प्रश्न: मध्यकालीन भारत में मुस्लिम शासन के दौरान लागू विधिक व्यवस्था का वर्णन कीजिए। क्या यह व्यवस्था हिन्दू विधियों से भिन्न थी? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
🔶 भूमिका:
भारत का मध्यकालीन इतिहास लगभग 12वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक फैला हुआ है, जब दिल्ली सल्तनत से लेकर मुगल साम्राज्य तक मुस्लिम शासकों का प्रभुत्व रहा। इस काल में विधिक व्यवस्था में गहरे परिवर्तन देखने को मिले। इस्लामी कानून यानी शरिया, राज्य प्रशासन और न्यायिक प्रणाली का प्रमुख आधार बन गया। इस विधिक प्रणाली में कुरान, हदीस, इज्मा और कियास जैसे इस्लामी स्रोतों का प्रयोग होता था।
यह प्रणाली तत्कालीन हिंदू विधि से काफी हद तक भिन्न थी, क्योंकि वह धर्मशास्त्र, स्मृतियों और आचार पर आधारित थी, जबकि मुस्लिम विधि धार्मिक ग्रंथों से प्रेरित और राज्य द्वारा लागू की गई एक व्यवस्थित विधिक प्रणाली थी। आइए विस्तृत रूप से समझते हैं।
🔶 1. मुस्लिम शासन के विधिक स्रोत (Sources of Law):
(क) शरिया (Islamic Law):
शरिया, इस्लामी जीवन और कानून का आधार है, जो निम्नलिखित चार स्तंभों पर आधारित है:
- कुरान – इस्लाम का पवित्र ग्रंथ
- हदीस – पैगंबर मोहम्मद साहब के कथन और कृत्य
- इज्मा – विद्वानों की सामूहिक सहमति
- कियास – तर्क आधारित निर्णय या न्यायिक विवेक
(ख) राजाज्ञा (Farman):
शासक द्वारा जारी आदेश और कानून। जब शरिया मौन होती थी, तब सुलतान की इच्छानुसार कानून बनाए जाते थे।
(ग) मजबी अदालती रिवाज (Fiqh):
इस्लामी न्यायशास्त्र, जिसे विभिन्न स्कूल ऑफ लॉ जैसे हनाफ़ी, शाफ़ई, मालिकी, और हंबली में विभाजित किया गया।
🔶 2. न्यायिक प्रणाली (Judicial System):
(क) सुलतान सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी था:
- वह अंतिम अपील सुनता था।
- कभी-कभी सीधे न्याय भी करता था।
(ख) क़ाज़ी (Qazi):
- वह इस्लामी विधियों के अनुसार मामलों का निपटारा करता था।
- प्रत्येक प्रांत और शहर में क़ाज़ी नियुक्त होता था।
(ग) मुख्तसर (Muhtasib):
- नैतिकता और सार्वजनिक व्यवस्था का निरीक्षण करता था।
- बाजार नियंत्रण, शुद्धता, चोरी आदि पर निगरानी रखता था।
(घ) फौजदारी एवं दीवानी अदालतें:
- दीवानी न्यायालय: संपत्ति, विवाह, उत्तराधिकार, कर संबंधी विवाद
- फौजदारी न्यायालय: अपराध, विद्रोह, हत्या, चोरी आदि
🔶 3. कानून के प्रकार:
(क) हुदूद (Hudood):
- ये शरिया द्वारा निश्चित अपराध थे, जिनके लिए कठोर दंड निर्धारित थे।
- जैसे – चोरी पर हाथ काटना, व्यभिचार पर पत्थर मारकर मृत्यु आदि।
(ख) क़िसास (Qisas):
- अपराधी को उसी प्रकार का दंड देना जैसा उसने किया।
(ग) दिया (Diyya):
- पीड़ित पक्ष को मुआवजा (रक्त धन) देना।
(घ) ताज़ीर (Tazir):
- वे अपराध जिनमें न्यायाधीश विवेक के अनुसार दंड निर्धारित करता था।
🔶 4. हिन्दू विधि और मुस्लिम विधि में अंतर:
विषय | हिन्दू विधि | मुस्लिम विधि |
---|---|---|
स्रोत | धर्मशास्त्र, स्मृति, आचार, वेद | कुरान, हदीस, इज्मा, कियास |
कानून की प्रकृति | धार्मिक परंपराओं पर आधारित | धर्मग्रंथ आधारित – शरिया |
न्यायालय | राजा, पंचायत, सभा | क़ाज़ी, मुफ्ती, सुलतान |
उत्तराधिकार नियम | पुत्र वंशज, वर्ग, जाति आधारित | पुरुष प्रधान, शरीयत के अनुसार बंटवारा |
दंड नीति | सामाजिक प्रतिष्ठा और वर्ण आधारित | हुदूद और क़िसास पर आधारित कठोर दंड |
न्याय का स्वरूप | नैतिक एवं सामाजिक शुद्धता | धार्मिक और कानूनी आदेश की अनुपालना |
🔶 5. हिन्दुओं के लिए विशेष व्यवस्था:
यद्यपि मुस्लिम शासनकाल में शरिया लागू थी, फिर भी हिन्दुओं को अपने धर्म और परंपराओं के अनुसार निजी कानून पालन की छूट दी जाती थी।
- हिन्दू विवाह, उत्तराधिकार, संपत्ति विवादों में ब्राह्मण विद्वानों और स्थानीय पंचायतों की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
- कई सुलतानों और मुगलों ने धार्मिक सहिष्णुता अपनाई और हिन्दुओं की विधिक स्वायत्तता को मान्यता दी।
उदाहरण:
- अकबर ने “सूले कुल” की नीति अपनाई और विभिन्न धर्मों के लिए सहिष्णुता दिखाई।
- कई मामलों में हिन्दू कानून विशेषज्ञ (पंडित) अदालतों में न्याय में सहायता करते थे।
🔶 6. प्रशासनिक न्याय का स्वरूप:
- सुलतान द्वारा नियुक्त दीवान, कोतवाल, और नायब जैसे अधिकारी स्थानीय विवादों का समाधान करते थे।
- शहरों में ‘कोतवाल’ न्याय, शांति व्यवस्था और पुलिस का कार्य संभालते थे।
- कानून और व्यवस्था को बनाए रखने हेतु राजाज्ञाएं (Farman) और दंड निर्धारित किए जाते थे।
🔶 7. आलोचना और सीमाएँ:
- मुस्लिम विधिक प्रणाली में धर्म की प्रधानता थी, जिससे गैर-मुस्लिमों को संपूर्ण विधिक संरक्षण नहीं मिल पाता था।
- दंड प्रणाली कई बार अत्यंत कठोर और अमानवीय थी (जैसे – अंग विच्छेद)।
- महिलाओं को कई मामलों में समान अधिकार नहीं दिए जाते थे, विशेषतः उत्तराधिकार में।
फिर भी, यह व्यवस्था उस समय के समाज और शासन की संरचना के अनुरूप थी, जिसमें कानून, धर्म और प्रशासन एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए थे।
🔶 निष्कर्ष:
मध्यकालीन भारत में मुस्लिम शासन के दौरान विकसित विधिक प्रणाली एक व्यवस्थित, धार्मिक ग्रंथों पर आधारित और केंद्रीकृत व्यवस्था थी। शरिया कानून, क़ाज़ियों की भूमिका, और सुलतान की सर्वोच्चता ने न्याय व्यवस्था को संगठित स्वरूप प्रदान किया। यह व्यवस्था हिन्दू विधियों से भिन्न थी, जो अधिकतर परंपरा, वर्ण व्यवस्था, और सामाजिक आचरण पर आधारित थीं।
हालाँकि, यह भी उल्लेखनीय है कि मुस्लिम शासकों ने बहुधा हिन्दुओं को उनके धार्मिक और सामाजिक विधानों का पालन करने की स्वतंत्रता दी। इस प्रकार, यह युग कानूनी विविधता और धार्मिक सहिष्णुता का एक महत्वपूर्ण कालखंड था, जिसने भारत की विधिक परंपरा को बहुस्तरीय स्वरूप प्रदान किया।