धारा 27 भारतीय साक्ष्य अधिनियम – केवल खुलासा बयान पर दोषसिद्धि संभव नहीं : सुप्रीम कोर्ट का मार्गदर्शक निर्णय
प्रस्तावना
सुप्रीम कोर्ट ने Almesh Kumar बनाम बिहार राज्य [SLP (Crl.) No. 5392/2024, निर्णय वर्ष 2025] में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 27 के तहत प्राप्त जानकारी का साक्ष्य मूल्य (evidentiary value) केवल सहायक भूमिका निभा सकता है। यदि ऐसे खुलासा बयान (disclosure statement) के समर्थन में कोई स्वतंत्र और ठोस सबूत मौजूद नहीं है, तो दोषसिद्धि केवल इसी आधार पर नहीं की जा सकती।
मामले की पृष्ठभूमि
- आरोपी के खिलाफ एक गंभीर अपराध का मामला दर्ज था।
- पुलिस ने जांच के दौरान आरोपी से धारा 27 के तहत एक खुलासा बयान लिया, जिसमें अपराध से संबंधित जानकारी का उल्लेख था।
- अभियोजन पक्ष ने इसे ही मुख्य आधार मानते हुए दोषसिद्धि की मांग की।
- निचली अदालत और उच्च न्यायालय में इस बयान को अहम माना गया, लेकिन सहायक स्वतंत्र साक्ष्य की कमी पर सवाल उठे।
- अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) के रूप में पहुंचा।
कानूनी प्रावधान – धारा 27 भारतीय साक्ष्य अधिनियम
- सिद्धांत – यदि पुलिस हिरासत में आरोपी कोई सूचना देता है, और उस सूचना के आधार पर कोई वस्तु बरामद होती है या कोई तथ्य उजागर होता है, तो उतना ही हिस्सा साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य है जो उस तथ्य की खोज से सीधे संबंधित है।
- सीमा – पूरी स्वीकारोक्ति (confession) स्वीकार्य नहीं होती, केवल वही अंश मान्य है जो वस्तु/तथ्य की खोज से जुड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
- खुलासा बयान की सहायक भूमिका
- कोर्ट ने कहा कि धारा 27 के तहत प्राप्त सूचना महत्वपूर्ण सुराग प्रदान कर सकती है, जिससे जांच आगे बढ़ती है।
- लेकिन यह स्वतंत्र, निर्णायक और पूर्ण प्रमाण नहीं है, जो अकेले दोषसिद्धि का आधार बन सके।
- सहायक सबूत की आवश्यकता
- खुलासा बयान को प्रभावी बनाने के लिए अभियोजन को ऐसे स्वतंत्र साक्ष्य प्रस्तुत करने होते हैं, जो अपराध से आरोपी को जोड़ते हों।
- यदि अन्य गवाह, परिस्थितिजन्य साक्ष्य या वैज्ञानिक रिपोर्ट इसका समर्थन न करें, तो केवल बयान से संदेह से परे अपराध सिद्ध नहीं हो सकता।
- “Beyond Reasonable Doubt” मानक
- आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि के लिए अभियोजन को संदेह से परे अपराध सिद्ध करना अनिवार्य है।
- धारा 27 का खुलासा बयान इस मानक को अकेले पूरा नहीं करता।
- पुलिस जांच और निष्पक्षता
- कोर्ट ने जांच एजेंसियों को सचेत किया कि वे केवल आरोपी के खुलासे पर निर्भर न रहें, बल्कि ठोस corroborative evidence (समर्थनकारी साक्ष्य) जुटाएं।
निष्कर्ष और निर्णय
- चूंकि अभियोजन ने धारा 27 के खुलासा बयान के अतिरिक्त कोई ठोस स्वतंत्र साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया, सुप्रीम कोर्ट ने दोषसिद्धि को अस्थिर मानते हुए आरोपी को संदेह का लाभ (benefit of doubt) दिया।
- फैसला – केवल धारा 27 के तहत प्राप्त जानकारी के आधार पर, बिना अन्य सहायक सबूत के, किसी भी आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
कानूनी महत्व
- यह निर्णय आपराधिक न्याय प्रणाली में साक्ष्य की गुणवत्ता और मानक को मजबूत करता है।
- पुलिस व अभियोजन को यह स्पष्ट संदेश है कि खुलासा बयान केवल जांच का सुराग है, न कि दोषसिद्धि का अंतिम आधार।
- अदालतों को ऐसे मामलों में सावधानी बरतनी होगी जहां अभियोजन केवल आरोपी के बयान पर निर्भर है।