FIR दर्ज न करना एक गंभीर आपराधिक अपराध माना जाता है।

3. पीड़ित के पास उपलब्ध कानूनी विकल्प :

यदि थाना FIR दर्ज नहीं करता, तो पीड़ित के पास निम्न विकल्प उपलब्ध हैं:

  1. SP/DCP के पास लिखित शिकायत (BNSS धारा 173(3)):
    SP को शिकायत करने पर वह स्वयं FIR दर्ज करेगा या अधीनस्थ अधिकारी को जाँच का आदेश देगा।
  2. न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास आवेदन (BNSS धारा 175, पूर्व CrPC धारा 156(3)):
    मजिस्ट्रेट पुलिस को FIR दर्ज करने और जाँच करने का आदेश दे सकता है।
  3. मानवाधिकार आयोग / महिला आयोग / अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग में शिकायत (यदि लागू हो):
    यह तब किया जा सकता है जब मामला मानवाधिकार उल्लंघन, महिला अपराध या SC/ST अत्याचार से संबंधित हो।
  4. हाईकोर्ट में रिट याचिका (Writ Petition):
    संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट से निर्देश (Mandamus) माँगे जा सकते हैं कि पुलिस FIR दर्ज करे।
  5. ऑनलाइन शिकायत पोर्टल:
    कई राज्यों में पुलिस की वेबसाइट या मोबाइल ऐप से FIR ऑनलाइन दर्ज कराई जा सकती है।

4. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय :

  • ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2014): सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संज्ञेय अपराध की सूचना मिलते ही FIR दर्ज करना अनिवार्य है; प्रारंभिक जांच केवल सीमित परिस्थितियों में ही की जा सकती है।
  • सुभाष कश्यप बनाम दिल्ली प्रशासन: FIR दर्ज न करने पर पीड़ित को मजिस्ट्रेट के पास जाने का अधिकार है।
  • प्रियांका श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2015): 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट के पास जाते समय हलफनामा और साक्ष्य देना जरूरी है।

5. 2025 के संदर्भ में बदलाव :

2025 में नए कानूनों (BNS, BNSS) के लागू होने के बाद:

  • FIR दर्ज करने का प्रावधान अधिक स्पष्ट और समयबद्ध बना दिया गया है।
  • महिला और बच्चों से जुड़े अपराधों में FIR दर्ज न करने पर कड़ी सजा का प्रावधान है।
  • इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से FIR दर्ज कराने की सुविधा अब अधिक राज्यों में लागू हो गई है।

6. निष्कर्ष

थाने में पीड़ित की शिकायत दर्ज न करना न केवल उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह कर्तव्य की अवहेलना और आपराधिक अपराध भी है। BNSS, 2023 और BNS, 2023 के तहत पुलिस अधिकारियों पर कड़ी जिम्मेदारी और दंड का प्रावधान है। पीड़ित को चाहिए कि वह अपने कानूनी अधिकारों के प्रति सजग रहे और उचित कानूनी विकल्पों का प्रयोग करे।