शीर्षक:
“बाल पोषण और कल्याण योजनाएँ: एक कानूनी विश्लेषण”
भूमिका
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में बाल पोषण और बाल कल्याण न केवल स्वास्थ्य और सामाजिक नीति का विषय हैं, बल्कि यह संविधान और कानून द्वारा संरक्षित मौलिक अधिकार का हिस्सा भी हैं। स्वस्थ बचपन न केवल व्यक्तिगत विकास का आधार है बल्कि देश के भविष्य की बुनियाद भी है।
संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) तथा अनुच्छेद 47 (राज्य का कर्तव्य – पोषण स्तर और जीवन स्तर में सुधार) स्पष्ट रूप से राज्य को यह दायित्व सौंपते हैं कि बच्चों को पोषण और कल्याण की सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ।
इस लेख में हम भारत में लागू बाल पोषण और कल्याण योजनाओं का कानूनी विश्लेषण करेंगे, जिसमें योजनाओं का ढांचा, कानूनी प्रावधान, न्यायालय की व्याख्या और सुधार की दिशा शामिल है।
1. कानूनी और संवैधानिक आधार
- भारतीय संविधान
- अनुच्छेद 21: जीवन के अधिकार में स्वास्थ्य और पोषण शामिल हैं (सुप्रीम कोर्ट के Right to Food केस में स्पष्ट)।
- अनुच्छेद 39(f): बच्चों को स्वस्थ विकास और संरक्षण का अधिकार।
- अनुच्छेद 45: 6 वर्ष तक के बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा, साथ में प्रारंभिक बचपन देखभाल और पोषण।
- अनुच्छेद 47: पोषण स्तर में सुधार और सार्वजनिक स्वास्थ्य की जिम्मेदारी।
- बाल अधिकार संरक्षण कानून
- Commissions for Protection of Child Rights Act, 2005 – राष्ट्रीय एवं राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की स्थापना।
- Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015 – अनाथ, परित्यक्त और संरक्षण की जरूरत वाले बच्चों के लिए देखभाल और पुनर्वास।
- अंतरराष्ट्रीय दायित्व
- भारत UN Convention on the Rights of the Child (UNCRC) का हस्ताक्षरकर्ता है, जो हर बच्चे के लिए पर्याप्त पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं का प्रावधान सुनिश्चित करता है।
2. प्रमुख बाल पोषण योजनाएँ
(A) एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना
- कानूनी स्थिति: 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने PUCL v. Union of India मामले में ICDS को कानूनी अधिकार के रूप में लागू करने का आदेश दिया।
- लाभार्थी:
- 6 वर्ष तक के बच्चे
- गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएँ
- सेवाएँ:
- पूरक पोषण
- स्वास्थ्य जांच
- टीकाकरण
- पूर्व-प्राथमिक शिक्षा
- पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा
- प्रवर्तन एजेंसी: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय।
(B) मध्याह्न भोजन योजना (Mid-Day Meal Scheme)
- कानूनी स्थिति: सुप्रीम कोर्ट ने इसे Right to Food केस (2001) में संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी।
- लाभार्थी:
- कक्षा 1 से 8 तक के सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों के छात्र।
- उद्देश्य:
- बच्चों के पोषण स्तर में सुधार।
- स्कूल उपस्थिति और नामांकन बढ़ाना।
(C) पोषण अभियान (Poshan Abhiyaan)
- कानूनी स्थिति: यह नीति कार्यक्रम है, लेकिन इसका उद्देश्य संविधान और ICDS आदेशों को लागू करना है।
- लक्ष्य: 2024 तक कुपोषण को 2% से 3% वार्षिक कमी के साथ घटाना।
- उपकरण: टेक्नोलॉजी-आधारित मॉनिटरिंग, जनजागरूकता अभियान।
(D) राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK)
- कानूनी उद्देश्य: बच्चों में जन्मजात विकार, बीमारियाँ, कमी और विकलांगता की प्रारंभिक पहचान और उपचार।
- लाभार्थी: 0 से 18 वर्ष तक के बच्चे।
3. न्यायिक दृष्टिकोण
- PUCL v. Union of India (2001)
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पोषण का अधिकार अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है।
- ICDS और Mid-Day Meal को लागू करना राज्य की कानूनी जिम्मेदारी है।
- People’s Union for Democratic Rights v. Union of India
- मजदूरों के बच्चों के लिए पोषण कार्यक्रमों को अनिवार्य करने पर जोर।
- Right to Food Campaign Cases
- नियमित रूप से आंगनवाड़ी सेवाओं और भोजन की गुणवत्ता की निगरानी का आदेश।
4. मौजूदा चुनौतियाँ
- कुपोषण का उच्च स्तर – NFHS-5 (2019-21) के अनुसार 35.5% बच्चे स्टंटेड (कम लंबाई) और 32.1% अंडरवेट हैं।
- कार्यान्वयन में कमी – आंगनवाड़ी केंद्रों की कमी, संसाधनों की सीमाएँ, प्रशिक्षित कर्मियों की कमी।
- भ्रष्टाचार और खाद्य गुणवत्ता की समस्या – कई राज्यों में घटिया भोजन और खाद्य विषाक्तता के मामले।
- डेटा की पारदर्शिता – वास्तविक लाभार्थियों का रिकॉर्ड अपूर्ण।
5. कानूनी सुधार और सुझाव
- अधिकार आधारित दृष्टिकोण (Rights-based Approach)
- ICDS और Mid-Day Meal को केवल नीति कार्यक्रम न मानकर कानून के तहत गारंटीकृत अधिकार बनाया जाए।
- न्यायिक प्रवर्तन
- सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा समय-समय पर अनुपालन रिपोर्ट की निगरानी।
- वित्तीय जवाबदेही
- योजनाओं के बजट और खर्च का सार्वजनिक ऑडिट।
- टेक्नोलॉजी का उपयोग
- POSHAN Tracker ऐप और GPS आधारित निगरानी से भोजन और सेवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण।
- सामुदायिक भागीदारी
- माता-पिता, स्कूल प्रबंधन समिति और ग्राम पंचायत की सीधी भागीदारी।
6. निष्कर्ष
बाल पोषण और कल्याण योजनाएँ भारत में बच्चों के जीवन के अधिकार और समाज के सतत विकास की आधारशिला हैं। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप और अंतरराष्ट्रीय संधियों के कारण इन योजनाओं को अब केवल सरकारी उदारता नहीं, बल्कि कानूनी बाध्यता माना जाता है।
हालाँकि, चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं—विशेषकर कुपोषण, कार्यान्वयन की कमी, और निगरानी व्यवस्था—लेकिन यदि नीति, कानून और समुदाय एक साथ काम करें, तो यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि भारत का हर बच्चा सुरक्षित, स्वस्थ और सशक्त भविष्य पाए।