गर्भपात कानून और धार्मिक-सांस्कृतिक दृष्टिकोण

गर्भपात कानून और धार्मिक-सांस्कृतिक दृष्टिकोण

प्रस्तावना 

गर्भपात (Abortion) एक अत्यंत संवेदनशील और जटिल विषय है, जिसमें महिला के प्रजनन अधिकार, भ्रूण के जीवन का प्रश्न, चिकित्सा-नैतिकता, धार्मिक मान्यताएँ और सांस्कृतिक दृष्टिकोण, सभी एक साथ जुड़े होते हैं। यह केवल कानूनी मुद्दा नहीं बल्कि नैतिक, सामाजिक और भावनात्मक पहलुओं से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। दुनिया के विभिन्न देशों में गर्भपात को लेकर अलग-अलग कानून और नीतियाँ हैं, जो वहाँ की सामाजिक परिस्थितियों, धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक परंपराओं से प्रभावित होती हैं। भारत में गर्भपात को नियंत्रित करने के लिए चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम, 1971 (Medical Termination of Pregnancy Act, 1971) बनाया गया, जिसमें समय-समय पर संशोधन भी किए गए हैं।


1. गर्भपात का कानूनी परिप्रेक्ष्य

भारत में गर्भपात का मुख्य कानूनी ढांचा चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम (MTP Act) पर आधारित है। इसके अंतर्गत कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में गर्भपात की अनुमति दी गई है, जैसे—

  • गर्भवती महिला के जीवन को खतरा होना
  • भ्रूण में गंभीर विकृति या असामान्यता पाई जाना
  • गर्भधारण बलात्कार या अनैच्छिक यौन संबंध के कारण होना
  • गर्भवती महिला के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना होना

MTP अधिनियम 1971 के प्रमुख प्रावधान:

  • प्रारंभिक रूप से यह अधिनियम गर्भधारण के 20 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति देता था, परंतु 2021 के संशोधन में यह सीमा 24 सप्ताह कर दी गई (विशेष परिस्थितियों में)।
  • 20 सप्ताह तक गर्भपात के लिए एक पंजीकृत चिकित्सक की राय आवश्यक है, जबकि 20 से 24 सप्ताह के बीच दो चिकित्सकों की राय अनिवार्य है।
  • 24 सप्ताह से अधिक गर्भावस्था में केवल तब गर्भपात की अनुमति है जब महिला का जीवन संकट में हो।

2. धार्मिक दृष्टिकोण और गर्भपात

गर्भपात के प्रति धार्मिक दृष्टिकोण एक समान नहीं है। विभिन्न धर्मों में इसकी नैतिकता और वैधता पर अलग-अलग विचार पाए जाते हैं।

(क) हिंदू धर्म:
हिंदू धर्म में गर्भपात को सामान्यतः पाप माना गया है, क्योंकि गर्भ में स्थित भ्रूण को जीवित आत्मा माना जाता है। मनुस्मृति और अन्य धर्मग्रंथों में गर्भपात को गंभीर अधर्म बताया गया है। हालांकि, जीवन-रक्षा के लिए इसे आवश्यक होने पर कुछ ग्रंथ इसकी अनुमति देते हैं।

(ख) इस्लाम:
इस्लाम में गर्भपात पर प्रतिबंध है, लेकिन यदि माँ के जीवन को खतरा हो तो यह वैध माना जाता है। इस्लामी विद्वानों के बीच भ्रूण में “रूह” (आत्मा) प्रवेश करने के समय (अधिकांशतः 120 दिन) के बाद गर्भपात को पूरी तरह निषिद्ध माना जाता है।

(ग) ईसाई धर्म:
अधिकांश ईसाई मत पंथ गर्भपात का विरोध करते हैं और इसे भ्रूण-हत्या के समान मानते हैं। हालांकि, कुछ उदार दृष्टिकोण वाले ईसाई समूह जीवन-रक्षा और बलात्कार जैसी परिस्थितियों में गर्भपात को स्वीकार करते हैं।

(घ) बौद्ध धर्म:
बौद्ध धर्म में जीवन की शुरुआत गर्भाधान से मानी जाती है, इसलिए गर्भपात को जीव-हत्या के रूप में देखा जाता है। फिर भी, करुणा के सिद्धांत के तहत कुछ परिस्थितियों में इसे स्वीकार करने की प्रवृत्ति भी है।


3. सांस्कृतिक दृष्टिकोण

भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में गर्भपात के प्रति सांस्कृतिक दृष्टिकोण क्षेत्र, जाति, समुदाय और पारिवारिक मान्यताओं के आधार पर बदलता है।

  • ग्रामीण क्षेत्रों में धार्मिक और पारंपरिक मान्यताओं का प्रभाव अधिक होता है, जिससे गर्भपात को सामाजिक अपमान या पाप के रूप में देखा जाता है।
  • शहरी और शिक्षित समाज में इसे महिला के निजी निर्णय और स्वास्थ्य के अधिकार के रूप में स्वीकार करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
  • कन्या भ्रूण हत्या के मामलों ने गर्भपात के प्रति नकारात्मक छवि बनाई, जिसके चलते PCPNDT Act, 1994 (Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques Act) के माध्यम से लिंग चयन पर प्रतिबंध लगाया गया।

4. महिला के प्रजनन अधिकार बनाम भ्रूण के जीवन का अधिकार

गर्भपात के कानूनी और नैतिक विमर्श में दो प्रमुख पक्ष होते हैं:

  1. महिला का प्रजनन अधिकार: महिला को अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार और गर्भधारण/गर्भपात के बारे में निर्णय लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
  2. भ्रूण का जीवन का अधिकार: भ्रूण को भी एक संभावित जीवन के रूप में संरक्षण मिलना चाहिए।

कानून इन दोनों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता है।


5. अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण

दुनिया के कुछ देशों में गर्भपात पूरी तरह वैध है (जैसे—कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस), जबकि कुछ में यह केवल सीमित परिस्थितियों में मान्य है (जैसे—भारत, जापान)। वहीं, कई देशों में यह लगभग पूर्णतः प्रतिबंधित है (जैसे—एल साल्वाडोर, फिलीपींस)। संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि सुरक्षित और कानूनी गर्भपात महिला के स्वास्थ्य और अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक है।


6. चुनौतियाँ और विवाद

  • सुरक्षित गर्भपात सेवाओं की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षित चिकित्सक और उचित सुविधाओं का अभाव।
  • सामाजिक कलंक: गर्भपात कराने वाली महिलाओं को सामाजिक आलोचना का सामना करना पड़ता है।
  • कन्या भ्रूण हत्या: लिंग आधारित गर्भपात, जो लैंगिक असमानता को बढ़ाता है।
  • धार्मिक विरोध: धार्मिक मान्यताओं के कारण कानूनी प्रावधानों को लागू करने में कठिनाई।

7. रोकथाम और सुधार की रणनीतियाँ

  1. सार्वजनिक जागरूकता: गर्भपात के कानूनी अधिकार, सुरक्षित प्रक्रियाओं और भ्रूण-हत्या के दुष्परिणामों पर जागरूकता अभियान।
  2. स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार: ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों और आधुनिक चिकित्सा उपकरणों की उपलब्धता।
  3. धार्मिक संवाद: धार्मिक नेताओं और समुदायों के साथ संवाद स्थापित कर संतुलित दृष्टिकोण अपनाना।
  4. महिला सशक्तिकरण: शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना, ताकि वे सूचित निर्णय ले सकें।

8. निष्कर्ष

गर्भपात कानून और धार्मिक-सांस्कृतिक दृष्टिकोण के बीच सामंजस्य स्थापित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। कानून को महिला के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा के साथ भ्रूण के जीवन के सम्मान में संतुलन बनाना होगा। धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता का सम्मान करते हुए, महिला के प्रजनन अधिकार को एक मौलिक मानव अधिकार के रूप में मान्यता देनी होगी। सुरक्षित, कानूनी और नैतिक गर्भपात न केवल महिला के स्वास्थ्य की रक्षा करता है बल्कि समाज में लैंगिक समानता और गरिमा को भी बढ़ावा देता है।