“नौकरियों में आरक्षण और कानून: आम जनता की समझ के लिए”

“नौकरियों में आरक्षण और कानून: आम जनता की समझ के लिए”


प्रस्तावना

भारतीय समाज एक अत्यंत विविध और जटिल संरचना में बसा हुआ है, जिसमें जाति, धर्म, वर्ग और क्षेत्रीय असमानताएँ सदियों से चली आ रही हैं। सामाजिक समानता को स्थापित करने और ऐतिहासिक रूप से वंचित वर्गों को सशक्त करने के उद्देश्य से भारत के संविधान निर्माताओं ने आरक्षण व्यवस्था की नींव रखी। समय के साथ यह व्यवस्था शिक्षा और राजनीति के साथ-साथ सरकारी नौकरियों में भी लागू की गई।

आज भी “आरक्षण” शब्द पर बहस तेज़ रहती है – कुछ इसे सामाजिक न्याय का ज़रिया मानते हैं, तो कुछ इसे मेरिट का हनन। ऐसे में, आम जनता के लिए यह समझना जरूरी है कि नौकरियों में आरक्षण की कानूनी व्यवस्था क्या है, इसका इतिहास और वर्तमान क्या है, और यह व्यवस्था किन आधारों पर संचालित होती है। इस लेख में इन्हीं सभी पहलुओं पर चर्चा की गई है।


1. आरक्षण का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारतीय समाज में ऊँच-नीच और जातिगत भेदभाव एक लंबा इतिहास रखते हैं। विशेष रूप से अनुसूचित जातियाँ (SC) और अनुसूचित जनजातियाँ (ST) सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से बेहद पिछड़े हुए थे।

संविधान में प्रावधान:

  • भारत के संविधान में अनुच्छेद 16(4) में स्पष्ट कहा गया है कि राज्य, किसी भी पिछड़े वर्ग के लिए, जो राज्य की सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व रखता हो, आरक्षण प्रदान कर सकता है।
  • अनुच्छेद 335 में कहा गया है कि SC और ST के हितों का ध्यान रखते हुए योग्यता और प्रशासनिक कार्यकुशलता का भी सम्मान किया जाना चाहिए।

2. नौकरियों में आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था

अनुसूचित जातियाँ (SCs):

  • सरकारी नौकरियों में 15% आरक्षण।

अनुसूचित जनजातियाँ (STs):

  • सरकारी नौकरियों में 7.5% आरक्षण।

अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs):

  • मंडल आयोग की सिफारिशों के अनुसार 27% आरक्षण।
  • 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी केस में OBC आरक्षण को मान्यता दी।

आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS):

  • 2019 में 103वें संविधान संशोधन द्वारा 10% आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग (General category) के लिए भी लागू किया गया।

👉 इस प्रकार कुल आरक्षण केंद्र सरकार की नौकरियों में 59.5% हो चुका है।


3. आरक्षण के प्रकार

  1. सीधी भर्ती में आरक्षण – जैसे UPSC, SSC, या राज्य लोक सेवा आयोगों द्वारा कराई गई परीक्षाएं।
  2. पदोन्नति (Promotion) में आरक्षण – SC/ST को कुछ विभागों में पदोन्नति में भी आरक्षण प्राप्त है, लेकिन यह विषय अभी भी कानूनी बहस का हिस्सा है।
  3. क्षेत्रीय/राज्य आरक्षण – कुछ राज्यों में स्थानीय निवासियों को नौकरियों में प्राथमिकता दी जाती है।

4. प्रमुख न्यायिक निर्णय

(1) इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार (1992)

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% होनी चाहिए।
  • आर्थिक आधार पर आरक्षण को खारिज किया गया था (तब), पर अब 2019 में अलग कानून बनाकर लागू किया गया।

(2) नागराज केस (2006)

  • पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित था।
  • कोर्ट ने कहा कि राज्य को यह साबित करना होगा कि पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है और आरक्षण देना आवश्यक है।

(3) जनहित बनाम महाराष्ट्र सरकार (2021)

  • मराठा आरक्षण को रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा कि 50% सीमा को सिर्फ असाधारण परिस्थितियों में ही लांघा जा सकता है।

(4) जनहित बनाम भारत सरकार (2022) – EWS केस

  • सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक आधार पर आरक्षण को संवैधानिक माना, जिससे सामान्य वर्ग के गरीबों को भी 10% आरक्षण मिला।

5. आरक्षण से जुड़ी आम भ्रांतियाँ और तथ्य

भ्रांति तथ्य
आरक्षण केवल दलितों को मिलता है OBC और EWS को भी मिलता है
आरक्षण मेरिट को खत्म करता है आरक्षण सामाजिक बराबरी के लिए है, मेरिट की परीक्षा चयन प्रक्रिया में बरकरार रहती है
सभी SC/ST को आरक्षण का लाभ मिलता है कुछ वर्ग अब भी पूरी तरह लाभ से वंचित हैं (जैसे आदिम जनजातियाँ)
आरक्षण हमेशा के लिए रहेगा संविधान में आरक्षण को सीमित समय के लिए लाया गया था, लेकिन समाज में असमानता के चलते इसे बार-बार बढ़ाया गया

6. नौकरियों में आरक्षण की चुनौतियाँ

  • सामाजिक तनाव: कुछ लोग इसे जातिवाद बढ़ाने वाला मानते हैं।
  • योग्यता की अनदेखी: आरक्षण को मेरिट के खिलाफ बताया जाता है।
  • आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों की उपेक्षा: EWS आने से कुछ राहत जरूर मिली, लेकिन अब भी सामाजिक असंतुलन की शिकायतें हैं।
  • “क्रीमी लेयर” की समस्या (OBC वर्ग में): इसका मतलब है कि समृद्ध OBC परिवार बार-बार लाभ लेते हैं जबकि ज़रूरतमंद पीछे रह जाते हैं।

7. समाधान और सुधार के संभावित रास्ते

  1. शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार: ताकि सभी वर्गों के लोग बिना आरक्षण के भी सक्षम बन सकें।
  2. क्रीमी लेयर की सख्ती से पहचान: खासकर OBC आरक्षण में, ताकि लाभ ज़रूरतमंदों तक पहुँचे।
  3. नियमित समीक्षा: आरक्षण की स्थिति और आवश्यकता की समीक्षा होनी चाहिए।
  4. समाज में जागरूकता: आरक्षण को जातिगत नहीं बल्कि सामाजिक न्याय के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए।

8. आरक्षण के लिए कैसे आवेदन करें?

  • जाति प्रमाण पत्र (SC/ST/OBC): तहसील या नगर निगम से बनता है।
  • EWS प्रमाण पत्र: परिवार की वार्षिक आय ₹8 लाख से कम होनी चाहिए और अन्य शर्तें भी पूरी करनी होती हैं।
  • आरक्षित श्रेणी में आवेदन: सरकारी परीक्षाओं और सेवाओं में आवेदन करते समय श्रेणी का चयन करना होता है और प्रमाणपत्र जमा करना होता है।

निष्कर्ष

भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में आरक्षण केवल एक नीति नहीं बल्कि सामाजिक न्याय का एक महत्वपूर्ण औज़ार है। इसका उद्देश्य केवल कुछ वर्गों को विशेषाधिकार देना नहीं, बल्कि ऐतिहासिक रूप से वंचित वर्गों को बराबरी के मंच पर लाना है।

कानून, संविधान और न्यायपालिका ने आरक्षण की रूपरेखा को समय-समय पर परिभाषित और सीमित किया है ताकि इसका दुरुपयोग न हो और यह केवल ज़रूरतमंदों तक सीमित रहे। आम जनता को चाहिए कि वे इस संवेदनशील विषय को समझदारी से लें और समाज में समावेशिता, समानता और न्याय की दिशा में मिलकर काम करें।